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वार्षिक सम्मेलन


वार्षिक सम्मेलन तथा डा. अम्बेडकर जयंती समारोह

समस्त  बंधुओं को यह सूचित करते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि १४ अप्रैल को डोम, डोमारहेला, सुदर्शन समाज का वार्षिक छत्तीसगढ़ स्तरीय सम्मेलन आयोजित कर रहे है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद से हमारे समाज को संगठित किये जाने की जरूरत महसूस हो रही थी ताकि छत्तीसगढ़ के सभी निवासी बंधु अपनी समस्याओं मुद्दो पर मिल बैठकर बातचीत कर सके। इसी उद्देश्य से हम दलित एवं स्त्री समाज के मुक्तिदाता बाबासाहेब डा.भीमराव आंबेडकर की जयंती पर एक सम्मेलन का आयोजन कर रहे है।

हम इस लक्ष्य के निकट है:-

१.      रायपुर में समाजिक भवन का निर्माण की किया जानाताकि जरूरत पड़ने पर सामाजिक कार्यक्रम किया जा सके एवं राजधानी आने वाले सभी समाजिक बंधुओं के लिए ठहरने कि व्यवस्था हो सके।

२.     जाति प्रमाण पत्र बनाने में आने वाली कठिनाईयों का निराकरण करना। (इस संबंध में डी.एम.ए. के एक प्रतीनिधी मंडल ने मुख्यमंत्रीजी से मुलाकात कर अपना निवेदन प्रस्तुत किया जिस पर कार्यवाही जारी है।)

इस अवसर पर इस वर्ष मुख्य परिक्षाओं में सफल हुई बच्चों का सम्मान करेगें। जिसमें प्रदेश के सभी जिलों के बच्चों को शामिल किया जावेगा। कृपया आने कि पूर्व सूचना देवें। इस संबंध में अपना निशुल्क पंजीयन तथा अन्य जानकारी हेतु निकट के निम्नलिखित प्रतिनीधियों से संम्पर्क करें।

 

कार्यक्रम दिनांक १४ अप्रैल २०११

११.३० से २.०० तक कार्यक्रम का उद्धाटन (आये हुऐ अतिथियों व्दारा डा. अम्बेडकर के कार्य पर केन्द्रित वक्तव्य)

२.०० से ३.०० तक    भोजन

३.०० से ४.०० तक   आपसी परिचय तथा समाज   कि समस्याओं पर केन्द्रित चर्चा

४.०० से ५.०० तक बच्चों का सम्मान एवं पुरस्कार वितरण

५.०० से ६.०० तक समाजिक समस्याओं एवे उसके उपचार हेतु ऐजेण्डे का अनुमोदन।

       अंबिकापुर:-दिवाकर प्रसाद इमालियाबिलासपुर:-राजकुमार समुंद्रेसचिन खुदशाहचिरीमीरी:-राजेश मलिकगौरी हथगेन ऐल्डरमैन चिरमीरी दुर्ग-भिलाई:-विजय मनहरेगणेश त्रिमले डोगंरगढ़:-उमेश हथेलघमतरी:- अमित वाल्मीकि कोरबा:-अशोक मलिकरमेश कुमाररायगढ़:-सुदेश कुमार लालारायपुर:- हरीश कुण्डे,मनोज कन्हैया मनेन्द्रगढ़:-राजा महतो पार्षद।

संयोजक - कैलाश खरे मो.097528774888,

आयोजक

दलित मुव्हमेन्ट ऐसोशियेशन रायपुरछत्तीसगढ़

शासन व्दारा मान्यता प्राप्त

पंजीयन क्रमांक ३२२० संम्पर्क करें 09977082331

दलित साहित्य-दलित चेतना व हिन्दी साहित्य पर विचार गोष्ठी

दलित चेतना व हिन्दी साहित्य पर विचार गोष्ठी

पिछले दिनों मायाराम सुरजन फाउण्डेशन द्वारा ''दलित चेतना एवं हिंदी साहित्य`` विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। युवा दलित लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता संजीव खुदशाह ने इस विषय पर विस्तार पूर्वक आलेख प्रस्तुत किया जिस पर उन्होने कहा की दलितों में आई सामाजिक चेतना एवं दलित चेतना में जमीन आसमान का फर्क है। अच्छे साफ कपड़े पहनना, विलासिता के वस्तु का संचय करना उच्च पदो में पहुचने का दंभ भरना समाजिक चेतना है किन्तु दलित चेतना इन सबसे परे अपने इतिहास को पहचानना, अपने शोषको की संस्कृति का तिरस्कार करना एवं डा. आम्बेडकर की विचार धारा का पालन करना है। श्री संजीव खुदशाह यह मानते है कि दलित साहित्य के केवल विचारात्क साहित्य का सृजन गैर दलित कर सकते है लेकिन वे सृजनात्मक साहित्य का सृजन वे नही कर सकते क्योकि यह वही लिख सकता है जिसने उस दंश को भोगा है। युवा विचारक तुहीन देब ने कार्यक्रम आयोजन की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला।

इस अवसर पर लेखक एवं समीक्षक डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव ने कहा की सवर्ण लेखक के द्वारा दलित साहित्य पर लिखी गई रचनाओं को सिरे से नकार देने के मै पक्ष में नही हूं अमृतलाल नागर, प्रेमचंद, नागार्जुन, हृदेयश जैसे लेखको ने इसी तरह की रचनाए लिखी है। उन्होने कई पौराणिक उदाहरण भी प्रस्तुत किये। दूरदर्शन के केन्द्र निदेशक टी.एस. गगन ने अपने उदबोधन में कहा की संजीव खुदशाह ने एक ज्वलंत विषय पर गंभीर बहस का मौका दिया है, उनके तर्क,  उनकी सहमती-असहमती पूर्वागह से परे है। वरिष्ठ पत्रकार ललित सुरजन ने कहा की इसी फाउण्डेशन से संजीव खुदशाह की पहली किताब ''सफाई कामगार समुदाय`` का  लोकार्पण किया गया था आज वे दूसरी बार इस मंच पर अतीथि के रूप में आमंत्रित है। आज दलित साहित्य अपनी सहमती असहमती के बीच से गुजर रहा है ऐसे वक्त कई दलित लेखक रंजनापूर्ण साहित्य का लेखन कर रहे है ऐसे दौर में संजीव खुदशाह जैसे दलित लेखक समग्र दृष्टिकोण से लिख रहे है ये एक अच्छी बात है। विख्यात समाज चिंतक डॉ. डी.के.मारोठिया ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की एवं दलित चेतना को रेखांकित करते हुए अपना उद्बोधन दिया। सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता एम.बी.चौरपगार ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम में गुलाब सिंह, गिरीश पंकज सदस्य साहित्य आकादमी, प्रदीप आचार्य , श्रीमति कौशल्यादेवी खुदशाह, शाबाना आजमी, सोनम, मोतिलाल धर्मकार, कैलाश खरे आदि बड़ी संख्या में प्रबुध्दजन उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन फाउण्डेशन के सचिव राजेन्द्र चांडक ने किया।

प्रस्तुति
सचिन कुमार

हीरा डोम की कविता


प्रथम हिन्दी दलित कविता

हीरा डोम की कविता

हमनी के रात दिन दुखवा भोगत बानी
हमनी के सहेबे से मिनती कराइबी । 
हमनी के दुख भगवनवो न देखत जे
हमनी के कबले कलेसवा उठाइबी  
पदरी साहब की कचहरी में जाइबजा । 
बेधरम हो के अंगरेज बन जाइबी ॥ 
हाय राम धरम न हमसे छोड़त बाजे । 
बेशरम होके कहाँ मुहवाँ दिखाईबी ॥ 
खंभवा को फारी प्रह्लाद के बचवले जा । 
ग्राह के मुंह से गजराज के बचवले ॥ 
धोती जुरजोधना के भइया छोरत रहे । 
परगट होके तहां कपड़ा बढ़वले ॥
मारले खानवा के पत ले विभीखना के ।
कानी उंगली पे धैके पथरा उठाइबे ॥
कहाँ लो सुतल बाटे सुनत न बाटे अब ।
डोम जानी हमनी के छुए से डेरइले ॥ 
हमनी के इनरा के निगीचे ना जाइबजा ।
पांकि में से भरी भरी पियतानी पानी ॥
पनही से पीटी पीटी हाथ गोड़ तोड़ ले हों ।
हमनी के इतना काहेको हलकानी 
हमनी के रात दिन दुखवा भोगत बानी
हमनी के सहेबे से मिनती कराइबी...
(1913
में हंस में प्रकाशित)