आखिर ब्राह्मण बेलगाम क्यों हो रहा है? After all, why is the Brahmin being unrestrained?

 

आखिर ब्राह्मण बेलगाम क्यों हो रहा है?

संजीव श्रमण

पिछले दिनों यह खबर चर्चा में रही की हवाई जहाज में शंकर मिश्रा नामक व्यक्ति ने एक 70 वर्षीय महिला के ऊपर पेशाब किया। यह मामला ठंडा ही नहीं होता उसके बाद फिर एक वीडियो वायरल होता है जिसमें सीमा द्विवेदी द्वारा छत्‍तीसगढ़ के आदिवासी हॉस्टल में बच्चों को बेरहमी से मारते पीटते नजर आती है। इसके बाद हाल ही में मध्‍यप्रदेश के सीधी में प्रवेश शुक्ला द्वारा एक आदिवासी युवक के ऊपर पेशाब करते हुए मामला वायरल होता है। इसके पहले उत्‍तर प्रदेश लखीमपुर खीरी में आशीष मिश्रा द्वारा  ओबीसी किसानों पर कार चलाने का वीडियो वायरल हो चुका है। यह लिस्ट लंबी है। बहुत सारी ऐसी घटनाएं लगातार घट रही है। जिसमें ब्राह्मण समाज का व्यक्ति बेलगाम होकर आपराधिक कृत्य कर रहा है मानो कि उसे किसी बात का डर ही नहीं है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है इस मुद्दे पर चर्चा जरूरी है।


ऐसी घटनाओं के पीछे सिर्फ दो कारण हो सकते हैं पहला तो यह कि वह समाज उद्दंड है पूरी तरह से भ्रष्ट है अथवा दूसरा कारण यह कि समुदाय को यह लगता है कि उसके अपराध करने के बावजूद उसका अपराध क्षमा कर दिया जाएगा। या उसे बचा लिया जायेगा। उसके जातीय श्रेष्ठता में कोई कमी नहीं आएगी। तब ही व्यक्ति इस प्रकार के कृत्‍य करता है।

इस प्रकार की आपराधिक घटनाएं यहां तक नहीं रुकती है। शंकर मिश्रा मामले में ब्राह्मण समाज ने बकायदा उनका सपोर्ट किया और कहा कि वह नशे में था। ठीक इसी प्रकार प्रवेश शुक्ला के मामले में भी अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा ने बकायदा सपोर्ट करने का एक लेटर जारी किया और प्रवेश शुक्ला के परिवार को 51 हजार रुपए की राशि भी दी। तथा ब्राह्मण समाज को उनके अकाउंट में रुपए जमा करने हेतु आवाहन भी किया।

यदि हिंदूवादी दृष्टिकोण से देखें तो ब्राह्मण और आदिवासी समाज दोनों हिंदू है। इस प्रकार ब्राह्मण महासभा को चाहिए था कि वह आदिवासी समाज को मदद करते । पूरे ब्राह्मण समाज की ओर से पूरे आदिवासी समाज से क्षमा मांगते। लेकिन हुआ इससे उल्टा। देखा जा रहा है कि लगातार ब्राह्मण समाज इस प्रकार के कृत्य में आंख मूंदकर ब्राह्मण आरोपियों का पक्ष लेता रहा है। जैसे कि मानो हिंदू राष्ट्र नहीं ब्राह्मण राष्ट्र का निर्माण होने वाला हो।

ऐसा नहीं है की सभी ब्राम्हण इस प्रकार के विचारधारा वाले हैं। खुद प्रवेश शुक्ला के वीडियो को वायरल करने में बड़ा योगदान सोशल मीडिया में ब्राह्मणों का रहा है। लेकिन इनकी संख्या उंगलियों में गिनने लायक है।

ब्राह्मण समाज में अपने आप को धार्मिक ग्रंथों में गरीब लाचार और विनम्र बताने की कोशिश की है। गरीब ब्राह्मण होने का बड़ा प्रोपेगेंडा किया। लेकिन आपको कहीं भी कोई ब्राह्मण गरीबी के कारण रिक्शा चलाते हुए या फिर नाली साफ करते हुए नहीं मिलेगा।

वर्तमान में ब्राह्मणों की स्थिति

आजादी के बाद ब्राह्मणों ने अपनी स्थिति को बेहद मजबूत बनाया है। जनसंख्या के मुताबिक पूरे देश में ब्राह्मणों की जनसंख्या दो या तीन परसेंट है। लेकिन वे शासन-प्रशासन राजनीति और साहित्य में 90% स्थानों पर कब्जा जमाए हुए। यह कब्‍जा उन्होंने ऐसे ही नहीं प्राप्त किया। उन्होंने बकायदा आरक्षण का डर दिखाकर क्षत्रिय और बनिया को वहां से बेदखल करके अपना कब्जा जमाया है। और यह प्रोपेगेंडा किया गया कि आरक्षण के कारण लोगों को मौका नहीं मिल पा रहा है।

जाने-माने सामाजिक चिंतक प्रोफेसर दिलीप मंडल अपने फेसबुक पेज में लिखते हैं कि

"1947 के उत्तर भारत के किसी भी सूबे की राजधानी के दफ्तरों के अफसरों की लिस्ट देख लीजिए. सीधा हिसाब मिलेगा. बड़े पदों पर मुख्य रूप में अंग्रेज. बाकी पदों पर ब्राह्मण, मुसलमान और कायस्थ लगभग बराबर और थोड़े से ठाकुर-वैश्य.  

ओबीसी और दलित या आदिवासी एक भी नहीं. दिल्ली के सरकारी दफ्तरों की शक्ल यही थी.

1947 के बाद अंग्रेज अफसर पूरी तरह चले गए और मुसलमान अफसरों का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान शिफ्ट कर गया.

इनसे खाली हुई जगह किसने भरी?

इसके लिए आपको 1950 के बाद के अफसरों की लिस्ट देखनी होगी. राष्ट्र को कौन चलाएंगे और राष्ट्र पर दबदबा किनका होगा, ये इसी समय तय हुआ है.

आजादी के बाद उच्च स्तरीय नौकरशाही में कायस्थ कम होते चले गए. सबसे बड़ा घाटा उनका हुआ. मुसलमान अफसरों की संख्या काफी कम हो गई.

यानी अंग्रेज गए, कायस्थ घटे और मुसलमान कम हो गए.

ये सारी खाली जगह किसने भरी?

समझ में नहीं आ रहा है तो भारत सरकार और राज्य सरकारों के सेक्रेटरी, एडिशनल सेक्रेटरी, डीजीपी, बैंकों और पीएसयू के चेयरमैन, एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर्स, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज, विदेशों में भारत के राजदूत इनकी लिस्ट देख लीजिए.

लेकिन वर्चस्व के इस दौर में भारत लगातार पिछड़ता चला गया. मानव विकास के इंडेक्स में भारत आज दुनिया का 130वें नंबर का देश है."

 

इसी प्रकार नवभारत टाइम्स 1 जुलाई 1990 में प्रकाशित 1935 से 90 तक नौकरियों में जाति आधारित प्रतिनिधित्व में कहा गया है कि 1935 में सबसे ज्यादा संख्या में कायस्थ नौकरियों में थे 40%, अंग्रेज 15%, मुसलमान 35%, ब्राह्मण 3%, अन्य ठाकुर बनिया 7%, नौकरियों में थे। आजादी के 60 साल बाद 1990 में स्थिति इसके उलट हो गई कायस्थ 2% हो गया, अंग्रेज चुकी ब्रिटेन चले गए तो उनका प्रतिशत 0% हो गया मुसलमान ज्यादातर पाकिस्तान चले गए इसलिए उनका प्रतिशत 1% हो गया। लेकिन ब्राह्मणों का प्रतिशत अप्रत्याशित रूप से बढ़ा वे 75% स्थान पर काबिज हो गए। इस प्रकार आप देख सकते हैं कि आजादी के बाद ब्राह्मणों ने खासतौर पर कायस्थ, ठाकुर, बनिया का प्रतिनिधित्व को कब्जा कर लिया और इसके लिए यह प्रोपेगेण्‍डा किया कि एससी एसटी ओबीसी के आरक्षण के कारण सवर्णों को नौकरी नहीं मिल पा रही है। हालांकि प्रस्तुत तालिका में दावा किया गया है कि यह नवभारत टाइम्स में प्रकाशित है लेकिन इसकी पुष्टि लेखक नहीं करता है।

1935 से 90 तक नौकरियों में जाति आधारित प्रतिनिधित्व


तो हम बातचीत कर रहे थे कि ब्राह्मण बेलगाम क्यों होता जा रहा है। ऊपर के तर्को और दिए गए तथ्यों से स्पष्ट हो रहा है कि आजादी के बाद ब्राह्मणों ने बहुत बड़ी संख्या में लोकतंत्र के चारों स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया पर 90% कब्जा जमाए रखा है। इस कारण इनके मामले या तो मीडिया में नहीं आते हैं। आते हैं तो उन्हें दबा दिया जाता। अगर सोशल मीडिया में आ भी गए तो कार्यपालिका, न्यायपालिका में उपस्थित उनके सगे संबंधी उन्हें हर हाल में बचा ले जाते हैं। प्रत्येक ब्राह्मणों को यह लगता है कि उन्हें बचा लिया जाएगा यह विश्वास उनके अंदर घर बना चुका है। भाजापा की सरकार में यह विश्‍वास और मजबूत हुआ है।  यही कारण है की ब्राह्मणों की इस प्रकार की अपराधिक प्रवृत्ति की संख्या लगातार बढ़ी है।

राजनीतिक खामियाजा किसको होगा?

ब्राह्मणों की इस हरकत का राजनीतिक खामियाजा निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ेगा। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने सबसे ज्यादा ब्राह्मण समाज को प्रमोट किया है और सबसे ज्यादा मंत्री पद न्यायपालिका में और मीडिया में ब्राह्मण समाज के व्यक्तियों को बैठाया गया है। क्योंकि भाजपा कि मातृ संगठन आर एस एस एक ब्राह्मण वादी संगठन है। भले ही भाजपा के मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री ओबीसी हैं लेकिन वह ब्राह्मणों के हितो को सर्वोपरि रखकर ही अपने सारे काम निपटाते हैं। इस कारण ब्राह्मणों को लगता है कि वह सचमुच इस धरती के देवता हैं और वह कुछ भी कर सकते हैं।  किसी के ऊपर भी मूत सकते हैं।

इसके कारण भारतीय जनता पार्टी की हिंदूवादी छवि को नुकसान पहुंचता है। आदिवासी और ओबीसी तथा दलित हिंदू इन सब घटनाओं से सीखता है। समझता है। कि क्या हिंदू राष्ट्र उनके लिए बन रहा है या सिर्फ ब्राह्मणों के लिए। निश्चित तौर पर इसका खामियाजा भविष्य में भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ेगा।



मुख्य आपत्ती क्या है?

ब्राह्मणों द्वारा जिस प्रकार से अपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है
यह एक कॉमन बात है। हर जाति में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग होते हैं। लेकिन उससे ज्यादा आपत्तिजनक बात यह है की कोई भी जाति का संगठन अपराधियों के पीछे आकर सपोर्ट में खड़ा नहीं होता है। जबकि ब्राह्मण अपराधियों के मामले में ब्राह्मण समाज के संगठन अपराधियों को सपोर्ट करने पर आमादा हो जाता है। यह घटना विचलित करने वाली है। इससे लोगों में यह संदेश जाता है की ब्राम्हण संगठन और ब्राम्‍हण अपराधियों से सांठगांठ है तथा ब्राह्मणों को हिंदुओं से कोई लेना-देना नहीं है। वह सिर्फ अपने जाति के बचाव के लिए ही विद्यमान है। जबकि ब्राम्‍हण समाज अपने आपको हिन्‍दूओं का रक्षक कहते नहीं थकता।



 

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