Fwd: [D.M.A.-:1855] आमिर खान सचमुच बधाई के पात्र हैं

             आमिर खान के सत्य मेव जयते के ८ जुलाई  २०१२ के एपिसोड पर  बुद्धिजीवियों की जो प्रतिक्रियाय्रें फेसबुक पर आयीं हैं, उनमें अधिकाँश निराश करने वाली हैं. ऐसा लगता है कि जिस तरह  वाल्मीकि समाज के लोगों ने उसे काफी पसंद किया है, उस तरह से  अन्य लोगों ने उसका स्वागत नहीं किया है. कुछ ने इसे गांधीवादी माडल से परोसा गया प्रोग्राम बताया है, तो कुछ की शिकायत यह है कि इसमें डा. आंबेडकर और उनके जाति उन्मूलन आन्दोलन का  जिक्र नहीं किया गया है. कुछ का यह कहना है कि आमिर खान नाम का आदमी सरोकार का धंधा कर रहा है, इसलिए वे इस प्रहसन को महत्व नहीं देते.  किसी ने यह भी कहा कि आमिर खान मैला उठाने के इशु को भी भुना रहा है. एक टिप्पणी यह भी है कि इस समस्या को समझने में आमिर खान ने बहुत ज्यादा समय लगा लिया. और भी बहुत सारी टिप्पणियां हैं, पर मुख्य रूप से दलित बुद्धिजीवी इसलिए ज्यादा नाराज़ हैं कि आमिर खान ने डा. आंबेडकर का उल्लेख क्यों नहीं किया? 
            मेरी समझ में नहीं आता कि ये कैसी सामजिक चिताओं के बुद्धिजीवी हैं कि दलित गरिमा के इतने जरुरी और महत्वपूर्ण सवाल को उठाने वाले प्रोग्राम का भी उन्होंने स्वागत नहीं किया. आमिर खान ने इस एपिसोड  में जिस शिद्दत से मानवीय गरिमा को केंद्र में रखा है, वह निश्चित रूप से स्वागत योग्य है. इसमें वाल्मीकि समुदाय की पीड़ा को ही नहीं, बल्कि चमारों की पीड़ा को भी दिखाया  गया है. केवल  हिन्दू समाज ही नहीं, बल्कि उसमें   मुस्लिम, ईसाई और सिख समाजों में  मौजूद जातिभेद का गन्दा चेहरा भी  दिखाया गया है.  मगर खेद है कि इन समाजों के लोगों की इस पर कोई टिप्पणी पढने को नहीं मिली. यह गाँधी और आंबेडकर के नज़रिए से जातिवाद पर बहस करने वाला कोई दार्शनिक  कार्यक्रम नहीं था, वरन यह एपिसोड देश के भद्र जनों की आँखों का जाला साफ़  करने के लिए था, ताकि वे  इक्कीसवीं सदी में भी छुआछूत और जातिभेद की भयानक मौजूदगी को देख लें.  माना  कि आमिर खान ने  पैसों के लिए सत्य मेव जयते बनाया है, इसमें सरोकारों के व्यवसायीकरण की बात भी गलत नहीं है, पर क्या इस आधार पर किसी रचनात्मक काम की आलोचना की जानी चाहिए?  जो व्यावसायिकता गंभीर सामजिक मुद्दों पर राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करती हो, जिसने  सरकारों तक को झकझोर दिया हो, उस व्यावसायिकता को कोसना सही समझ  नहीं है. इसी  बिना पर यदि कोई इसे आमिर खान का नाटक या प्रहसन समझता है, तो मुझे पक्का यकीन है कि सरोकारों से उसका रिश्ता हीनहीं है. संभवता ऐसे ही लोग आमिर खान का कार्यक्रम देख कर सवर्ण अस्मिता का सवाल उठा रहे हैं. क्या व्यवसायिकता के सन्दर्भ में उन दलित एन जी ओ  पर बात न करें, जो करोड़ों रूपये खर्च करके भी एक भी दलित समस्या पर देश का ध्यान आकर्षित नहीं कर सके, सिवाय सफाई कर्मचारी आन्दोलन को छोड़ कर; जिसके लीडर बेजवाडा बिलसन हैं. केवल इसी व्यक्ति को देश के चारों कोनों में जन आन्दोलन करने और सुप्रीम कोर्ट में मामला ले जाने का श्रेय जाता है. 
           मेरे लिए यह बड़ी ख़ुशी की बात है कि आमिर के प्रोग्राम को वाल्मीकि समाज के लोगों ने बहुत पसंद किया है. यह इसलिए भी कि इस  प्रोग्राम ने मैला साफ़ करने वाले लोगों की विचलित कर देने वाली जिन्दगी पर ज्यादा फोकस किया है. मुझे पूरा यकीन है कि इस ग्राम को देख कर बहुत से वाल्मीकि युवक-युवतियों में पढने के लिए संघर्ष की ललक पैदा हुई होगी. पर, उनमें से किसी ने भी गाँधी और बेडकर का सवाल नहीं उठाया. और न ही उन्होंने आमिर खान की नीयत पर सवाल उठाया है. बस आंबेडकर के नाम से वास्ता रखने वाले लोग  ही ये सवाल उठाया करते हैं. आंबेडकर मौजूद हैं, तो वे खुश, गाँधी गायब हैं, तो और भी खुश. ऐसे लोगों का क्या किया जाये, जो सिर्फ आंबेडकर का फोटो पोस्ट करने और जय भीम लिखने के सिवा कुछ नहीं करते. जब आमिर खान के प्रोग्राम में आंबेडकर का जिक्र न किये जाने की बात चली है, तो मुझे लगता है कि यह जिक्र डा. कौशल पवार अच्छे ढंग से कर सकतीं थीं. इस प्रोग्राम से यदि कोई हीरो बना है, तो डा. कौशल पवार ही बनीं हैं. जिस बेबाकी से उन्होंने अपनी पीड़ा और संघर्ष गाथा को प्रोग्राम में रखा, उस पूरी बातचीत में यदि वे डा. आंबेडकर को याद नहीं कर सकीं, तो जाहिर है कि आंबेडकर का उनकी जिंदगी में कोई रोल नहीं है. या वे भी वाल्मीकि समाज के उन लाखों लोगों में एक  हैं, जो आज भी आंबेडकर से नहीं जुड़े हैं. डा. कौशल लेखिका भी हैं, पर उन्होंने अपनी आत्मकथा नहीं लिखी. यदि 
लिखी होती, तो वे  हिंदी में पहली आत्मकथा लेखिका होतीं. मेरा सुझाव है कि वे आत्मकथा जरूर लिखें. 
        आमिर खान सचमुच  बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने दलित गरिमा के सवाल को  पूरे राष्ट्र की गरिमा का सवाल बनाने का सबसे जरूरी काम किया है. 
                
Kanwal Bharti
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(U.P.)
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अब आसानी से बनेगा जाति प्रमाण पत्र


(गौर तलब है कि सिर्फ छत्तीसगढ में दलितों एवं आदिवासियों को जाति प्रमाण पत्र बनाने के लिए तरह-तरह से उल्झाया जा रहा है। जिसके विरूध में हाई कोर्ट की फटकार के बावजूद शासन के कानों जूं तक नही रेगती।)

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की एकलपीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में जाति प्रमाणपत्र के लिए १९५० के भू-अभिलेखों की अनिवार्यता नहीं होने की बात कही है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इसके बिना नियमानुसार जाति प्रमाणपत्र बनाकर देने के निर्देश दिए हैं।
कोरिया जिले के मनेंद्रगढ़ निवासी रामसजीवन ने मनेंद्रगढ़ एसडीओ के समक्ष स्थाई जाति प्रमाणपत्र बनवाने आवेदन दिया था। १९५० के पूर्व के भू-अभिलेख रिकार्ड प्रस्तुत नहीं करने पर उसके आवेदन को निरस्त कर दिया गया। इस पर उसने अधिवक्ता जितेंद्र पाली एवं मतीन सिद्दीकी के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका लगाई। इसमें बताया गया कि १९७० में उनके पिता की नियुक्ति एसईसीएल में हुई। उन्हें छत्तीसगढ़ के कोयलांचल एरिया में पदस्थ किया गया। १० दिसंबर १९८१ गंज उसका जन्म छत्तीसगढ़ में हुआ। छत्तीसगढ़ शासन के सर्कुलर दिनांक २७ जून २००७ को छत्तीसगढ़ के मूल निवासियों को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार वह व्यक्ति जो केंद्र सरकार की नौकरी में छत्तीसगढ़ में पदस्थ हैं, वह उनकी पत्नी व बच्चे छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं। छत्तीसगढ़ शासन के कर्मचारी उसकी पत्नी व बच्चे छत्तीसगढ़ के नागरिक हैं। संवैधानिक पद पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त हुआ व्यक्ति उसकी पत्नी व बच्चे छत्तीसगढ़ के नागरिक होंगे। निगम, एजेंसी, कमिशन बोर्ड, बोर्ड के कर्मचारी व उनकी पत्नी व बच्चे छत्तीसगढ़ के नागरिक होंगे, परंतु उनकी जाति प्रेसीडेंटल आर्डर में दर्ज होनी चाहिए। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के न्यायादृष्टांत कुमारी माधुरी विरुद्ध एडिशनल कमिश्नर, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डीबी से पारित आदेश नरेंद्र डहरिया विरुद्ध छत्तीसगढ़ शासन में हुए निर्णय को प्रस्तुत किया गया। याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सतीश अग्निहोत्री ने अंतिम आदेश पारित कर एसडीओ मनेंद्रगढ़ को कहा है कि वे नियमानुसार याचिकाकर्ता को जाति प्रमाणपत्र बनाकर दें, इसके लिए १९५० का भू-अभिलेख रिकार्ड नहीं मांगा जाना चाहिए।
यदि इससे संबंधित कोई आदेश आपके पास मौजूद हो तो क़पया इस ईमेंल पर प्रेषित करने का कष्ट करें।

movementassociation.dalit@gmail.com

Fwd: प्रेस विज्ञप्ति

दलित मुव्हमेंट ऐसोसियेशन का वार्षिक सम्मेलन तथा डॉ अम्बेडकर जयंती समारोह

 १४ अप्रैल २०१२ को दलित मुव्हमेंट ऐसोसियेशन के तत्वाधान में डोमार-हेला महासम्मेलन तथा डॉं अम्बेडकर जयंती समारोह का आयोजन ऐसेमबली हाल, गास मेमोरियल सेन्टर, जय स्तंभ चौक रायपुर में किया गया। इस कार्यक्रम में अनुसूचित जाति आयोग के सचिव श्री एच.के.सिंह उईके, जी मुख्य अतिथी के रूप में उपस्थीत थे। सबसे पहले श्री हरीश कुण्डे जी ने इस कार्यक्रम तथा एसोसियेशन का परिचय दिया। प्रथम सत्र का संचालन श्रीमति जयश्री मानकर ने किया इस सत्र के वक्ता के रूप में बिलासपुर से आये श्री विश्वनाथ खुदशाह ने बाबा साहेब के द्वारा इस समाज पर किये गये उपकार पर प्रकाश डाला। तत्पश्चाल श्री ब्रजमोहन मानकर ने अपने वक्तव्य में कहा कि इस कार्यक्रम में समाज के लोग ज्यादा इस लिए नही आना चाहते क्योकि वे डरते है कि उनकी जाति की पोल न खुल जाये। मुख्य अतिथी श्री एच.के.सिंह उईकेजी ने अनुसूचित जाति आयोग के व्दारा दिये जाने वाली राहत एवं सुविधाओं की जानकारी दी। उन्होने बताया की जब तक दलित समाज एकजुट होकर बाबासाहेब के बताए रास्ते पर नही चलेगा। तब तक इस समाज का व्यक्ति तरक्की तो करेगा किन्तु बिखरा रहेगा। 
इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथी के रूप में उपस्थीत श्री सच्चिदानंद उपासनेजी ने दलित मुव्हमेंन्ट एशोसियेशन द्वारा प्रकाशित वार्षिक दलित उत्थान पत्रिका का लोकार्पण किया दलित लेखक श्री संजीव खुदशाह द्वारा संपादित इस पत्रिका की, श्री उपासनेजी ने भूरी भूरी प्रसंशा कि एवं कहा की डा अम्बेकर ने सिर्फ दलित समाज के लिए ही नही बल्की पूरे समाज में समता के लिए कार्य किया। आज वे सभी समता वादीयो के लिए प्रेरणा श्रोत है।
इस कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में भेघावी बच्चो को सम्मान दिया गया। इसी सत्र में जाति प्रमाण पत्र में आने वाली दिक्कतों एवं आरक्षण कोटे में ४ प्रतिशत की कमी किये जाने पर चर्चा की गई। बिलासपुर से आये श्री अनंत हथगेनजी ने आरक्षण व्यवस्था एवं जाति प्रमाण पत्र विषय पर गंभीरता से उदबोधन देते हुए कहा कि जिन छोटी छोटी दलित जातियों का जाति प्रमाण पत्र नही बनता है उनके बारे में यहां की बहुसंख्यक दलित जाति का कोई मददगार रवैया नही रहता है। यह फूट डालो राज करो नीति जैसा है।  
सत्र के अंत में एक समाजिक समस्याओं के उपचार हेतु ऐजेण्डे का अनुमोदन किया गया तथा एक समाज भवन रायपुर में निर्माण किये जाने पर सहमती जताई गई। यह भी तय किया गया कि एक प्रतिनीधि मंडल अपनी समस्याओ को लेकर मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन सौपेगा। इस कार्यक्रम में लगभग सभी जिलो से आये लोग शमिल हुऐ। इसे सफल बनाने में दलित मुव्हमेंन्ट ऐसोसियेशन के स्टेट कनवेनर डिस्ट्रीक्ट कनवेनर तथा समाजिक कार्यकर्ताओं ने बड़ा सहयोग दिया जिनमें शामिल है दिनेश पसेरिया, गणेश त्रिमले, ललित कुण्डे  तथा अनंत हथगेन।

भवदीय


हरीश कुण्डे
स्टेट कनवेनर
दलित मुव्हमेंट ऐसोसियेशन



Buddha is not an incarnation of Vishnu.

बुध्द पूर्णीमा पर विशेष

बुध्द विष्णु के अवतार नही है।

संजीव खुदशाह 
पिछड़ा वर्ग के अध्ययन से बुद्ध की जाति पर पुनर्विचार करना लाजमी है, क्योंकि इस जाति के आधार पर ही बुद्ध को ब्राम्हणों द्वारा विष्णु के दसवें अवतार के रूप में प्रतिस्थापित किया गया। इसी प्रतिस्थापना के खेल में बुद्ध की सारी उपलब्धियों पर पानी फेर दिया गया, क्योंकि इस स्थापना से बुद्धिजम का सीधे संविलियन हिन्दुइज्म में ही जाता है।

वास्तव में यह कोशिश हिन्दुवादियों द्वारा बुद्धिवादियों के पचाने की है। इस कोशिश के पीछे आम जनता में 'पिछड़ा वर्ग' अपनी प्रभुता कायम रखना रहा है। इसके एक मनतव्य यह भी रहा है कि बुद्ध धर्म हिन्दू धर्म की एक छोटी से शाखा प्रतीत हो तथा बुद्ध धर्म के प्रति आकर्षण खत्म हो जाये । ब्राम्हणवाद इस कोशिश में बहुत हद तक कामयाब भी रहा। वास्तव में अब बुद्ध का जाति पर पुनर्विचार किये जाने की नितांत आवश्यकता है। इस बात के प्रमाण अवश्य मिले हैं कि शाक्य जाति के थे, लेकिन ये जाति शूद्रों में शुमार होती थी।
बुद्ध को क्षत्रिय कहने का सबसे बड़ा कारण उनका शासक का पुत्र होना है, जबकि शासक किसी भी जाति का हो सकता था। ऐसे कई उदाहरण इतिहास में मौजूद हैं जिनमें यह तथ्य उभरकर आता है कि निचली जाति का व्यक्ति शासक बनने पर अपनी वंशवाली में सुधार कर क्षत्रिय जाति में स्थापित हो जाता है। ऐसे कृत्यों के ताजा उदाहरणों में महाराष्टं के शिवाजी तथा बंगाल के सेन वंश को लिया जा सकता है। इस आधार पर बुद्ध को शाक्य शूद्र वंश का कहने में कोई जल्दबाजी नहीं होगी, बल्कि कई जगह बुद्ध द्वारा ब्राम्हण के साथ वार्तालाप में शाक्यों का पक्ष लेते हुए विवरण दिया गया है, लेकिन बुद्धकाल में शाक्यों की जाति प्रतिष्ठि थी, ऐसा विवरण भी मिलता है। पहला प्रश्न यह उठता है कि बुद्ध हिन्दु थे या नहीं, तो उसका यह जवाब प्राप्त तथ्यों के आधार पर यह किया जा सकता है कि वे शाक्य थे और शाक्य भारत में एक हमलावर के रूप में आये, बाद में ये जाति भारतीयों के साथ मिल गई, साधारण भाषा में कहंे तो हिन्दुओं से मिल गए। चूंकि वे शासक वर्ग के थे अनचाहे ही क्षत्रिय होने का दर्जा पा गये, किन्तु महात्मा बुद्ध अपने कई उपदेशों में शाक्य होने का वर्णन करते हैं तथा शाक्यों का भरपूर पक्षपात करने की चेष्टा करते हैं। इससे यह अनुमान होता है कि उस समय शाक्य एवं ब्राम्हण में वर्ग संघर्ष जैसी स्थिति थी और बुद्ध धर्म का फैलना यह सिद्ध करता है कि शाक्यों ने अथवा बुद्ध ने हिन्दूवाद को जबरदस्त शिकस्त दी थी। 
गौरतलब तथ्य यह है कि बुद्ध ने कभी अपने-आपको क्षत्रिय नहीं कहा। बुद्ध और ब्राम्हण के वार्तालाप में एक जगह ब्राम्हण ने शाक्य को नीच शूद्र जाति बताया। इस पर अम्बष्ट माणवक का उनर ध्यान देने योग्य है-''श्रवण गौतम दुष्ट हैं। हे गौतम! शाक्य जाति चण्ड है। है गौतम! शाक्य जाति शूद्र है। हे गौतम! शाक्य जाति बकवादी है। इभ्य समान होने से शाक्य जाति ब्राम्हणों का सत्कार नहीं करते, ब्राम्हणों का मान नहीं करते, गुरूकार नहीं करते, ब्राम्हणों की पूजा नहीं करते।  इस बात से इस संभावना को और बल मिलता है कि ब्राम्हणों ने शाक्यों को इसी संघर्ष के कारण शूद्र में ढकेल दिया गया। बुद्ध काल में वे बुद्ध को शूद्र कहते रहे, बाद में लगभग 1000 साल बाद स्मृति काल में अचानक ब्राम्हणों ने बुद्ध को क्षत्रिय बना लिया, क्योंकि क्षत्रिय वर्ग ब्राम्हण का अनुगामी था। बुद्ध को क्षत्रिय बताने के दो फायदे थे1 उन्हें शूद्र से सीधे क्षत्रिय में पदोन्नत करने पर बुद्धवाद पर हिन्दुवाद लादा जा सकता था तथा तमाम आम जनता पिछड़ा वर्ग जो बुद्धिष्ठ थी, को बिना अनुष्ठान के ही हिन्दू में तब्दील किया जा सकता था।  यदि उन्हें शूद्र की संज्ञा दी जाती तो वे शूद्रों के स्थाई एवं अकाट्य भगवान बन जाते। उन्हें शूद्रों से अलग नहीं किया जा सकता और पूरी जनता हिन्दू धर्म से अलग मानी जाती । शाक्य कौन थे? श्री देवीप्रसाद चट्टोपध्याय जी अपने अध्ययन लोकायत में बुद्ध को एक जनजाति समाज का बताते है और तथ्य देते हैं। 
बुद्ध स्वयं शाक्य थे। यह याद रखना आवश्यक है कि उस समय शाक्य जनजातीय चरण में थे, यद्यपि विकास के काफी उच्च स्तर तक पहुंच चुके थे। कुछ अगे्रज विद्वान भी इस तथ्य को नहीं पकड़ पाए । आगे श्री देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय जी लिखते हैं कि ''शाक्य जनजाति के अंदर संभवत: कई कबीले 'गोत्र' थे। स्वयं बुद्ध गौतम ''गोत्र'' से थे। ऐसा कहा गया है कि यह ब्राम्हण कबीला था जो प्राचीन इसी १ऋषि१ गौतम के वंशज होने का दावा करते थे किन्तु इसका प्रमाण बहुत मामूली है । हमेंे कहीं भी यह नहीं मिलता कि शाक्य स्वयं को ब्राम्हण कहते हों। दूसरी और कई ऐसे कबीले हैं, जो इस आधार पर बुद्ध के अवशेषों के कुछ भाग पर अपना दावा करते हैं कि बुद्ध की भांति वे भी खनिय थे ।
यह खनिय का अर्थ योद्धा है१ इस प्रकार देवीप्रसाद जी शाक्य में जनजातीय होने के तथ्य देते हैं। भगवान बुद्ध का जन्म 567 ई.पू. तथा निर्वाण 487 ई.पू. माना जाता है। पिता का नाम शुद्दोधन और माता का नाम महामाया था। शुद्धोधन कपिलवस्तु गण के राजा थे। वे शाक्य जाति के इक्ष्वाकु वंश में थे। डॉ. बुद्ध प्रकाश कहते हैं कि यक्षु शब्द अक्वासा, अक्कका, यकाकू, यक्यू व इक्ष्वाकु का बदला हुआ रूप है। इनका सम्बन्ध उन हाइकसोस से हो सकता है जो सेमिटिक लोग थे जिनहोंने 19750 ई.पू. में मिश्र पर आक्रमण किया था । ये लोग मूल रूप से भूमध्य सागर तटीय प्रकार के लम्बे सिर वाले द्रविड़ लोग थे अर्थात बुद्ध आर्य नहीं थे । अनार्यो की तरह शाक्यों में गणतंत्र गणसंघ व्यवस्था थी । शाक्यगण वज्जीसंघ का एक घटकगण था । इसी प्रकार शाक्यों मेंे मातृप्रधान परिवार व्यवस्था थी ।`` श्री नवल वियोगी संदर्भ देते हुए लिखते हैं कि ''शाक्य बुद्ध का संबंध सूर्यवंश तथा इक्ष्वाकुओं की संतति से था । उनके धार्मिक जीवन के प्रारंभ में उन्हें नागराजा मुचलिंदा की शरण व सुरक्षा प्राप्त थी । जीवन पर्यंत नागों के साथ मित्रता के संबंध रहे और मुत्यु के समय के नाग राजाओं ने उनके अस्थि अवशेषों में से अपना हिस्सा मांगा और प्राप्त करने पर उन पर स्तूपों का निर्माण किया । डॉ नवल वियोगी अपनी इस बात के समर्थन में आगे कहते हैं कि -''बुद्ध धर्म तथा असुर नागों की संतानों में निकटता के क्या संबंध थे, इसके प्रमाण अमरावती व सांची के महास्तूपों के मूर्तियों तथा उभरे हुए चित्रों में मिलते हैं । इन महास्तूपों में हमें नागलोक, भगवान बुद्ध तथा उनके चिन्हों का सम्मान अथवा पूजा करते हुए दिखाई पड़ते हैं ।- - - इनमें से कुछ में बुद्ध के सिरों को फैले हुए सात नागफनों की सुरक्षा में देखा जाता है । यह नागफन नाग राजाओं की मुख्य पहचान है । ऐसा लगता है अवश्य ही बुद्ध व नाग जातियों में कोई खून का संबंध था ।`` अत: उपर्युक्त अध्ययन से हमें निम्नलिखित निष्कर्ष प्राप्त होते हैं । १. बुद्ध को क्षत्रिय कहने के पीछे केवल एक ही दावा है कि वो राजा की संतान है। यह एक बहुत ही हल्का दावा है । २. बुध़्द द्वारा कई जगह शाक्य का पक्ष लेते हुए ब्राम्हणों से विवाद करना तथा ब्राम्हणों द्वारा शाक्यों को नीचा दिखाने की कोशिश यह सिद्ध करती है कि शाक्य निश्चित रूप से वर्ण व्यवस्था से बाहर की जाति थी, क्योंकि शाक्यों के क्षत्रिय होने पर ब्राम्हणों द्वारा नीचा दिखाये जाने का प्रश्न ही नहीं उठता । ३. श्री देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय का तर्क कि शाक्य जनजातीय थे, बिना ठोस तथ्य के स्वीकार योग्य नहीं है, किन्तु ब्राम्हण नहीं है । 'गौतम` गोत्र के आधार पर उनके तर्क स्वीकार योग्य हैं । यदि थोड़ी देर के लिये श्री देवीप्रसाद चट्टोपध्याय का जनजातीय वाला तर्क स्वीकार कर लिया जाये तो श्री नवल वियोगी के द्वारा अनार्य होने के लिए दिये गये तथ्य उन्हें अनार्य तो सिद्ध करती है, किन्तु 'जनजातीय' होने पर अभी और पुष्टि की अपेक्षा है । ४. अब तक प्राप्त जानकारी के आधार पर इस नतीजे पर पहु!चा जा सकता है कि बुद्ध आर्य नहीं थे, न ही क्षत्रिय थे, किन्तु बुद्ध के नागवंशी संतति होने के स्पष्ट प्रमाण भी नहीं मिलते हैं । 5 डॉ. बुद्ध प्रकाश द्वारा प्रस्तुत तर्क कि` बुद्ध अनार्य है, स्वीकार योग्य है, क्योंकि अनार्य की विशेषता थी – 1गणतंत्र व्यवस्था 2. मातृप्रधान परिवार 3. द्रविड़ की तरह लम्बे सिर की बनावट ४. बुद्ध का संबंध सूर्यवंश तथा इक्ष्काकुओ से था, जो कि अनार्य वंश से सम्बन्धित थे। अत: इस निष्कर्ष की पुष्टि देती है कि बुद्ध भारत के मूलवासी अनार्य की संतान थे। इतिहास से ऐसा ज्ञात होता है कि बौद्ध शासकों के पतन के बाद स्मृति काल में ही बुद्ध की जाति बदल कर क्षत्रिय की गई तथा उन्हें विष्णु का दसवां अवतार भी इसी काल में बनाया गया । यह प्रव्यि बौद्धों का हिन्दुकरण कहलाती है
टीप:-इस लेख को प्रकाशित किया जा सकता है बशर्ते इसके स्त्रोत का उल्लेख अवश्य करते हुऐ हमें सूचीत करे।
पुस्तक अंश -आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग (पूर्वाग्रह मिथक एवं वास्तविकताएं) प्रकाशक शिल्‍पायन नई दिल्‍ली लेखक- संजीव खुदशाह 

निर्मल बाबा के बहाने बेपर्द न्यूज़ चैनल


नर्मलजीत सिंह नरुला
जो इन दिनों निर्मल बाबा के नाम से देश के 39 टीवी चैनलों पर काबिज हैं, चतरा, झारखंड से निर्वाचित लोकसभा सांसद इंदरसिंह नामधारी के साले हैं। निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह ने इससे पहले झारखंड में ठेकेदारी की, ईंट भट्टा चलाया, कपड़े की दुकान खोली और जब सब जगह से हताश और विफल हो गए तो सब कुछ छोड़ कर दिल्ली चले आए। यहां आकर उन्होंने ‘समागम’ शुरू किया, जिसमें देश के हजारों लोग शामिल होते रहे हैं। वर्चुअल स्पेस यानी इंटरनेट पर निर्मल बाबा से जुड़ी इस तरह की खबरें पिछले एक महीने से चल रही थीं।मीडिया से जुड़ी वेबसाइटें लगातार इस खबर की फॉलो-अप खबरें दे रही थीं। जबकि एकाध चैनलों को छोड़ दें तो देश के सभी प्रमुख राष्ट्रीय चैनलों पर लाखों रुपए लेकर निर्मल बाबा दरबार और समागम से जुड़े कार्यक्रम प्रसारित होते रहे। इन कार्यक्रमों में भोले श्रद्धालुओं को समस्याओं के टोटके सुझाए जाते थे। जहां तुक्का सही लगा, ‘बाबा’ उसे अदृश्य शक्ति की ‘किरपा’ बताते, जो उनके जरिए श्रद्धालु तक पहुंची! इस बीच इंडीजॉब्स डॉट हब पेजेज डॉट कॉम ने निर्मल बाबा के फ्रॉड होने का सवाल उठाया। उसे निर्मल दरबार की ओर से कानूनी नोटिस भेजा गया और सामग्री हटाने को कहा गया। अब वह पोस्ट इस वेबसाइट से हटा ली गई है। इसके बाद कई मीडिया वेबसाइटों को कानूनी नोटिस दिए जाने की बात प्रमुखता से आती रही। लेकिन किसी भी चैनल ने इससे संबंधित किसी भी तरह की खबर और निर्मल बाबा के विज्ञापन की शक्ल में कार्यक्रम दिखाए जाने को लेकर स्पष्टीकरण देना जरूरी नहीं समझा। टोटके जारी रहे और लंबे-चौड़े ‘कार्यक्रम’ से होने वाली भारी-भरकम कमाई भी। 11 अप्रैल को झारखंड से प्रकाशित दैनिक प्रभात खबर ने ‘‘कौन है निर्मल बाबा’’ शीर्षक से पहले पन्ने पर खबर छापी और फिर रोज उसका फॉलो-अप छापता रहा। हालांकि अखबार की इस खबर में ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसे पहले सोशल वेबसाइट और फेसबुक पर शाया न किया गया हो। लेकिन सांसद इंदरसिंह नामधारी का वह वक्तव्य प्रकाशित किए जाने से उन खबरों की आधिकारिक पुष्टि हो गई, जिसमें निर्मलजीत सिंह के अतीत का हवाला भी था। सबसे पहले 12 अप्रैल की शाम स्टार न्यूज ने ‘‘कृपा या कारोबार’’ नाम से निर्मल बाबा के पाखंड पर खबर प्रसारित की। चैनल ने दावा किया कि वह इस खबर को लेकर पिछले एक महीने से तैयारी कर रहा है, लेकिन उसकी इस खबर में उन्हीं बातों का दोहराव था, जो सोशल मीडिया पर प्रकाशित होती आई थीं। यहां तक कि निर्मल बाबा की कमाई के जो ब्योरे दिए, वे समागम में शामिल होने वाले लोगों और उनकी फीस को लेकर अनुमान के आधार पर ही निकाले गए थे। चैनल ने वह कार्यक्रम प्रसारित करने से पहले जो स्पष्टीकरण (डिस्क्लेमर) दिया, वह भी अपने आप में कम दिलचस्प नहीं था। बताया गया कि वह खुद भी निर्मल बाबा के कार्यक्रम को विज्ञापन की शक्ल में प्रसारित करता आया है, जिसे अगले महीने 12 मई से बंद कर देगा। किसी दूसरे विज्ञापन की तरह ही चैनल इसके लिए जिम्मेदार नहीं है। इस विज्ञापन की पूरी जिम्मेदारी निर्मल बाबा की संस्था निर्मल दरबार के ऊपर है। इसका मतलब है, चैनल निर्मल बाबा के खिलाफ खबर के बावजूद एक महीने तक पाखंड भरे विज्ञापन रूपी कार्यक्रमों को प्रसारित करता रहेगा। इस स्पष्टीकरण और आगे के प्रसारण को लेकर दो-तीन गंभीर सवाल उठते हैं। पहली बात तो यह कि 12 अप्रैल को जब चैनल को पता चल जाता है कि निर्मल बाबा पाखंडी है और दुनिया भर में अंधविश्वास फैलाने का काम कर रहा है, फिर भी व्यावसायिक करार के चलते इसका प्रसारण करता रहेगा। क्या किसी चैनल को कुछेक लाख रुपए के नुकसान की बात पर देश के करोड़ों लोगों के बीच अगले एक महीने तक अंधविश्वास फैलाने की छूट दी जा सकती है, जिसे वह खुद विवाद के घेरे में मानता है। दूसरा, अगर निर्मल बाबा समागम के कार्यक्रम विज्ञापन हैं तो स्टार न्यूज ही क्यों, बाकी न्यूज चैनल भी उसे ‘‘कार्यक्रम’’ की शक्ल में क्यों दिखाते आए हैं? उसे कार्यक्रमों की सूची में क्यों शामिल किया जाता रहा है? क्या किसी दूसरे विज्ञापन के बारे में चैनलों पर कभी बार-बार बताया जाता है कि कौन विज्ञापन कब-कब प्रसारित होगा? चैनलों का इस कदर पल्ला झाड़ लेना कि चूंकि यह विज्ञापन है, इसलिए उनकी जिम्मेदारी नहीं है, क्या सही है? पैसे के दम पर विज्ञापन देकर कोई भी कुछ भी प्रसारित करवा सकता है? फिर आने वाले समय में राजनीतिक विज्ञापन और पेड न्यूज से किस तरह लड़ा जा सकेगा? क्या यह पिछवाड़े से पेड न्यूज का प्रवेश नहीं है, जो पैसा देकर वह सब प्रसारित करवा ले, जो विज्ञापनदाता और विज्ञापन पाने वाले के हित में है, मगर समाज के अहित में? सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा गठित मीडिया मॉनिटरिंग सेल जब कभी बैठक करता है और चैनलों को स्कैन करके जो रिपोर्ट जारी करता है, उसके साथ विज्ञापन के निर्देश भी नत्थी करता है। क्या न्यूज चैनलों के लिए वह सब निरर्थक है? तीसरी, इन सबसे बड़ी बात यह है कि अगर ये विज्ञापन थे- जो थे ही- तो फिर टीआरपी चार्ट में उन्हें बाकायदा चैनल कंटेंट के रूप में क्यों शामिल किया जाता है? न्यूज 24, जिसने सबसे पहले निर्मल बाबा के विज्ञापन को कमाई का जरिया बनाया, जिसका एक भी कार्यक्रम (कालचक्र को छोड़ दें तो) टॉप 5 में नहीं रहा, पिछले दो महीने से निर्मल बाबा पर प्रसारित विज्ञापन इस सूची में शामिल रहा है? क्या इससे पहले कोई और विज्ञापन बतौर चैनल कंटेंट टीआरपी चार्ट में शामिल किया गया है और उसके दम पर चैनल की सेहत सुधारने की कवायद की गई है? गोरखधंधे का यह खेल क्या सिर्फ निर्मल बाबा और टीवी चैनलों तक सीमित है या फिर इसका विस्तार टीआरपी सिस्टम तक होता है? निर्मल बाबा के इस विज्ञापन ने टीवी चैनलों के व्याकरण और सरकारी निर्देशों को किस तरह से तहस-नहस किया है, इसे कुछ उदाहरणों के जरिए बेहतर समझा जा सकता है। हिस्ट्री चैनल, जो कि अपने तर्कसंगत विश्लेषण, शोध और तथ्यपरक सामग्री के लिए दुनिया भर में मशहूर है, वहां भी निर्मल बाबा समागम के कार्यक्रम बिना किसी तर्क और स्पष्टीकरण के प्रसारित किए जा रहे हैं। सीएनएन आइबीएन चैनल, जो कि स्टिंग ऑपरेशन के मामले में अपने को बादशाह मानता रहा है, वहां भी निर्मल बाबा का विज्ञापन चलाने के पहले उनकी पृष्ठभूमि की कोई पड़ताल शायद नहीं की गई। आजतक ने सप्ताह के बीतते हुए सच को जानने-बताने का जरूर जतन किया, कुछ तार्किक लोगों से बात की, जिन्होंने निर्मल बाबा का उपहास किया। लेकिन निर्मल बाबा से की गई ‘एक्सक्लूसिव’ बातचीत काफी नरम थी। क्या यह अकारण है कि निर्मल बाबा ने बाकी हर चैनल को इंटरव्यू देने से इनकार कर दिया? 
वैसे तो टीवी चैनलों, खासकर न्यूज चैनलों पर संधि-सुधा, लाल- किताब, स्काई-शॉपिंग के विज्ञापनों के जरिए सरकारी निर्देशों की धज्जियां सालों से उड़ाई जा रही हैं। रात के ग्यारह-बारह बजे उनमें सिर्फ विज्ञापन या पेड कंटेंट दिखाए जाते हैं, जबकि उन्हें लाइसेंस चौबीस घंटे न्यूज चैनल चलाने का मिला है। लेकिन निर्मल बाबा के जरिए यह मामला तो प्राइम टाइम तक पहुंच गया। सवाल है कि जब इन चैनलों के पास चौबीस घंटे न्यूज चलाने की सामग्री या क्षमता नहीं है, तो उन्हें चौबीस घंटे चैनल चलाने का लाइसेंस क्यों दिया जाए? दूसरे, क्या दिन में दो-तीन बार आधे-आधे घंटे के लिए लगातार ऐसे विज्ञापन प्रसारित करना केबल एक्ट के अनुसार सही है? गौर करने की बात है कि इस तरह के लंबे-चौड़े कार्यक्रम-रूपी विज्ञापनों में प्रसिद्ध अभिनेताओं का इस्तेमाल भी होता है, जो मासूम दर्शकों को विज्ञापन के ‘कार्यक्रम’ होने का छलावा पैदा करने में मदद करते हैं। 
2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ जो तमाशे दिखाए गए और अण्णा के लाइव कवरेज से 37.5 की रिकॉर्डतोड़ टीआरपी मिली, उससे टीवी संपादकों का सुर अचानक बदला। शायद टीआरपी की इस सफलता के दम पर ही न्यूज चैनलों के हित में काम करने वाले बीइए और एनबीए जैसे संगठनों ने दावा किया कि इस देश को अण्णा की जरूरत है! अब निर्मल बाबा की टीआरपी अण्णा के उस रिकार्ड को तोड़ कर चालीस तक पहुंच गई है, तो इसका मतलब क्या यह होगा कि देश को लोगों को चूना लगाने वालों की जरूरत है? संभव है कि स्टार न्यूज ने निर्मल बाबा के खिलाफ जो खबर प्रसारित की है, उसकी टीआरपी समागम से भी ज्यादा मिले। यह भी संभव है कि आजतक पर प्रसारित निर्मल बाबा के इंटरव्यू को सबसे ज्यादा देखा गया हो। ऐसा भी हो सकता है कि चैनल अब एक दूसरे की देखादेखी निर्मल बाबा के खिलाफ शायद ज्यादा खबरें प्रसारित करें, क्योंकि सहयोग न करने वाले चैनल को बाबा के भारी – भरकम विज्ञापन मिलने बंद हो जाएंगे। अभी तो बाबा के कारनामों के बारे में जानकारी बहुत प्राथमिक स्तर पर है। तब और तफसील से सूचनाएं आने लगेंगी। लेकिन, क्या एक-एक करके दर्जनों चैनल निर्मल बाबा का असली चेहरा यानी धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाने वाला पाखंड साबित कर देते हैं तो इससे पूरा सच सामने आ जाएगा? दरअसल, यह तब तक आधा सच रहेगा, जब तक यह बात सामने नहीं आती कि इस करोड़ों (बाबा ने खुद यह राशि करीब 240 करोड़ रुपए सालाना बताई है) की कमाई से टीवी चैनलों की झोली में कितने करोड़ रुपए गए? 
तेज-तर्रार संपादकों के आगे ऐसी कौन-सी मजबूरी थी कि उन्होंने अपनी साख ताक पर रख कर इसे प्रसारित किया? क्या कोई संपादक हमारे टीवी चैनलों में ऐसा नहीं, जिसने जनता को गुमराह करने वाले कार्यक्रम-रूपी विज्ञापनों के खिलाफ आवाज उठाई हो? क्या टीवी चैनलों पर सचमुच संपादक हैं? यह सवाल इसलिए जरूरी है, क्योंकि पेड न्यूज मामले में हमने देखा कि 2011 में चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के विधायक उमलेश यादव की सदस्यता रद्द कर दी, लेकिन जिन दो अखबारों ने पैसे लेकर खबरें छापीं, वे अब भी सीना ताने खड़े हैं। निर्मल बाबा के खिलाफ न्यूज चैनलों द्वारा लगातार खबरें प्रसारित किए जाने से संभव है कि शायद उन पर भी कार्रवाई हो। लेकिन प्रसारित करने वाले 39 चैनल, जो कि इस अनाचार में बराबर के भागीदार हैं, उनका क्या होगा? भविष्य में और ‘निर्मल’ बाबाओं के पैदा होने न होने का मुद्दा भी इसी से जुड़ा है। (मूलतः जनसत्ता के रविवार के अंक में प्रकाशित )विनीत कुमार

दलित मुव्हमेन्ट ऐसोशियेशन कि ओर से बाबा साहेब डा अम्बेडकर जयंती कि लाखो बधाईयां।


जय भीम साथियों
आज हमें यह बतलाते हुए अत्यंत खुशी हो रही है कि आज से लगभग ५ वर्ष पहले शुरू किया गया यह प्रयास जो अति दलित जातियों को जागृत करने का उद्देश्य पर केन्द्रित था, आज पूरे देश में एक जाना पहचाना नाम है। दलित मुव्हमेन्ट ऐशोसियेशन का गठन ४ अगस्त २००६ को कुछेक ४-५ सदस्यों के साथ किया गया। हमने एक ऐसे प्लेटफार्म का निर्माण किया जहां सभी पिछड़ी जातियां एवं दबे कुचले वर्ग के लोग मिलकर अपने विचारों का आदान प्रदान कर सके। वर्तमान में हम डोमार, हेला, मखियार, वाल्मीकि आदि अति पिछड़ी दलित जातियों में सामाजिक चेतना का संचार करने के लिए प्रयासरत है।
इस संस्था के प्रारंभिक सोपान में हमने गुगल में एक ग्रुप का निर्माण किया जिसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ये 5000 से ज्यादा सदस्यों वाला देश का सबसे बड़ा समूह है। इस समय हमने इसका ब्लाग प्रारभ किया www.dalit-movement-association.blogspot.com इसमें दलित साहित्य से संबंधित किताबों की जानकारी १० किश्तों में प्रकाशित की गई। कई पुस्तक समीक्षाएं एवं दलितों के हित संबंधी जानकारी समय समय पर प्रकाशित होती रहती है। यह ब्लाग एवं ग्रुप आज देश का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ग्रुप है। इस गु्रप के दो मैनेजर निरंतर प्रबंधन का कार्य करते है। १. विनोद चारवंडे पुणे २. संजीव खुदशाह रायपुर।
इस संस्था ने मानव  अधिकार संस्थाओं के सहयोग से रायपुर, बिलासपुर एवं नागपुर में दलित हित पर कई कार्यक्रम कार्यशालाओं का आयोजन करावाया है। जिनमें दलित वकीलों का सेमीनार भी शामिल है।
इसके बाद सन २०१० में इसका विधिवत पंजीयन किया गया। इस प्रकार दलित मुव्हमेंन्ट ऐसोसियेशन अपने अधिनियम धाराओं सहित मजबूत संस्था का रूप ले लिया। परंपरानुसार संस्था का वार्षिक कार्यक्रम १४ अप्रैल को किया जाता है।
इसी बीच संस्था की कुछ उपलब्धियों से मै आपको अवगत कराना जरूरी समझता हू। पहला ये कि हमने क्ड। का अपना free sms service प्रारंभ किया है। जिसमें हम जरूरी सूचनाएं, शोध, समाचार आदि प्रेषित करते है। इस SMS का लाभ लेने हेतु आपको JOIN DMAINDIA लिखकर 09219592195 पर SMS करना है। इसके बाद आपको हमेशा बिना किसी शुल्क के एस.एम.एस. प्राप्त होता रहेगा। दूसरी उपलब्धि यह है कि हमने अपने ब्लाग में फ्री मेट्रीमोनी सेवा की शुरूआत कि, ताकि दलित समाज के लोग विवाह हेतु आसानी से रिश्ते तलाश कर सके।
तीसरी उपलब्धी यह है कि हमने राजधानी में अपने समाज का सामाजिक भवन हेतु भूमि की तलाश पूर्ण की। अभी इस भूमि को प्राप्त करने हेतु शासन स्तर पर कार्य प्रगति पर है। आशा करते है कि शीघ्र ही हम अपना अगला कार्यक्रम अपने भवन पर करेगे।
अंत में मै अपने सभी सामाजिक बन्धुओं से अनुरोध करूंगा की आईये, बाबा साहेब डॉ.अम्बेडकर के बताए रास्ते पर चले यही एक मात्र रास्ता है हमारे उज्जवल भविष्य का। संगठित हुए बिना विकास संभव नही है और संगठन हेतु तन-मन-धन की आवश्यकता होती है। यदि अपने समाज को उंचाई पर देखना चाहते हो तो समाज के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान करे। पादर्शिता हमारा संबल है अत: वार्षिक आय-व्यय की आडिट रिर्पोट हम अपनी पत्रिका दलित उत्थान में प्रकाशित करते है। आशा है यह प्रयास एक सकारात्मक सोच में सहायक होगा।
*संजीव खुदशाह* 

दलित मुव्हमेन्ट ऐसोशियेशन का वार्षिक सम्मेलन तथा डा. अम्बेडकर जयंती समारोह

दलित मुव्हमेन्ट ऐसोशियेशन छत्तीसगढ़ रायपुर

वार्षिक सम्मेलन तथा डा. अम्बेडकर जयंती समारोह


समस्त समाजिक बंधुओं को यह सूचित करते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि पिछले वर्ष की भांती १४ अप्रैल को डोमार,हेला, मखियार, सुदर्शन समाज का वार्षिक छत्तीसगढ़ स्तरीय सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद से हमारे समाज को संगठित किये जाने की जरूरत महसूस हो रही थी ताकि छत्तीसगढ़ के सभी निवासी बंधु अपनी समस्याओं मुद्दो पर मिल बैठकर बातचीत कर सके। इसी उद्देश्य से हम दलित एवं स्त्री समाज के मुक्तिदाता बाबासाहेब डा.भीमराव आंबेडकर की जयंती पर सामाजिक सम्मेलन का आयोजन कर रहे है।  इस कार्यक्रम में आप परिवार सहित आमंत्रित है।
हमें अपनी उपलब्धी पर गर्व है:-
१.     रायपुर में समाजिक भवन हेतु भूमि का चयन किया जा चुका है। इस भूमि को प्राप्त करने हेतु शासन स्तर पर कार्यवाही जारी है।
२.    डी.एम.ए. के वेबसाईट पर सामाज का मेट्रीमोनीयल वेबसाईट का शुभारंभ।
३.    समाजिक पत्रिका ''दलित उत्थान`` के प्रथम अंक का प्रकाशन।
४.    डी.एम.ए का अपना एस.एम.एस. सर्विस की शुरूआत। Free sms “JOIN DMAIDNA” TO 09219592195
हमारा लक्ष्य:-
१.     शीध्र ही रायपुर में सामाज हेतु भूमि को प्राप्त करने के लिए प्रदर्शन करना।
२.    हमारे आरक्षण कोटे में से ४ प्रतिशत की कटौती की गई है। विरोध प्रदर्शन करना।
३.    जाति प्रमाण पत्र बनाने में आने वाली कठिनाईयों का निराकरण करना। (इस संबंध में डी.एम.ए. के एक प्रतीनिधी मंडल ने मुख्यमंत्रीजी से मुलाकात कर अपना निवेदन प्रस्तुत किया जिस पर कार्यवाही जारी है।)
४.    समाज के लिए राज्य महादलित आयोग का गठन करवाना।


कार्यक्रम का विवरण


दिनांक १४ अप्रैल २०१२
स्थान:- रायपुर छ.ग.

प्रथम सत्र
द्वितीय सत्र
११.०० से २.०० तक कार्यक्रम का उद्धान
             (आये हुऐ अतिथियों व्दारा डा. अम्बेडकर के कार्य पर      केन्द्रित वक्तव्य)
२.०० से ३.०० तक भोजन
३.०० से ४.०० तक   सामाजिक पत्रिका दलित उत्थान का लोकार्पण  आपसी परिचय तथा समाज कि समस्याओं पर केन्द्रित चर्चा
४.०० से ५.०० तक बच्चों का सम्मान एवं पुरस्कार वितरण
५.०० से ६.०० तक   समाजिक समस्याओं एवे उसके उपचार हेतु ऐजेण्डे का अनुमोदन।
जिला संयोजक:- अंबिकापुर:-राजेश राउते, दिवाकर प्रसाद इमालिया, बिलासपुर:- अजिताभ खुरसैल अनंत हथगेन, राजकुमार समुंद्रे, सचिन खुदशाह, चिरीमीरी:-राजेश मलिक, गौरी हथगेन ऐल्डरमैन चिरमीरी, अजय बंदीश दुर्ग-भिलाई:-विजय मनहरे, राजेश कुण्डे, गणेश त्रिमले डोगंरगढ़:-उमेश हथेल, कोरबा:-अशोक मलिक, रमेश कुमार, रायगढ़:-सुदेश कुमार लाला, रायपुर:-, दिनेश पसेरिया, ललित कुण्डेमनोज कन्हैया मनेन्द्रगढ़:-राजा महतो।
राज्य संयोजक - कैलाश खरे मो-०९७५२८७७४८८, हरीश कुण्डे मो. ०९३०१०९९९६३, संजीव खुदशाह मो.०९९७७०८२३३१
टीप-हमे सामाजिक हित में कार्य करने हेतु आर्थिक मदद की आवश्यकता है। आपसे निवेदन है कि इस कार्य हेतु मुक्त हाथों से हमें आर्थिक सहयोग प्रदान करे। नगद सहयोग देकर रसीद प्राप्त करें, आप 'दलित मुव्हमेन्ट ऐसोशियेशन रायपुर` के नाम चेक से भी सहयोग कर सकते हैं एवं फडं ट्रासफर पध्दिती से दलित मुव्हमेंट ऐसोसियेशन के भारतीय स्टेट बैक खाता क्र. ३१७०४८८०६१० में भी मदद कर सकते है। आय व्यय की प्रमाणित प्रति प्रति वर्ष वेबसाईट पर प्रकाशित कि जाती है।

शिक्षित रहो संगठीत होकर संघर्ष करों
सूक्तियां
१.     डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त शिक्षा, समानता तथा आरक्षण जैसी सुविधाओं का लाभ उठाने में हमे कोई शर्म नही आती है। लेकिन उन्हे अपना मानने में हमे शर्म आती है, क्या ये सही है?
२.    इस समाज को नुकशान उन पढ़े-लिखे लोगों ने ज्यादा पहुचाया, जिन्होने डा. अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का लाभ लेकर उचाई का मकाम हासिल किया किन्तु उसी समाज तथा बाबा साहेब को तिरस्कृत करने में कोई कसर नही छोड़ी। ऐसे लोगो कि सामजिक, सार्वजनिक भर्त्सना की जानी चाहिए।
३.    जिस समाज का व्यक्ति प्रतिमाह एक दिन का वेतन समाज के लिए खर्च करता है। उस समाज को तरक्की करने से काई रोक नही सकता।
४.    जिस समाज के बुजूर्ग प्रतिवर्ष एक माह के पेंशन का पचास प्रतिशत समाज के लिए देते है। वह समाज शिखर पर होता है।
५.    ऐसी संस्कृति जिसने हमें हजारों सालों से गुलाम बनाये रखा, वा हमारी संस्कृति नही हो सकती।
६.    जिस धर्म ग्रन्थो ने हमें गाली दी, जिस संस्कृति ने हमें शोषित किया, जिन देवताओं ने हमारे पूर्वजों को मारा, वो धर्म वो संस्कृति वो देवता हमारे हो नही सकते।
७.    अपना इतिहास जानों, पूर्वजों की मूल संस्कृति का सम्मान करों, एवं शाषकों की संस्कृति का तिरस्कार करों।
८.    फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाने वालों को सजा नही दिया जाता बल्की जाति प्रमाण पत्र बनवाने में कड़े कानून बनाये जाते है ताकि भोली भाली जनता अपने मूलभूत संवैधानिक अधिकारों से मरहूम रहे। क्या ये शासन की जन कल्याण कारी योजना है?
यदि आप अपना विचार इस कार्यक्रम में व्यक्त करना चाहते है तो कृपया लिखित में १४.४.२०१२ के पूर्व हमें प्रेषित करें।
दलित मुव्हमेन्ट ऐसोशियेशन रायपुर, छत्तीसगढ़
शासन व्दारा मान्यता प्राप्त
पंजीयन क्रमांक/ छ.ग.राज्य ३२२०
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डोमार दलित जाति मध्यप्रदेश महाराष्ट्र छत्तीसगढ तथा यूपी में बहुसंख्या में निवास करती है। किन्तु सबसे नीचे के पायदान में आज भी है।

       ये एक आशर्चय जनक तथ्य है कि दलित आंदोलन से अछूती एक बङी जाति जिसे डोमार, डुमार नाम से पुकारा जाता है। पूरी तरह से एकता विहीन, असंघठित एवं अपनी पहचान बनाने में असफल  है। जबकि ये जाति बहुसंख्या में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ तथा यूपी में निवास करती है। ऐसी बात नही है क‍ि इस जाति मे पढे लिखे लोग नही है  ही ये बात है कि ये जाति बहुत ही गरीब है। बल्कि अंग्रेजकाल से रेल एवं नगर निकाय में काम करने वाली ये जाति शहरी सभ्यतासे जुङी हुई है। इसके बावजूद इस जाति के लोग अपनी पहचान छुपातेफिरते है खासकर वे लोग जो आरक्षण का लाभ पाकर उंचे ओहदे पर है। सिर्फ छिटकी बुंदकी के अधार पर शादियां तय करते है।
               इसी पहचान छुपाने कि प्रव्रित्ति ने इस समाज को विलुप्ति के कगार पर ला खङा किया। पहचान छिपाने कि इसी गरज से सुदर्शन समाज नाम का चोला पहना किन्तु बहुत जल्द इससे भी दूरियां हो गई कारण है सुदर्शन ऋषि से इस जाति का कोई संबंध नही था। ये तो सिर्फ वाल्मीकि (ऋषि) समाज का नकल मात्र था। आज जरूरत है कि इस समाज का व्यक्ति अपने आपको एक दलित के रूप में पेश करे अपनी जाति को न छिपायेतभी निक़ष्टतम कहलाने वाली इस जाति का उध्दार हो सकेगा।

इस
 जाति के लोगो के सरनेम इस प्रकार है

समुंद्रेखरेमोगरेसमनविरहाकलसियाकलसाभारतीसक्तेल,रक्सेलखोटेबनाफरबेरियाचमकेलतांबेजानोकरबढेलछडिले,छडिमलीकुण्डेचौहताबंदीशहाथीबेडमानकरमनहरेबंछोर,खुद‍िशाराउतेरेवतेराणाधर्मकारमधुमटकेबैसव्यासचुटेल,चुटेलकरपसेरकरबडगईयाबघेललद्रेइटकरेचौहानहथगेनत्रिमले,मोगरियासाधूपथरौलियावनराजडेलिकरहथेलडकहाग्राय,ग्रायकरमुंगेरमुंगेरियारबरसेपरागमलिककटारेकटारियाललपुरे,बैरिसालअतरबेलनन्हेटखुरसैलअसरेटबरसेहरसेमनवाटकर,लंगोटेसरवारी आदि।

जाति प्रमाण पत्र सत्यापित करने के लिए वर्ष 1950 के दस्तावेज प्रस्तुत करने की बाध्यता के खिलाफ बुद्धिस्ट सोसायटी आफ इंडिया व अन्य की याचिका खारिज

जाति प्रमाण पत्र सत्यापित करने के लिए वर्ष 1950 के दस्तावेज प्रस्तुत करने की बाध्यता के खिलाफ दायर याचिका बिलासपुर हाईकोर्ट ने पिछ्ले बुधवार को खारिज कर दी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि राज्य शासन का यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के खिलाफ है। बुद्धिस्ट सोसायटी आफ इंडिया व अन्य ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य शासन ने 23 जुलाई 2003 और 28 नवंबर 2006 को जो सरकुलर जारी किया है, उसे शून्य घोषित किया जाए। इस सरकुलर में शासन ने कहा था कि जाति के लिए आवेदन के साथ वर्ष 1950 के जमीन व परिवार संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत किए जाएं ताकि यह पता चल सके कि व्यक्ति के पूर्वज वास्तव में उल्लेखित जाति के थे और इस आधार पर उसे स्थाई जाति प्रमाणपत्र जारी किया जा सके। हाईपावर स्कूटनी कमेटी इसी सरकुलर के आधार पर किसी भी एडमिशन, नियुक्ति या प्रमोशन के पहले 1950 के जाति संबंधी दस्तावेजों की मांग करती है। यह बाध्यता भी खत्म की जाए। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि शासन का यह सरकुलर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने माधुरी पाटिल व पावेती गरी के मामले में जाति निर्धारित करने के लिए निर्देश तय किए हैं।

इसके आधार पर जो लोग छत्तीसगढ़ बनने की तारीख से प्रदेश में निवास कर रहे हैं, उस दौरान उनकी जो जाति निर्धारित थी, उसी आधार पर जाति सर्टिफिकेट जारी किए जाएं। चीफ जस्टिस राजीव गुप्ता, जस्टिस सुनील सिन्हा की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के बाद इसे जनहित का मुद्दा न मानते हुए याचिका खारिज कर दी।

देश एक, जाति एक, लेकिन प्रमाण पत्र बनाने के तरीके अनेक..... क्या ये दलितों आदिवासियों के साथ क्रूर मजाक है?

जाति प्रमाणपत्र प्राप्‍त करना

जाति प्रमाण पत्र क्या है और इसकी आवश्‍यकता क्‍यों होती है?

जाति प्रमाण पत्र किसी के जाति विशेष के होने का प्रमाण है विशेष कर ऐसे मामले में जब कोई अनुसूचित जाति का हो जैसा कि भारतीय संविधान में विनिर्दिष्‍ट है। सरकार ने अनुभव किया कि बाकी नागरिकों की तरह ही समान गति से उन्‍नति करने के लिए अनुसूचित जाति और जनजाति को विशेष प्रोत्‍साहन और अवसरों की आवश्‍यकता है। इसके परिणाम स्‍वरूप, रक्षात्‍मक भेदभाव की भारतीय प्रणाली के एक भाग के रूप में इस श्रेणी के नागरिकों को कुछ लाभ दिया जाता है, जैसा कि विधायिका और सरकारी सेवाओं में सीटों का आरक्षण, स्‍कूलों और कॉलेजों में दाखिला के लिए कुछ या पूरे शुल्‍क की छूट देना, शैक्षिक संस्‍थाओं में कोटा, कुछ नौकरियों में आवेदन करने के लिए ऊपरी आयु सीमा की छूट आदि। इन लाभों को प्राप्‍त करने में समर्थ होने के लिए अनुसूचित जाति का व्‍यक्ति के पास वैध जाति प्रमाण पत्र होना जरूरी है।

कानूनी ढांचा

भारतीय संविधान के अनुच्‍छेद 341 और 342 के अनुसरन में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सांविधिक सूची पहली बार संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 और संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश 1950 के तहत अधिसूचित की गई है
अधिसूचित की गई इन सूचियों को समय समय पर परिवर्तित, संशोधन/सम्‍पूरक किया गया। राज्‍यों के पुनसंगठन पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सूची (परिवर्तन) आदेश 29 अक्‍तूबर 1956 से प्रवृत्त हुआ। इसलिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सूची के संबंध में कुछ अन्‍य आदेश व्‍यष्टि राज्‍यों में प्रवृत्त हुए।
संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 के बारे में अधिक जानें(बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)

जाति प्रमाणपत्र प्राप्‍त करने के लिए आपको क्‍या करने की आवश्‍यकता है?

आवेदन प्रपत्र ऑनलाइन या शहर/नगर/गांव में स्‍थानीय संबंधित कार्यालय में उपलब्‍ध होता है, जो सामान्‍यता एसडीएम का कार्यालय (सब डिविज़नल मजिस्‍ट्रेट) या तहसील या राजस्‍व विभाग होता है। यदि आपके परिवार के किसी भी सदस्‍य को पहले जाति प्रमाणपत्र जारी करने के पहले स्‍थानीय पूछताछ की जाती है। न्‍यूनतम निर्दिष्‍ट अवधि तक आपके अपने राज्‍य में निवास का प्रमाणप एक वचन पत्र जिसमें यह उल्‍लेख हो कि आप अनुसूचित जाति के हैं और आवेदन के समय विशिष्‍ठ अदालती स्‍टैम्‍प शुल्‍क अपेक्षित होते हैं।

आपकी रूचि के सम्‍पर्क



आंध्र प्रदेश: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त
पास एमआरओ कार्यालय दृष्टिकोण और किसी भी कार्य दिवसों के दौरान निर्धारित प्रपत्र में आवेदन किया है.

अरुणाचल प्रदेश: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त

पात्रता

अरुणाचल प्रदेश के जनजातीय निवासियों.

संबंधित प्राधिकारी

जिले के उपायुक्त.

प्रक्रिया

  • आवेदक Gaun Bura या क्षेत्र में जो वह / वह जीवन के किसी भी अंचल समिति सदस्य के माध्यम से अपने / उसके आवेदन मार्ग की जरूरत है.
  • क्षेत्र के सर्किल अधिकारी तो आगे जिले के डीसी के लिए आवेदन.
  • डीसी पुष्टि एवं प्रमाण पत्र को मंजूरी दी है. यदि एडीसी नौकरी के साथ सौंपा है, एडीसी की पुष्टि और मुद्दों प्रमाणपत्र.

आवश्यक दस्तावेजों / कागजात

  • अनुसूचित जनजाति के आवेदन फार्म भरा है.
  • दो पासपोर्ट आकार के फोटोग्राफ.

शुल्क

रु. 25 / – जाति प्रमाणपत्र जारी करने के लिए.

प्रपत्र

अनुसूचित जनजाति के आवेदन पत्र उप आयुक्त के कार्यालय में बेचा जाता है. रूपों की ऑनलाइन प्रस्तुत संभव नहीं है. आवेदन के एक हस्ताक्षर की नकल प्रसंस्करण के लिए आवश्यक है.

छत्तीसगढ़: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

संबंधित प्राधिकारी

तहसील कार्यालय

प्रक्रिया

जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए एक आवेदन फार्म के लिए आवेदक द्वारा भरा हो गया है, जो की तुलना में अन्य शपथ पत्र भी उम्मीदवार, एक नोटरी के सामने शपथ लेने के बाद जमा किया जा द्वारा भरा होना आवश्यक है. हालांकि प्रमाणपत्र जारी करने के लिए कोई निर्दिष्ट समय प्रदान किया गया है, प्रक्रिया आम तौर पर एक सप्ताह के समय के भीतर पूरा हो गया है.

आवश्यक दस्तावेजों / कागजात

  • स्कूल शिक्षा प्रमाण पत्र (कक्षा 5, 8, 10, या 12 वीं) रहने की अवधि का एक सबूत के रूप में संलग्न किया जाना है.
  • विधिवत भरा हुआ और गांव पटवारी द्वारा हस्ताक्षर किए प्रारूप भी साथ इन रूपों के साथ निर्धारित प्रारूप में प्रस्तुत हो.

शुल्क

कोई शुल्क नहीं एक जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए आवश्यक है.
: अधिक जानकारी और प्रासंगिक रूपों से प्राप्त किया जा सकता है है http://www.chhattisgarh.nic.in

दिल्ली: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

जो 20.09.51 के बाद से किया गया है दिल्ली में रहने वाले, और अपने बच्चों के मामले में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र के जारी करने की प्रक्रिया निम्नानुसार है व्यक्तियों के मामले में:

संबंधित प्राधिकारी

आवश्यक दस्तावेजों

  • आवेदन प्रपत्र विधायक, सांसद, नगर पार्षदों या राजपत्रित अधिकारी द्वारा विधिवत अनुप्रमाणित.
  • राशन कार्ड या निवास के अन्य सबूत की कॉपी.
  • जन्म प्रमाणपत्र या स्कूल सर्टिफिकेट जन्म तिथि दिखा या यदि आवेदक अनपढ़ है, एक हलफनामा उम्र घोषणा.
  • एक हलफनामा घोषणा नाम, पिता का नाम, आवासीय पता, दिल्ली और जाति में निवास की अवधि, शपथ सार्वजनिक / आयुक्त नोटरी द्वारा अनुप्रमाणित.
  • मामले में आवेदक एक शादीशुदा औरत है शादी से पहले, आवासीय पते का सबूत है.
  • पिता / भाई / बहन के अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र, यदि कोई की प्रतिलिपि.
  • जहां कोई अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र आवेदक के परिवार के किसी भी सदस्य के लिए जारी किया गया है, दो गवाह है जो सरकारी कर्मचारियों के लिए लेखन है कि वे व्यक्ति और उसकी जाति को जानते में देने के लिए आवश्यक हैं, साथ – साथ उनके पहचान पत्र की प्रतियां साक्ष्यांकित.

शुल्क

शून्य

प्रक्रिया

  • मामले में आवेदक दिल्ली की एक स्थायी निवासी है और उसके परिवार के किसी सदस्य के लिए जारी अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र की एक प्रतिलिपि संलग्न है, कोई स्थानीय पूछताछ आयोजित किया जाता है. ऐसे एक मामले में संभागीय आयुक्त के कार्यालय में एसडीएम या सीसीएस शाखा के कार्यालय में उपलब्ध रिकार्ड से सत्यापन किया जाता है. कहाँ रिकॉर्ड एसडीएम या सीसीएस शाखा के कार्यालय में उपलब्ध नहीं है, एक स्थानीय जांच आयोजित किया जाता है.
  • मामले में आवेदक के परिवार का कोई सदस्य एक प्रमाण पत्र दिया गया है पहले जारी, एक स्थानीय जांच आयोजित किया जाता है.
  • एक शादीशुदा औरत के मामले में स्थानीय जांच निवास की शादी के लिए पहले स्थान पर आयोजित किया जाता है, के रूप में के रूप में अच्छी तरह से शादी के बाद निवास की जगह पर.
दिल्ली के लिए अधिसूचित अनुसूचित जाति की एक सूची के लिए यहाँ क्लिक करें (8 KB) (पीडीएफ फाइल जो एक नई विंडों में खुलती हैं ).
इस तरह के एक प्रमाणपत्र एक व्यक्ति को जारी नहीं किया अगर वह पहले से ही इस तरह के एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किए गए प्रमाण पत्र के कब्जे में है.

प्रपत्र

प्रतिक्रिया समय

  • अनुसूचित जाति दिल्ली राज्य प्रमाण पत्र 14 दिनों में जारी किए गए हैं.
  • अनुसूचित जाति अन्य राज्य प्रमाण पत्र 21 दिनों में जारी किए गए हैं, जांच से अन्य राज्य प्राप्त है प्रदान की.
  • तुम भी हो सकता है के माध्यम से अपने मामले की स्थिति की जाँच करें इस लिंक (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) समय – समय पर से. तुम भी 23392339/23392340 डायलन द्वारा या 9868231002 पर एसएमएस के माध्यम से आईवीआरएस का उपयोग कर सकते हैं.


गोवा: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

संबंधित प्राधिकारी

Mamlatdar

आवश्यक दस्तावेजों

निर्धारित प्रपत्र के साथ निम्नलिखित दस्तावेजों में लागू करें: (अनुबंध डी)
  • समाज में चिंतित से प्रमाण पत्र.
  • माता पिता की जाति प्रमाण पत्र निर्धारित प्राधिकारी द्वारा जारी किए गए.
  • निर्धारित प्रपत्र में एक शपथ – पत्र (अनुबंध ई).
  • आवेदन Talathi चिंतित करने के लिए भेजा जाएगा, 3 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट के लिए पूछ रही.
  • Mamlatdar Talathi रिपोर्ट प्राप्त करने के 2 दिनों के भीतर जाति प्रमाणपत्र जारी करेगा.

गुजरात: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

नागरिक सेवा केन्द्र आय प्रमाणपत्र, जाति प्रमाणपत्र, ओबीसी प्रमाणपत्र, आवासीय प्रमाणपत्र (जन्म और अधिक है तो तीन साल के लिए राज्य में रहने वाले द्वारा) और वरिष्ठ नागरिक प्रमाण पत्र की तरह विभिन्न सरकारी प्रमाण पत्र पाने के नागरिक के लिए एक खिड़की है. शपथ – पत्र के सभी प्रकार के लाइसेंस नवीकरण, याचिका लेखक नवीकरण, होटल लाइसेंस के नवीकरण और स्टाम्प वेंडर नवीकरण शस्त्र भी इस केन्द्र के माध्यम से जारी किए जाते हैं. नागरिक जिला जगह पर केन्द्र के लिए जाने के लिए और आवेदन दे दिया है. प्रमाण पत्र उसी दिन जारी किया जाएगा.

हरियाणा: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

संबंधित प्राधिकारी

उप – डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम)

प्रक्रिया

पटवारी और तहसीलदार से सत्यापन के बाद एसडीएम को लागू करें. जमा अपेक्षित शुल्क और निर्दिष्ट समय में प्रमाण पत्र मिलता है. NaiDISHA केंद्र में है, सत्यापन प्रक्रिया को पूरा करने के बाद, प्रक्रिया के अनुसार आवेदन शुल्क जमा और प्रमाण पत्र प्राप्त है.

हिमाचल प्रदेश: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त

प्राधिकरण चिंतित

जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति (Tehsiladar कार्यालय में पटवारी), जो राजस्व रिकॉर्ड (यदि आवेदक एक मालिक है) की जाँच करने के बाद, उसे वही देता है दृष्टिकोण. यदि आवेदक एक मालिक नहीं है, उसकी जानकारी क्षेत्र के जिम्मेदार व्यक्तियों से जाँच कर रहे हैं.

प्रक्रिया

आवेदक तहसील कार्यालय दृष्टिकोण और फार्म के माध्यम से लागू होता है और पटवारी द्वारा जारी किए गए कागजात को सबमिट. तहसीलदार कागजात की जाँच करें और कारण संतुष्टि के बाद, आवश्यक जाति प्रमाणपत्र जारी करेंगे.

कर्नाटक: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

के क्रम में विभिन्न पाठ्यक्रमों और नौकरियों में आरक्षण का लाभ उठा दावे के समर्थन में करने के लिए, आवेदकों सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा. कर्नाटक में, तहसीलदार, तहसील स्तर पदाधिकारी, जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत है.

प्रक्रिया

आवेदकों के लिए एक आवेदन प्रस्तुत अपनी जाति, आय, और तहसील कार्यालय के लिए अन्य प्रासंगिक जानकारी, क्षेत्राधिकार जिसका उम्मीदवार आमतौर पर रहता है के विवरण प्रस्तुत की जरूरत है. उम्मीदवार द्वारा प्रस्तुत आवेदन तहसील कार्यालय में परिचारिका द्वारा जांच किया जाएगा और तब संबंधित राजस्व अधिकारी (गांवों और शहरी क्षेत्रों के मामले में राजस्व निरीक्षक के मामले में ग्राम लेखाकार) को अग्रेषित किया जाएगा. राजस्व अधिकारी उम्मीदवार की जगह पर जाकर आवेदन के विवरण की पुष्टि और एक सिफारिश के साथ एक रिपोर्ट सौंपी. तहसीलदार की रिपोर्ट की पुष्टि और या तो मंजूरी दी है या disapproves सिफारिश. तहसीलदार आदेश के आधार पर प्रमाण पत्र / बेचान आवेदक को जारी किया जाता है.

संबंधित प्राधिकारी

ग्राम लेखाकार / राजस्व निरीक्षक, जैसा भी मामला हो सकता है, परिचारिका और तहसील कार्यालय में तहसीलदार.

केरल: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

ग्राम अधिकारी जाओ के अनुसार जाति प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार है (एमएस) 1979/06/08 दिनांक 1039/79/RD और जाओ (एमएस) 1982/08/20 दिनांक No.882/82/RD.
अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र को छोड़कर सभी जाति / समुदाय प्रमाण पत्र गांव अधिकारी द्वारा जारी किया जा रहा हैं. विधिवत कीमत पांच रुपए में चिपका एक अदालत शुल्क स्टांप के साथ निर्धारित प्रपत्र में आवेदन भरा स्कूल पंजीकरण के विवरण के साथ साथ ग्राम अधिकारी को प्रस्तुत किया है, आवेदक, राशन कार्ड और अन्य के माता पिता की जाति से संबंधित दस्तावेजों के लिए रिकॉर्ड का समर्थन आवेदक की जाति / धर्म साबित होते हैं. प्रमाण पत्र के अनुसार सरकार के परिपत्र dated.23.5.2002 No.24298/T4/2002/RD 3 दिनों के भीतर जारी किया जाएगा.
ग्राम अधिकारी रूपांतरण प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार है, परिपत्र के अनुसार दिनांक 15.12.1987.In मामले जहां प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जा सकता NO.18421/E2/87/SCSTDD, कारण 10 दिनों के भीतर आवेदक को सूचित किया जाएगा.
संपर्क पता - चिंतित ग्राम अधिकारी
सभी कार्य दिवसों में - कार्यालय स्थिति 10,00 AM – 5,00

प्रपत्र

आधिकारिक दस्तावेजों जाति अर्थात साबित - दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए.
  1. राशन कार्ड
  2. राज्य प्रमाण पत्र छोड़कर स्कूल (एसएसएलसी) की सत्यापित प्रतिलिपि बनाएँ
  3. यदि परिवर्तित, गजट अधिसूचना चिंतित
सभी प्रासंगिक समर्थन दस्तावेजों के लिए आवेदक द्वारा किए गए दावे को पुष्ट करने के लिए संलग्न किया जाना हैं.

लक्षद्वीप: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

द्वीप के किसी भी काम के घंटे के दौरान देशी उप मंडल अधिकारी / सहायक संबंधित द्वीप में उप मंडल अधिकारी के कार्यालय से इस सेवा का लाभ ले सकते हैं. जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए आवेदक को चिपका Re.1 अदालत शुल्क स्टांप के साथ पूर्व मुद्रित फार्म में अनुरोध प्रस्तुत करना चाहिए.

महाराष्ट्र: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

प्रक्रिया

कोई जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए इच्छा निवासी मुंबई के सिटी कलेक्टर के कार्यालय में उपलब्ध निर्धारित प्रोफार्मा में आवेदन पत्र भरने के लिए है.

आवश्यक दस्तावेजों / कागजात

  • न्यायालय रुपये का स्टांप शुल्क: 5 / – आवेदन पर चिपका है.
  • स्कूल प्रमाणपत्र / जन्म प्रमाण पत्र / सेवा किताब के पहले पृष्ठ की नकल की निकालने छोड़ रहा है, अगर आवेदक एक सरकार है. या अर्द्ध – सरकार. नौकर.
  • प्रथम पृष्ठ की प्रतियां और lthe / चुनावी / रोल किराया रसीद राशन कार्ड निकालने के ast पृष्ठ अनुप्रमाणित.
विवाहित महिलाओं के मामले में:
  • विवाहित महिलाओं के लिए उत्पादन स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र / उसके जन्म प्रमाण पत्र / सेवा किताब के पहले पृष्ठ की एक प्रतिलिपि निकालने, अगर आवेदक एक सरकारी या अर्द्ध सरकारी नौकर है, शादी से पहले उसकी जाति साबित.
  • विवाह प्रमाणपत्र या शादी के निमंत्रण कार्ड की अनुप्रमाणित प्रति.
  • सरकार के निकालने की अनुप्रमाणित प्रति. राजपत्र का नाम उसके परिवर्तन जिसमें शादी के बाद प्रकाशित हुआ है.
एक आवेदक जो अन्य राज्यों / जिलों से माइग्रेट करने के लिए जाति प्रमाण पत्र जारी करने का उत्पादन किया है उसका / उसकी / कि राज्य / जिला के सक्षम प्राधिकारी द्वारा पिता दादा.

मुंबई सिटी कलेक्टर कार्यालय का पता

जनरल शाखा मुंबई शहर
कलेक्टर कार्यालय,
मुंबई शहर जिला,
ग्राउंड फ्लोर,
ओल्ड कस्टम हाउस,
मुंबई

मिजोरम: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

पात्रता

कोई मिजो जिसका जन्म जगह या माता – पिता सरकार के क्षेत्राधिकार के हैं (ओं). मिजोरम के.

प्रक्रिया

  • आवेदन प्रपत्र / 5 रुपये के लिए कार्यालय समय के दौरान डीसी कार्यालय काउंटर से प्राप्त किया जा सकता है -.
  • VCP / / AO बीडीओ / विश्वसनीय राजपत्रित अधिकारी / कर्मचारी D.Cs एलडीसी ऊपर की सिफ़ारिश या टिप्पणी
  • अंतरजातीय विवाह के पैदा हुए बच्चे चिंतित VCP से प्रभाव के लिए एक प्रमाण पत्र संलग्न करना चाहिए.
  • न्यायिक शाखा, डीसी कार्यालय परिसर, आइजोल के लिए प्रस्तुत करना.

पुडुचेरी: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

पात्रता

किसी भी अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत कवर नागरिक, अति पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति समुदायों सेवा का लाभ ले सकते हैं.

संबंधित प्राधिकारी

चिंतित तहसील कार्यालय (तहसील) प्रमाणपत्र जारी करेगा.

आवश्यक दस्तावेजों

नागरिक को सादे कागज और निम्नलिखित समर्थन दस्तावेज में एक आवेदन प्रस्तुत किया है:
  • महाकाव्य कार्ड
  • राशन कार्ड
  • परिवार के सदस्यों आदि की जाति प्रमाण पत्र

शुल्क

  • टिकट के लिए 1 रुपये का एक मामूली शुल्क चार्ज किया जाता है. कोई विशिष्ट फार्म इस सेवा के लिए तैयार है और नागरिकों को इस सेवा का लाभ उठाने के लिए व्यक्ति में तालुक कार्यालय दृष्टिकोण है.

अन्य जानकारी

सामान्य जाति प्रमाण पत्र 1 वर्ष के लिए 6 महीनों के लिए ही सीमित वैधता है. पांडिचेरी में, भारत सरकार “स्थायी जाति प्रमाणपत्र” जो शिक्षा और रोजगार के प्रयोजनों के लिए 15 साल के लिए कानूनी वैधता है शुरू की है.

पंजाब: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

जाति प्रमाण पत्र

  • विभाग चिंतित
    एसडीएम कार्यालय / तहसील कार्यालय (राजस्व विभाग)
  • सेवा की स्कोप
    जाति प्रमाणपत्र जारी
  • पात्रता की शर्तें
    कम से कम पांच साल के लिए राज्य के स्थायी निवासियों.
  • कदम प्रक्रिया द्वारा कदम
i. चिंतित कार्यालय से आवेदन फार्म उपलब्ध है या इस साइट से डाउनलोड किया जा सकता है.
द्वितीय. रुपये के न्यायालय शुल्क के साथ संबंधित कार्यालय में प्रस्तुत करने से पहले पूरी तरह से भरा आवेदन सरपंच / / Nambardar एम सी द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिए. अपने आवासीय पता बताते हुए शपथ पत्र के साथ साथ, 1.25 कि इस तरह के प्रमाणपत्र की घोषणा से पहले नहीं किया गया है प्राप्त किया है.
iii. एसडीएम आवेदक के विवरण के सत्यापन के लिए संबंधित तहसीलदार करने के लिए इस आवेदन भेज देंगे.
iv. बारी में तहसीलदार आवेदक के विवरण के सत्यापन के लिए संबंधित राजस्व पटवारी के लिए उसकी / उसके आवेदन आगे होगा.
v. पटवारी बयान रिकॉर्ड, और मौके पर ही आवेदक Nambardar की और तहसीलदार के लिए अपनी रिपोर्ट के साथ आवेदन वापसी.
vi. तहसीलदार मामले वापस अपने टिप्पणियाँ / रिपोर्ट के साथ संबंधित एसडीएम रिटर्न.
vii. अंत में, एसडीएम officialFormalities की पूरा होने के बाद आवेदक को प्रमाण पत्र, मुद्दों.
  • दस्तावेजों की सूची की जाँच करें
i. आवेदन प्रपत्र
द्वितीय. अपने निवास का प्रमाण और खुद की घोषणा से संबंधित में हलफनामा जाति कहा.
iii. कोर्ट / 1.25 के शुल्क टिकटों – आवेदन पर चिपका.
  • सत्यापन प्रक्रिया
    पटवारी के माध्यम से राजस्व कर्मचारी से किया सत्यापन के बाद जारी किए गए प्रमाण पत्र.
  • निर्धारित समय अनुसूची
    सात दिन के भीतर प्रमाण पत्र जारी किया जाता है
  • संबंधित अधिकारियों के पते
    सब डिविजनल मजिस्ट्रेट
  • प्राधिकरण मंजूरी
    सब डिविजनल मजिस्ट्रेट
  • शिकायत निवारण प्रणाली
i. एसडीएम
द्वितीय. उपायुक्त
  • किसी भी अन्य जानकारी
    ये प्रमाण पत्र आम तौर पर सरकारी सेवाएँ / संस्थानों आदि में विभिन्न सरकारी योजनाओं और आरक्षण के लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं
  • पंजाब राज्य में अनुसूचित जातियों की सूची (संविधान अनुसूचित जाति) आदेश १,९५०)

राजस्थान: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

अन्य पिछड़ा वर्ग प्रमाण पत्र

पात्रता

एक व्यक्ति जो राजस्थान के राज्य में रहने और ओबीसी की सूची में निर्दिष्ट जाति के अंतर्गत आता है है, राजस्थान सरकार द्वारा जारी प्रमाण पत्र जारी किया जाता है.

प्रक्रिया

आवेदक निर्धारित संलग्न प्रारूप में अन्य पिछड़ा वर्ग जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए एक आवेदन प्रस्तुत करेगी. आवेदक के दस्तावेज के साथ निर्धारित प्रपत्र में संबंधित तहसीलदार करने के लिए लागू है.

आवश्यक दस्तावेजों / कागजात

  • पूरी तरह से रुपये की एक अदालत शुल्क टिकट के साथ आवेदन फार्म भरा है. 2
  • आवेदन प्रपत्र में दो सरकारी कर्मचारियों को प्रमाण पत्र
  • रुपए का एक हलफनामा. 10.00
  • राशन कार्ड की सत्यापित प्रतिलिपि
  • चिंतित पटवारी की रिपोर्ट
  • आय प्रमाण पत्र
  1. आवेदक की माँ और पिता के पैमाने पे कम रुपये तो होना चाहिए. 5,500-9,000, अगर माँ और पिता दोनों सरकारी सेवा में हैं.
  2. यदि एक आवेदक के माता या पिता सरकारी सेवा में है, तो वेतनमान रुपए से कम होना चाहिए. 8000-13500.
  3. यदि आवेदक के माता या पिता निजी सेवा में है या अपने स्वयं के व्यवसाय कर रहे है, तो पूरे वार्षिक आय रुपये की तुलना में कम किया जाना चाहिए. 2,50,000.
नोट: उम्मीदवार पिछले तीन वर्षों के आय कर रिटर्न जमा करना होगा.

अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र

पात्रता

प्रमाणपत्र एक व्यक्ति है जो राजस्थान के राज्य में रहने और जाति से अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति की सूची में निर्दिष्ट है के लिए जारी किया जाता है, राजस्थान सरकार द्वारा जारी किए गए.

प्रक्रिया

आवेदक निर्धारित नीचे संलग्न प्रारूप में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए एक आवेदन प्रस्तुत करेगी. आवेदक के लिए आवश्यक दस्तावेजों के साथ साथ निर्धारित प्रपत्र में संबंधित तहसीलदार लागू है.

आवश्यक दस्तावेजों / कागजात

  • पूरी तरह से रुपये की एक अदालत शुल्क टिकट के साथ आवेदन फार्म भरा है. 2
  • दो सरकारी कर्मचारियों को प्रमाण पत्र
  • 10 रुपये के एक हलफनामा
  • राशन कार्ड की सत्यापित प्रतिलिपि
  • चिंतित पटवारी की रिपोर्ट


सिक्किम: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

पात्रता

अनुसूचित जातियों, और सिक्किम में पैदा हुए सभी लोगों को, जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने के पात्र हैं. सिक्किम में सभी जिला कलेक्टरों कार्यालयों चिंतित अधिकारियों प्रमाणपत्र प्रदान कर रहे हैं. एक संबंधित एकल खिड़की काउंटर से जाति प्रमाण पत्र के लिए फार्म इकट्ठा है और भरे फार्म वहाँ जमा हो गया है.

आवश्यक दस्तावेजों

निम्नलिखित अनुप्रमाणित / प्रमाणित दस्तावेजों को आवेदक द्वारा प्रस्तुत किया जा रहे हैं:
  • सिक्किम विषय पहचान / Citizinship प्रमाणपत्र के प्रमाणपत्र / प्रमाणपत्र.
  • जन्म / प्रमाणपत्र पंचायत पिता और जाति के नाम प्रमाणित रिपोर्ट.
  • स्कूल पिता का नाम और स्कूल में प्रवेश पर रजिस्टर में दर्ज बच्चों के जन्म की सही तारीख के संकेत पिता एसएससी के समर्थन में प्रमाण पत्र.
  • पंचायत सत्यापन रिपोर्ट / क्षेत्र के विधायक से रिपोर्ट.
  • आवेदक के दो पासपोर्ट आकार के फोटोग्राफ.
ध्यान दें.
  • 18 वर्ष की आयु से ऊपर बच्चे के लिए एसएससी / COI एसएससी अपने पिता की बजाय अपनी खुद की एक प्रमाणित प्रतिलिपि का उत्पादन है.
  • मामले में आवेदक एसएससी / नहीं उसकी / उसके स्वयं के नाम posses में COI तो पुलिस सत्यापन रिपोर्ट की आवश्यकता है.
  • महिलाओं के मामले में, अपने जन्म प्रमाण पत्र / पंचायत रिपोर्ट करने के लिए पिता का नाम और उनके माता – पिता की जाति प्रमाणित करने के लिए उत्पादन किया जा है.

तमिलनाडु: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त

व्यक्तियों और सरकारी मशीनरी पर भी पर अनावश्यक दबाव की कमी के लिए स्थायी समुदाय प्रमाणपत्र जारी करने की व्यवस्था तमिलनाडु में वर्ष 1988 में शुरू की गई थी. यह सभी शैक्षिक संस्थानों और अन्य व्यावसायिक संस्थानों में भी और रोजगार के लिए प्रवेश हासिल के लिए वैध है.

पात्रता

स्थायी समुदाय प्रमाण पत्र जारी करने की यह प्रणाली संस्थानों तमिलनाडु में राज्य सरकार के नियंत्रण के तहत आने वाले के लिए लागू होगी. यह भारत सरकार के संस्थानों, उसके उपक्रमों और अन्य राज्य सरकारों पर कोई बंधन नहीं होगा.

प्रक्रिया

आवेदक के साथ या राजस्व निरीक्षकों / प्रशासनिक अधिकारी गांव की सिफारिश के बिना अनुरोध Tahsildars कर सकते हैं.
तहसीलदार एक समय था जब प्रमाणपत्र या तो उसे या उप तहसीलदार द्वारा जारी किया जाएगा तय कर देंगे. हालांकि, यह सभी समुदायों के लिए अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर 15 दिन से अधिक नहीं हो सकता है. अनुसूचित जनजातियों के लिए अधिकतम सीमा 30 दिन है.
अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदकों की सूची तालुका और पंचायत केंद्रीय कार्यालयों और पंचायतों और जनता से आमंत्रित आपत्तियों का संबंध गांव में Chavadi के नोटिस बोर्डों में प्रकाशित किया जा सकता है पहले जांच बनाया है.
समुदाय पंजीकृत दस्तावेजों करने के लिए संदर्भ के साथ निर्धारित किया जाता है, सामुदायिक प्रमाण पत्र माता – पिता / रिश्तेदारों, संबंधित व्यक्ति या माता पिता के स्कूल प्रमाण पत्र, निवास की अपनी जगह के स्थानीय निकाय के सदस्यों सहित गांव में खुला जांच, सत्यापन द्वारा पहले प्राप्त , आवेदक के व्यक्तिगत जांच, आदि

विभाग चिंतित

राजस्व विभाग के अधीन तालुक कार्यालय

त्रिपुरा: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

जन्म से किसी भी जाति से संबंधित है, और के रूप में सूचीबद्ध है / संशोधन अनुसूचित जाति की अनुसूची 1 में और अनुसूचित जनजाति अधिनियम 1976 व्यक्तियों को जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर सकते हैं.

प्रक्रिया

आवेदक ऊपर उसकी / उसके आवेदन किसी भी कार्य दिवस पर उप मंडल जहां आवेदक स्थायी रूप से रहता है, मजिस्ट्रेट के कार्यालय में ई – सुविधा स्थित केंद्रों में रखा जाना चाहिए और उसी के लिए एक पावती रसीद प्राप्त. आवेदक भी उसकी / उसके प्रमाणपत्र, जो रसीद पर मुद्रित किया जाता है के लिए एक डिलीवरी की तारीख दी है.
इसके अलावा, एक समुदाय प्रमाणपत्र, ब्लॉक / राज्य स्तरीय जाति समितियों द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदक के दावे को पुष्ट करने के लिए आवश्यक है. इन समितियों के कारण सभी जातियों (समुदाय) से प्रतिनिधित्व के साथ राज्य सरकार द्वारा गठित कर रहे हैं और जाति प्रमाण पत्र के जारी करने पर समुदाय की निगरानी रखने के लिए आवश्यक है.
इसके अलावा, जारीकर्ता प्राधिकारी, उसके विवेक पर प्रासंगिक / तहसील राजस्व निरीक्षक / उप और आवेदन की योग्यता के आधार पर कलेक्टर मजिस्ट्रेट द्वारा फील्ड पूछताछ आरंभ कर सकते हैं. वैकल्पिक रूप से, आवेदक भी समुदाय प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकते हैं और उसी के एक रसीद प्राप्त करने के बाद तहसील में अपने आवेदन पत्र प्रस्तुत.
उचित सत्यापन के बाद, संबंधित उप डिवीजनल मजिस्ट्रेट आवेदक को जाति प्रमाण पत्र जारी करेगी.

संबंधित विभाग

जिला मजिस्ट्रेट / अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट / क्षेत्र है जहां उम्मीदवार और / या अपने परिवार के स्थायी रूप से रहता है के उप डिवीजनल मजिस्ट्रेट.

दस्तावेज़

दस्तावेजों के निम्नलिखित सूचक सूची जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदक के दावे को पुष्ट करने की आवश्यकता है.
  • तस्वीर (अनिवार्य)
  • नागरिकता प्रमाणपत्र (अनिवार्य)
  • समुदाय प्रमाणपत्र (अनिवार्य)
  • परिवार राशन कार्ड
  • पिता / भाई / बहन के अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र
  • खून का रिश्ता प्रमाणपत्र
  • स्कूल सर्टिफिकेट
  • भूमि दस्तावेज
समुदाय प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए रूपों वेबसाइट पर वर्तमान में कर रहे हैं, उपलब्ध नहीं है और संबंधित कार्यालयों से एकत्र होना है. एक सामान्य आवेदन प्रपत्र, त्रिपुरा में प्रमाण पत्र के लिए आवेदन शुरू से डाउनलोड किया जा सकता है (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं ) http://tsu.trp.nic.in/esuvidha जाति प्रमाणपत्र के लिए आवेदन.

शुल्क

इस सेवा के लिए कोई शुल्क चार्ज किया जाता है.

उत्तर प्रदेश: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त

पात्रता

किसी भी जाति / वर्ग उत्तरांचल {उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों) अधिनियम, 1994} Anukulan Avam Upantaran आदेश, 2001 की अनुसूची-1 में सूचीबद्ध करने के लिए संबंधित व्यक्ति, और किसी भी व्यक्ति जो सरकार द्वारा उक्त अधिनियम की अनुसूची 1 में संशोधन / जाति वर्ग के अंतर्गत आता है है, एक जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर सकते हैं.

प्रक्रिया

आवेदक ऊपर संबंधित तहसीलदार के लिए चाहिए उसकी / उसके आवेदन डाल किसी भी कार्य दिवस पर निर्धारित प्रपत्रों में, और उसी के एक रसीद प्राप्त.

आवश्यक दस्तावेजों / कागजात

  • दो गवाहों प्रमाणित जाति के साथ ग्राम सदस्य / प्रधान वार्ड से प्रमाण पत्र जमा करें.
  • जाति और मलाईदार परत (ओबीसी के लिए केवल) के बारे में शपथपत्र जमा करें.
  • भारत का नागरिक बनो.
  • स्टाम्प के रूप प्रोफार्मा पर चिपकाया (ओबीसी के लिए केवल) में जमा न्यायालय 1.50 की फीस.
तहसीलदार निर्धारित प्रारूप में स्थानीय / लेखपाल राजस्व निरीक्षक से जांच रिपोर्ट मिल, और एक सप्ताह के भीतर जाति प्रमाणपत्र जारी करेगा.

संबंधित प्राधिकारी

जिला मजिस्ट्रेट / अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट / सिटी मजिस्ट्रेट / उप – डिवीजनल मजिस्ट्रेट / क्षेत्र के तहसीलदार जहां उम्मीदवार और / या अपने परिवार के सामान्य निवास (ओं).

शुल्क

इस सेवा के लिए कोई शुल्क चार्ज किया जाता है.

उत्तराखंड: जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करना

पात्रता

  • कोई भी व्यक्ति जो उत्तरांचल {उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों) अधिनियम, 1994} Anukulan Avam Upantaran आदेश, 2001 की अनुसूची-1 में सूचीबद्ध जातियों / वर्गों के अंतर्गत आता है.
  • कोई भी व्यक्ति जो सरकार द्वारा समय – समय पर उपर्युक्त अधिनियम की अनुसूची 1 में संशोधन जातियों / वर्गों के अंतर्गत आता है.

संबंधित प्राधिकारी

जिला मजिस्ट्रेट / अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट / सिटी मजिस्ट्रेट / उप – मंडल / क्षेत्र है जहां उम्मीदवार और / या अपने परिवार के सामान्य निवास (ओं) की मजिस्ट्रेट तहसीलदार

प्रक्रिया

आवेदक को संबंधित तहसीलदार करने के लिए उसकी / उसके आवेदन डाल दिया है और उसी के एक रसीद प्राप्त करना चाहिए.जाति / कागज का उचित सत्यापन के बाद, तहसीलदार जाति प्रमाण पत्र जारी करेगी.

आवश्यक दस्तावेजों / कागजात

परिवार रजिस्टर की प्रतिलिपि, ग्राम प्रधान या वार्ड सदस्य के प्रमाणपत्र द्वारा प्रमाणित

शुल्क

शून्य

प्रपत्र

शून्य
सौजन्य