आम्बेडकरी आंदोलन का अंर्तद्वंद

आम्बेडकरी आंदोलन का अंर्तद्वंद
(समाजवादी, प्रगतिशील एवं कम्युानिष्ठ  आंदोलन के परिप्रक्ष्यं में)
संजीव खुदशाह
पिछले दिनों जाति उन्मूलन आंदोलन का गठन किया गया। तथ्य है की कम्युनिष्ठ विचारधारा के एक धडे़ ने इसका निर्माण किया है। कामरेड तुहीन ये कहते है कि कम्यु‍निष्ठ ने पूर्व में जाति को कभी समस्यों की तरह नही देखा। वे केवल वर्ग को ही समस्या के रूप में देखते रहे। जो की एक गंभीर भूल थी। हम अब ये भूल को सुधारना चाहते है। वे आगे कहते है की जाति व्ययवस्था को नष्ट किये बिना भारत में समानता का लक्ष्य नही पाया जा सकता ।
जाति उन्मूहलन आंदोलन मूलत: एक गैर-राजनीतिक संगठन है। इसके संस्थापक ये आहवान करते है की सभी आंम्‍बेडकरवाददी, समतावादी, प्रगतिशील व्यक्ति एवं संगठन जो जाति उन्मूलन चाहते है वे इस आंदोलन के सहभागी बने, क्योकि ये केवल राजनीतिक जरूरत नही बल्कि वर्तमान समय की जरूरत भी है।
रा‍ष्ट्रीय परिप्रेक्षय में भी देखे तो जाति व्‍यवस्‍था एक भयंकर समस्या  के रूप में खड़ी दिखती है जो भारत के विकास, उत्थान के लिए एक बाधा है। ये भारत की सामाजिक एकता में बाधाकार्ता तो है ही, साथ साथ आपसी कटुता बढ़ाने का भी एक साधन है। आजकल राजनीतिक दल ऐसी कटुता को हवा देकर मतो का धुवीकरण करते है।
रायपुर छत्तीसगढ. में जाति उन्मूदलन आंदोलन के तृतीय अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। ग़ौरतलब है की जाति उन्मूलन आंदोलन की रायपुर इकाई का बागडोर आम्बेडकर वादियों ने थामा हुआ है। और वे मुस्तैदी से इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबध्द है। दरअसल इस सम्मेलन के बाद कुछ आम्बेडकर वादियों के बीच बहस चल पड़ी है। वे कहते है की यह कम्युनिष्टों का एक छल है। कम्युानिष्ट  अब हांसिये पर है और वे अम्बेडकर और जाति के मुद्दे को भुनाना चाहते है। जाति उन्मूलन जैसे मुद्दों को उठाकर पीडि़त वर्ग को आकर्षित करना उनका मकसद है ताकि सत्‍ता में ब्जाह किया जा सके। उसी प्रकार एक साथी कहते है कि दलित आंदोलन के दो प्रकार के शत्रु है एक प्रत्यक्ष शत्रु दुसरा अप्रत्यक्ष(छुपे हुये) शत्रु वे कहते है कांग्रेस और कम्युंनिष्ट छीपे शत्रु है और भाजपा प्रत्यक्ष शत्रु, यदि मुझे इनमें से किसी एक को चुनने का मौका मिले तो मै भाजपा को चुनूगां। वे इसके पीछे तर्क देते है की प्रत्यक्ष शत्रु से अप्रत्यक्ष शत्रु ज्यादा खतरनाक होता है।
कुछ का कहना है कम्युनिष्टपार्टियों में शीर्ष नेतृत्वु हमेशा सवर्णो के हाथ रहा है और वे कम्यु‍निष्ट  आंदोलन में अवर्ण वर्ग के कार्यकर्ताओं को दरी उठाने तक सीमित कर रखा है। वे अपनी पार्टी में उसी प्रकार पिछड़ी जाति‍ के कार्यकर्ताओं का शोषण करते है जिस प्रकार भाजपा आदी अन्यअ बड़ी पार्टियों में होता है। अत: दोनो में फर्क नही है।
यह बहस दो मुख्यह प्रश्नों को जन्मे देती है।
1. क्या जाति उन्मूलन और आंबेडकर केवल आंबेडकरवादियों के मुद्दे है?
2. क्या आंम्बेडकरवादियों में भी एक ऐसा वर्ग है जो येन केन प्रकारेण फासीवादियों दक्षिण पंथी पार्टियों की मदद के लिए आतुर है?
पिछले तीन सालों में हुये घटना क्रम पर गौर करे तो पाते है की आंबेडकरवाद में भी फासीवाद और कट्टरवाद का ग्राफ़ बढ़ा है। जिस त्याग बलिदान के लिए, तर्क और सहिष्णुता के लिए आंबेडकरवाद जाना जाता है। उसे तथाकथित कुछ छदृम आम्बेडकरवादियों नेनेताओं ने लांछित करने में कोई कसर नही छोड़ा। चाहे मामला उदित राज का हो या रामदास आठ वाले का या रामविलास पासवान या मायावती या अजय सोनकर शास्त्री । सभी ने अम्बेडकरवाद को अपने पैरो तले कुचला है। और वे इसे जायज़ ठहराने के लिए बेतुके तर्क देने, कट्टरवाद बढ़ाने में कोई कसर नही छोड़ते है। वे जान बूझ कर ऐसे कदम उठाते है की प्रगतिशील शक्तियां कमजोर हो जाये। मैने देखा है दलित आंदोलन से जुडे नेता या आंदोलनकारी हमेशा कांग्रेस की ही बुराई करते है इनका लक्ष्य उनके वे लोग जो परंपरागत तौर पर कांग्रेस में वोट देते है। उनकी बातों से प्रभावित होकर ये लोग कांग्रेस को तो वोट नही देते न ही उन अंबेडकर वादियों को वोट देते है। ये वोट सीधे दक्षिण पंथी पार्टी को जाता है। यानी वे किसी न किसी रूप में दक्षिण पंथी पार्टियों को मदद पहुचाते है। आज आम्बेडकर मिशन अलग थलग पड़ चुका है। जिस अंबेडकर मिशन के बदौलत बहुजन समाज पार्टी और आर पी आई खड़ी हुई थी। आज इन पार्टीयों का हस्र किसी से छि‍पा नही है। अब समय है की आम्‍बेडकर मिशन में नई जान फूका जाय वे अपने दोस्त् और दुश्‍मन की सही पहचान करे। उनके कदम से किसे फायदा हो रहा है किसे नुकसान, उसके दूरगामी परिणामों का विश्लेषण किया करे। साथ ही ऐसे छदम मौकापरस्त, विचारक और नेताओं की पहचान भी करना होगा जो दीमक की तरह आम्बेडकर मिशन को खोखला करने में तुले हुये है।
वही पर डॉं आम्बेडकर और कम्यु्निष्ट के बीच सबंध को कमतर आंकना एक भूल होगी। कम्युनिष्टो के जमीन और मजदूर आंदोलन को, समता आंदोलन में उनके योगदानो को याद करना होगा। इन सभी में डॉं आम्‍बेडकर का जर्बजस्त समर्थन रहा है। दरअसल वक्त आ गया है की आम्बेडकरवादी समस्या को बड़े फलक पर देखे। समता आंदोलन के अन्य  विकल्प को शंका की नजर से न देखे क्यो कि अम्बेडकर आंदोलन अपने लक्ष्य से आज भी कोशो दूर है। उसे अपनी जमीनी हकीकत को समझना होगा। ऐसे बहस को बढ़ावा देकर कही अंजाने या जाने में फासीवादियों की मदद तो नही पहुंचाई जा रही है।
इस विमर्श का एक अन्य  पहलू यह भी हे की जिस नजरिये से ये अंबेडकरवादी कम्युरनिष्टो  को देखते है उसी प्रकार छोटी अतिदलित, महादलित (आंबेडकरवाद से महरूम) जातियां भी अंबेडकर वादियों को उसी दृष्टिकोण से देखती हे। वे भी अंबेडकर वादियों के उनके साथ हुये कड़ुवे अनुभव साझा करती है। शंका की निगाह से देखती है। मै इसे आम्बेडकरवादियों की हार के रूप में देखता हूँ। पहले तो ये की वे समस्त  दलित जातियों में ही आम्‍बेडकर मिशन को पहुचाने में नाकाम रही है दूसरा अन्य समतावादी, प्रगतिशील संगठनों में आम्‍बेडकर के महत्व को बताने की कोशिश नही की गई। इसका परिणाम यह हुआ की अम्बेयडकर की विचार धारा चार-पांच दलित जातियों में सिमट कर रह गया। उनका मिशन भी इन्ही जातियों में घूमता रहा। जबकि इनका ये फर्ज था की वे अन्य दलित जातियेां की बस्तियों में जाते उनके दुख दर्ज साझा करते, अम्बे्डकर के मिशन से उन्हे् जोड़ते। लेकिन ऐसा नही हुआ। उल्टे‍ इन अतिदलित जातियों को दलित कैन वास से ही भुला दिया। फलस्वरूप ये उपेक्षित दलित जातियां दक्षिण पंथी एवं फासीवादियों के चंगुल में चली गई। अति दलित या महादलित जातियों के रूप में अपना अलग अस्तित्वं खेाजने लगी।
जाति उन्मूलन को भी वृहद दृष्टि कोण से देखने की आवश्यकता है। सभी  प्रकार के अंधविश्वास, सभी प्रकार के भेद को मिटाने की आवश्यकता है। जाति उन्मूलन का मकसद ये नही होना चाहिए की एक दमनकारी व्यकवस्था को खत्म  करके नई दमन कारी व्यलवस्था को शुरू करना। इसलिए अंधविश्वास, रूढीवाद, पुरूष सत्तात्मक मौहोल के रहते अर्तजाति विवाह जाति टूटने का एक सुखद भ्रम तैयार करती है। दरअसल हमें अर्तजाति विवाह को जाति उन्मूमलन का प्रतीक या सोपान मानने की गलती नही करनी चाहिए।
मेरे इस लेख का मकसद किसी व्यक्ति विशेष या संस्था विशेष को कोसना नही है न ही किसी पार्टी या विचारधारा विशेष का पक्ष लेना है। मै चाहता हूँ अम्बे्डकर मिशन आत्म विशेलषण करे की क्या उसे अपने इतिहास के सीख लेने की जरूरत है? क्या  वह अपने हितैशी और विरोधी में फर्क करने का पहल कर सकता है? इस मिशन को यह भी विचार करना होगा की जिस कट्टरता के विरोध में तैयार हुआ कही उसी कट्टरता की ओर तो नही जा रहा है? आज जरूरत है की समान विचारधारा के लोग एक साथ अपना कार्य करे। एक दूसरे के मुद्दे को समझने का प्रयास करे। क्यो कि कहीं न कहीं समान विचारधारा के साथियों का लक्ष्य  एक ही है। ये अपने लक्ष्य  तक नही पहुँच पाया इसका कारण है समान विचारधारा वालों का आपसी अंर्तद्वद। आपसी अंतद्वंद का मतलब है आप अपने मिशन के प्रति समर्पित नही है।


देश को गुलाब कोठारी जैसे छद्म प्रगतिशील से आज़ाद होना पड़ेगा

चीरफाड़/शव परीक्षा
देश को गुलाब कोठारी जैसे छद्म प्रगतिशील से आज़ाद होना पड़ेगा
संजीव खुदशाह
दैनिक पत्रिका दिनांक 30 अगस्‍त 2015 को प्रकाशित लेख ‘’आरक्षण से अब आज़ाद हो देश’’ जिसके लेखक है श्री गुलाब कोठारी की प्रतिक्रिया में लिखी गई है। ग़ौरतलब है की यह लेख पत्रिका की जैकेट स्‍टोरी (मुख्‍य पेपर के मुख्‍य पत्र पर) के रूप में प्रकाशित हुआ था।
 इस लेख को प्रारंभ करने के पहले बता दू की श्री  गुलाब कोठारी एक व्‍यवसायी है वे पत्रिका (पूर्व में इसका नाम राजस्‍थान पत्रिका था) के मालिक एवं प्रधान संपादक है। वे जैन धर्म से ताल्‍लुख रखते है इस लिहाज से वे अल्‍पसंख्‍यक की श्रेणी में आते है।
विवादित लेख का मुख्‍य शीर्षक है जातियों के आंदोलन की नई रणनीति हमें भी जोड़ों या खत्‍म करो जातिगत आरक्षण व्‍यवस्‍थाश्री गुलाब कोठारी को  आरक्षण से आपत्‍ती है वे कहते है अच्‍छी योग्‍यता वाले युवा सरकारी नौकरी से परहेज क्‍यो करने लग गये? उनका पलायन  भी होने लगेगा तो सरकार और देश के पास सिवाए ‘’ब्रेन ड्रेन’’ का रोना रोने के क्‍या रह जायेगा? फिर आरक्षित वर्ग में भी सभी को इसका लाभ भी नही मिल पा रहा है।
श्री कोठारी जी यहां एक औसत दर्जे के ब्राम्‍हण वादियों की भाषा बोल रहे है। शायद उन्‍हे  नही मालूम की आई ए एस की परीक्षा में अधिक अंक पाने वाले आरक्षित प्रत्‍यासी को नौकरी नही मिल पाती क्‍योकि ओरल में सामान्‍य वर्ग को ज्‍यादा अंक दे दिये जाते है। वो सिर्फ इसलिए की आरक्षित वर्ग को कमतर आंका जा सके। यदि सवर्ण ब्रेन ड्रेन नही है तो बताएं सर्वणों ने आज तक कौन सा अविष्‍कार किया है सिवाए ऊँच नीच छुआ छूत के। आरक्षित वर्ग में किसको लाभ मिल रहा है किसे नही। इसकी चिन्‍ता आपको क्‍यो हाने लगी कोठारी जी ? आपकी छाती में सौंप इसलिए लोट रहा है न कि एक पिछड़ा दलित तरक्‍की कर रहा है।
गुलाब कोठारी का दुख है की आरक्षण विरोध में कौन साथ देगा आरक्षण वाले तो आधे है।
कोठारी जी मनु का आरक्षण पाकर प्रधान संपादक तो आप बन गये लेकिन सिर्फ लिखते रहे, पढ़ने की जहमत आपने नही उठाई मै यहां बतादू की SC ST OBC &  MINORITY मिलाकर आरक्षित वर्ग 85% होते है वर्तमान जनगणना के आधार पर। भले ही इन्‍हे आज 50% आरक्षण मिल रहा हो। लेकिन आप तो आरक्षित वर्ग को ही 50% बता रहे हो।
कोठारी जी लिखते है कि जो काम 700 सालों से मुगल नही कर पाये, 200 सालों से अंग्रेज नही कर पाये वही उजाड़ मात्र पांच मिनट में पूर्व प्रधान मंत्री वी.पी.सिंह कर गये। यह कांटा कोई बौध्दिक तर्क से निकलने वाला कांटा नही है। देश बांटने का इतना सहज उपक्रम शायद इतिहास में अन्‍यत्र नही होगा। आरक्षण
कोठारी जी मनु ने 6,500 जातियों में बाँटा उनके धंधे भी आरक्षित किये तो आपको देश बटने का खतरा नही हुआ। लेकिन वर्तमान आरक्षण से देश बटने का खतरा दिख रहा है आपको। आपका दर्द ये है कि अंगरेज़ों के पूर्व लगभग 1700 वर्ष तक किसी आंक्रांताओं ने जाति प्रथा को नही छेड़ा इसलिए आप उन आंक्रांताओं के ग़ुलाम बनने के लिए तैयार थे, उनसे खुश थे। क्‍योकि आपके ग़ुलाम आपकी पकड़ में थे। लेकिन अँग्रेज़ काल में ही आपकी पकड़ ढीली पड़ने लगी जब साइमन कमीशन का कम्‍युनल एवार्ड आया जो अनुसूचित जाति और जनजाति आरक्षण का आधार बना बाद में मण्‍डल कमीशन आया जो पिछड़ा वर्ग आरक्षण का आधार बना। इसे आप देश को बांटने का आधार बता रहे है। मुझे तरस आता है आपकी बुध्‍दी पर और साथ-साथ आप ये धमकी भी देते है की ये कांटा बौध्दिक तर्क से नही निकलने वाला। याद रखिये कोठारी साहब आज भी अनारक्षित वर्ग भारत में सिर्फ 14.5% ही है तो क्‍या आप 85% आरक्षित वर्ग पर तलवार चलाऐंगे ?
हॉं ये बात सही कि अब ये बाते आप बौध्दिक तर्क से नही जीत सकते क्‍योकि आरक्षित वर्ग पढ़ लिख कर तर्क करना सीख गया है। आपके बेतुके तर्क का माकूल जबाब दे सकता है।
गुलाब कोठारी आरक्षण के विरोध में कुछ आंकड़े पेश करते है वे लिखते है ‘’देश को नुकसान हो रहा है अध्‍ययन के अनुसार नौकरी में आरक्षण का लाभ उठाने वाले पिछड़े छात्रों को फायदा तो हुआ पर यही निवेश अगर सामान्‍य छात्रों पर किया जाता तो देश को अधिक लाभ होता।
कोठारी जी ये अध्‍ययन कहां ओर किस ऐजेन्‍सी ने कराए है यदि ये बताने की जहमत उठाते तो अच्‍छा रहता।  आप ये बताई ये- वर्षो से मरीज़ के पेट में कैची तौलिया छोड़ने वाले डाक्‍टर किस वर्ग के है। जितने आई ए एस घोटाले में फसे है किस वर्ग के है?
आज 15% सामान्‍य वर्ग के लिए 50% आरक्षण लागू है। जबकि संख्‍या के मुताबिक 15% सामान्‍य वर्ग के लिए सिर्फ 15% ही भागीदारी होनी चाहिए लेकिन कोठारी जी 50% से मन नही भरता वे तो पूरा 100% चाहिए वो भी 15% के लिए।
वे एक गुमनाम तथाकथित दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद के हवाले से लिखते है कि सम्‍पन्‍न तबके को ही आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। पता नही ये कौन व्‍यक्ति है उन्‍हे ये तक नही मालूम पूरे आरक्षण का आज भी आधा प्रतिशत पद खाली रह जाता है। जिसे बैकलाग से भरने की कोशिश की जाती है। जो बाद में उपयुक्‍त उम्‍मीदवार नही है बता कर सामान्‍य वर्ग से भर दिया जाता है।
गुलाब कोठारी के लिए राह, अब आसान नही है  कई दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, अल्‍पसंख्‍यक वर्ग एवं पूरा आरक्षित वर्ग उनके विरूद्ध कानूनी कार्यवाही का मन बना रहा है। साथ ही उनके समाचार पत्र पत्रिकाको पूरे देश में बहिस्‍कार की योजना बना रहा है। ताकि कोई ऐसा दुस्‍साहस न कर सके।
दर असल पूरे विश्व में वंचित समुदाय को आरक्षण देकर आगे बढाना कोई नई बात नही है। विकसित देश इसी सहारे आज विकसित हो पाये है। हमारे देश की तरह विदेशों में भी राज तंत्रसामंती तंत्र और पादरी पूरोहित तंत्र का खात्मा करने के लिए तथा वंचित वर्ग के अधिकार हड़पने का सिलसिला खत्म  करने के लिए आरक्षण जैसी सुविधाऐं दी गई हे। अमेरिका में इसे लिंडन जान्सवन के समय एफर्मेटिव एक्स न के नाम से प्रक्रिया शुरू की गई। तब जाकर अमेरिका महाशक्ति बन सका। इसी प्रकार फ्रांस में डिप्रेस्ड क्लास के नाम से तो कनाडा और यूरोप में अलग अलग नाम से यह आरक्षण व्यवस्था लागू की गई। लेकिन इसके पीछे वही सिद्धांत है जो हमारे यहां आरक्षण व्यवस्था  के लि‍ए है। कुछ देशों में ‘’ तरजीही नि‍युक्तियां ’’ नाम से तो कहीं ‘’रिवर्स डिस्क्रमनेशन ’’ के नाम पर आरक्षण लागू कर देश को तरक्की  पर लाने की कोशिश हो रही है। बात यही तक नही रूकती बडी बडी मल्टी नेशनल कम्पनियां प्रतिवर्ष अपने कर्मचारियों का एक कम्युनल रिर्पोट भी  प्रकाशित करती है कि किस जाति या समुदाय का व्यक्ति कितनी संख्या में किस पद पर कार्यरत है। फेसबुक सहित कई कम्पनियाँ ऐसी रिर्पोट पेश करती रही है। ताकि भाई भतिजा वादबैक डोर एन्ट्री‍ पर रोक लगे तथा जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी भागी दारी के सिद्धांत पर संतुलन बनाया जा सके। ये विदेशी कम्पनियाँ ऐसा करने में गर्वाविंत महसूस करती है।

इस लेख मे संविधान का मज़ाक उड़ाया गया
वे लिखते है की स्‍वतंत्रता के बाद हमारे ही प्रतिनिधियों ने हमारे ज्ञान की जमकर धज्जियाँ उड़ाई। संविधान को धर्म निरपेक्ष कहकर हमारी संस्‍कृति के साथ भौड़ा मज़ाक ही किया । शासन में धर्म का प्रवेश वर्जित हो गया। हमारी संस्‍कृति का आधार आश्रम व्‍यवस्‍था तथा इसी के साथ वर्ण व्‍यवस्‍था रही है।
आश्‍चर्य है कि आखिर किस बल पर कोठारी जी संविधान के विरूद्ध ऐसी बाते लिखते है। उनके विरूद्ध देश द्रोह का मुकदमा दायर हो सकता है। उनकी न्‍यूज पेपर पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। दरअसल उनका असली  दर्द यही है की संविधान को धर्म निरपेक्ष नही रखा जाना था। इसे हिन्‍दू धर्म से जोड़ा जाना था। ताकि पिछड़ा को पिछड़ा दलित को दलित और अल्‍पसंख्‍यक को और अल्‍पसंख्‍यक रखा जा सके। उन्‍हे वर्णाश्रम जाति व्‍यवस्‍था  जिन्‍हे वे अपनी महान संस्‍कृति मान रहे है, टूटने का भय सता रहा है।
वे आगे लिखते है संविधान में आरक्षण का जो विष बीज बोया गया था वह अब वट वृक्ष बनकर पनपने लगा है।
ये वाक्‍य संविधान के विरूद्ध घोर अपमान जनक है। आरक्षण के विरोध में अपना एक तर्क हो सकता है लेकिन सीधे सीधे संविधान को नीचा दिखाने का प्रयास आजद भारत में पहली बार इस तरह पढ़ने मिला। यह एक प्रकार से देश द्रेाह का मामला है।
कोठारी जी सीधे-सीधे ये क्‍यो नही कहते मै संविधान को नही मानता। आप कहते है संविधान में आरक्षण का विष बोया गया। आपको मालूम भी है आरक्षण क्‍यो मिला। कोठारी जी लिखने के साथ थोड़ा पढ़ने की जहमत उठाते तो बेहतर होता। मै आपको बता दू की आरक्षित वर्ग को आरक्षण किसी एहसान के तले नही मिला है। आज़ादी के पहले सायमन कमीशन ने अंबेडकर के सिफारिश पर दलित आदिवासी के लिए कम्‍युनल एर्वाड की घोषणा की थी। यानि दलितों को पृथक निर्वाचन/ प्रतिनिधीत्‍व समेत विशेष सुविधाएं। लेकिन गांधी ने इसका विरोध किया वे अनशन में बैठ गये, उनका तर्क था की ये सुविधाएँ इन्‍हे नही मिलनी चाहिए इससे हिन्‍दू धर्म हिस्‍सो में बट जायेगा। ये हिन्‍दू धर्म का अंदरूनी मामला हे मिलकर सुलझायेगे। अंबेडकर पर गांधी के अंनशन तुड़वाने का चौतरफा दबाव बढने लगा। दबाव में आकर दलित समुदाय ने जो समझौता गांधी के साथ किया वह पूना पैक्‍ट कहलाया। आज भी  दलित  इस समझौते को भी अपनी हार के रूप में याद करते, वे कहते है यदि समझौता नही होता तो हम अपने मालिक खुद होते, आरक्षण जैसे भीख की हमे जरूरत ही नही पड़ती। आज़ादी के बाद यही समझौता आरक्षण, स्‍कालरशिप जैसी सुविधाओं के रूप में संविधान में शामिल हुआ। तो अब बताई ये आरक्षण लेकर आरक्षित वर्ग एहसान कर रहे है या देकर आप ?
और हॉं यह भी बताना जरूरी है की कुछ अशिक्षित लोग ये तर्क देते है की आरक्षण केवल 10 वर्षो के लिए लागू है इसे बढाया जाना गलत है तो मै यह जानकारी दे दू की राजनीति में लागू आरक्षण के बारे में से कानून है न की सरकारी नौकरी में।
और हॉं वास्‍तविक आरक्षण के जनक मनुकी मूर्ति जो रास्‍थान हाईकोर्ट के परिसर में लगाई गई है उससे तो आपको कोई आपत्‍ती नही है न। वह आरक्षण जो 2200 साल से लागू है उसमें तो आपको कोई संशोधन की जरूरत नही महसूस नही होती है न ?
बेहतर होता श्री गुलाब कोठारी राजस्‍थान की जरूरी समस्‍या जैसे खाप पंचायत, कन्‍या वध प्रथा पर लिखते। वे इस पर भी लिखते की राजस्‍थान में महिला पुरूष के अनुपात का अंतर क्‍यो‍ है? क्‍यो राजस्थान की गिनती पिछड़े राज्‍यो में होती है ? लेकिन दुर्भाग्‍य है कि उन्‍हे ये कोई समस्‍या नही दिखती। लेकिन सौभाग्‍य उनका है जिन्‍होने उनके इस लेख से एक जुट होने और संघर्ष करने की प्रेरणा मिल रही है।

जाति विहीन समाज निर्माण के लिए जाति उन्मूलन आंदोलन

जाति विहीन समाज निर्माण के लिए जाति उन्मूलन आंदोलन का
तृतीय अखिल भारतीय सम्मेलन सम्पन्न

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रायपुरदिनांक 01 नवंबर 2015। आधुनिक भारत के निर्माण में समता मूलक एवं वैज्ञानिक आधार पर समाज निर्माण की आवश्यकता है इस हेतु जाति का उन्मूलन आवश्यक है। इसके मद्देनजर जाति उन्मूलन आंदोलन अखिल भारतीय संयोजक कमेटी द्वारा दो दिवसीय तृतीय अखिल भारतीय सम्मेलन  बाबा साहेब डा. बी.आर. अम्बेडकर हाल (श्री दुलार विश्वकर्मा धर्मशाला)गुरू घासीदास नगर (बढ़ईपारा)रायपुर में सम्पन्न हुआ। प्रथम दिवस ‘‘मौजूदा सांप्रदायिक व ब्राम्हणवादी आक्रमण और जाति उन्मूलन आंदोलन का महत्व‘‘ विषय पर सेमीनार एवं द्वितीय दिवस में प्रतिनिधि सत्र का आयोजन किया गया। सम्मेलन की अध्यक्षता जाति उन्मूलन आंदोलन के अखिल भारतीय समन्वय परिषद् के उमाकांत ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में भाकपा (माले) के राष्ट्रीय महासचिव काॅ. के. एन. रामचंद्रनजाति उन्मूलन आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक जयप्रकाशजाति उन्मूलन आंदोलन के राज्य प्रतिनिधि साथी शैल्वी व एडवोकेट मनोहरण (तमिलनाडु)आई. पी. दलयानिया (गुजरात)साथी गौरी (कर्नाटक)डाॅ. बलराम (बलराम)एस. पी. सिंह (हरियाणा)के. पी. सिंह (दिल्ली)डाॅ. आर.के. सुखदेवेतुहिन व गोल्डी एम. जार्ज (छत्तीसगढ़) उपस्थि थे। कार्यक्रम का संचालन जाति उन्मूलन आंदोलन के छत्तीसगढ़ राज्य संयोजक संजीव व आभार अंजु मेश्राम ने किया। सम्मेलन में बुद्धिजीवीगण लाभ सिंह (पंजाब)परिजात (दिल्ली)काॅ. सौरादुर्गाकाॅ. भारत भूषण ने भी अपनी बात रखी। उक्त संबंध में 31 अक्टूबर को  प्रेस क्लबरायपुर में प्रेसवार्ता का आयोजन एवं उसी दिन सायं 5 बजे जाति व्यवस्था ध्वस्त करो‘ नारे के साथ देशभर के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में रैली निकालकर आजाद चैक‘ में आमसभा का आयोजन किया गया। अतिथियों द्वारा जाति उन्मूलन आंदोलन की हिन्दी में पत्रिका जाति उन्मूलन’ तथा अंग्रेजी में ‘Cast

Annihilation’ का विमोचन भी किया। इस अवसर पर बिपासा रावचंद्रिकाडाॅ. रामबली व कलादास ने हम न लड़ेंगे‘ जनगीत प्रस्तुत किया। सम्मेलन में देशभर से बड़ी संख्या में प्रतिनिधिसंस्कृतिकर्मीबुद्धिजीवी व छात्र उपस्थित थे।
कार्यक्रम में उद्घाटन भाषण देते हुए का. रामचंद्रन ने कहा कि भारत में जाति व्यवस्था के विरोध का लंबा इतिहास रहा है। इसकी शुरूआत गौतम बुद्ध ने की थी। जिसे बाद में कबीररैदासमहात्मा फुले और अंबेडकर ने आगे बढ़ाया। परंतु हम ऐसी स्थिति में आंदोलन की शुरूआत कर रहें है जब जाति-धर्म के नाम पर दमन किया जा रहा है। धर्म व जाति के नाम पर राजनीति हो रही है। धार्मिक व जातीय आधार पर लोगों का बाटा जा रहा हैसभी जनवादी अधिकारों का हनन किया जा रहा है। देश के इतिहास व संस्कृति का विकृतिकरण किया जा रहा है। साम्प्रदायिक ताकतों ने प्रत्येक क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करने का प्रयास तेज कर दिया है। नव-उदारवादी व्यवस्था के चलते देश भर में सामाजिक रूप से उत्पीड़ित जातियों एवं वर्गाें पर जातिवादी हमला बढ़ा है। हाल के दिनों में दबंगों द्वारा राजस्थानबिहारमध्यप्रदेशत्तीसगढ़उत्तरप्रदेशमहाराष्ट्रओड़ीसा सहित पूरे देश में दलितोंमजदुरोंकिसानोंआदिवासियोंअल्पसंख्यकों के ऊपर हमले की अनेक वीभत्स घटनाएं हुई हैं। उनकी हालत बद् से बद्तर हो गयी है। साम्राज्यवाद एवं उसके अनुचरों द्वारा अपने वर्चस्व को चिरायु बनाये रखने के लिए धार्मिक व जातीय कट्टरपंन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है एवं भारत को हिन्दु राष्ट्र बनाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। देश सांप्रदायिक व जाति प्रथा के माध्यम से अंधकार की ओर पूरी तरह बढ़ रहा है। इसके लिए हम सबको एक होकर  आंदोलन को क्रांति का रूप देना होगा। भारत को समाजवादी दिशा में ले जाने के लिए प्रगतिशील लोगों को आगे आकर इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी को स्वीकार करना होगा।
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जे.पी.नरेला ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि देश के तमाम हिस्सों में हो रहे हिंसक हमलोंधर्म के नाम पर हो रहे अत्याचार के कारण अल्पसंख्य सहित दलित समुदाय डरा हुआ है। समाज में दलितों पर जघन्य अपराध लगातार हो रहें हैं हरियाणा इसका ज्वलंत उदाहरण है। दलितों पर हमलोंअत्याचारों की रिर्पोट नहीं लिखी जाती। और यदि लिख भी ली गई तो ज्यादातर आरोपियों को मुक्त कर दिया जाता है। आज भी देश के गावों मे दलितों की हालत बहुत ही खराब है। उन्हें दो जून की रोटी भी नसीब नहीं हो रही। भारत की सभी पार्टियां दलितों का उत्थान नहीं कर पायी। सत्ता के लिए वो जाति पहचान को बनाए रखना चाहती है। इसलिए हम सभी की जिम्मेदारी है कि जनता के वाज़िब हक के लिए सभी संगठनो को साथ लेकर व्यवस्था के खिलाॅफ आंदोलन चलाने की जरूरत है।
तमिलनाडु की साथी शैल्वी ने कहा कि तमिलनाडु एवं पूरे देश में एक जैसी स्थिति है। पिछले डेढ वर्षाें में इसमें बढोतरी हो रही है। अंतर्जातीय-अंतर्धार्मिक विवाह करने वालों को मार डाला जा रहा है। उच्च वर्ण की दबंगई बढ़ती जा रही है। नई तकनीक आने से पीढ़ीगत व्यवसाय खत्म हो रहा है। साम्राज्यवाद-पंूजीवाद खाद पानी देकर जाति व्यवस्था को बढ़ावा दे रहा है। हमें इसके विरोध में उठ खड़ा होना है। असमानता के खिलाफ समानता की लड़ाई लडते हुए जाति व्यवस्था को ध्वस्त कर देना है।
डाॅ. सुखदेवे ने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर ने जाति प्रथा को एक कोढ़ की तरह बताया है। उन्होने जाति उन्मूलन पत्रिका में लिखा कि ये किताब मैने जिनके लिए लिखी है उन्हे ही इसका अर्थ नहीं मालूम। शिक्षित लोग भी ब्राम्हणवादी व्यवस्था को ढो रहे हैउसी का परिणाम है कि यह व्यवस्था अभी तक पूरे समाज में व्याप्त है। हम सबको को मिलकर समाज में चेतना पैदा करना है। अलोचनाओं से डरना नहीं है। सभी संगठनों को जाति उन्मूलन आंदोलन के साथ मिलकर इस व्यवस्था के खिलाफ लोगों को जाकरूक करना है।
तमिलनाडु के एडवोकेट मनोहरन ने कहा कि दलितों को जातिवादी पार्टियां लड़ाने का काम करती हैं। जाति व्यवस्था को पोषित करती हैं। जातिय पहचान की राजनीति करती है। जिससे दलितों में भी कई गुट बन गये है। छद्म चेतना से दलित बाहर आए और वैज्ञानिक चेतना के आधार पर जाति विहीनधर्म विहीन समाज निर्माण में योगदान दें।
कर्नाटक की साथी गौरी ने कहा कि ब्राम्हणों ने ब्राम्हणों के लिए जाति व्यवस्था बनाई यह सही विश्लेषण नहीं है। बल्कि शासक वर्ग ने अपने फायदे के लिए इस व्यवस्था को बनाया। शासक वर्ग समाज को जातियों में बांट कर राज करना चाहती है। हमें इनकी चालों को समझना होगा। सबको बराबर के अधिकार के लिए समानता के आधार पर जाति व्यवस्था के उन्मूलन की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
आई.पी. दलसानिया ने गुजरात का अनुभव साझा करते हुए बताया कि आरक्षण के नाम पर जातियों को लड़ाया जा रहा है। सत्ता पाने के लिए बांटो और राज करो की नीति अपनाई जा रही है। हमारी मूल समस्याओं से ध्यान भटकाकर जनता का शोषण किया जा रहा है। कई दशकों के कठोर संघर्षों से उत्पीड़ित तबकों ने कुछ जनवादी और सामाजिक अधिकारों को हासिल किया थाजिसे आज निष्ठुरता के साथ छीन लिया गया है। हम सबको मिल कर इसका विरोध करअपने हक की लड़ाई लड़नी होगी।
डाॅ. गोल्डी एम. जार्ज ने कहा कि सभी प्रकार क भेदभाव व व्यवस्था को परिवर्तन करना जरूरी हैइसके बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते। समतास्वतंत्रताविश्वबंधुत्व के आधार पर न्याय होना चाहिए। मानवतावादी संस्कृति का विकास करना जाति उन्मूलन आंदोलन का मूल आधार होना चाहिए।
हरियाणा के एस.पी.सिह ने कहा कि जाति विहीन समाज की दशा तो समाज में दिखाई देती है परंतु दिशा हमें तय करनी होगी। दलितों को औजार की तरह तैयार करना होगा। इस पर हमें मनन तथा गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
दिल्ली के के.पी.सिंह ने कहा कि हरियाणा व उत्तरप्रदेश में जाति प्रथा चरम पर है जिसका मूल कारण जमीन है। जिस भी जाति के पास अधिक जमीन है वह दलितों पर अत्याचार करती है। दिल्ली में अधिकतर दलितों के पास जमीन है ही नहीं। वर्तमान सरकार का एजेंडा आरक्षण व एस.सी. एस.टी. एक्ट खत्म करना और जातिवाद व सांप्रदायिक विभेद पैदा कर सत्ता चलाना है।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए उमाकांत ने बताया कि भारत में वर्गीय और जातीय विभाजन एक कड़वी सच्चाई है और ये दोनों व्यापक जनता के नारकीय जीवन के कारण हैं। इसलिएएक जाति विहीन और वर्ग विहीन समाज निर्माण के उद्देश्य से अखिल भारतीय स्तर पर जाति उन्मूलन आंदोलन की शुरूआत की गई है। जाति प्रथा भारत में एक कोढ़ की तरह है। हजारों साल से चली आ रही यह अमानवीय प्रथा बदलते समय के साथ तालमेल बैठाकर नये निर्मम रूप में आज भी बरकरार है। लेकिन बलशाली शासक वर्ग जाति को कोई समस्या नहीं मानता है। या यूं कहें जान बूझकर समस्या मानने से इनकार करता है क्योंकि इसके पीछे उसके निजी हित छिपे हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब संपन्न-दबंगों द्वारा दलितोंआदिवासियोंमहिलाओं और उत्पीड़ित तबके पर जुल्म की खबरें नहीं आती हों। भारत की बहुमत मेहनतकश आबादीजो खेतों से लेकर कारखानों तक दिन-रात खटती हैआर्थिक शोषण के साथ-साथ जाति व्यवस्था के तहत सामाजिक उत्पीड़न के कारण नारकीय जीवन जी रही हैउनके सवालों पर कोई चर्चा तक नहीं की जाती है। इसके पीछे गहरी साजिश है जिसका पर्दाफाश करने की जरूरत है। ऐसे नकाबपोश लोगों के नकाब उतार फेंकने की जरूरत है जो एक ओर तो जाति को सनातन पुराणांे के बहाने बनाये रखना चाहते हैं तोे दूसरी ओर आधुनिक होेने का ढोंग रचते हैं। उन्होंने जाति विहीन वर्ग विहीन समाज के निर्माण के संघर्ष में शामिल होने हेतु सबका आह्वान किया।
सम्मेलन में जाति उन्मूलन आंदोलन के अखिल भारतीय समिति द्वारा कार्यक्रम एवं सांगठनिक विधान पर चर्चा की गई एवं पारित किया गया। सम्मेलन में 17 सदस्यीय अखिल भारतीय समन्वय परिषद्, 5 सदस्यीय केंद्रीय कार्यकारिणी का गठन किया गया एवं सर्वसम्मति से जयप्रकाश नरेला को अखिल भारतीय संयोजक के रूप में चुना गया। सम्मेलन में जातिगत उत्पीड़नकिसानों की बिगड़ती गंभीर हालातोंअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर होने वाले बर्बर हमलोंइतिहास व संस्कृति के विकृतिकरणसांप्रदायीकरण व शिक्षा के भगवाकरणदिन प्रतिदिन बढ़ रही गरीबीमंहगाई व बेरोजगारीमहिलाओंआदिवासियोंअल्पसंख्यक समुदाय व मेहनतकश वर्ग के खिलाफ बढ़ते उत्पीड़न आदि विभिन्न विषयों पर प्रस्ताव पारित किए गए।
     सम्मेलन में देश के दिल्लीपंजाबहरियाणाउत्तरप्रदेशमहाराष्ट्रतमिलनाडुकर्नाटककेरलराजस्थानगुजरातउड़ीसा व छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधियों सहित बड़ी संख्या में गणमान्य बुद्धिजीवीचिंतक व छात्र उपस्थित थे।                                                       
जाति उन्मूलन आंदोलन 
राज्‍य संयोजक परिषद छत्तीसगढ़