‘नेशनल दस्तक’ की खबर का असर, गूगल ने दलित मूवमेंट एसोसिएशन के ग्रुप से हटायी पाबंदी

osted on July 22, 2017
 
 
 
 
 
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नई दिल्ली। तकरीबन दो सप्ताह पहले गूगल ने दलित मूवमेंट एसोसिएशन के ग्रुप को बैन कर दिया था। नेशनल दस्तक की खबर के बाद अब इस बैन को हटा दिया गया है। ग्रुप के संचालक संजीव खुदशाह ने आभार जताते हुए एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होने नेशनल दस्तक और गूगल की पूरी टीम, सामाजिक कार्यकर्ताओं और लेखकों का आभार जताया है।
मुख्य बातें-
  1. नेशनल दस्तक की खबर के बाद गूगल ने दलित एसोसिएशन ग्रुप से हटाया बैन
  2. संजीव खुदवाह ने लेखकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों का जताया आभार
  3.  दो सप्ताह पूर्व बिना कारण ही बैन कर दिया गया था ग्रुप
बता दें कि 12 जुलाई 2017 को नेशनल दस्तक ने ‘दलित मूवमेंट एसोसिएशन का गूगल ग्रुप बैन’ शीर्षक के साथ खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। जिसमें हमने बताया था कि गूगल की ओर से ग्रुप को बैन करते हुए तर्क दिया गया कि इसमें दुर्भावना पूर्ण सामग्री थी। हालांकि इसमें किस सदस्य और किस कंटेंट से गूगल को आपत्ति थी इसका जिक्र नहीं किया गया था।
बता दें कि गूगल ग्रुप डी एम ए विगत 10 सालों से सक्रिय है। जिसमें 7500 से ज्यादा सदस्य जुड़े हुए हैं। जिनमें तमाम नामी गिरामी हस्तियों के साथ-साथ, देश विदेश के प्रगतिशील मानवाधिकार मुद्दों से जुड़े हुए व्यक्ति भी शामिल हैं।
यह एक बेहद सक्रिय ग्रुप है जिसमें देश विदेश के तमाम मुद्दों पर सार्थक बहस होती है। अब तक तक़रीबन पांच हजार मुद्दों पर बहस हो चुकी थी। यह बहस गोपनीय न होकर सभी के लिए ओपन रहती है।

इस ग्रुप में कई मीडिया के लोग भी जुड़े हुए हैं और वे इस ग्रुप में प्रसारित मुद्दों को प्रकाशित भी करते रहे हैं। कई लेख इसी ग्रुप से मीडिया तक पंहुचे हैं।

दलित मूवमेंट एसोसिएशन का गूगल ग्रुप बैन - नेशनल दस्तक

नई दिल्ली। आजकल जिस प्रकार से सोशल मीडिया का गला घोटने का सिलसिला चल पड़ा है उसमें फेसबुक ट्विटर ब्लॉग के साथ-साथ गूगल ग्रुप को भी निशाना बनाया जा रहा है। हाल ही में दलित मूमेंट एसोसिएशन गूगल ग्रुप को बंद कर दिया गया। तर्क यह दिया गया कि इसमें दुर्भावना पूर्ण सामग्री थी। किस मेल से या किस सदस्य से आपत्ति है इसका जिक्र नहीं किया गया है।

खास बातें-
  1. 10 साल से एक्टिव था गूगल ग्रुप
  2. लोग करते थे सामाजिक मुद्दों पर डिस्कशन
  3. ग्रुप का ब्लॉग अभी सक्रिय है
  4. सभी के लिए ओपन थी यह बहस

गूगल ग्रुप डी एम ए विगत 10 सालों से सक्रिय था। इस ग्रुप में करीब 7500 सदस्य जुड़े हुए थे। जिनमें तमाम नामी गिरामी हस्तियों के साथ-साथ, देश विदेश के प्रगतिशील मानवाधिकार मुद्दों से जुड़े हुए व्यक्ति भी शामिल थे।

dalit movement google group ban
यह एक बेहद सक्रिय ग्रुप था जिसमें देश विदेश के तमाम मुद्दों पर सार्थक बहस होती थी। अब तक तक़रीबन पांच हजार मुद्दों पर बहस हो चुकी थी। यह बहस गोपनीय न होकर सभी के लिए ओपन थी। आज वे सरे मुद्दे इस ग्रुप से गायब हैं।
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इस ग्रुप में कई मीडिया के लोग भी जुड़े हुए थे और वे इस ग्रुप में प्रसारित मुद्दों को प्रकाशित भी करते रहे हैं। कई लेख इसी ग्रुप से मीडिया तक पंहुचे हैं। अब तक इसके बहुत सारे सदस्यों को ये नहीं मालूम की यह ग्रुप बंद हो चुका है।
नेशनल दस्तक से साभार 
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सामाजिक बहिष्‍कार रोकथान अधिनियम के हम समर्थन मे है।

सामाजिक बहिष्‍कार रोकथान अधिनियम के हम समर्थन मे है।
संजीव खुदशाह
कार्यकारी संयोजक
जाति उन्‍मूलन आंदोलन

सामाजिक प्रताडना एवं बहिष्‍कार की रोकथाम के लिए प्रदेश में प्रस्‍तावित छत्‍तीसगढ सामाजिक बहिष्‍कार (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम बनने की प्रकिया शुरू हो गई। इसके लिए बकायदा एक कमेटी भी बन गई है। दरअसल हाल ही में हुई सामाजिक बहिष्कार की घटनाओं से सरकार को इस बात का दबाव प्रगतिशील संगठनो के द्वारा बनाया जा रहा था की यहां भी महाराष्‍ट्र की तर्ज पर एक समाजिक बहिष्‍कार रोकथान अधिनियम बने। इसका मकसद तमाम जातियों में चल रहे जाति पंचायतों में तुगलकी फैसलो एवं न्‍यायपालिका के अधिकार का हनन करने की प्रकिया पर अंकुश लगाना है। कानून बनाने के लिए गृह विभाग के सचिव की अध्यक्षता में प्रारूप समिति का गठन भी कर दिया गया है। सात जून को समिति की पहली बैठक भी हो चुकी है। छत्तीसगढ़ में सामाजिक बहिष्कार की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। कभी अंतरजातीय विवाह तो कभी मृत्युभोज नहीं देने पर तो कभी आरटीआई लगाने पर सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है। सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ ठोस कानून नहीं होने के कारण ऐसे मामलों में कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है। समाजशास्त्रियों का मानना है कि सामाजिक बहिष्कार व्यक्ति के मानवीय अधिकारों का खुला हनन है। इस पर प्रभावी नियंत्रण के लिए कानून नहीं होने के कारण ग्राम पंचायत या जातिगत सामाजिक पंचायतों द्वारा व्यक्ति या परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर प्रताड़ित किया जाता है। आर्थिक व शारीरिक दंड भी दिया जाता है।केंद्र व राज्य के पास आंकड़े भी नहीं केंद्र व राज्य सरकार के पास सामाजिक बहिष्कार के कितने मामले हैं, इसके आंकड़े उपलब्ध नहीं है। एक सामाजिक संगठन ने आरटीआई के तहत राज्य शासन से सामाजिक बहिष्कार के प्रकरणों और इसकी रोकथाम के लिए उपलबध कानून के बारे में जानकारी मांगी थी। राज्य शासन की तरफ से जवाब निरंक आया। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से भी सामाजिक बहिष्कार के मामलों के आंकड़े उपलब्ध नहीं होने की जानकारी दी गई है।

इन मुआमले में छत्‍तीसगढ शर्मिदा है-
1 हरियाणा की खाप पंचायतों की तर्ज पर रायपुर के टिकरापारा में एक परिवार को समाज से बहिष्कृत करने का मामला सामने आया है। परिवार के मुखिया शंकर सोनकर का आरोप है कि उन्हें महज इसलिए बहिष्कृत कर दिया गया, क्योंकि उसने समाज के स्कूल के बारे में जिला शिक्षा कार्यालय में आरटीआई के जरिए जानकारी मांगी थी।
2 कवर्धा जिले के लोहारा विकासखंड के ग्राम बचेड़ी के तीन परिवारों से सरपंच ने गांव के सभी लोगों को उनके परिवार के किसी भी सदस्य से बात न करने का फरमान जारी कर दिया। इनसे कोई भी बात करता है या किसी प्रकार से मदद करता है तो उससे 25 हजार रुपए अर्थदण्ड लेने और अर्थदण्ड नहीं देने पर समाज से बहिष्कृत करने की चेतावनी दी गई।
3प्रदेश की समाज कल्याण मंत्री रमशीला साहू के गांव के तीन परिवार का हुक्का-पानी सालों से बंद है। वो भी सिर्फ इसलिए कि इनमें से किसी ने बड़ा मंदिर बनवा दिया तो किसी ने उसे पनाह दी, जिसका हुक्का-पानी पहले से बंद था।
3 रायपुर के ही राजिम के पास ग्राम बेलटुकरी में तेजराम साहु के परिवार द्वारा मुंडन नही कराये जाने पर करीब 12 सालों तक समा‍ज से बहिष्‍कृत रखा बाद में संजीव खुदशाह एवं डॉं दिनेश मिश्र के नेतृत्‍व में जाति उन्‍मूलन आंदोलन की टीम द्वारा वहां जाकर वहां जाकर ग्राम वासियों को प्रेरित करने तथा दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही का दबाव बनाने पर उनका समाजिक बहिष्‍कार खत्‍म किया गया।

महाराष्ट्र में है यह कानून महाराष्ट्र में कोई भी व्यक्ति किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का सामाजिक बहिष्कार करता है तो उसे तीन साल की जेल की सजा हो सकती है। साथ ही उस पर एक लाख रुपए जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यह जुर्माना पीड़ित व्यक्ति को दिया जाएगा। महाराष्ट्र सामाजिक बहिष्कार को अपराध मानते हुए कानून लाने वाला देश का पहला राज्य है। पीड़ित व्यक्ति स्वयं या उसके परिवार का कोई भी सदस्य पुलिस या सीधे जज के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकता है।किसी व्यक्ति या परिवार का सामाजिक बहिष्कार किसी भी रूप में जायज नहीं है। सामाजिक बहिष्कार की त्रासदी पूरे परिवार को झेलनी पड़ती है। इसकी रोकथाम के लिए कारगर कानून नहीं होने के कारण स्थिति गंभीर होती जा रही है। हम सभी जनप्रतिनिधियों व सामाजिक संगठनों को इस संबंध में पत्र लिखेंने का आहवान करते है।

साथ साथ यह भी खबर है की कुछ समाजिक एवं जातिगत संगठनो ने 21 जून को रायपुर में एक बैठक ली है वे ऐसे प्रस्‍तावित कानून का विरोध कर रहे है। सोशल मीडिया में इस अधिनियम के विरूध दूषित मौहोल तैयार कर रहे है। गौर तलब है की पहले से ही प्रताडित पिछडे एवं अत्‍यंत पिछड्री जातिया ऐसे कानून का विरोध कर रही है जिन्‍हे इस वक्‍त इसकी ज्‍यादा जरूरत है। हम एवं हमारी संस्‍था जाति उन्‍मूलन आंदोलन समाजिक बहिष्कार कानून का पूरा समर्थन करती है तथा ऐसे कानून बनने की प्रकिया में हर प्रकार का सहयोग देने के लिए तत्‍पर है। और आप सभी से ऐसे ही सहयोग की अपेक्षा रखती है।

संजीव खुदशाह
कार्यकारी संयोजक, केन्‍द्रीय कमेटी नई दिल्‍ली
जाति उन्‍मूलन आंदोलन



जाति प्रथा एक राष्ट्रीय समस्‍या

जाति का उन्‍मूलन एक विश्‍लेषण
·         संजीव खुदशाह
पिछले कई दशको से जाति उन्‍मूलन की कोशिश अपनी अपनी तरह से की जाती रही है। कुछ कोशिश बुध्‍द, महावीर, कबीर, रयदास, फूले के काल में हुई थी। लेकिन ये एक प्रयास था। इसका मास्‍टर प्‍लान नही था शायद यही कारण है की जाति की पकड़ ढीली तो हुई, लेकिन जाति का उन्‍मूलन रंज मात्र भी नही हुआ। परंन्‍तु पिछले छ: दसक पहले जाति उन्‍मूलन का खाका (जिसे संकुचित अर्थ में मास्‍टर प्‍लान भी कह सकते है) डॉं अम्‍बेडकर के साहित्‍य में देखने मिलता है।
जैसा कि मान्‍यता गढ़ी गई है की जाति उन्‍मूलन दलितों का काम है क्‍योंकि जाति उत्‍पीड़न उन्‍ही का हुआ है। इस तरह डा. अम्‍बेडकर को दलितों तक सिमित कर दिया गया। सिर्फ दलितों तक नही एक जाति विशेष तक सिमित कर दिया गया। अम्‍बेडकर और जाति वाद एक दूसरे के पर्याय समझे जाति लगे। लेकिन ये एक सच नही था। सच्‍चाई ये है कि अम्‍बेडकर ने सभी मुद्दे पर काम किया, चाहे जाति भेद, लिंग भेद हो या रंग भेद धर्म भेद। आश्‍चर्य है कि उन्‍होने किसी जाति विशेष के लिए कभी काम नही किया। वे एक ओर कानून विद थे तो दूसरी और अर्थशास्‍त्री । वे सामाजिक कार्यकर्ता, शोधकर्ता, साहित्‍यकार तो कभी दार्शनिक की भूमिका में दिखाई पड़ते। मुझे ये बात इसलिए बतानी पड़ रही है क्‍योकि अम्‍बेडकर को और उनके विचार को समझे बिना जाति उन्‍मूलन का मास्‍टर प्‍लान तैयार नही किया जा सकता।
भारत में जाति प्रथा कैसे आई ?
इतिहास की किताबों से ज्ञात होता है कि आर्यो के आने के पूर्व यहां जाति प्राथा नही थी जातियां कबिले के रूप में विद्यमान थी। ये कबिले अपनी पहचान एवं चिन्‍ह कायम रखत थे। आर्य जो केवल तीन वर्ण साथ लेकर आये थे ‘’ब्राम्‍हण क्षत्रिय और वैश्‍य’’ बाद में यहां के कबिलों को शूद्र वर्ण में शामिल करके चौथा वर्ण बनाया गया। इन कबिलों का रिश्‍ता किसी खास पेशे से जुड़ता गया। लेकिन सामाजिक अनुक्रम (ऊंच-नीच) से मुक्‍त था। बाहरी लोगो ने यहां पहले से मौजूद कबिलों को वर्णक्रम में जोड़ कर जातिय स्‍वरूप दिया। इसे धार्मिक अमली जामा महनाकर अनुक्रम से जोड़ दिया गया। ऊंच-नीच आने के कारण ये जातियां अपने अस्‍ति‍त्‍व को बनाये रखने के लिए मजबूर होती रही। हर जाति एक दूसरे से घृणा करती और निची नजर से देखती है।
क्‍यों जरूरी है जाति उन्‍मूलन ?
आप सभी को ज्ञात है कि हम आज आधुनिक विज्ञान की दैनिक वस्‍तुए रोजमर्रा में प्रयोग करते है। एक सुई से लेकर हवाई जाहज तक। इनमें से किसी भी चिजों का अविष्‍कार भारत में नही हुआ। इसी प्रकार संसार के 500 चोटी के विश्‍वविद्यालय में भारत का एक भी विश्‍वविद्यालय शामिल नही हो सका। जानते है इसका कारण क्‍या है, इसका कारण है भारत में लोग अविष्‍कार करके गौरांवित नही होते, वे गौरांवित होते है अपनी जाति से। इसलिए लोग अविष्‍कार कररने के बजाय अपनी अपनी जाति गौरव बढ़ाने, उसे पुष्ट करने में लगे रहते है। और  अविष्‍कार नही होगा तो विश्‍वविद्यालय नाम के रहेगे, सिर्फ अंधविश्‍वास के केन्‍द्र। विद्यार्थी परिक्षा पास होने के लिए पढ़ाई के बजाय भगवान की मनौती पर ज्‍यादा विश्‍वास करते है। जाति प्रथा ने भारत का आर्थिक, मानसिक और नैतिक विकास रोके रखा है। इसलिए यदि भारत को शिखर में देखना है तो  जाति का उन्‍मूलन जरूरी है।
वे लोग जो जाति प्रथा को किसी धर्म विशेष(हिन्‍दू) की समस्‍या समझते है वे एक बड़ा भूल करते है। दरअसल यह एक राष्ट्रिय समस्‍या है। जिसने भारत को आज भी कई शताब्दियों पीछे रोके रखा है। वे चंद लोग जो जाति प्रथा से लाभांवित है जाति को समस्‍या नही मानते है। वे इसे एक संस्‍कृति का नाम देकर उन्‍मूलन का विरोध करते है। जब आप इसके उन्‍मूलन की बात करते है तो आपको इसे राष्‍ट्रीय समस्‍या के रूप में देखना होगा। तभी इसका हल निकाला जा सकता है।
जाति उन्‍मूलन किसका होना है ?
ज्‍यादातर ये माना जाता रहा है कि जाति उन्‍मूलन दबी कुचली जाति का होना चाहिए। इसे इन जातियों के संसाधनात्‍मक उत्‍थान से जोड़ कर देखा जाता रहा है। दूसरी मान्‍यता ये भी की जो जाति, जाति प्रथा से पीडि़त है उसे ही उन्‍मूलन के लिए प्रयास करना चाहिए। दरअसल ये एक सफेद झूठ है जिस प्रकार एक ऊंची जाति का व्‍यक्ति जाति को बचाये रखने का प्रयास करता है। ठीक उसी प्राकार निची जाति का व्‍यक्ति भी अपनी जातिय पहचान को बनाये रखने के प्रयासरत रहता है। यहां बात विचारधारा की है।
अत: जाति उन्‍मूलन नीचे पैदान की  जाति के लिए जितनी जरूरी है उतनी जरूरी ऊंचे पैदान की जाति के लिए भी जरूरी है। चूकि अन्‍य धर्म में भी धर्मातरण की ईकाई जाति रही है(‍जाति सहित धर्मांतरण)। इसलिए बौध्‍द सहित हिन्‍दु, मुस्लिम, ईसाई, सिक्‍ख, जैन धर्म में भी जाति प्रथा चरम पर है। यह सोचना की सिर्फ हिन्‍दू धर्म में ही जाति प्रथा की बुराई है तो ये गलत होगा। सभी धर्मो में मौजूद जातियों के उन्‍मूलन की आवश्‍यकता है। लेकिन केन्‍द्र में हिन्‍दू धर्म को रखना होगो।
जाति का उन्‍मूलन कैसे हो ?
जाति उन्‍मूलन के कई उपाय है इसे हम मुख्‍य रूप से दो भागों में बांट सकते है।
1 परंपरागत तरिका
(क) अर्तजातिय विवाह- आजादी के बाद एक ही वर्ग में आने के कारण जाति के बाहर शादि का प्रचलन बढ़ा है जैसे डाक्‍टर, आई ऐ एस आदि आदि। लेकिन जाति प्रथा एक इन्‍च भी पीछे नही खिसकी। उसी प्रकार अर्तजातिय प्रेम विवाह जाति टूटने का सुखद भ्रम तैयार करती है प्रेम विवाह करने वाले अपने आपको जाति उन्‍मूलन का अगवा सिध्‍द करने के लिए तुल जाते है जबकि सच्‍चाई ये है कि सिर्फ महिला की जाति बदलती है कहीं-कहीं तो पुरूष की जाति बदल जाति है। बाद में अगली पीढ़ी मानों अपनी गलती को सुधारते हुए अपनी जाति(पिता की जाति) में विवाह कर लेते है। आज प्रेम विवाह की संख्‍या बढ़ी जरूर है लेकिन जाति वहीं की वही है। मेरा मानना है कि जब अंर्तजातिय अरेंज मैरिज(जिसमें दोनो जातियों एवं परिवारों की रजामंदी हो) होना प्रारंभ हो जायेगा तब ये माना जा सकेगा की जाति उन्‍मूलन हो रहा है।
(ख) अर्तजातिय भोज का आयोजन-आज से छ: दशक पहले अर्तजातिय भोज एक स्‍वप्‍न था। बाद में कुछ सुधार हुऐ और विभिन्‍न अवसरों में इस प्रकार के भोज का आयोजन किया जाने लगा। लोग वहां अपनी जाति के साथ आते और चले जाते। आज ऐसे भोज शहरों में हर मौके पर होते है। लेकिन जाति है कि नही जाती। यह प्रयास भी विफल ही माना गया।
(ग) धर्मशास्त्रों को डायनामाईट से उड़ा दिया जाय- कुछ विचारको ने इस प्रकार के विचार भी रखे। हलांकि यह बात सही है कि धर्म शास्‍त्र जाति प्रथा को धार्मिक मान्‍यता प्रदान करते है। जाति प्रथा को खाद पानी इन्‍ही वेद पुराणों धर्म शास्‍त्रों से मिलती है।  और हर दुख सुख का जातिय हल बता दिया जाता जैसे- इस जन्‍म में अपनी जाति के पेशे को अच्‍छे से करोगे तो, अगला जन्‍म उच्‍चे कुल में होगा। अत: धर्म शास्‍त्रों को यदि डायनामाईट से उड़ा दिया जायेगा तो जो बुराई इन शास्त्रों के कारण लोगो की मासिकता में बसी हुई है उसका क्‍या होगो? इसलिए धर्म शास्‍त्रों के प्रतिरोध के साथ-साथ लोगो के मन से इन धर्मशास्‍त्रों को निकालना होगा।
2  जाति उन्‍मूलन के नये  तरिके
जाति उन्‍मूलन के पहले यह जाना आवश्‍यक है कि जाति किन आधारो पर टिकी हुई है। जब हमे जाति को खड़ा करने के आधार मिल जायेगे तो हमें उन आधारों पर चोंट करना होगा तभी जाति का उन्‍मूलन हो सकेगा।
जाति इन तीन आधारो पर टिकी हुई है
1.    अंधविश्‍वास- कुल गौरव, पुरुष सत्‍ता, कुल गुरू परंपरा, पूर्वजन्‍म आदि ये वे मान्‍यताएं है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नही है सभी या तो अहम पर टिकी है या संस्‍कृति के नाम पर लेकिन ये है अंधविश्‍वास।। अज्ञानता- ऐसी परंपरा या रूढ़ी जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नही है लेकिन आधुनिक विज्ञान की गलत व्‍याख्‍या से सही सिध्‍द करने की चेष्‍टा की जा‍ती है। जैसे ऊंच नीच को मानना, शुभ अशुभ का विचार करना, काल्‍पनिक विपत्ति को दूर करने के अनुष्‍ठान करना आदि। विज्ञान और धर्म में घाल मेल- विज्ञान और धर्म में घाल मेल करके यह सिध्‍द करने की कोशिश की जाती है कि धर्म इस अविस्‍कार या ज्ञान से पहले से ही बावास्‍ता था। धर्म विज्ञान से ऊपर है ताकि धर्म में मौजूद ऊच नीच का कोई विरोध न कर सके। 
2.    झूठे स्‍वर्णिम अतित की पूजा- आज ये जाति प्रथा का मुख्‍य आधार है। 2000 साल की गुलामी का इतिहास होने के बावजूद। पुराण काल(काल्‍पनिक काल) को स्‍वर्णिम इतिहास बताया जाता है जिसका कोई एतिहासिक साक्ष्‍य नही है इस स्‍वर्णिम भूत काल की बातों में मुख्‍य रूप से यही बाते कही जाती है की जाति प्रथा ही उस स्‍वर्णिम भूत का मुख्‍य आधार था। सब सुखी थे। इसलिए जाति प्रथा का विरोध मत करना नही तो वह स्‍वर्णिम भूतकाल फिर से नही आयेगा।
3.    लिंग भेद (महिलाओं का दम)- सभी जातियां ये मानती है कि उनकी जाति की इज्‍जत उनके घर की स्त्रियों में होती है। स्‍त्री की इज्‍जत गई(आशय यौन संबंध से है) तो उस परिवार की जाति की इज्‍जत गई। मानों जाति की इज्‍जत उनकी महिलाओं की योनी में होती है। इसलिए जब किसी जाति को नीचा दिखाने की बात आती है तो महिलाओं की आबरू से खेला जाता है, उनकी हत्‍या की जाति है। छोटी दलित या पिछड़े वर्ग के लोग तरक्‍की करते है तो दबंग जाति के लोग नीचा दिखाने की नियत उनकी महिलाओं से बलात्‍कार करते है ताकि उस जाति की इज्‍जत को छोटा कर दिया जाय।
इसी इज्‍जत के बहाने बेटी को अपनी ही बिरादरी में ब्‍याहना पड़ता है क्‍योंकि अन्‍य जाति में ब्‍याहने का मतलब इज्‍जत जाना। इसलिए बाप को अपनी ही बिरादरी में अयोग्‍य जात बिरादरी के लड़को से बेटी की शादी करनी पड़ती वो भी  रिश्‍वत (दहेज) देकर।
गौरतलब है की स्त्रियों का दमन यहां तक नही रूकता वह कन्‍या वध, सती प्रथा, आजीवन विधवा शोषण तक जारी रहता है। उद्देश्‍य एक मात्र जाति की योनी का है। यानि जाति प्रथा का मतलब स्त्रियों का शोषण है। यह जाल स्त्रियों को घेरने के लिए है। पर इसी जाति प्रथा में प्ररूष आजाद है।
अब आवश्‍यकता है इन तीन आधार जिस पर जाति प्रथा टिकी हुई पर चोट किया जाय। साथ-साथ इन बिन्‍दुओं पर भी गौर करना होगा।
1.         इर जाति के प्रगतिशील व्‍यक्तियों को इस मुहिम का हिस्‍सा बनाया जाय। यानि सबसे पहले इस मुहिम में जाति का उन्‍मूलन किया जाय। जिस प्रकार ब्राम्‍हण वादी होने के लिए ब्राम्‍हण होना जरूरी नही है। । उसी प्रकार प्रगतिशील वादी होना भी किसी  जाति विशेष की बपौती नही है। इन्‍ही प्रगतिशील व्‍यक्तियों की जरूरत है जो हर रूढ़ी को तोड़ने के लिए तैयार हो।
2.         पारंपरिक या पु‍श्‍तैनी काम का ब‍हिस्‍कार किया जाय।
3.         अंर्तधार्मिक एवं जातिय विवाह को प्रोत्‍साहन संरक्षण दिया जाय।
4.         सामाजिक धरोहरों में से अनावश्‍यक चिजों को हटाकर काम की चिजों का प्रयोग किया जाय।
5.         धार्मिक अंध विश्‍वास से लोगो को परिचित कराया जाय।
6.         यदि धर्म को जिन्‍दा रखना है तो धार्मिक क्रियाकालापों में जातिगत श्रेष्‍ठता को आधार नही माना जाय।
7.         भूमि का समान वितरण हो तथा आर्थिक प्रगति की ओर बढना होगा।
8.         सरकारी दस्‍तावेज में जाति के कालम को विलोपित किया जाय।
       सामाजिक दायरे से बाहर निकलना होगा
1. जाति उन्‍मूलन सिर्फ सामाजिक सुधार का हिस्‍सा नही बल्कि राजनीतिक विचार धारा के मुख्‍य ऐजेण्‍डे में शामिल किया जाना होगा।
2. यदि आवश्‍यक हो तो धर्म के प्रतीनिधी से भी बात होनी चाहिए क्‍योंकि जब बात करेगे तो बात बनेगी।


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published at deshbandhu news paper

भारत का वरिष्ठ पत्रकार- चालाकियों से कब बाज आएगा

April 26, 2017
संजीव खुदशाह/ करीब पांच साल पहले रायपुर में छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल जिसका नाम भारत रत्न डॉ भीम राव अंबेडकर हॉस्पिटल है मे अंडकोष के इलाज के लिए एक मशीन खराब हो गई थी उसे रिपेयर कर लिया गया तो छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध अखबार में इस समाचार के लिए शीर्षक लिखा अंबेडकर का अंडकोष ठीक हुआ.
मेरे एक मित्र ने मुझे फोन में बताया इसके के बारे में और आपत्ती भी दर्ज कराई हमने एक पत्र मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट ला नेटवर्क को लिखा (यह संस्‍था कानूनी मामले में मदद करती है) और बैठकों में भी इसकी चर्चा की।
उस वक्त आज की तरह  whatsapp जैसी सोशल मीडिया नहीं आई थी. ताकि खबर यहां वहां तक असानी से पहुचा जा सके। बावजूद इसके छत्तीसगढ़ के अखबार जिनका मुख्यालय रायपुर मे हीं है वह आंबेडकर हॉस्पिटल के संबंध में ऐसी ही उलजुलूल शीर्षक लगाकर समाचार छापते हैं और हम लगभग इस के आदी हो चुके हैं.

पिछले 3 दिनों पहले हरिभूमि समेत तमाम प्रसिद्ध अखबारों ने एक समाचार छापा जिसका शीर्षक था सुप्रीम कोर्ट का फैसला अब आरक्षित वर्ग को सिर्फ कोटे में मिलेगी नौकरी भीतर चाहे कुछ और भी लिखा हो लेकिन इन वरिष्ठ पत्रकारों ने खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई साथ में सुप्रीम कोर्ट भारत के संविधान का मजाक भी उड़ाया. जबकि सुप्रीम कोर्ट का डिसीजन कुछ और ही था.

इसी प्रकार कुछ दिनों पहले नवभारत के फ्रंट पेज में एक खबर का शीर्षक था मायावती वेश्या से बदतर है अंदर जो भी लिखा हो उससे ज्यादा  महत्वपूर्ण बात यह कि जातिवादी संपादक पत्रकार इतनी हिम्मत कैसे का पाते हैं कि वे वंचित के नायक ऊपर ऐसे घृणित शोर्षक लगा पाते हैं. मैं बताना चाहूंगा कि पंडित जवाहरलाल नेहरु, महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, वीर सावरकर, अग्रसेन महाराज, परशुराम जैसे अभिजात्य वर्ग के महापुरुषों के बारे में ऐसे शिर्षक ना लगाए गए ना ही लगाने की हिम्मत किसी पत्रकार ने की होगी.
नवभारत अखबार की हेडिंग ‘माया का चरित्र वेश्या से बदतर’ भारतीय मिडिया के घोर सवर्णवादी सामाजिक चरित्र को बेहतरीन तरीके से उजागर करता दिखता है.
कुछ दिन पहले राजस्थान पत्रिका नामक समाचार पत्र जो अभी पत्रिका के नाम से जानी जाती है के मालिक गुलाब कोठारी ने एक लेख लिखा आरक्षण से कब आजाद होगा यह देश इस लेख में संविधान का बुरी तरीके से मजाक उड़ाया गया और गलत जानकारी देकर वंचित वर्ग को जलील करने की चेष्टा की गई कुछ लोग इसका विरोध भी किए लेकिन पत्रिका ने कभी भी अपने इस लेखक खंडन नहीं किया
इसी प्रकार पिछले दिनों कुछ समाचार पत्रों में शीर्षक दिया की चुनाव आयोग ने चैलेंज ईवीएम को हैक करके दिखाएं कुछ केन्‍द्रीय मंत्री तथा  नेताओं ने भी इस पर अपने स्टेटमेंट जारी किए की चुनाव आयोग का यह कदम सराहनीय है। लेकिन सच्चाई यह थी कि चुनाव आयोग ने ऐसा कोई चैलेंज जारी ही नहीं किया था।
अब मैं आपको बताना चाहूंगा की गलत शीर्षक लगाने वाले यह पत्रकार किस प्रकार सच्चाइयों को छिपा जाते हैं और उन्हें आसानी से पचा लेते हैं एक उदाहरण देखिए सेना के जवान श्री तेज प्रताप यादव को बर्खास्त कर दिया गया वह भी इसलिए कि उसने हल्दी मिला दाल और घटिया खाने का वीडियो बनाकर वायरल कर दिया था. इस समाचार को मीडिया ने पूरी तरीके से दबा दिया कुछ मीडिया ने छापा भी तो उन्होंने लिखा तेजप्रताप बर्खास्त. क्यों बर्खास्त हुआ? कैसे बर्खास्त हुआ? सही था या गलत था इस बात से पत्रकारों को कोई लेना देना नहीं क्यों केवल  इसलिए  की  तेज प्रताप यादव था ?
मुझे लगता है की भारत के लिए स्वयंभू वरिष्ठ पत्रकार लिखते तो बहुत है पढ़ते नहीं। वह सुप्रीम कोर्ट के बारे में लिखने के पहले उन का आदेश नहीं पढ़ते. कोठारी जी संविधान पर लिखने से पहले संविधान नहीं पढ़ते. वरिष्ठ पत्रकार आंबेडकर हॉस्पिटल में लिखने से पहले यह भूल जाते हैं कि हॉस्पिटल पर ही लिख रहे हैं अंबेडकर पर नहीं। तेज प्रताप यादव सैनिक के ऊपर लिखते समय वह भूल जाते हैं कि वह सैनिक है उन्हें यह याद रहता है कि वह यादव जाति के है। यानी भारत के हिंदी पत्रकार हिंदी कम हिंदू पत्रकार ज्यादा लगते हैं। दरअसल भारत का वरिष्ठ हिंदू पत्रकार वंचित वर्ग को जलील करने का और अभिजात्य वर्ग को उपकृत करने का कोई भी मौका खोना नहीं चाहता।
साभार  http://mediamorcha.com

IME9 Ayurvedic Medicine Is a Fraud Medicine by Kudos


[Review] IME9 Ayurvedic Medicine Is a Fraud Medicine by Kudos



Many people like me have already been cheated by the product IME9 which promises to cure any type of Diabetics disease let it be for how many longer years of the patient. But the result is far from its promise. Before I tell you the conclusion let me tell you how I fall into its trap which many happen with you and you should be aware of it and keep you safe from landing in trouble.



One day I was watching TV and saw an ad showing it cures Diabetics successfully within 3 months. Not cures actually, but it brings blood sugar within control within 3 months of course and thereafter you need not to continue any other medicine. The medicine is approved by Government of India “National Research Development Corporation The Department of Scientific and Industrial Research” Ministry of Science & Technology. I am placing the complete image of the package which you can see yourself. I was excited as my mother is a 25 year diabetic patient and along with that high blood pressure was a gift to it. She was fed up with taking so many medicines daily for last 25 years. Around 15 to 20 medicines in total daily for last 20 to 205 years. So I thought if this IME9 is going to work then my mother will be relieved from taking so many medicines and she will have a better health.

In few days I made a call to enquire about the medicine to their customer care number shown on TV advertisement 96437003359 and a lady explained me everything about how to use the medicine, what are the things not to be eaten during this period and confirmed that after the medicine is delivered they will again call me and once again explain everything in details. She took my address and confirmed that the medicine will be delivered on next day on “Cash on Delivery” by courier as I agreed to buy the product. The cost of the medicine was Rs. 3000. There will be 4 bottles inside the packet. 3 bottles will be for diabetic and 1 bottle will be for other 9 types of disease which is free. I have to pay for 3 bottles and the other one is free of cost.


Exactly the next evening the courier guy delivered me the medicine packet which was wrapped in a polythene sheet and collected Rs. 3000 from me. There was no bill pasted on the packet. I thought the bill will be inside the packet. Because of excitement I could not ask the same to the courier guy too.

When I tear off the polythene sheet the medicine packet was inside and there was no bill inside it. MRP written was Rs. 2700 and I paid Rs. 3000 (You can see the image for the MRP). So I was bit confused as there was no bill means no proof of selling. As it was shown to be a product approved by Govt. Of India and such an activity was never expected. I waited for 2 days but no call received from them. As I was explained already, I advised my mother to continue the medicine in that manner and stopped all other medicine. All diet was also according to the guideline which was explained to me and a paper explaining the guideline inside the medicine packet.

Before starting the medicine I made a blood sugar check of my mother on 27 Jun 2016 at Advance Pathology Laboratory, Makarpura, vadodara, Gujarat and the result is as mentioned below:-

Fasting Blood glucose 324 mg/dl 
Post Prandial Blood Glucose 480 mg/dl 



The next day my mother started taking the IME9 medicine. I wanted to keep a track of the development so I wanted to make another check of Blood Sugar. After taking medicine for around 15 days on 13 Jul 2016 again I visited the same lab for checking blood sugar. The result is mentioned below:-

Fasting Blood glucose 460 mg/dl 
Post Prandial Blood Glucose 511 mg/dl 



If you see, there is a drastic increase of increase of sugar level after taking IME9 just for 15 days. With that some other problems started like, my mother use to be too tired. She was feeling very tired and always felt like sleeping and not moving out of her room.

Hence after seeing the report I immediately stopped using the medicine and switched to the old medicine and consulted the doctor and now she is fine and the blood sugar is within control. I have carried out 3 tests using the instant blood sugar check machine which we can use at home and the last check shown the record of 132 for Fasting Blood glucose.

After going through all these, I thought, I should write about this medicine and inform the world that, this medicine is a pure risk. The people who express their view on the TV ad may not be the real people who suffered from diabetic. There is no bill or receipt of the medicine when it is told to be approved by the Govt of India. How can it be possible that no bill is provided for medicines? There are some major frauds which take place are mentioned below to summarise the whole issue mentioned below:-

· No bill provided means they do not leave any proof behind if anything goes wrong. 
· MRP printed on box is Rs. 2700 where as they collect Rs. 3000. The MRP is not visible when you collect as it is wrapped with non-transparent polythene so you cannot see it. 
· No proof of Government of India approved medicine. 
· No further contact done from company after delivery of medicine. 

So, now it’s up to you whether to go for this medicine or not.

It’s a big NO from my side as I have experienced this. Hence this is a warning not to use IME9.
I request people to write their reviews about the medicine so that people who are wanting to use it will have a better understanding before they buy it. I am not sure if this is the case with others what has happened with me. So, if people will share their experiences that will help others.













Documents Received Inside Packet




























http://oxymos.blogspot.in/2016/08/review-ime9-ayurvedic-medicine-is-fraud.html?m=1