जानिए आखिर क्यों प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न दिया गया?

भाजपा राहुल गांधी को भी भारत रत्‍न सम्‍मान देगा
सचिन खुदशाह
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नानाजी देशमुख और भूपेन हजारिका को भारत रत्न पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। नानाजी देशमुख और भूपेन हजारिका तो भाजपा के थे और उनका आर आर एस से करीबी का रिश्ता रहा है। इसलिए इन दोनों पर तो कोई चर्चा नहीं हो रही है। लेकिन बहुत सारे लोग प्रणव मुखर्जी के नाम पर चर्चा कर रहे हैं। क्योंकि वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं। और राष्‍ट्रपति समेत कई महत्वपूर्ण पदों पर उन्होंने काम किया है।
नाम की घोषणा होते ही भारत की गोदी मीडिया ने कांग्रेसी नेताओं से प्रश्‍न करना शुरू किया कि भाजपा सरकार ने भारतरत्‍न प्रणव मुखर्जी को दिया है आपको कैसा लग रहा है? आप तारीफ करेंगे या विरोध करेंगे? आपने तो उन्हें भारत रत्न नहीं दिया था? इस तरह के प्रश्न दरअसल मामले को उल्‍झाते हैं और जो असल मुद्दे से गुमराह करते हैं।
मैं आपको बता दूं कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा प्रणव मुखर्जी को भारत रत्न देना कहीं से भी कोई आश्‍चर्य की बात नहीं है। आप याद करिए प्रणव मुखर्जी शुरू से कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे पर चलते रहें हैं। और यही ऐजेन्‍डा आर एस एस का है यदि आप भूल चुके हो तो बताना चाहूगां कि राष्ट्रपति रहने के दौरान उन्होंने प्रोटोकॉल को तोड़कर बंगाल के एक परंपरागत मंदिर में पुजारी बनकर पूजा अर्चना करवाई थी। जबकि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र प्रमुख द्वारा ऐसा किया जाना संविधान की भावना के विपरीत है। उस समय उनकी इस मामले में काफी किरकिरी भी हुई थी।
कांग्रेस के विभिन्न पदो में रहने के दौरान भी प्रणव मुखर्जी कट्टर हिंदूत्‍व के अपने ऐजेडे पर चलते रहे है। वह भले ही अपने आप को धर्मनिरपेक्ष दिखाने की कोशिश करते रहे लेकिन उनका हिंदूवादी ऐेजेन्‍डा सामने आता रहा है आप ही बताइए कि जीवन भर कांग्रेस में रहने के बाद और कांग्रेस के द्वारा राष्ट्रपति बनाए जाने के बावजूद आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि आर एस एस के बुलाए जाने पर उन्हें जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। सिर्फ वे आर एस एस के कार्यक्रम में गए नहीं बल्कि खुले दिल से उन्होंने आर एस एस की तारीफ की। वह भी उन्होंने ऐसे समय तारीफ कि जब आर एस एस के द्वारा संविधान संशोधन, आरक्षण समीक्षा  और हिन्‍दू राष्‍ट्र जैसे वि‍वादित मुद्दे को अठाया जा रहा है। यह तारीफ दरअसल उनके कट्टर हिंदुत्ववादी एजेंडे पर चलने का एक सबूत मात्र है।
आर एस एस इस तीर से दो निशाने करना चाहता है पहला यह कि वह यह बताना चाहता है कि कांग्रेसी यदि कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे पर चलेगे तो वहउसे इनाम देगा। दूसरा यह है कि लोगों में यह संदेश दिया जा सके कि केवल आर एस एस वालों को ही या बीजेपी के लोगों को ही भारत रत्न नहीं दिया जा रहा है। बल्कि विपक्षी पार्टी के सदस्य को भी भारत रत्न दिया जा रहा है ताकि वह अपने कटटरवादी चेहरे पर मुखौदा लगाया जा सके।
कुछ दिन बाद राहुल गांधी को भी भाजपा भारत रत्न का पुरस्कार दे सकती है। क्योंकि राहुल गांधी भी कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे पर चल रहे हैं। जिस प्रकार से वे जनेऊ दिखा रहे हैं। अपना गोत्र बता रहे हैं। और विकास के मुद्दों को छोड़कर मंदिर मंदिर घूम रहे हैं। यह भाजपा के एजेंडे पर ही चल रहे हैं। दरअसल भाजपा यही चाहती है कि विपक्ष और तमाम गैरसवर्ण हिंदू यही काम करें। भाजपा अपने मकसद में सफल होते हुए दिखती है। यहां पर एक आम आदमी छला हुआ और ठगा सा महसूस करता है। और ऐसे लोग जो कि कांग्रेस में धर्मनिरपेक्षता की उम्मीद देखना चाहते हैं उन्हें को निराशा होती है। क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि मोदी से ज्यादा मंदिरों में जाने का रिकॉर्ड राहुल गांधी के पास है। और जिस तरीके से अभी मध्यप्रदेश राजस्‍थान और छत्तीसगढ़ में जीतने के बाद राजस्थान और मध्य प्रदेश में जो फैसले गायों के संबंध में लिए गए वह उनके कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे को ही बढ़ाते हुए देखते हैं। यह एक प्रकार से भाजपा के ही या फिर कहें आर एस एस के एजेंडे को ही फॉलो करते हुए नजर आते हैं।
मैं आपको बताना चाहता हूं कि आर एस एस अपने कट्टर हिंदुत्व के रवैये को लेकर चलना चाहती है। उसका मकसद है कट्टर हिंदुत्व को बढ़ाना, ना कि भारतीय जनता पार्टी को बढ़ाना। भविष्य में यह भी हो सकता है कि वह भाजपा के बजाए कांग्रेस को सर्पोट करे। जिस तरीके से कांग्रेस कट्टर हिंदुत्व की तरफ जा रही है। इसमें कोई आश्‍चर्य नही होगा की भविष्‍य में मंदिर मंदिर धूमने के कारण भाजपा राहुल गांधी को भी भारत रत्‍न देदे। वे भले ही विदेश में आर आर एस की बुराई करते है। लेकिन राहुल के ऐजेण्‍डे में विकास गुम हो चुका है। प्रणव मुखर्जी को भारत रत्न देना इसका एक छोटा सा उदाहरण है।

Hindu Muslim for whom?

हिन्दू मुस्लिम किसके लिए है?
(कँवल भारती)

सवाल है कि आरएसएस की हिन्दू मुस्लिम की लड़ाई किसके लिए है. क्या यह मुसलमानों के खिलाफ है? अगर कोई ऐसा समझता है, तो गलत समझता है. भाजपा के साथ मुसलमानों के रोटी-बेटी के रिश्ते हैं. क्या दलित-पिछड़ों के साथ ऐसे रिश्ते हैं? फिर हिन्दू मुस्लिम किनके खिलाफ है? स्पष्ट रूप से दलित-पिछड़ी जातियों के खिलाफ है. प्रमाण चाहिए, तो सामन्य वर्ग के लिए दस प्रतिशत आरक्षण पर विचार कीजिये. इनमें तीन सवर्ण जातियां हैं—ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य, और तीन मुस्लिम जातियां हैं—शेख, पठान और सैय्यद. इनको बिना मांगे आरक्षण मिला है. क्या सवर्णों और मुस्लिम उच्च जातियों ने कभी आरक्षण मांगा? अब यह देखिये कि विश्विद्यालयों में विभाग वार आरक्षण का प्राविधान करके किनके विकास को रोका गया है? स्पष्ट है दलित-पिछड़ों के. 
क्या आपको नहीं लग रहा है कि भाजपा ने सत्ता में आने के बाद से ही नफरत की खाई को और चौड़ा कर दिया है? बहुजन और सवर्ण के बीच जो सौहार्द का वातावरण बन रहा था, उसे उसने नफरत में इतना ज्यादा बदल दिया है कि अब ब्राह्मणों और ठाकुरों के खिलाफ बहुजन समाज में नफरत का खतरनाक दौर शुरू हो गया है. पर यही आरएसएस का एजेंडा है. क्योंकि आरएसएस को नफरत से ही आक्सीजन मिलती है. क्या देश को नफरत चाहिए?
आरएसएस का संघर्ष किससे है? नोट कर लीजिये, आरएसएस का भावी संघर्ष दलित पिछड़ों से है, क्योंकि वे मूल निवासी हैं. उसका संघर्ष मुसलमान से नहीं होगा. वह पहले भी नहीं था, आगे भी नहीं होगा. वह तो बस कुछ मुसलमानों को मारकर उन्हें डरा कर रखना चाहता है. सारे अत्याचार दलितों पिछड़ों के साथ होते हैं, चाहे वे बलात्कार हों, आगजनी हो. क्या कभी उच्च मुसलमानों की बस्तियां जलाई गयी हैं? मुसलमानों में कसाई जैसी छोटी जातियों का उत्पीडन किया गया है, क्योंकि वे भी दलित-पिछड़े समुदाय में आते हैं. अत: याद रहे, आरएसएस केवल दलित-पिछड़ी जातियों का शत्रु है. 
देश में कोई विकास का एजेंडा नहीं चल रहा है, एजेंडा सिर्फ हिंदुत्व का चल रहा है. उत्तर प्रदेश में जो विकास पिछली सरकार ने जहाँ छोड़ा था, वह वहीँ पड़ा हुआ है. हाँ, हिंदुत्व का विकास दिन दूनी रात चौगुना तरक्की कर रहा है.
क्या कांग्रेस भाजपा को हराने में सक्षम है? कदापि नहीं. कांग्रेस का नेता बुद्धिजीवी नहीं है. जो नेता अपना जनेऊ दिखाता फिर रहा है, अपना गोत्र बताता फिर रहा है, और मन्दिर-मन्दिर घूम कर हिंदुत्व की राजनीति कर रहा है, वह भाजपा के एजेंडे पर ही चल रहा है. कांग्रेस के नेतृत्व में वह परिपक्वता और वह बौद्धिकता नहीं है, जो नेहरु और इंदिरा गाँधी में थी. प्रियंका गाँधी कभी इंदिरा गाँधी नहीं बन सकती. देश में उनका कोई योगदान नहीं है? ऐशोआराम का जीवन जीने वाली महिला, जिसने कभी खेत की मेढ़ न देखी हो, वह क्या नेतृत्व करेगी? 
और अंत में सपा-बसपा गठबंधन इतिहास की दूसरी बड़ी भूल होने जा रहा है. कैसे? यह चुनाव बाद पता चल जायेगा. पेच प्रधानमन्त्री पद पर फंसेगा. अखिलेश यादव अपने पिता के लिए पलटी मरेंगे, और मायावती के नाम पर कोई पार्टी मुहर नहीं लगाएगी.
(यह टिप्पणी धीरज कुमार शील और मेरे बीच हुई वार्ता का सारांश है)

India women born for burn only


भारत में नारी जलने के लिए ही पैदा होती है।
संजीव खुदशाह
यू तो पूरे संसार में कुछ न कुछ जलता ही  है लेकिन भारत में नारी का जलना सदियों से वर्ल्‍ड रिकार्ड रहा है। इस रिकार्ड को कोई भी देशछूना तो दूर करीब तक नही पहुच पाया है। ऐसा हो भी क्‍यू न भला, यहां नारियों का जलना आम बात है। तभी तो संजली के जल जाने पर किसी  ने चू तक नही किया। वहीं पुरूष जला होता तो उसके नाम से राजीव चौक फिर बाद में मेट्रो स्‍टेशन बना दिया जाता। लेकिन नारी का जलना एक आम बात है। शान की बात है तभी तो सती को माता का दर्जा दिया जाता है लाखो करोडो के मंदिर बना दिये जाते है । ताकि उसके सती होने को न्‍याय संगत ठहराया जा सके। आपने कभी सोचा है भारतीय पुरूष कभी क्‍यो नही सती होता। कुछ मंदिर तो उसके नाम पर बनना चाहिए था। लेकिन ऐसा नही हुआ। क्‍योकि खान दान की इज्‍जत जो नारी के शरीर में ही कही पर समाई हुई है। इज्‍जत बचाने के लिए सती हुई। वाह भई मर्द, कुछ इज्‍जत आप भी तो बचाओं। वैसे भारत में नारी का जलना उत्‍सव की भी बात है। रात के बारह बजे उसे जलाओं और दूसरे दिन खुशियां मनाओं एक दूसरे को होली की बधाईयां दो।
नारियों को जलाना हमारे संस्‍क़ति का भी हिस्‍सा है। कोई माई का लाल इसका विरोध नही कर सकता। अगर विरोध किया तो मजाल है, कि वह जलने से बच जाये। तमाम सेना, संस्‍क़ति रक्षक जो तैनात खडे है आपके लिए। आखिर उन्‍हे ठेका जो मिला है। नारी कई बार इसलिए भी जलाई जाती की उसने किसी का प्रणय निवेदन नही स्‍वीकार किया। अपने अहम से आहत हुये मर्द के लिए बदला लेने का सबसे अच्‍छा साधन है तेजाब। बस तेजाब डाल दो चेहरे पर और भाग जाओं। बच गई तो पूरी जिन्‍दगी अपने आपको ही कोसती रहेगी। दूसरे भी उसे ही गलत ठहराते रहेगे।
अगर दहेज नही लाई या कुल्‍टा है तो बस जला दो उसे ऊफ तक नही करेगी। मृत्‍यु पूर्व बयान भी वह आपके खिलाफ नही देगी। क्‍योकि सनातन परंपरा जो उसे निभानी है। यह एक खोज का विषय है कि क्‍यो खाना बनाते हुये सिर्फ भारत की बहुयें ही जलती है। अरे भई पुरूष भी तो खाना बनाते है सुना है उसे जल के मरते हुये? कुआरी लड़किया भी तो खाना बनाती है सुना है उसे जल के मरते हुये? विदेशो में भी तो स्त्रियां खाना बनाती है। उसी साधन से जिस साधन से हमारे यहां की औरते बनाती है। जरूर गलती आग की होगी और पास खाना बनाती औरत को वह लप-लपाती लपटो में घेर कर निगल लेती होगी। तभी तो भारत की बहुयें इतनी बड़ी संख्‍या में सिर्फ खाना बनाते जल कर मरती है।
मरे भी क्‍यो न। भई परंपरा जो है। तभी तो धोबी की बातों मे आकर उसे लांच्‍छन दिया गया है और परीक्षा देनी पड़ी अग्‍नि‍ की। यहां हर हालत में पुरूष को अग्नि परिक्षा नही देनी पड़ती। अरे भई जो खुद परीक्षा लेता है वह क्‍या कभी परिक्षा दे सकता है। तंदूर कांड तो याद होगा आपको सुशील शर्मा ने किस प्रकार अपनी ही पत्‍नी की बोटी-बोटी काट कर तंदूर में मक्‍खन के साथ जला रहा था। नैना साहनीभवरी देवी से लेकर संजली तक एक लंबी फेहरिस्‍त है, भारत की नारियों के जलने की। इससे कई गुना तो थानो कचहरियों तक नही पहुच पाती।
जो नारी जलने के खिलाफ लड़ती है उसकी हालत संजली के परिवार की तरह हो जाती है। संजली को जलाये जाने के बाद आगरा की पुलिस ने संजली के परिवार को ही घेरे में लिया और चचरे भाई योगेश से दो दिनों तक थाने में बिठाकर पूछताछ किया की वह बिचारा परेशान, जहर खाकर मौत को गले लगा लिया। पुलिस भी यहां की पूरी संस्‍कृति रक्षक जो ठहरी मजाल है कोई संजली के जलने पर आवाज उठाये चाहे वो उसके परिवार का ही क्‍यो न हो। जांच उसके खिलाफ ही कि जायेगी जो पीडि़त होगा यह एक नियम बन चुका है आजकल। भले ही उसका अपना ही थानेदार क्‍यो न मारा जाय। ऐसे में भारत की नारी वह भी दलित आदिवासी हो तो उसकी क्‍या औकात।

Manu Smriti's Combustion How Much Wrong


मनुस्मृति का दहन कितना सही कितना गलत
संजीव खुदशाह
किताबों के दहन का किस्सा बहुत नया नहीं है। प्राचीन इतिहास में भी किताबें जलाने का जिक्र यदा कदा मिलता रहा है। और यह सिलसिला अब तक चल रहा है। नालंदा बुद्ध विहार एवं विश्वविद्यालय में  जलाई गई किताबें 3 महीने तक  जलती रही। अभी कुछ ही दिनों पहले चंद लोगों के द्वारा भारतीय संविधान को भी जलाया

गया।
किताबे दो मकसद से जलाई जाती है।
एक किताबें इसलिए जलाई जाती हैं ताकि उस विचारधारा को नष्ट कर दिया जाए। इतिहास को खत्म कर दिया जाए। जानकारियों पर नए सिल सिक्के लगा दिए जाए।
दूसरा किताबें प्रतीकात्मक रूप से भी जलाई जाती हैं ताकि उस में लिखे गए कंटेंट का विरोध किया जा सके। मनुस्मृति का जलाना इसी ओर इशारा करता है।
25 दिसंबर 1927 को डॉ अंबेडकर ने पहली बार मनुस्मृति में दहन का कार्यक्रम किया था। उनका कहना था कि भारतीय समाज में जो कानून चल रहा है। वह मनुस्मृति के आधार पर है। यह एक ब्राम्‍हण, पुरूष सत्‍तात्‍मक, भेदभाव वाला कानून है। इसे खत्म किया जाना चाहिए इसीलिए वे मनुस्मृति का दहन कर रहे हैं।
आईये संक्षिप्‍त में जाने आ‍खिर मनुस्‍मृति में ऐसा है क्‍या ?
           -नीच वर्ण का जो मनुष्य अपने से ऊँचे वर्ण के मनुष्य की वृत्ति को लोभवश ग्रहण कर जीविका यापन करे तो राजा उसकी सब सम्पत्ति छीनकर उसे तत्काल निष्कासित कर दे ।10/95-98
           -ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य कर्म कहा गया है । इसके अतिरक्त वह शूद्र जो कुछ करता है , उसका कर्म निष्फल होता है ।10/123-124
           -शूद्र धन संचय करने में समर्थ होता हुआ भी शूद्र धन का संग्रह न करें क्योंकि धन पाकर शूद्र ब्राह्मण को ही सताता है । 10/129-130
           जिस देश का राजा शूद्र अर्थात पिछड़े वर्ग का हो , उस देश में ब्राह्मण निवास न करें क्योंकि शूद्रों को राजा बनने का अधिकार नही है ।  4/61-62
           -राजा प्रातःकाल उठकर तीनों वेदों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मणों की सेवा करें और उनके कहने के अनुसार कार्य करें । 7/37-38
           -जिस राजा के यहाँ शूद्र न्यायाधीश होता है उस राजा का देश कीचड़ में धँसी हुई गाय की भांति दुःख पाता है । 8/22-23
           -ब्राह्मण की सम्पत्ति राजा द्वारा कभी भी नही ली जानी चाहिए , यह एक निश्चित नियम है , मर्यादा है , लेकिन अन्य जाति के व्यक्तियों की सम्पत्ति उनके उत्तराधिकारियों के न रहने पर राजा ले सकता है । 9/189-190
           -यदि शूद्र तिरस्कार पूर्वक उनके नाम और वर्ण का उच्चारण करता है , जैसे वह यह कहे देवदत्त तू नीच ब्राह्मण है , तब दश अंगुल लम्बी लोहे की छड़ उसके मुख में कील दी जाए । 8/271-272
           -यदि शूद्र गर्व से ब्राह्मण पर थूक दे तब राजा दोनों ओंठों पर पेशाब कर दे तब उसके लिंग को और अगर उसकी ओर अपान वायु निकाले तब उसकी गुदा को कटवा दे ।  8/281-282
           -यदि कोई शूद्र ब्राह्मण के विरुद्ध हाथ या लाठी उठाए , तब उसका हाथ कटवा दिया जाए और अगर शूद्र गुस्से में ब्राह्मण को लात से मारे , तब उसका पैर कटवा दिया जाए । 8/279-280
           -इस पृथ्वी पर ब्राह्मण वध के समान दूसरा कोई बड़ा पाप नही है । अतः राजा ब्राह्मण के वध का विचार मन में भी लाए । 8/381
           -शूद्र यदि अहंकारवश ब्राह्मणों को धर्मोपदेश करे तो उस शूद्र के मुँह और कान में राजा गर्म तेल डलवा दें । 8/271-272
           -शूद्र को भोजन के लिए झूठा अन्न , पहनने को पुराने वस्त्र , बिछाने के लिए धान का पुआल और फ़टे पुराने वस्त्र देना चाहिए ।10/125-126
           -बिल्ली , नेवला , नीलकण्ठ , मेंढक , कुत्ता , गोह , उल्लू , कौआ किसी एक की हिंसा का प्रायश्चित शूद्र की हत्या के प्रायश्चित के बराबर है अर्थात शूद्र की हत्या कुत्ता बिल्ली की हत्या के समान है । 11/131-132

           -यदि कोई शूद्र किसी द्विज को गाली देता है तब उसकी जीभ काट देनी चाहिए , क्योंकि वह ब्रह्मा के निम्नतम अंग से पैदा हुआ है ।
           -निम्न कुल में पैदा कोई भी व्यक्ति यदि अपने से श्रेष्ठ वर्ण के व्यक्ति के साथ मारपीट करे और उसे क्षति पहुंचाए , तब उसका क्षति के अनुपात में अंग कटवा दिया जाए ।
           -ब्रह्मा ने शूद्रों के लिए एक मात्र कर्म निश्चित किया है , वह है गुणगान करते हुए ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य की सेवा करना ।
           -शूद्र यदि ब्राह्मण के साथ एक आसन पर बैठे , तब राजा उसकी पीठ को तपाए गए लोहे से दगबा कर अपने राज्य से निष्कासित कर दे ।
           -राजा बड़ी बड़ी दक्षिणाओं वाले अनेक यज्ञ करें और धर्म के लिए ब्राह्मणों को स्त्री , गृह शय्या , वाहन आदि भोग साधक पदार्थ तथा धन दे ।
           -जानबूझ कर क्रोध से यदि शूद्र ब्राह्मण को एक तिनके से भी मारता है , वह 21 जन्मों तक कुत्ते बिल्ली आदि पापश्रेणियों में जन्म लेता है ।
           -ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने से और वेद के धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी है ।
           -शूद्र लोग बस्ती के बीच में मकान नही बना सकते । गांव या नगर के समीप किसी वृक्ष के नीचे अथवा श्मशान पहाड़ या उपवन के पास बसकर अपने कर्मों द्वारा जीविका चलावें ।
           -ब्राह्मण को चाहिए कि वह शूद्र का धन बिना किसी संकोच के छीन लेवे क्योंकि शूद्र का उसका अपना कुछ नही है । उसका धन उसके मालिक ब्राह्मण को छीनने योग्य है ।
           -राजा वैश्यों और शूद्रों को अपना अपना कार्य करने के लिए बाध्य करने के बारे में सावधान रहें, क्योंकि जब ये लोग अपने कर्तव्य से विचलित हो जाते हैं तब वे इस संसार को अव्यवस्थित कर देते हैं ।
           -शूद्रों का धन कुत्ता और गदहा ही है । मुर्दों से उतरे हुए इनके वस्त्र हैं । शूद्र टूटे फूटे बर्तनों में भोजन करें । शूद्र महिलाएं लोहे के ही गहने पहने ।
           -यदि यज्ञ अपूर्ण रह जाये तो वैश्य की असमर्थता में शूद्र का धन यज्ञ करने के लिए छीन लेना चाहिए ।
           -दूसरे ग्रामवासी पुरुष जो पतित , चाण्डाल , मूर्ख , धोबी आदि अंत्यवासी हो उनके साथ द्विज न रहें । लोहार , निषाद , नट , गायक के अतिरिक्त सुनार और शस्त्र बेचने वाले का अन्न वर्जित है ।
           -शूद्रों के समय कोई भी ब्राह्मण वेदाध्ययन में कोई सम्बन्ध नही रखें , चाहे उस पर विपत्ति ही क्यों न आ जाए ।
           -स्त्रियों का वेद से कोई सरोकार नही होता । यह शास्त्र द्वारा निश्चित है । अतः जो स्त्रियां वेदाध्ययन करती हैं , वे पापयुक्त हैं और असत्य के समान अपवित्र हैं , यह शाश्वत नियम है ।
           -अतिथि के रूप में वैश्य या शूद्र के आने पर ब्राह्मण उस पर दया प्रदर्शित करता हुआ अपने नौकरों के साथ भोज कराये ।
           -शूद्रों को बुद्धि नही देना चाहिए अर्थात उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नही है । शूद्रों को धर्म और व्रत का उपदेश न करें ।
           -जिस प्रकार शास्त्रविधि से स्थापित अग्नि और सामान्य अग्नि , दोनों ही श्रेष्ठ देवता हैं , उसी प्रकार ब्राह्मण चाहे वह मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही रूपों में श्रेष्ठ देवता है ।
           -शूद्र की उपस्थिति में वेद पाठ नही करना चाहिए । ब्राह्मण का नाम शुभ और आदर सूचक , क्षत्रिय का नाम वीरता सूचक , वैश्य का नाम सम्पत्ति सूचक और शूद्र का नाम तिरस्कार सूचक हो ।
           -दस वर्ष के ब्राह्मण को 90 वर्ष का क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र पिता समान समझ कर उसे प्रणाम करे ।
मनु के इस कानून से अनुमान लगाया जा सकता है कि शूद्रों अतिशूद्रों और महिलाओं पर किस प्रकार और कितने अमानवीय अत्याचार हुए हैं ।

कुछ बानगी यहां भी देखिये
न शूद्रराज्ये निवसेन्नाधार्मिकजनावृते ।
न पाषण्डिगणाक्रान्ते नोपसृष्टेऽन्त्यजैर्नृभिः ॥
(मनुस्मृति, अध्याय 4, श्लोक 61)
(न शूद्र-राज्ये, न अधार्मिक-जन-आवृते, न पाषण्डि-गण-आक्रान्ते, न अन्त्यजैः नृभिः उपसृष्टे निवसेत्।)
अर्थ – (व्यक्ति को) शूद्र से शासित राज्य में, धर्मकर्म से विरत जनसमूह के मध्य, पाखंडी लोगों से व्याप्त स्थान में, और अन्त्यजों के निवासस्थल में नहीं वास नहीं करना चाहिए।

न शूद्राय मतिं दद्यान्नोच्छिष्टं न हविष्कृतम्।
न चास्योपदिशेद्धर्मं न चास्य व्रतमादिशेत्॥
(मनुस्मृति, अध्याय 4, श्लोक 80)
(शूद्राय मतिम् न दद्यात्, न उच्छिष्टम्, न हविष्कृतम्, न च अस्य धर्मम् उपदिशेत्, न च अस्य व्रतम् आदिशेत्।)
अर्थ किसी प्रयोजन की सिद्धि को ध्यान में रखते हुए दिया जाने वाला उपदेश शूद्र को न दिया जाये। उसे जूठा यानी बचा हुआ भोजन न दे और न यज्ञकर्म से बचा हविष्य प्रदान करे। उसे न तो धार्मिक उपदेश दिया जाये और न ही उससे व्रत रखने की बात की जाये।

खास तौर पर स्त्रियों पर मनु के आपत्‍त‍ि जनक विचार
स्वभाव एष नारीणां  नराणामिहदूषणम . 
अतोर्थान्न प्रमाद्यन्ति, प्रमदासु विपश्चित:
अविद्वामसमलं लोके,विद्वामसमापि  वा पुनः
प्रमदा द्युतपथं नेतुं काम क्रोध वाशानुगम
मात्रस्वस्त्रदुहित्रा वा न विविक्तसनो भवेत् 
बलवान इन्द्रिय ग्रामो विध्दांसमपि कर्षति !
अर्थात:-पुरुषों को अपने जाल में फंसा लेना तो स्त्रियों का स्वभाव ही है! इसलिए समझदार लोग स्त्रियों के साथ होने पर चौकन्ने रहते है, क्योंकि पुरुष वर्ग के काम क्रोध के वश में हो जाने की स्वाभाविक दुर्बलता को भड़काकर स्त्रियाँ, मूर्ख  ही नहीं विध्द्वान पुरुषों तक को विचलित कर देती है! पुरुष को अपनी माता,बहन तथा पुत्री के साथ भी एकांत में नहीं रहना चाहिए,क्योंकि इन्द्रियों का आकर्षण बहुत तीव्र होता है और विद्वान भी इससे नहीं बच पाते .
अस्वतंत्रता: स्त्रियः  कार्या: पुरुषै स्वैदिर्वानिशम
विषयेषु च सज्जन्त्य: संस्थाप्यात्मनो वशे
पिता  रक्षति कौमारे भर्ता यौवने
रक्षन्ति  स्थाविरे पुत्र,न स्त्री स्वातान्त्रयमर्हति
सूक्ष्मेभ्योपि प्रसंगेभ्यः स्त्रियों रक्ष्या विशेषत:
 द्द्योहिर कुलयो:शोक मावहेयुररक्षिता:
इमं हि सर्ववर्णानां पश्यन्तो  धर्ममुत्तमम
 यतन्ते भार्या भर्तारो  दुर्बला अपि
अर्थात:- पुरुषों को अपने घर की सभी महिलाओं को चौबीस घंटे नियन्त्रण में रखाना चाहिए और विषयासक्त स्त्रियों को तो विशेष रूप से वश में रखना चाहिए! बाल्य काल में स्त्रियों की रक्षा पिता करता है! यौवन काल में पति  तथा वृधावस्था में पुत्र उसकी रक्षा करता है! इस प्रकार स्त्री कभी भी स्वतंत्रता की अधिकारिणी नहीं है! स्त्रियों के चाल ढाल में ज़रा भी विकार आने पर उसका निराकरण करनी चाहिये ! क्योंकि बिना परवाह किये स्वतंत्र छोड़ देने पर स्त्रियाँ दोनों कुलों (पति व पिता ) के लिए दुखदायी सिद्ध हो सकती है! सभी वर्णों के पुरुष इसे अपना परम धर्म समझते है! और दुर्बल से दुर्बल पति भी अपनी स्त्री की यत्नपूर्वक रक्षा करते है!
न निष्क्रय विसर्गाभ्यांभर्तुभार्या विमुच्यते
  एवम धर्म विजानीम: प्राकप्रजापति  निर्मितं!
अर्थात:  पति द्वारा त्याग दिये जाने तथा किसी दूसरे के हाथ बेच दी जाने पर भी कोई स्त्री दूसरे की पत्नी नहीं कहीं जा सकती .  उसके विवाहित पति का उस पर आजन्म अधिकार बना रहेगा.
यस्मैदद्धपित्तात्तात्वेनां भ्राता  चानुमते पितु:
 तं शुश्रुषेत जीवन्तं  संस्थितं च न लंघयेत
विशील: कामवृत्तो वा गुनैर्वा परिवर्जित:
 उपचर्य:स्त्रिया  साध्व्या सततं देववत्पति:
नास्ति स्त्रीणां प्रथग्यज्ञों न व्रतं नीप्युपोषितम
पतिं शुश्रुषते येन तेन स्वर्गे महीयते
अर्थात :-स्त्री का पिता अथवा पिता की सहमति से इसका भाई जिस किसी के साथ उसका विवाह कर दे,जीवन-पर्यन्त वह उसकी सेवा में रत रहे और पति के  न रहने पर भी पति की मर्यादा का उल्लंघन कभी न करे . स्त्री का पति दु:शील, कामी तथा सभी गुणों से रहित हो तो भी एक साध्वी स्त्री को उसकी सदा देवता के सामान सेवा व पूजा करनी चाहिये . स्त्री को अपने पति से अलग कोइ यज्ञ ,व्रत या उपवास नहीं करनी चाहिए , क्योंकि उन्हें अपने पति की सेवा-शुश्रुषा से ही स्वर्ग प्राप्त हो जाता है.   यहाँ पर मनु की उन व्यवस्थाओं को दे देना भी उपयुक्त रहेगा, जिन्हें स्त्रियों के लिए हिन्दू, अत्यंत श्रेष्ठ व अनुकरणीय आदर्श घोषित करते है:
मनुस्‍मृति का 10 वां अध्‍याय सबसे ज्‍यादा आपत्तिजनक है जिसमें सभी जातियों को नाजायज संतान बताया गया।
मनुस्‍मृति का सबसे आपत्तिजनक पहलू यह है कि इसके अधयाय 10 के श्‍लोक संख्‍या 11 से 50 के बीच समस्‍त द्विज को छोड़कर समस्‍त हिन्‍दू जाति को नाजायज संतान बताया गया है मनु के अनुसार नाजायज जाति दो प्रकार की होती है।
1 अनुलोम संतान- उच्‍च वर्णिय पुरूष का निम्‍न वर्णिय महिला से संभोग होने पर उत्‍पन्‍न संतान
2 प्रतिलाम संतान- उच्‍च वर्णिय महिला का निम्‍न वर्णिय पुरूष से संभोग होने पर उत्‍पन्‍न संतान
मनुस्‍मति के अनुसार कुछ जाति की उत्‍पत्ति आप इस तालिका से समझ सकते है।
पुरूष की जाति
महिला की जाति
संतान की जाति
ब्राम्‍हण
क्षत्रिय
मुर्धवस्तिका
क्षत्रिय
वैश्‍य
महिश्‍वा
वैश्‍य
शूद्र
कायस्‍थ
ब्राम्‍हण
वैश्‍य
अम्‍बष्‍ट
क्षत्रिय
ब्राम्‍हण
सूत
वैश्‍य
क्षत्रिय
मगध
शूद्र
क्षत्रिय
छत्‍ता
वैश्‍य
ब्राम्‍हण
वैदह
शूद्र
ब्राम्‍हण
चाण्‍डाल
निषाद
शूद्र
पुक्‍कस
शूद्र
निषाद
कुक्‍कट
छत्‍ता
उग्र
श्‍वपाक
वैदह
अम्‍बष्‍ट
वेण
ब्राम्‍हण
उग्र
आवृत
ब्राम्‍हण
अम्‍बष्‍ट
आभीर
टीप – इसी प्रकार औशनस एवं शतपथ ब्राम्‍हण ग्रंथ में भी जाति की उत्‍तपत्ति का यही आधार बताया गया है जिसमें चामार, ताम्रकार, सोनार, कुम्‍हार, नाई, दर्जी, बढई धीवर एवं तेली शामिल है।

प्रतिकात्‍मक मनुस्‍मृति जलाना क्‍यों जरूरी है?
कुछ लोग यह मानते है कि मनुस्‍मृति तो क्‍या किसी भी किताब को जलाना अज्ञानता है। किताब को जलाया जा सकता है लेकिन उसके विचार को नही। इसलिए यदि जलाना है तो उसके विचार को समाज से मन मस्तिष्‍क से हटाना जरूरी है।
दरअसल मनुस्‍मृति भारत के जन मानस मे बस चुका है भारतीय समाज, पंचायतरूढियांपरम्‍पराएं जाने अनजाने इसी विधान का पालन करती है।
Ø  भारतीय जाति पंचायत को किसने बताया की पंचायत की मुखिया एक महिला नही हो सकती?
Ø  क्‍यो एक महिला को पढ़ने लिखने आधुनिक कपड़े पहनने से रोका जाता है?
Ø  पिता की संपत्ति में बहन को बराबर का अधिकार नही देना चाहिए यह उसे किसने बताया?
Ø  हिन्‍दू महिला की केवल एक बार शादी हो सकती है, दोबारा वैदिक विवाह अमान्‍य होता है, यह किसने बताया(चूड़ी पहनाकर या स्‍थानीय परंपरा से वह किसी पुरूष के साथ रह सकती है।)
Ø  अर्तजातिय विवाह होने पर जाति पंचायत द्वारा हत्‍या करने का फैसला सुनाया गया। यह किससे प्रेरित है? 8/266
Ø  समाज में स्त्रियों की स्थिति दोयम दर्जे की होनी चाहिए, यह किसने बताया?
Ø  शव को स्‍पर्श करने के बाद स्‍नान करना चाहिए किसने बताया ? 5/85-86
इन सारे प्रश्‍नों का एक ही जवाब है मनुस्‍मृति । मनुस्‍मृति को वेदो का सार कहा गया है।इसी से भारतीय समाज की परम्‍पराएं विचार पोषित है। आज भी विश्‍वविघालयों में मनुस्‍मृति पाठ्यक्रम में मौजूद है। राजस्‍थान के उच्‍चन्‍यायालय में मनु की आदम कद प्रतिमा आज भी स्‍थापित है।
मनु के आपत्तिजनक विधान को यदि मानव मस्तिष्‍क से बाहर करना हैपाठ्यक्रम एवं न्‍यायालयो बेदखल करना है तो आप लोगो में चेतना लाने के लिए एवं मनुवादियों को जगाने के लिए प्रतिकात्‍मक पतियों का दहन और इस पर चर्चा एक जरूरी कदम होगा।

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