छत्तीसगढ़ में राजकीय शोक का खुला उल्लंघन

कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय ने एक बार फिर दी छत्तीसगढ़ सरकार को खुली चुनौती....
 
रायपुरl  छत्तीसगढ़ की जनता प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी जी के दिव्य आत्मा के शांति की प्रार्थना अभी पूरी भी नहीं कर पाई है , पूरा प्रदेश अब भी जहां शोक भरे वातावरण में डूबा नजर आ रहा है तो वही दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें राजकीय शोक से कोई लेना देना नहीं है| इस यथार्थ को पूर्णता सिद्ध करता नजर आया छत्तीसगढ़ का एकमात्र विवादित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय| यहां के संघी विचारधारा वाले प्रोफेसरों और नये नवेले कुलपति बलदेव भाई शर्मा ने एक बार फिर  सरकार के आदेश को न मानकर सीधे टक्कर देने की कोशिश ही नहीं की बल्कि इसे सरेआम साकार कर दिखाया है| 

यह वही विश्वविद्यालय है जहां विद्यार्थियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली,सच और झूठ की लड़ाई लड़ने वाली, समाज के लिए अस्त्र साबित होने वाली व देश का चौथा स्तंभ कही जाने वाली पत्रकारिता का पाठ्यक्रम  संचालित किया जाता है|


  वह पत्रकारिता जो विद्यार्थियों को सच के लिए लड़ने और कलम से क्रांति लिखने की सीख देती है, किंतु यहां के कई प्रोफेसर स्वयं ही फर्जी और बेईमान है| इन्हें न तो किसी की मातम का गम है और न ही 

उचित-अनुचित की परवाह| यही वजह है कि इन्होंने सरेआम एक बार फिर न नैतिकता के विरोध में जाकर अपना हित तय किया है| बल्कि इनकी इस गतिविधि ने मानवता को भी शर्मसार कर दिया है|  विश्वविद्यालय की इस घटना से न केवल विश्वविद्यालय बल्कि सजग पत्रकार साथीयों  की भी किरकिरी सरेआम हुई है | 


   विदित हो कि 31 मई 2020 को विश्वविद्यालय द्वारा राजकीय शोक घोषित होने के बावजूद राष्ट्रीय वेबिनार कोरोना महामारी के दौरान डिजिटल मीडिया की भूमिका विषय पर कार्यक्रम का आयोजन  सरकारी इंतजामों के साथ बड़े ही उत्सुकता के साथ मनाया जा रहा था| 

वेबीनार का आयोजन ई-मीडिया के माध्यम से लाइव हो रहा था जिसमें देशभर के शोधार्थी, प्रोफेसर और बुद्धिजीवी जुड़े हुए थे| अचानक ही उनके समक्ष वह दृश्य आ गया जिससे वे सभी अनजान थे, कि जिस प्रदेश को अभी अपने होनहार प्रथम मुख्यमंत्री को खोए हुए 2 दिन भी नहीं हुए, उसी प्रदेश के एक सरकारी शैक्षणिक संस्थान में कार्यक्रम का आयोजन राजकीय शोक  को ताक पर रखते हुए सहजता के साथ किया जा रहा था| 

   संघ का आत्मपरिसर कहे जाने वाली कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के इस वेबीनार कार्यक्रम के लिए भी वक्ता के रूप में संघ के विचारधारा वाले व्यक्तियों को प्राथमिकता से आमंत्रित किया गया था| कार्यक्रम के विवरण ब्रोशर के अनुसार यह वेबीनार दो सत्रों में आयोजित होना था जिसमें प्रथम सत्र का आयोजन सुबह 11:00 बजे से  12:30 बजे तक व द्वितीय सत्र का आयोजन  1:00 बजे से  2:00 बजे तक रखा गया था | 

कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों से  मिली जानकारी के अनुसार जब यह विरोध जताया गया तब तक प्रथम सत्र जारी रहा। जिसमें संघ के वक्ताओं में से प्रो. जयंत सोनवलकर कुलपति मध्यप्रदेश भोज. मुक्त विश्वविद्यालय  भोपाल, डॉ.मानस प्रीतम गोस्वामी, विभागाध्यक्ष पत्रकारिता विभाग केंद्रीय विश्वविद्यालय तमिलनाडु, वरिष्ठ पत्रकार शैलेंद्र तिवारी नई दिल्ली और प्रोफेसर पुष्पेंद्र पाल सिंह संपादक रोजगार और निर्माण भोपाल अपनी बात किए जा रहे थे।  कुछ अन्य वक्ता अपने वक्तत्व के इंतजार में थे| 

इस दौरान वेबीनार के लाइव स्क्रीन में सजग छात्रों द्वारा फ्लैग रेस करके  समस्या से अवगत कराया गया।

साथ ही सजग छात्रों द्वारा विश्विद्यालय जाकर विरोध दर्ज कराया गया।  विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों द्वारा विवि के प्रोफेसरों, नये नवेले कुलपति के विरोध में नारे लगा रहे थे, तो वही विरोध प्रदर्शन का दृश्य भी वेबीनार के ऑनलाइन लिंक में प्रदर्शित होने लगा था | प्रदर्शित दृश्य में यह स्पष्ट देखने को मिल रहा था कि विद्यार्थी विश्वविद्यालय प्रबंधन से प्रदेश में राजकीय शोक होने के चलते कार्यक्रम को बंद करने की मांग कर रहे हैं| 

इसके बाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने लाइव जुड़े दर्शकों को अवगत कराया गया कि यहां के शिक्षकगण व प्रोफेसर आदि विचारधारा के इतने भूखे हो चुके हैं कि किसी व्यक्ति के मातम में भी कार्यक्रम का आयोजन कर लेते हैं| 

एक बार फिर ऐसी गतिविधि के माध्यम से पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा छत्तीसगढ़ की सरकार को अंगूठा दिखाने का सार्थक कार्य किया गया है, 

  ज्ञात हो कि कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक विभाग के तत्वाधान में किया जा रहा था| कार्यक्रम आयोजक  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.नरेंद्र त्रिपाठी थे| कार्यक्रम की अध्यक्षता  विश्वविद्यालय के  कुलपति  प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा द्वारा किया जाना था|  समस्त संबंधित जनों के नाम को विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित वेबीनार के ई-ब्रोशर में स्पष्ट देखा जा सकता है| एक ओर जहां विश्वविद्यालय के अतिथि प्राध्यापक, असिस्टेंट प्रोफेसर के द्वारा सरकार के विपरीत जाने का साहसी कदम इस पत्रकारिता विश्वविद्यालय में एक बार फिर देखने को मिलता है,तो वही संगी विचारधारा वाले कुलपति बलदेव भाई शर्मा के पुर्न आगमन से इन शिक्षकगण और प्रोफेसरों में आत्मीय बल का प्रोत्साहन भी ऐसी गतिविधि के माध्यम से स्पष्ट देखा जा सकता है|  
    अब लोग कहने लगे हैं कि क्या प्रदेश की सरकार इतनी ज्यादा बेबस हो गई है कि बार-बार एक छोटे से विश्वविद्यालय द्वारा इन्हें मुंह की खानी पड़ रही है? वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश में सरकार परिवर्तित होते ही लॉकडाउन कार्यकाल के दौरान भी विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की छटनी कर अपनी विचारधाराओं के व्यक्तियों को कुलपति पद में नियुक्त करके मध्यप्रदेश की सरकार ने अपने शक्ति का खुला प्रदर्शन किया है| लोगों में अब यह तक कहा जाने लगा है कि छत्तीसगढ़ की सरकार के पास न तो कोई  रणनीति है और न ही इसके पास उचित निर्णय लेने का साहस है|


हनी बग्गा
प्रदेश सचिव
NSUI

श्री राम वन गमन मार्ग के नाम से सांप्रदायिक भावना बढ़ाने एवं राजनीतिकरण करने के नाम से एफ आई आर दर्ज करने की शिकायत

श्यामा देवी साहू एवं खूब लाल ध्रुव द्वारा ओझि राजनीति करते हुए
पिछले दोनों ग्राम तुमरा बहार के आश्रित ग्राम  बिश्रामपुर के "तुमा" में जय बूढ़ादेव अनुसंधान केंद्र द्वारा आयुर्वेदिक अनुसंधान केंद्र स्थापन हेतु  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिताजी श्री नंद कुमार बघेल द्वारा भूमि पूजन  कार्यक्रम को बौद्ध धर्म एवं राम लक्ष्मण मन्दिर से जोड़कर सांप्रदायिक राजनीति कर रहे हैं, जिस की हम विश्रामपुर एवं तुमा खुर्द के समस्त ग्रामवासी कड़ी निंदा करते है 
और उनके के द्वारा लगाया गया आरोप राम वन गमन का बोर्ड हटाकर बौद्ध विहार लिखा गया यह सब बेबुनियाद है
 कि नंद कुमार बघेल के द्वार ग्रामीणों को बरगला के बौद्ध धर्म का प्रचार करना यह सब गलत बात है उनका आने का उद्देश्य *बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार बिल्कुल ही नहीं था* ये सब झूठे दोषारोपण की राजनीति है सम्मानीय व्यक्ति के ऊपर झुठा आरोप
जिस समिति के द्वारा यह लोग यहां की शिकायत कर रहे हैं उस  समिति में ग्राम से कोई भी व्यक्ति सदस्य नहीं है
 विकास कार्यों के भूमि पूजन के आमंत्रण में आसपास गांव के आदिवासी समाज प्रमुख द्वारा बस्तर जड़ी बूटी आयुर्वेद अनुसंधान केंद्र की स्थापना के लिए भूमि पूजन का कार्यक्रम किया गया था।
 राम राम टेकरी रामेश्वरम धाम भजन विकास समिति ऐसा कोई भी संस्था हमारे गांव नहीं है हम इसका खंडन करते हैं

 *ग्राम बिश्रामपुर के तुमा में पर्यटन संबंधी हो रहे विकास कार्य को राम वन गमन मार्ग से जोड़कर राजनीति की जा रही है* जिसका हम समस्त ग्रामवासी घोर विरोध करते हैं एवं आज समस्त ग्राम प्रमुखों द्बारा पूर्व जिला पंचायत सदस्य *श्रीमती श्यामा देवी साहू एवं क्षेत्र क्रमांक 10 के जिला पंचायत सदस्य खूब लाल ध्रुव* के ऊपर राम वन गमन मार्ग के नाम से राजनीति कर सांप्रदायिक भावना बढ़ाने के नाम से
पुलिस अधीक्षक एवं अपर कलेक्टर से एफ आई आर दर्ज करने की मांग करते है 

 *समस्त ग्रामवासी ग्राम विश्रामपुर "तुमाखुर्द" जिला धमतरी।*

पदोन्नति जारी होने से अनुसूचित जाति व जनजाति के संवैधानिक हितों की हो रही है अनदेखी

सभी शासकीय विभागों में अनारक्षित बिंदु पर पदोन्नति जारी होने से अनुसूचित जाति व जनजाति के संवैधानिक हितों की हो रही है अनदेखी

VINOD  KOSHLE 

छत्तीसगढ़ राज्य के सभी विभागों में पदोन्नति सूची लगातार जारी हो रही है। माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पदोन्नति में आरक्षण नियम 2003 के उपनियम 5 को 2 माह के लिए स्टे प्रदान किया गया था। राज्य शासन के महाधिवक्ता द्वारा कोर्ट में पदोन्नति में आरक्षण नियम 2003 के उपनियम 5 में आंशिक त्रुटि माना था और इसे युद्ध स्तर पर संशोधन कर नियम प्रतिस्थापित कर नए नियम फ्रेम करने कोर्ट में कहा था । कोर्ट में सुनवाई 16 अप्रैल के लिए निर्धारित की गई थी । 21 मार्च से कोरोना के वजह से लॉक डाउन की स्थिति निर्मित हो गई । पदोन्नति में आरक्षण केस की सुनवाई आगे नहीं बढ़ पाई और आज पर्यंत कोर्ट में विचाराधीन है। लॉक डाउन की स्थिति में सभी विभागों ने लगातार अनारक्षित बिंदु पर पदोन्नति देना शुरू कर दिया है जबकि छत्तीसगढ़ पदोन्नति नियम 2003 के उप नियम 5 पर ही रोक लगी है बाकी सारी कंडिकाएं अभी भी लागू हैं । विभागों में रिक्त पदों को अनारक्षित श्रेणी में ही भरने के लिए किसी भी प्रकार के पदोन्नति नियम नहीं बने है।*अनुसूचित जाति जनजाति रोस्टर बिंदु रोक का मतलब एससी एसटी के पदों को खत्म करना नहीं है बल्कि विद्यमान पदोन्नति नियमों के अनुसार रिक्त पदों को अनारक्षित ,अनुसूचित जाति व  जनजाति  श्रेणी में बांटकर पदोन्नति देते हुए अनुसूचित जाति व जनजाति के पदों को सुरक्षित रखना चाहिए था। इस तरह नियमों का पालन विभागों द्वारा नही किया जा रहा है। सोशल जस्टिस लीगल सेल  के द्वारा  सामान्य प्रशासन विभाग , मुख्य सचिव छत्तीसगढ़ शासन व डीजीपी पुलिस मुख्यालय नवा रायपुर को तीन बार पत्र के माध्यम से अवगत कराया जा चुका है। इसके बावजूद सारे पदों पर अनारक्षित बिंदु में पदोन्नति देने की कार्यवाही अनवरत जारी है । विभागों द्वारा समस्त पद अनारक्षित श्रेणी में भरना अनुसूचित जाति व जनजाति के संवैधानिक अधिकारों का हनन है। इसके साथ ही सभी विभागों को पदोन्नति नियम 2003 के नियमानुसार बैकलॉग पदों पर भी पदोन्नति प्रदान करनी थी। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा छ ग.लोक सेवा  पदोन्नति नियम 2003 के उप नियम को 5 को नए सिरे से प्रतिस्थापित करना प्रक्रियाधीन है। लगातार पदोन्नति अनारक्षित बिंदु पर भरने से अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए रिक्त पद नहीं बच पाएंगे।परिणामस्वरूप अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकारी कर्मचारियों को पदोन्नति के लिए कई वर्ष इंतजार करने पड़ सकते हैं। सबसे ज्यादा पुलिस विभाग द्वारा पदोन्नति सूची जारी की जा रही है ।
*प्रदेश भर में 1 लाख से अधिक अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों द्वारा सभी विभागो के कुल रिक्त पदों में से अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए पद संरक्षित करने  एवं पदों को संरक्षित करने की सूचना सार्वजनिक करने मांग की जाती है। विभागों द्वारा रिक्त सारे पदों को अनारक्षित श्रेणी में भरने के दुष्चक्र से 1 लाख से अधिक अनुसूचित जाति व जनजाति अधिकारी कर्मचारियों में रोष व्याप्त है। हम लॉक डाउन का पालन करते हुए केवल पत्र व्यवहार से विभागो को अवगत करा रहे है। हम कोई विरोध प्रदर्शन नहीं करना चाहते हैं । यदि हमारी जायज मांगों को अनदेखा किया जाता है तो हम धरना प्रदर्शन के लिए बाध्य होंगे जिसकी समस्त जिम्मेदारी शासन प्रशासन की होगी ।उक्त जानकारी सोशल जस्टिस लीगल सेल संगठन के कोऑर्डिनेटर विनोद कुमार कोसले द्वारा दी गई है।
✍🏻 सोशल जस्टिस लीगल सेल

2024 के लोकसभा चुनाव में पिछड़े वर्ग की विशेष भूमिका होगी

2024 के लोकसभा चुनाव में पिछड़े वर्ग की विशेष भूमिका होगी 
नंद कुमार बघेल
राष्ट्रीय मतदाता जागृति मंच के अध्यक्ष श्री नंद कुमार बघेल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब किसी भी चुनाव में जीत नहीं पाएंगे । क्योंकि वह जितना झूठ बोल सकते थे बोल चुके । जनता उनके झूठ को समझ चुकी है। श्री नरेंद्र मोदी मोहन भागवत के साथ है और श्री मोहन भागवत घोर ब्राह्मणवादी हैं । वह इस देश के पिछड़े वर्ग को गर्व से कहो हिंदू हैं कहकर वोट लेना चाहते हैं। लेकिन पिछड़ा वर्ग को कोई भी अधिकार नहीं देना चाहते। आर एस एस के मुखिया कोई पिछड़े वर्ग का नहीं बनेगा ना ही महिला बनेगी। केवल ब्राह्मण बनेगा। वह भी चितपावन ब्राह्मण। वे पिछड़े वर्ग को आर एस एस का कार्यकर्ता जरूर बनाएंगे। आर एस एस का सभी प्रकार के हमाली पिछड़ा वर्ग के लोग करेंगे । और उनको ना नौकरी में स्थान होगा और ना ही कोई पद प्रतिष्ठा मिलेगी । यदि धोखे से पिछड़ा वर्ग का विधायक, एससी एसटी के विधायक सांसद बन भी जाए । तो लोकसभा, राज्यसभा , विधानसभा में अपने समाज के बारे में उन्हें बोलने का कोई अधिकार नहीं होता। यदि बोलने का अधिकार की मांग करेंगे हैं तो उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाएगा।
श्री बघेल ने कहा कि यह सब उपरोक्त बातें निराशाजनक है। लेकिन आशा जनक यह है कि आज हमारी लड़कियां पड़ रही हैं । और हर क्षेत्र में वह टॉपर हैं। जब लड़कियां मां बनेगी, घर की प्रमुख बनेगी, तब नई क्रांति आएगी। और पत्थर के भगवान को स्वयं नहीं पूजेगी और समाज को नहीं पूजने देगी। चीनी कोरोना एवं मोदी करोना ने हमें समझा दिया है कि एससी एसटी ओबीसी और अल्पसंख्यक के मंदिर मस्जिद का विचार बिल्कुल गलत है । सारे मंदिरों के भगवान करोना को समाप्त नहीं कर सके। एससी एसटी ओबीसी के लोग मंदिर में चढ़ावा देना बंद कर दिए हैं। भगवान ने अपने पुजारियों का पेट पालना बंद कर दिए हैं। ब्राह्मण पुजारी चढ़ोतरी नहीं होने के कारण सरकार से  क्षतिपूर्ति की मांग रहे हैं । 
हम तो मोहन भागवत और मोदी से प्रार्थना करते हैं कि यदि किसी कारण से पुजारी का निश्चित आए नहीं आता है तो भारत सरकार उन्हें मुआवजा दे। इसके साथ प्रधानमंत्री मोदी तेली होने के कारण भारत के समस्त मंदिरों का राष्ट्रीयकरण कर दें। और  मंदिर के सोने चांदी को देश के खजाने में शामिल कर दें। तो देश आर्थिक संकट से बच पाएगा और मोदी जी क्योंकि तेली है इसलिए इस देश के मूल निवासी हैं। वह मोहन भागवत के आज्ञाकारी प्रधानमंत्री ना बने। जब गंगा से वोल्गा जाने की बात होगी तो नरेंद्र मोदी को वोल्गा नहीं भेजा जाएगा। वोल्गा जाने के लिए मोहन भागवत ही होंगे।
 रिपोर्ट संजीव 29 अप्रैल 2020

मनुवादी गुलाब कोठारी पत्रिका न्यूज़ के मालिक होश में आओ

लेखक विनोद कोसले

हम विनोद कोसले का यह महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें गुलाब कोठारी के पत्रिका में प्रकाशित संपादकीय दिनांक 28 अप्रैल 2020 का जवाब दिया गया है

     गुलाब कोठारी जी सम्पादक पत्रिका न्यूज आपकी लेख पुनर्विचार आवश्यक का जवाब आशा है अपनी सम्पादकीय में स्थान देंगे।
आज दिनांक 28 अप्रैल 2020 को आपने आरक्षण के मुद्दे पर
पुनर्विचार आवश्यक लेख लिखा। आपकी लेखन से देशभर के अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़ा वर्ग समुदाय के लोग आहत हुए है।आपने अनुचित तरीके से उद्धरण देकर आरक्षण पर समीक्षा की बात की है।

उच्चतम न्यायालय ने अपने चर्चा के बिंदु में आरक्षण पर समीक्षा की बात कही लेकिन केस का मुद्दा अनुसूचित क्षेत्रों में 100%  आरक्षण देने पर रोक लगाने को लेकर था। अनुसूचित क्षेत्रों में  100% आरक्षण क्यों नही दिया जा सकता है ।वहां उनकी शत प्रतिशत आबादी रहती है। 5वी अनुसूची अनुसूचित क्षेत्र में राज्यपाल को विशेषाधिकार सँविधान में उपबन्धित है।जिसे स्थानीय भाषा की ज्ञान नही,वह कैसे वहां उचित संप्रेषण कर पाएंगे।क्या गैर अनुसूचित लोग उनकी समस्याओं से अवगत हो पाएंगे?बिल्कुल नही।अनुसूचित क्षेत्र में भाषायी समस्या होती है।  बस्तर छत्तीसगढ़ आकर देखिए। पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में बाहरी लोगों का ज्यादा दखल बढ़ गए हैं।हम अनुसूचित क्षेत्र में 100%प्रतिनिधित्व की मांग करते है।जल जंगल जमीन हमारी है।हम सदा प्रकृति पूजक रहे है।

आपने आरक्षण को आत्मा का विषय कहा है ।आरक्षण कोई गरीबी उलमूलन कार्यक्रम, रोजगार गारंटी योजना या फिल्म के लिए सीट आरक्षण नही है,यह एक प्रतिनिधित्व है ।आपको उदाहरण देकर अवधारणा स्पष्ट करने की कोशिश करता हूँ,शायद मेरी लेख पढ़ने के बाद आपकी विचार बदल जाए।मान लीजिए यदि संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधित्व के लिए पोस्ट निकलती है तो इस बात का फर्क नहीं पड़ता कि भारत में चुना जाने वाला व्यक्ति अमीर है या गरीब ।लेकिन उसका भारतीय होना जरूरी है ।साथ ही यह भी समझने की कोशिश करें कि संयुक्त राष्ट्र ने एक जॉब इसलिए नहीं निकाली कि उसे किसी एक भारतीय की गरीबी इस जॉब से मिटानी हैं बल्कि इसलिए निकाली ताकि कोई चुना हुआ व्यक्ति भारत की आवाज संयुक्त राष्ट्र में रख सकें ।अब यदि व्यक्ति संयुक्त राष्ट्र के निर्धारण किए गए मापदंडों को पूरा करता है तो बाकी के भारतीय क्या यह कह सकते हैं कि चुना गया भारतीय बाकि भारतीयों को आगे बढ़ने नहीं दे रहा है?यही बात भारत में आरक्षण के मामले में हैं।

इतिहास के पन्नों में झांक कर देखिए प्रतिनिधित्व सदियों से सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वंचित व सताए हुए अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों को समान अवसर प्रदान करने की एक व्यवस्था है। समान अवसर इसलिए क्योंकि रेस की लाइन एक नहीं है ।इसलिए रेस के लाइन एक करने व विशेष अवसर प्रदान करने प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई है। जिसे देशभर में आरक्षण आरक्षण के नाम से समीक्षा की बात की जा रही है।

 हम भी रोज-रोज आरक्षण की समीक्षा बातों को सुनकर अब हम भी समीक्षा चाहते हैं ।लेकिन शर्त है पूरे भारतवर्ष की सारी संपतिया पूरे लोगों में बराबर बांट दी जाए और जिन लोगों ने जाति की व्यवस्था बनाई ।उनको केवल 1 पीढ़ी को  शिक्षा से वंचित रखा जाए।तब रेस की लाइन एक होगी।और मुकाबला भी बराबर का होगा।

मनुष्य और पशु पक्षी की विकास मैं थोड़ी भिन्नता है दोनों का चलन पाद व प्रजनन अलग अलग है तो फिर कैसे मनुष्य पक्षी जन्म ले सकता है। एक निश्चित उम्र के बाद मनुष्य व पशु पक्षी मृत हो जाते है।मृत पश्चात शरीर जटिल कार्बनिक पदार्थो से सरल कार्बनिक पदार्थो में अपघटित हो जाता है।यह विकास का क्रम है।
दो समान जीवधारियों से प्रजनन पश्चात सन्तति उतपन्न होती है।हमने डार्विन व मेंडल के सिद्धांत में पढ़ा है।।

राष्ट्र की समुचित विकास के लिए ही भारतीय संविधान में सभी भारत के नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान किए ।सँविधान में 'किसी व्यक्ति को धर्म मूल वंश जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता,उपबन्धित है।
संविधान निर्माण के पूर्व हजारों वर्षों से जन्म के आधार पर भेदभाव होता था। तेली के तेली,  चमार के घर चमार ,लोहार के घर लोहार ,खटीक के घर खटीक,नाई के घर नाई, गोंड के घर गोंड़  पैदा होता था ।संविधान निर्माण के बाद प्रतिनिधित्व व अवसर की समता पश्चात एक चमार का बेटा आईएएस भी बनने लगा।  मात्र आजादी के 70 वर्षों बाद अब आरक्षण की समीक्षा की बात होने लगी।हमारे पूर्वजो ने तो सदियां त्रासदियां झेलीं है।मुँह से उफ्फ तक नही निकली।

इतिहास उठाकर देखें जातियां किसने बनाएं? जाति में ऊंच-नीच भेदभाव किसने पैदा किए? जवाब आपको पता है।

 मंडल कमीशन का इतिहास लिखता हूं, 1953 चौहान में काका कालेकर आयोग से शुरू हुआ सफर 1990 में मंडल कमीशन के रूप में पिछड़े वर्गों के पहचान के लिए 3743 जातियां की चिन्हांकित किए। काफी मुश्किलों से ओबीसी आरक्षण बिल पास हुआ।यह बिल भी कोर्ट में चैलेंज हुआ।कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण सही माना। जब भी नई वैकेंसी रिक्रूट होती है ।तो उस वैकेंसी को प्राप्त करने के लिए कई शर्ते होती हैं। तब कहीं जाकर कोई भी व्यक्ति उस पद के काबिल होता है ।क्या कभी आज तक ऐसा हुआ है ,कि किसी आठवीं पास एससी एसटी ओबीसी को आईएएस आईपीएस बनाए गए हो?हमने सारे सरकारी पदों को प्राप्त करने के लिए उसके लायक योग्यता हासिल की है।

 गांव में निवास करने वाले एससी एसटी ओबीसी समुदाय आज भी  कठिन परिश्रम से अनाज उत्पन्न कर रहे हैं ।जिसका उपभोग देश विदेश के लोग कर रहे हैं ।आजादी के 70 वर्ष बाद भी देश की उच्च शिक्षा संस्थानों में महज sc.st.obc की भागीदारी मात्र कुछ प्रतिशत है। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट में आरक्षित वर्गों की भागीदारी कुछ एक या नही के बतौर है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया ,बिजनेसमैन,मॉल फैक्ट्रियां के मालिको की संख्या
SC, ST ओबीसी की  कितनी है?
रिकॉर्ड आपके पास मौजूद है।

आरक्षण ने हिंदुओं को नहीं बांटा। बल्कि  हिंदू पहले से ही हजारों जातियों में बैठे थे ।यह कैसी व्यवस्था है एक दूसरे के ऊपर पानी भी पड़ जाए तो ताकतवर जातियां कमजोर वर्गों के खून की प्यासी हो जाती है ।मध्य प्रदेश की घटना याद होगी उच्च जातियों के खेत में वाल्मीकि समुदाय अनुसूचित जाति के बच्चे खेत में टॉयलेट के लिए गए तो तथाकथित उच्च कहे जाने वाले जातियों के ठेकेदारों ने लाठी से पीट-पीटकर उनकी हत्या कर दी।
 रोहित वेमुला की आत्महत्या,पायल तड़वी की आत्महत्या हम आज भी नहीं भूले हैं ।क्या यह टुकड़े आरक्षण ने किया है बिल्कुल नहीं यह पहले से खुद समाज के सिपल हारों ने इंसान को इंसान में भेद अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए किया।

 अंतिम बात भारत में तीन भारत नहीं केवल एक भारत जिसमें समता ,स्वतंत्रता,बंधुता व न्याय स्थापित करने की बात कही गई है, जो भारतीय संविधान के प्रस्तावना में वर्णित हैं ।प्रतिनिधित्व का पैमाना सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़ापन है ना कि आर्थिक। अनुसूचित जाति व जनजाति का व्यक्ति कितना भी बड़ा अफसर भी बन जाए लेकिन उसे संबोधित असंवैधानिक शब्दों से करते आए हैं ।इतनी असमानताओ के बावजूद आरक्षण में पुनर्विचार की आवश्यकता कह रहे हैं ।यह बड़ी विडंबना है। देश संकट के दौर से गुजर रहा है और आप आरक्षण की समस्या को लेकर कठोर फैसले लेने की ओर इशारा कर रहे हैं ।यह आरक्षित वर्गों के प्रति आपकी अनुचित मानसिकता को प्रदर्शित करती है।
vinodkumar160788@gmail.com

Slave civic among the free countrie - The scavengers

"आजाद देश के गुलाम नागरिक : सफाई कर्मचारी"

देश मे राष्ट्रीय आपदा अधिनियम 2005 व सम्पूर्ण भारत को लॉक डाउन घोषित किया गया है। किसी को भी बिना किसी उचित व पर्याप्त कारण के घर से बहार निकलना प्रतिबंध है। जिस कारण पूरे देश मे अलग अलग राज्यों में प्रवासी मजदूर फंसे हुए हैं और वे अपने बुजुर्ग माता पिता बीवी बच्चे परिवार तक पंहुच नही पा रहें हैं।पूरी दुनिया मे कोहराम मचा  रहा कोरोना वैश्विक महामारी  से बचने के लिए देश के हित को देखते हुए यह अति आवश्यक भी है अन्यथा अन्य देशों की तरह कहीं भारत मे भी कॅरोना महामारी कोहराम न मचा दे।

परंतु, एक तरफ सफाई कर्मचारी है जिनको रोबोट बना दिया गया है। तमाम कानून कायदा सुप्रीम कोर्ट/हाई कोर्ट के द्वारा जारी गाइड लाइन...आदि को नजर अंदाज करते हुए सफाई कर्मचरियो को मौत की मुंह मे धकेला जा रहा है।

शायद हमारे मीडिया बंधुयों के पास भी टाइम नहीं है या उन्हें रुचि नहीं है जो सफाई कर्मचारियों के मुद्दे को नही उठा पा रहें है लेकिन मैं निवेदन करता हूँ कृपया समय निकालिए और इनकी आवाज शासन प्रशासन तक पंहुचाने में मदद कीजिये।

(1)इनके चेहरे में N-95 मास्क तो छोड़िए एक नार्मल मास्क ढूंढ़िए ???

(2)यदि किसी को मिला भी है तो कितने दिन के लिए एक मास्क दिया जाता है पूछिये ???
(3)ग्लोब्स ढूंढ़िए ???
(4)गमबूट ढूंढ़िए ???
(5)सैनिटाइजर ढूंढ़िए ??
(6)महीने में कितने बेतन मिलता है , जानिए???
(7स्वंतंत्रता दिवस से ले कर रविवार या अन्य त्योहार में कोई छुट्टी इनको मिल रही है तो पूछिये ??
(8)अब तक कितना ईपीएफ जमा हो गया है पूछिये ???
(9)इनको कभी कोई बीमा दिया गया है तो पूछिये ???
(10)सफाई के दौरान कोई घायल होता है अथवा संक्रमित बीमारी से मर जाता है तो इनको कोई बीमा  राशि मिलता है तो पूछिये ???
(11)सफाई कर्मचारियों के औसत जीवन का रिसर्च करिए ???
(12)महिला सफाई कर्मचारी जब गर्भवती कभी हुई थी कभी उनको प्रसूति का लाभ अर्थात बिना काम के बेतन मिला है तो पूछिये ???

जब कि आप सभी जानते हैं बाबासाहब के समय से कई कानून बने हुए हैं :
(1) Minimum Wages Act 1948 न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948
(2) Employee Provident Act 
ईपीएफ एक्ट 1952
(3)Employee State Insurance Corporation Act 1948 
राज्य कर्मचारी बीमा निगम अधिनियम 1948
(4) Maternity Benefit Act 1961 and Amendment Act 2020 प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम 1961 तथा संशोधित अधिनियम 2020
(5) The Prohibition of Employment of Manual Scavengers and Their  Rehabilitation Act 2013 हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों का नियोजन का प्रतिषेध तथा उनका पुनर्वास अधिनियम 2013 छग नियम 2014
(6) Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities ) Act, 1989 and Amended Act 2020

का खुला उल्लंघन है। आप जितना चिल्लाते रहिए इन वर्गों के लिए कोई सोचने वाला नही है। हजारों वर्ष पहले मनु के व्यवस्था के अनुसार एक वर्ग विशेष को  मानव मल को उठाने के लिए लगाया गया था जो कई हजार वर्ष चलता रहा । हालांकि संविधान लागू होते ही उक्त व्यवस्था को सम्पूर्ण रूपसे समाप्त कर सिया गया था लेकिम  आज भी निरंतर जारी है ।

देश के प्रधान सेवक जी ने स्मार्ट सिटी योजना लाये जो बहुत ही गर्व की बात है लेकिन सफाई कर्मचारियों को स्मार्ट नहीं बनाने से शर्म भी लगता है। केंद्र से लेकर राज्य और निगम, पालिका, परिषद, ग्राम पंचायत , शासकीय व अर्ध शासकीय निकाय आदि में कार्यरत सफाई कर्मचरियो का  शोषण हो रहा है व उनको समवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।

हाल ही में महाराष्ट्र के धारावी बस्ती में कोरोना का कहर टूटने की खबर मिल रही है। इस प्रकार यदि किसी एक सफाई कर्मचारी  कोरोना संक्रमित होता है तो जबरदस्त तरीके से हजारों लोगों संक्रमित हो सकते है ।चूंकि यह वर्ग झुग्गियों में, छोटी छोटी कमरे में 4-5 लोग एक साथ रहतें है। झुग्गियों में आबादी बहुत ज्यादा होता है (density not population is very high in slums areas)। आर्थिक स्थिति भी खराब होने के कारण  से सैनिटाइजर व अन्य सुरक्षा की समान भी afford अफ़्फोर्ड नहीं कर सकते।

इसलिए सभी केंद्र और राज्य शासन प्रशासन से निवेदन है कृपया इन वर्गों के लिए गंभीर होइए

निवेदक

एडवोकेट जन्मेजय सोना
राष्ट्रीय महासचिव
भारतीय सफाई कर्मचारी महासंघ
86022-00999
88390-92600

(टिप: यह तस्वीर रायपुर सहर के जोन क्रमांक 6 का है जिसको हमारे एक साथी के द्वारा आज फ़ोटो खींच कर हमें सूचना दिया गया है )

Hundred years journalism of mooknayak Dr ambedkar

डॉक्टर अंबेडकर और उनकी पत्रकारिता के 100 साल

संजीव खुदशाह
वरिष्ठ पत्रकार ललित सुरजन dmaindia.online यूट्यूब चैनल के साथ एक इंटरव्यू के दौरान कहते हैं की "पत्रकारिता निष्पक्ष होकर नही की जा सकती। यह तय करना होगा की आप किस के साथ खड़े है पीड़ित या शोषक।" 

इस लेख को वीडियो के रूप में देखने के लिए यहां क्लिक करें।
https://youtu.be/CxwGL24ZGgEj


पत्रकारिता यानी जर्नलिजम इसे लोकतंत्र का चौथा स्‍तंभ भी कहा जाता है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पत्रकारिता कितनी महत्वपूर्ण है। दरअसल पत्रकारिता एक खुशनुमा लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है, इसका उद्देश्य गलत नीतियों की आलोचना और पीड़ितों के हितों की रक्षा करना है। सन् 2020 में डॉक्टर अंबेडकर की पत्रकारिता का सौंवा वर्ष हो रहा है। इस अवसर पर हमें यह मंथन आवश्‍यकता है कि आज की पत्रकारिता दरअसल किस रास्ते जा रही है?
आज की तरह आजादी के पहले भी पत्रकारिता एक समाज सेवा थी। बाद में पेशा और व्यवसाय में बदल गई। धन कमाने की होड़ में पत्रकारिता कामोत्तेजक संसाधन, अंधविश्वास परोसने और नशे का सेवन आदि विज्ञापनों से भरी होती थी। इसके साथ साथ नेताओं की चापलूसी, जातिगत हित को साधने की कोशिशे। पत्रकारिता का मकसद बन गई । बावजूद इसके 19वीं शताब्दी को हिंदी पत्रकारिता का आदर्श युग माना जाता है। इस दशक में ऐसी पत्र पत्रिकाएं भी प्रकाशित की जाती रही हैं, जिनका मकसद  विज्ञापन नहीं, सामाजिक हित था। इसी दौरान 31 जनवरी 1920 से भीमराव अंबेडकर ने अछूतों के सामाजिक उत्थान के उद्देश्य से मूकनायक की शुरुआत की।
अंबेडकर प्रेस की स्वतंत्रता के जबरदस्त हिमायती थे। भारत के संविधान का निर्माण करते समय उन्होंने अभिव्यक्ति और वाणी की स्वतंत्रता को उसमें महत्वपूर्ण स्थान दिया। संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) में वाक् स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य को मूल अधिकार का दर्जा दिया गया है और इस अधिकार पर राज्य द्वारा, इसी अनुच्छेद के उपखण्ड (2) के अंतर्गत, केवल युक्तियुक्त निर्बंधन ही लगाए जा सकते हैं।

तत्कालीन पत्रकारिता पर डॉक्टर अंबेडकर की राय
मूकनायक के प्रवेशांक में डॉक्टर अंबेडकर लिखते हैं कि "मुंबई इलाके में प्रसिद्ध होने वाले समाचार पत्र विशिष्ट जातियों का संबंध देखने वाले हैं परंतु अन्य जातियों के हित की उन्हें परवाह नहीं होती है। जिन पत्रों में बहिष्कृत समाज की समस्याओं का उल्लेख होता है उनमें ब्राह्मणेत्तर अनेक जातियों के संबंध में विचार आते हैं। परंतु बहिष्कृत समाज की गहन समस्याओं का गहन अभ्यास नहीं होता है। इस कमी को दूर करने के लिए मूकनायक का जन्म हुआ।" आप समझ सकते हैं कि डॉक्टर अंबेडकर तत्कालीन समाचार पत्रों को किस नजरिए से देख रहे थे । आज की तरह ज्यादातर समाचार पत्र सवर्णेा का गुणगान और पीड़ितों की उपेक्षा करते रहे हैं। उन्होंने 3 अप्रैल 1927 को बहिष्कृत भारत का प्रकाशन किया यह समाचार पत्र सामाजिक राजनीतिक साहित्यिक धार्मिक अनेक पहलुओं पर केंद्रित किया गया। डॉ आंबेडकर कहते हैं कि पत्रकारिता धन अर्जन का धंधा नहीं है इसका एक निश्चित उद्देश्य है। जिनको धन अर्जन करना है। उनके लिये और भी पेशे हैं। डॉक्टर अंबेडकर बड़ी कठिन परिस्थिति में पत्रिकाओं का प्रकाशन करते रहे हैं। कर्ज होने के बावजूद भी पैसा बटोरने के सस्ते साधनों से दूर रहे हैं। वे लिखते हैं कि "विज्ञापन द्रव्य लोभ बढ़ाने का कारण है द्रव्य लोभ के कारण अनीति को उत्तेजना देने, भ्रम फैलाने, पाठकों की अनिष्ट कारक वासना उद्दीप्त करने, कामोत्तेजक औषधि सेवन , विलायती दारू के अनेक विज्ञापन प्रकाशित किए जाते हैं। इस तरह कितने ही समाचार पत्र लोगों को मूर्ख बनाने के कारखाने हैं।" इस प्रकार डॉक्टर अंबेडकर अखबारों की विज्ञापन नीति पर गहन अध्ययन कर उस समय की मुख्यधारा की पत्रकारिता को कटघरे में खड़ा करते है।

मूकनायक के बाद डॉक्टर अंबेडकर ने समता समाज संघ के मुखपत्र के रूप में ‘समता’ समाचार पत्र की शुरुआत की बाद में इसका नाम ‘जनता’ कर दिया गया 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने इसी पत्र का नाम ’प्रबुद्ध भारत’ किया। जिसमें समय-समय पर वे सामाजिक कार्यकर्ताओं राजनीतिक नेताओं के प्रश्नों का जवाब देते थे। और अपना संदेश आम जनता तक पहुंचाने का काम करते थे।

वर्तमान में मुख्य धारा की पत्रकारिता

मुख्य धारा की पत्रकारिता मे वैसे तो दलित समाज का कोई संपादक या एंकर आपको नहीं मिलेगा जो अपनी जातिगत पहचान के साथ वहां उपस्थित हो । वर्तमान में मुख्य धारा की पत्रकारिता को आप देख सकते हैं कि किस प्रकार से न्यूज़ चैनल और उसके एंकर अपने जाति के मुताबिक समाचारों को पलटते हैं या उस में फेरबदल कर देते हैं। ज्यादातर मुआमलों में जब अपराधी उनकी सवर्ण जाति का होता है। तो केवल ‘दबंग’ लिखकर अपराधियों की पहचान छिपा जाते हैं। वही अपराधी यदि ओबीसी या दलित वर्ग का होता है तो उसकी जाति के नाम से दिखाया जाता है जैसे रामू स्वीपर, नंदू कुर्मी, लल्लू महार आदि। कई बार किसी मजबूरीवश सवर्ण अपराधी के नाम लिखे जाते हैं। लेकिन सरनेम नहीं लिखे जाते ताकि उनकी पहचान को शातिराना ढंग से छिपाया जा सके। उन्नाव केस में पीड़िता को जिंदा जला देने वाले सवर्ण अपराधियों के साथ यही हुआ। मुख्य मीडिया ने उनकी पहचान को बेरहमी से छिपा दिया।

ज्यातर मुख्यधारा की मीडिया कारपोरेट द्वारा संचालित है। बहुत सारे इलेक्ट्रॉनिक चैनल, समाचार पत्र और संस्थान पत्रकारिता की आड़ में बिजनेस करते हैं। और ब्लैक मनी को कंज्यूम करने का काम करते हैं। कुछेक मीडिया सच्चाई की पत्रकारिता करती लेकिन वे अंतिम सांसे गिन रहे हैं। या कोर्ट के चक्‍कर काट रही है। नेताओं की चापलूसी, अफसरों की ब्लैक मेलिंग करना पत्रकारिता का काम रह गया है।
मुख्यधारा की मीडिया के संपादकों, एंकरो, मालिकों के पास अकूत धन संपत्ति कहां से आई है। यह पूछने वाला कोई नहीं है। जाहिर है। पत्रकारिता की आड़ में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो पत्रकारिता के आदर्श के खिलाफ है।

भारतीय प्रेस के बारे में आंबेडकर के विचार और पत्रकार बतौर उनका आचरण, आज भी उन लोगों के लिए आदर्श हैं, जो मीडिया का मानव विकास के उपकरण के रूप में उपयोग करना चाहते हैं। उन्होंने लिखा कि ”भारत में पत्रकारिता पहले एक पेशा थी। अब वह एक व्यापार बन गई है। अखबार चलाने वालों को नैतिकता से उतना ही मतलब रहता है जितना कि किसी साबुन बनाने वाले को। पत्रकारिता स्वयं को जनता के जिम्मेदार सलाहकार के रूप में नहीं देखती। भारत में पत्रकार यह नहीं मानते कि बिना किसी प्रयोजन के समाचार देना, निर्भयता पूर्वक उन लोगों की निंदा करना जो गलत रास्ते पर जा रहें हों-फिर चाहे वे कितने ही शक्तिशाली क्यों न हों, पूरे समुदाय के हितों की रक्षा करने वाली नीति को प्रतिपादित करना उनका पहला और प्राथमिक कर्तव्य है। व्यक्ति पूजा उनका मुख्य कर्तव्य बन गया है। भारतीय प्रेस में समाचार को सनसनीखेज बनाना, तार्किक विचारों के स्थान पर अतार्किक जुनूनी बातें लिखना और जिम्मेदार लोगों की बुद्धि को जाग्रत करने की बजाए गैर-जिम्मेदार लोगों की भावनाएं भड़काना आम हैं।…व्यक्ति पूजा के खातिर देश के हितों की इतनी विवेकहीन बलि इसके पहले कभी नहीं दी गई। व्यक्ति पूजा कभी इतनी अंधी नहीं थी जितनी की वह आज के भारत में है। मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि इसके कुछ सम्मानित अपवाद हैं परंतु उनकी संख्या बहुत कम है और उनकी आवाज़ कभी सुनी नहीं जाती।’’

अंबेडकरवादी पत्रकारिता की परंपरा

डॉक्टर अंबेडकर ने मूकनायक के माध्यम से अंबेडकरवादी पत्रकारिता की जो  नीव रखी थी। वह आज विशालकाय इमारत का रूप ले चुकी है। तमाम लोग धड़ल्ले से लिख रहे हैं और अपनी बात को रख रहे हैं। हिंदी अंग्रेजी समेत भारत की तमाम क्षेत्रीय भाषाओं में डेढ़ हजार से ज्यादा पत्र पत्रिकाएं निरंतर प्रकाशित हो रही है। जिसमें वे अपने दुख-दर्द शोषण और संघर्ष को साझा कर रहे हैं। इसमें खुशी की बात यह है कि अंबेडकरवादी पत्रकारिता या जिसे  प्रगतिशील पत्रकारिता भी कह सकते हैं। जाति का बंधन टूटा  हैं। दलित आदिवासी पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यक वर्ग समेत प्रगतिशील सवर्ण भी इस पत्रकारिता में व्यस्त हैं और वंचितों की आवाज बन चुके हैं। आदिवासी अनुसूचित जातियों के मुद्दे, पिछड़ा वर्ग के मुद्दे, बहुजन मुद्दे पूंजीवाद के खिलाफ और खुद ब्राह्मणवाद के खिलाफ भी लोग लगातार लिख रहे हैं । सोशल मीडिया के आ जाने के बाद मानो की अंबेडकरवादी पत्रकारिता को पंख लग गया है। फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर में लगातार इस पर लिखा जा रहा हैं और वह हजारों बार शेयर किए जाते हैं। सोशल मीडिया ने आम लोगों तक अपनी पहुंच बनाई है। जिसके माध्यम से अंबेडकरवादी पत्रकारिता घरों घर पहुंची है। लोगों को चेतन सील करने और अपने शोषण के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा दे रहे हैं।

यदि आज अंबेडकर होते तो क्या करते?

यह प्रश्न जायज है कि आज डॉक्टर अंबेडकर होते तो क्या करते ? निश्चित तौर पर जिस प्रकार से सोशल मीडिया की पहुंच एक विशाल जनसमुदाय तक है। डॉक्टर अंबेडकर होते तो वे ट्विटर पर होते, फेसबुक एवं ब्लॉक लिखते, व्हाट्सएप पर उनके संदेशों को फैलाया जाता और उनका एक विशाल चैनल यूट्यूब पर होता। वे जिन बातों को मूक नायक, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत में कह रहे थे। उन्हीं बातों को आज के संदर्भ में यूट्यूब चैनल में कहते होते।

आधुनिक पत्रकारिता और उसका अध्ययन बिना डॉक्टर अंबेडकर के पूरा नहीं हो सकता। डॉक्टर अंबेडकर का जो योगदान पत्रकारिता के संबंध में है वह अमूल्य है। वह ना केवल एक रास्ता दिखाते हैं बल्कि उसका अनुसरण भी वे स्वयं करते हैं। निश्चित तौर पर आने वाली पीढ़ी उनकी पत्रकारिता से प्रेरणा लेगी और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ को मजबूत करने में अपना योगदान देगी।
Publish on navbharat 2 February 2020

All Episode of personality of the week

डीएमए इंडिया ऑनलाइन यूट्यूब चैनल द्वारा प्रसारित खास एपिसोड *पर्सनैलिटी ऑफ द वीक* की तमाम कड़ियों को यहां आप देख सकते हैं। 

1 हिमांगी कडलक https://youtu.be/A3VbiZdAlVQ
2 अंजू मेश्राम https://youtu.be/xaUfTJBolLM
3 विश्वास मेश्राम https://youtu.be/7ufIhaD1gKI
4 राजेंद्र गायकवाड https://youtu.be/N9aEKNIKG6k
5 चंद्रिका कौशल https://youtu.be/v5t5Y-QySyE
6 विष्णु बघेल https://youtu.be/rAJllRcDJns
7 शुभ्रांशु हरपाल https://youtu.be/aXEH4hH99-0
8 रतन गोंडाने https://youtu.be/k0wESQHTItQ
9 दिनेश मिश्र पार्ट 1 https://youtu.be/7Hkwgap-cH8
10 दिनेश्वर मिश्र पार्ट 2 https://youtu.be/YUyLI7Rhhqg
11 रवि बौद्ध https://youtu.be/qufbhrnA4tc
12 डॉ अमिता https://youtu.be/C7MtHbTn0GM
13 नंद कश्यप https://youtu.be/c_EQRuCLaq4
14 महादेव कावरे(DM) https://youtu.be/B-v6eLdtais
15 शाकिर कुरैशी https://youtu.be/S9GkocgCobM
16 नीलेश लंगोटे https://youtu.be/ulZyl-BXnqs
17 जन्मेजय सोना https://youtu.be/PeCZEi6aP98
18 गौतम बंधोपाध्याय https://youtu.be/jFXGWKtYduk
19 तूहीन देव https://youtu.be/nsFIMxpD74w
20 शेखर नाग https://youtu.be/zZx8sLpu9SE
21 समर सेन गुप्ता https://youtu.be/ty6QvY0ZHK4
22 राजकुमार सोनी https://youtu.be/UISabjctzVA
23 उत्तम कुमार https://youtu.be/9W_P9yzFZGY
24 निसार अली https://youtu.be/uHf8rIOieD8
25 ललित सुरजन https://youtu.be/K07ZRVs0Qcs
26 राजू भारतवासी https://youtu.be/g7FR0RpR-ys
27 इरफान इंजीनियर https://youtu.be/br3jhGPFeQo
28 राजेश कुमार https://youtu.be/tlp-69yQACs
29 अखिलेश ऐडगर https://youtu.be/EbO4ywkT7KE
30 उमाकांत https://youtu.be/Qa9KWBXGfLc
31 बेजवाड़ा विल्सन https://youtu.be/TXA4-edN1O8
32 केके नायकर https://youtu.be/G8W3NBxonec
33 मिनहाज असद https://youtu.be/dpMufO0xxI0
34 सुहास बनसोड https://youtu.be/ejLwznXQHr0
35 डॉक्टर गोल्डी एम जॉर्ज https://youtu.be/abaqaC5u82s
36 परदेशी राम वर्मा https://youtu.be/WeqKicTlWkc
37 तीजन बाई https://youtu.be/b7c6CMcqHc4
38 केआर शाह https://youtu.be/L6alEDn68cI
39 गोरेलाल चंदेल https://youtu.be/lSZ6ic6VRIg
40 डॉ जीवन यदु https://youtu.be/HHM8NGKwoZ8
41 प्रोफेसर चौथी राम यादव https://youtu.be/-xIPg4UL0B4
42 निर्मला पुतुल https://youtu.be/fE382LVBbrk
43 लक्ष्मण गायकवाड़ https://youtu.be/Cvf35DuG3mo
44 मुसाफिर बैठा https://youtu.be/7IMbe7sD2r8
45 डॉक्टर नरेंद्र नायक https://youtu.be/8x93tk3bXSU
46 दुर्गा झा https://youtu.be/4Tsx3-Pczas
47 ट्रांसजेंडर विद्या राजपूत https://youtu.be/QmkfrBHGLd0
48 एडवोकेट रामकृष्ण जांगड़े https://youtu.be/LVd5nXAb7ho
49 शांति स्वरूप बौद्ध https://youtu.be/K5w7XVQHoiw
50 संजीव खुदशाह https://youtu.be/ktNgp_DXUKI
51 दाऊराम रत्नाकर https://youtu.be/1YALYGvYvbg
52 डॉक्टर आरके सुखदेवे https://youtu.be/b9NouBlq0dQ
53 डॉक्टर लाखन सिंह https://youtu.be/zB1QydGgZgI
54 आनंद मिश्रा https://youtu.be/HnDKD240NEQ
55 प्रियंका शुक्ला https://youtu.be/ippUQl0YHww
56 कपूर वासनिक https://youtu.be/otkszOIIdng
57 अनुज श्रीवास्तव https://youtu.be/tt3mqui46Xc
58 अनिल चमड़िया https://youtu.be/H7GXIydMWlM
59 नंद कुमार बघेल भाग 1 https://youtu.be/26mxTAa9ZaI
59 नंद कुमार बघेल भाग 2 https://youtu.be/MbvWJrkWSuQ
60 राज कुमार जांगड़े https://youtu.be/7Gr_7UOrPRE
61 सुबोध देव https://youtu.be/H4uLd5DV40s
62 विनय रतन सिंह https://youtu.be/QtQxo2EccBw
63 रिंचीन https://youtu.be/26prS-JJWxw
64 कैलाश बनवासी https://youtu.be/mV9iDdu2drI
65 सादिक अली https://youtu.be/-_1GTDCLE6U
66 डॉ राम पुनियानी https://youtu.be/mD_3f8SS2Uo
67 जय गोविंद बेरिया https://youtu.be/ljuR5pubaPI
68 सुभाष गताडे https://youtu.be/IlUNXOUbBRY
69 हिमांशु कुमार
70 कला दास डेहरिया

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*27% ओबीसी आरक्षण पर रोक लगवाने वाले कुणाल शुक्ला को छत्तीसगढ़ सरकार से पुरस्कार*


RTI एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला को *कबीर विकास संचार संस्थान शोध पीठ* के *अध्यक्ष* नियुक्त किया गया है। यह संस्थान कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कैम्पस में संचालित है।


बता दें कि कुणाल शुक्ला वही व्यक्ति हैं जिन्होंने ओबीसी के 27% आरक्षण के विरोध में हाई कोर्ट में अपील किया था और वहां से रोक लगवाई थी। 

उनके इस कार्य से खुश होकर छत्तीसगढ़ ब्राह्मण उत्थान सभा ने उनका एक बड़ा सम्मान समारोह भी रायपुर में आयोजित किया था।
अब प्रश्न यह उठता है कि ओबीसी, एससी, एसटी के लिए काम करने का दावा करने वाली भूपेश सरकार क्या वंचित वर्ग को छल रही है ? क्या कबीर पंथी समाज जैसे मानिकपुरी, साहू , सतनामी से कोई भी योग्य व्यक्ति इस पद के लिए नहीं मिला? 


इधर ओबीसी समाज अपने बीच का मुख्यमंत्री पाकर फूले नहीं समा रहा है। वहीं दूसरी ओर ओबीसी समाज को मिले आरक्षण पर स्टे करने वाले व्यक्ति को इनाम स्वरूप ऊंचे ऊंचे पदों से नवाजा जा रहा है। अब प्रश्न उठता है कि *क्या इतना सब होने के बावजूद ओबीसी एससी एसटी* समाज *कान में रुई* डाल कर सोता रहेगा या कुंभकरण नींद से जागे का भी?

Discussion on the novel of kishan lal "cheetiyo ki vapsi"

किशनलाल के उपन्यास चिटियों की वापसी पर हुई चर्चा


दिनांक 19 जनवरी 2020 रविवार की सुबह 10 30 से 1.30 तक वृंदावन  सभागृह, सिविल लाइंस, रायपुर में उपन्यासकार किशनलाल के उपन्यास "चिटियों की वापसी" कपर चर्चा की गई। सर्वप्रथम अतिथियों को  किताब भेंट कर  उनका स्वागत किया गया । किशनलाल ने उपन्यास के शुरुआती अंशों का पाठ किया जिसमें उन्होंने रायपुर के बसने और महानगर की प्रतिस्पर्धा,  नया रायपुर के विकास पर बातचीत की। दरअसल यह उपन्यास विभिन्न मुद्दों पर केंद्रित है खासतौर पर उस गुरु जी की कहानी पर केंद्रित है जो जात पात जैसी रूढ़ियों को तोड़ता हुआ नए आयाम गढ़ता है।
इस सारगर्भित चर्चा में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की प्रो. हेमलता महिश्वर ने बताया कि यह उपन्यास पढ़ना शुरू करने के बाद बीच में छोड़ने का मन नहीं करता और पाठक पूरा पढ़ने के बाद ही दम लेता है. उन्होंने उपन्यास के तमाम सारे पात्रों का बारीकी से विश्लेषण किया और गांव से शहर आने, दलित अस्मिता के प्रखर होते जाने के परिणामस्वरूप उठने वाले द्वंदों को उजागर करने के लिए लेखक की प्रशंसा की। उपन्यास के मुख्य पात्र गुरुजी के शिक्षा को लेकर लगाव, स्त्री पुरुष समानता, अहिंसा को तरजीह देने, होली दिवाली की जगह  गुरु घासीदास जयंती और डाक्टर बाबासाहेब अंबेडकर जयंती को त्यौहारों की तरह धूमधाम से मनाये जाने आदि घटनाओं के माध्यम से उपन्यास के नैसर्गिक रुप से विकसित किए जाने के लिए उन्होंने किशनलाल की प्रशंसा की। प्रोफेसर हेमलता महिश्वर ने किशनलाल को भाषा के स्तर पर कुछ सुधार की सलाह भी दी और इस उपन्यास को समकालीन हिंदी साहित्य की सशक्त उपलब्धि बताया। रायपुर के दलित लेखक संजीव खुदशाह ने अपने उद्बोधन में कहा की विस्थापन की त्रासदी को इस उपन्यास में बखूबी बताया गया है साथ साथ किस प्रकार वंचित वर्ग के व्यक्ति का विकास के दौरान तमाम कुरीतियों से संघर्ष करना और आगे बढ़ने की कहानी बताई गई है। सांझा मंच के विश्वास मेश्राम ने अपने वक्तव्य में कहा की चीटियों की वापसी हासिए के लोगों को केंद्र में रखकर लिखा गया एक अच्छा उपन्यास है। इसे हिंदी साहित्य में जैसी चर्चा या ख्याति मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिली। लेकिन भविष्य में आलोचक और पाठक इस पर जरूर गौर करेंगे। उन्होंने गांवों में व्याप्त जातिवादी, सामंती विषमता को दलित वंचितों के शहर की ओर आने का मुख्य कारण बताते हुए शहरों में अवसरों की उपलब्धता को केंद्र में रखने के लिए उपन्यासकार किशनलाल की प्रशंसा की । प्रलेस के संजय शाम ने कहा कि यह एक अद्भुत उपन्यास है इसे किसी वाद में घेरकर कर देखना उपन्यास के मूल्य को छोटा करने जैसा है। इसे विस्तृत नजरिए से देखना चाहिए। रंगकर्मी निसार अली ने कहा की आज का समय ऐसा है जब बात को क्लियर होकर कहा जाए यदि आप वैज्ञानिक और प्रगतिशील विचारधारा के हैं तो आपको उस वाद में क्लियर आना चाहिए चाहे उसका रंग नीला या सुर्ख हो। लोक कलाकार यशवंत सतनामी ने अपना एक प्रसिद्ध लोकगीत सुनाया। नंदकुमार कंसारी, भागवत प्रसाद, प्रो. अविनाश मेश्राम, प्रो. के के सहारे आदि ने चर्चा की । कार्यक्रम के अंत में बीके अय्यर ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। अंजू मेश्राम ने इस पूरे कार्यक्रम का सफल संचालन किया।

Short information about cancer dr. Bansode


 केंसर के बारे में संक्षिप्त जानकारी
                                     
( लेखक :- डॉ के बी बंसोडे )
                 
प्रश्न 01 :-  केंसर क्या है ?
सामान्यतः हमारे शरीर के सभी अंगों में कोशिकाएं अपना निर्धारित कार्य करती रहतीं हैं. वे अपना जीवनकाल पूरा करती है तथा नई कोशिकाओं को अपने स्थान पर स्थापित करती रहती है. लेकिन केंसर की बीमारी में कोशिका का कार्य गड़बड़ हो जाता है.







केंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमे हमारे शरीर के किसी अंग की कोई एक कोशिका में अचानक ही असामान्य विकास होने लगता है . धीरे धीरे यह कोशिका अन्य दूसरी कोशिकाओं को भी प्रभावित करके दूसरी आसपास की सभी सामान्य कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाने लगती है .यह इकलौती कोशिका जो अपना सामान्य निर्धारित कार्य छोड़कर, वह अपना खुद का विकास तेज गति से करती है . इस समय वह अपने आसपास की सभी दूसरी सामान्य कोशिकाओं के विकास को भी बाधित करती है , तथा उनके कार्यों को भी प्रभावित करके उन्हें नष्ट करती है . इसके कारण असामान्य कोशिकाओं का एक समूह निर्मित हो जाता है , तथा वह एक गांठ का रूप ले लेता है ..इस समय  शरीर का सामान्य क्रियाकलाप गड़बड़ा जाता है . तथा विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी शरीर में दिखाई देती है . इसे ही केंसर कहते हैं.





प्रश्न 02 :- शरीर में कोई भी गांठ केंसर ही होती है ?
आमतौर पर जो भी गांठ शरीर के किसी भी हिस्से में दिखाई देती है , वह जरुरी तौर पर केंसर की ही गांठ हो यह कहना सही नहीं है . गांठ दो प्रकार की होती हैं . (1) सामान्य गांठ जिसे चिकित्सीय भाषा में बेनाईन ट्यूमर ( साधारण गांठ) कहते हैं . जो आमतौर पर शरीर को कोई अधिक नुकसान नहीं पहुँचाती है .
 (2) दुसरे तरह की असामान्य गांठ जिसे चिकित्सीय भाषा में मेलिग्नेन्ट या कार्सिनोजेनिक ट्यूमर (केंसर की गांठ ) कहते हैं . यह अत्यधिक घातक होती है .
प्रश्न 03 :- केंसर कितने प्रकार के होते हैं ?
सारकोमा, मेलोनोमा, लिम्फोमा एवम लयूकेमिया .यह चार प्रमुख प्रकार के केंसर शरीर में होते हैं
सारकोमा :- हड्डियों , मांस पेशियों , लीवर ,पेन्क्रियास जैसे सभी ग्रंथियों का
          केंसर होता है .
मेलोनोमा :- यह शरीर की त्वचा का केंसर होता है
लिम्फोमा :-  लिम्फ ग्रंथि का केंसर होता है .
लयूकेमिया:-  यह रक्त का केंसर होता है . यह दुसरे अन्य प्रकार के केंसर की तरह गांठ का निर्माण नहीं होता है बल्कि इसमें रक्त कण अन्य प्रकार की दुसरे रक्त कणों को नष्ट करता है तथा उनके सामान्य विकास में बाधक होता है .


प्रश्न 04 :-  केंसर कहाँ कहाँ होता है ?
           केंसर शरीर के किसी भी अंग में या सभी अंदरूनी या बाह्य अंगों में कहीं भी हो सकता है .






प्रश्न 05 :- महिलाओं में कौन कौन से केंसर प्रमुख होते हैं ?
          वैसे तो महिलाओं को भी पुरुषों की तरह सभी प्रकार के केंसर होते हैं लेकिन महिलाओं में ज्यादातर स्तन के केंसर तथा बच्चे दानी के केंसर भी होते हैं .इसके आलावा मुख के केंसर , फेफड़े का केंसर एवम् पेट के आमाशय का केंसर भी अधिकतम होता है .

 प्रश्न 06 :- पुरुषों में कौन कौन से केंसर होते हैं ?
         पुरुषों में ओंठ तथा मुख के केंसर, फेफड़े का केंसर, आमाशय का केंसर आहार नली का केंसर, गुदा द्वार का केंसर तथा प्रोस्टेट ग्रंथि का केंसर अधिकतम होता है .

प्रश्न 07 :- क्या केंसर की बीमारी छूत जैसी बीमारी होती है ?
         नहीं , यह छूत जैसी बीमारी नहीं है . यह दरअसल एक तरह की जेनेटिक बीमारी की तरह ही होती है . यदि परिवार के किसी भी सदस्य को केंसर की बीमारी होती है , तो मरीज के साथ किसी भी प्रकार की दुरी रखना या उसके साथ किसी भी तरह का भेदभाव , अलगाव या  दुर्व्यवहार करना सही नहीं है .मरीज के साथ एक ही कमरे में रहने से , साथ उठने – बैठने , खाने –पीने, एक बिस्तर पर सोने से या एक ही थाली में खाना खाने , एक ही गिलास से पानी पीने से केंसर की बीमारी दुसरे सामान्य व्यक्ति को नहीं हो जाती है लेकिन केंसर के मरीज को स्वच्छता पूर्वक रखना , उसके खान-पान पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है केंसर के मरीज को  जब शारीरिक तकलीफ होती है , तो उसके साथ बहुंत ही संवेदना पूर्वक सहानुभूति के साथ अपनत्व भरा व्यवहार करने की जरूरत होती है . क्योकि केंसर के मरीज की बीमारी के कारण उसकी भावनात्मक तौर पर उसके जीवित रहने की आशा  कमजोर हो जाती है .यदि केंसर के मरीज को हम पूरी सहानुभूति के साथ बीमारी से  लड़ने की हिम्मत देते हैं, तो उसकी जीवन जीने की उम्मीद बढ़ जाती है तथा इस तरह केंसर का मरीज बीमारी को भी हरा सकता है .

प्रश्न 08 :- केंसर कैसे होता है ?
        प्रमुख रूप से कोशिका में जेनेटिक परिवर्तन से शरीर की कोशिका के डी एन ए में बदलाव हो जाता है.  जिसकी वजह से कोई सामान्य कोशिका केंसर की कोशिका में बदल जाती है जब हम बीमारी के लिये जिम्मेदार कारणों की पड़ताल करते हैं , तो हमें निम्नलिखित अनेक प्रकार के कारणों को जानना तथा उनके बारे में विचार करना आवश्यक हो जाता है . 
(a)           जैसे सूर्य की किरणों से उत्पन्न अल्ट्रावाईलेट रेडीऐशन
(b)  अनेक प्रकार के रेडिओऐक्टिव पदार्थ द्वारा उत्सर्जित रेडीऐशन ,
    (c) रासायनिक पदार्थ जो तम्बाखू ,गुटका ,तम्बाखू से निर्मित या बिना तम्बाखू वाले पौऊच, गुड़ाखू , बीडी या सिगरेट के द्वारा शरीर में पहुँचते हैं . 
     (d)  अनियमित जीवन शैली तथा भोजन में अत्यधिक तेल घी मिर्च और मसालों के इस्तेमाल से भी केंसर होने की सम्भावना होती है .
    (e)  महिलाओं में बच्चे दानी के केंसर, पुरुषों के मल द्वार , पुरुषों के लिंग का केंसर के लिए “ हयूमन पैपिलोमा वाइरस” जिम्मेदार माना जाता है..अन्य दुसरे प्रकार के केंसर के लिये लगभग 15 प्रतिशत केंसर का कारण हिपेटाइटीस बी वाइरस , हिपेटाइटीस सी वाइरस , एड्स बीमारी ,हेलिकोबेक्टर पैलोराई नामक जीवाणुओं के कारण भी केंसर होने की सम्भावना होती है .

     (f)   जीवनशैली में गड़बड़ी के कारण नियमित तौर पर शारीरिक व्यायाम या कसरत के आभाव में अधिक मोटापा होना भी अनेक प्रकार के केंसर का कारण माना जाता हैं . शरीर के व्यायाम के आभाव में भोजन नली , आहारनाली, आमाशय इत्यादि के केंसर होना सामान्य है . नियमित व्यायाम के अभाव में लगातार कब्ज की शिकायत से बड़ी आँत के केंसर से लेकर रेक्टम ( गुदा द्वार ) तक के केंसर की सम्भावना होती है .
        (g)    कृषि कार्यों में नियमित तौर पर विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल किये जाने वाले रासायनिक खाद , कीटाणु नाशक पदार्थ , कीट पतंगों को दूर रखने के लिए इस्तेमाल होने वाले सभी प्रकार के रसायन  भी हमारे शरीर मे केंसर पैदा करने वाले तत्व हैं .
 (h)     मच्छर मक्खी को दूर भगाने वाले रसायन भी केंसर के लिए जिम्मेदार हैं .
 (i)    नदी के पानी में विभिन्न फेक्टरियों द्वारा फेक्टरियों के विभिन्न प्रकार के अनुपयोगी रसायन को बहा देने से नदी का पानी भी प्रदूषित हो रहा है इस  प्रदूषित पानी के नियमित इस्तेमाल से समस्त प्रकार के जिव जंतु भी अनेक प्रकार की बीमारी से बीमार हो जाते हैं , उनमे से एक बीमारी केंसर भी है .
  (j)    शहरों में फेक्टरियों (कारखानों) के द्वारा विभिन्न प्रकार का वायु प्रदुषण भी किया जाता है . धुल , धुंवा, तथा विभिन्न प्रकार की गैस जो कारखानों की बड़ी बड़ी चिमनियों से निकालकर वायुमंडल की हवा को प्रदूषित करने से वायु प्रदूषित होती है . यह वायु प्रदुषण भी विभिन्न प्रकार की बिमारियों के साथ ही केंसर के लिए भी जिम्मेदार है .
   (k)   शराब के नियमित इस्तेमाल से आहार नली, लीवर, एवम स्वरतंत्र के केंसर की सम्भावना होती है .
   (l)  माता पिता के जींस के द्वारा भी केंसर होने की संभावना होती है.


प्रश्न 09 :- केंसर की बीमारी के प्रारम्भिक लक्षण क्या हैं ?
(1) मुँह के भीतर ओठों , जीभ ,मसूढ़ों या गाल के अंदर यदि किसी भी प्रकार के छाले हों ,जो लगातार कई दिनों से ठीक नहीं हो रहे हों .
(2) शरीर के किसी भी हिस्से में हुई गांठ . जो की उस जगह पहले कभी नहीं हुई थी . वह  यदि केंसर की गांठ होगी तो उसकी वृद्धि अधिक तेज गति से होती है . गांठ में दर्द भी हो सकता है ,या कभी कोई गांठ बिना दर्द के भी हो सकती है .जैसे की किसी भी महिला के स्तन में गांठ होने पर भी दर्द नहीं होता है . इसलिये शरीर के किसी भी हिस्से या अंग में बनी कोई भी गांठ की जानकारी मिलते ही जाँच करवाना आवश्यक है .
(3) लगातार बदहजमी हो या भोजन के पाचन की समस्या हो , कब्ज की शिकायत हो तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना अच्छा होता है .
(4) शरीर के किसी भी हिस्से से अचानक खून बहना भी केंसर का लक्षण हो सकता हैं .खांसी के साथ खून निकलना , उल्टी होने पर पेट से खून निकलना भी केंसर का एक कारण  हो सकता  है .पेशाब नली से खून निकलना , मल द्वार से टट्टी के साथ खून निकलना , बच्चेदानी से माहवारी के आलावा भी अचानक खून निकलना या सफ़ेद पानी का लगातार निकलना इत्यादी भी केंसर का कारण हो सकता है .
(5) खांसी का बिना रुके लगातार होना या कभी आवाज में भारीपन होना स्वरनालिका के केंसर का कारण भी हो सकता है .
(6) अचानक से शरीर का वजन गिर जाना भी किसी  छिपे हुवे केंसर का कारण हो सकता है .

प्रश्न 10  :- सामान्यतः हमारे देश में कितने प्रकार के केंसर होते हैं ?  
विश्व में लगभग 100 विभिन्न  प्रकार के केंसर होते हैं. यह हमारे शरीर के किसी भी हिस्से में होते हैं . हमारे देश में सामान्यतः 51 प्रकार के केंसर होते हैं महिलाओं में :- गर्भाशय के केंसर तथा स्तन के केंसर अधिक  होते हैं.पुरुषों  में  :- प्रोस्टेट का केंसर होता है , जो महिलाओं में नहीं होता , क्योकि यह ग्रंथि महिलाओं के शरीर में प्राकृतिक तौर पर ही नहीं होती है .
  महिलाओं तथा पुरुषों में :- बाकि सभी प्रकार के केंसर दोनों में होते हैं.  

  प्रश्न 11:- केंसर बीमारी की सांख्यिकी की जानकारी क्या है ?

         हमारे देश में भारत सरकार के मंत्रालय :- “स्वास्थ्य एवम् परिवार कल्याण विभाग “ द्वारा एक विभाग “Indian Council of Medical                  Resaerch “ का गठन किया गया है . जिसका कार्य देश में विभिन्न प्रकार के रिसर्च करना है , जिसमें जनता के स्वास्थ्य समस्या ,उनकी भौगोलिक स्थिथि, वहां के पर्यावरण , जनसख्या के अनुपात इत्यादि को जानना समझाना तथा उसके लिए विभिन्न कार्यक्रम भी तैयार  है . ICMR के अनुसार भारत में लगभग 14 लाख केंसर के मरीज हैं सन 2035 तक यह संख्या 38 लाख तक बढ़ जायेगी. लगभग 7 लाख व्यक्तियों की मृत्यु , प्रतिवर्ष केंसर की बीमारी से हो जाती है .हमारे देश में विभिन्न प्रकार की बिमारियों से होने वाली मृत्यु में  सबसे अधिक मृत्यु दर में, केंसर से मृत्यु की दर दुसरे नम्बर पर है, पहले नम्बर पर  ह्रदय रोग से मृत्यु होने वाले लोगो की संख्या है .केंसर की बीमारी के उपचार में होने वाला खर्च सबसे अधिक होता है . एक अध्ययन से यह जानकारी मिली है कि यदि सरकार द्वारा , किसी स्वयंसेवी संस्था द्वारा , या गैरसरकारी संस्था द्वारा भी मरीज की केंसर की बीमारी का खर्च भले ही वह वहन करे तो भी , इसके बावजूद  मरीज के परिवार का ही व्यक्तिगत  खर्च जो अलग से किया जाता है ,वह बीमारी के  उपचार के कुल खर्च का एक तिहाई खर्च उसकी जेब से निकल जाता है . हार्ट की बीमारी का जो अधिकतम खर्च होता है उससे दुगुना खर्च केंसर की बीमारी के उपचार में लग जाता है .किसी साधारण बीमारी की तुलना में लगभग 160 प्रतिशत खर्च केंसर की बीमारी के उपचार में हो जाता है .NPCDCS यानि “National Programmes for Prevention  of Cancer, Diabetes,  Cardiovascular disease and Stroke” के द्वारा यह जानकारी मिलती है कि भारत में सामान्तः स्तन केंसर,बच्चेदानी का केंसर तथा मुख का केंसर बाकि अन्य प्रकार के केंसर की तुलना में लगभग 34% है .ये तीनो प्रकार के केंसर जिनकी पहचान बीमारी के प्राथमिक चरण में ही की जा सकती है , तथा यदि इसका उपचार जल्द से जल्द शुरू कर दिया जाये ,तो बीमारी से मृत्यु होने की संभावना काफी कम हो जाती है . केंसर की बीमारी के बाद जो व्यक्ति 5 वर्ष या उससे अधिक जीवित रह सकते हैं . उनमे  60.2% मुख के केंसर वाले मरीज , 76.3 % स्तन केंसर के मरीज तथा 73.2% गर्भाशय के केंसर वाले मरीज जीवित रहते हैं .

 GLOBOCAN 2012 के अनुसार पुरे विश्व में जितने भी प्रकार के केंसर होते हैं , उसके 7.2 % केंसर के  मरीज भारत में हैं . भारत में केंसर के मरीजों की मृत्यु दर भी विश्व के अन्य देशों की तुलना में जो की बहुँत अधिक यानि  8.3% है.  क्योकि भारत में अज्ञानता के कारण केंसर  की बीमारी की पहचान देर से हो पाती है , तथा अशिक्षा के कारण बीमारी को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है तथा गरीबी के कारण उपचार पूरी तरह नहीं करवाया जाता है .
प्रश्न 12 :- केंसर की जाँच के लिये कौन कौन सी पद्धति अपनाई जाती है ?
          केंसर की जाँच के लिए खून की जाँच , पेशाब की जाँच , सोनोग्राफी , एक्स रे , ऍम आर आई तथा गांठ की कोशिका को एक सुई के द्वारा निकालकर उसकी सूक्ष्म दर्शी यन्त्र से जाँच जिसे Biopasy (बायोप्सी) कहते हैं , महिलाओं के गर्भाशय में केंसर की जाँच के लिए “ Pep Smear” नामक शुरुवाती जाँच की जाती है . इस जाँच में महिला के जननांग से स्रावित होने वाले Vaginal Fluid ( वेजाइनल फ्लूइड ) की जाँच की जाती है . महिलाओं में होने वाले स्तन केंसर की जाँच के लिए मेमोग्राफी नामक जाँच की जाती है . आजकल एक नई मशीन के द्वारा भी पूरे शरीर की जाँच “ PET Scan “ (Positron Emission Tomography scan) से की जाती है . इस मशीन से पुरे शरीर का अध्ययन करके केंसर के फैलाव या उसके विस्तार या को देखा जा सकता है कि केंसर अपने मूल स्थान से आगे किस किस अंग तक फ़ैल चूका है . इन सब जाँच में जब  केंसर की बीमारी की पुष्टि हो जाती है तब उसके बाद ही केंसर का  उपचार निर्धारित किया जाता है . केंसर का उपचार करने वाले विशेषग्य विभिन्न प्रकार के जाँच के पश्चात् ही यह निर्धारित करते हैं कि किसी भी मरीज के केंसर अभी किस स्टेज में हैं . केंसर की बीमारी का उपचार उसके स्टेज (चरण ) द्वारा ही निर्धारित होता है . केंसर की बीमारी के स्टेज के निर्धारण के  लिए गांठ की साइज़ , उसके शरीर के अन्य अंगों में प्रसारण या विस्तार  की स्तिथि इत्यादि के अध्ययन के पश्चात् ही उसके उपचार को निश्चित किया जाता है . केंसर जब शरीर के किसी एक अंग में शुरू होता है , तो वह रक्त तथा लिम्फ ग्रंथि के द्वारा भी शरीर के दुसरे अंग तक पहुँच जाता है . इसलिए उपचार के पहले ही इस सब  का परिक्षण विस्तारपूर्वक किया जाता है . 

प्रश्न 13 :- केंसर का उपचार कैसे होता है ?
       केंसर का मुख्यतः तीन प्रकार से उपचार किया जाता है . जिसमें सर्जरी रेडियो थेरेपी तथा कीमोथेरेपी प्रमुख है . इसके आलावा विभिन्न अन्य उपचार की भी जानकारी निम्नलिखित है .
(a)  सर्जरी :- सबसे पहले गांठ के अधिकतम हिस्से को जो कि केंसर ग्रस्त है उसे ओपरेशन करके निकाल दिया जाता है . ताकि वह और अधिक दूसरी कोशिकाओं को रोग् ग्रस्त ना कर सके . इसके बाद आगे का उपचार जिसे रेडियोथेरेपी या किमोथेरेपी दोनों या दोनों में से कोई एक दिया जाता है .
(b) रेडियोथेरेपी :- इस उपचार में कोबाल्ट मशीन के द्वारा निर्धारित किरणों को शरीर के अंदर केसर की कोशिकाओं तक पहुँचाया जाता है . इस प्रकार  केंसर के गांठ की कोशिकाओं को  नष्ट या निष्क्रिय किया जाता है . जिसे बोलचाल की भाषा में सिंकाई करना कहते हैं . जो चिकित्सक रेडियोथेरेपी के विशेषग्य होते हैं , वे निर्धारित करते हैं कि केंसर की सिकाई कब कब की जायेगी . आम तौर पर सप्ताह में दो या तीन दिन सिकाई की जाती है .  आजकल रेडियो थेरेपी की नई तकनीक भी आ गई है जिसे ब्रेक्की थेरेपी भी कहते हैं , जिसमे मरीज की केंसर कोशिका को सीधे अंदरूनी सिकाई की जाती है .इसके कारण आजकल मरीर को रेडियो थेरेपी से होने वाले प्रतिकूल प्रभाव बहुंत कम हो गए हैं .
(c)  लेसर थेरेपी :-  यह भी रेडियो थेरेपी का ही एक प्रकार है . इस थेरेपी में कसेर की गांठ को तथा मूल कोशिका को टारगेट करके उसको लेसर किरणों से नष्ट किया जाता है .
(d) कीमोथेरेपी:- इस थेरेपी में मरीज को मुँह से खाने वाली दवा या इन्जेक्शन के द्वारा दवाईयां दी जाती है . यह दवाईयां मरीज के केंसर कोशिका को अन्दुरुनी अंग में फैलने से रोकती हैं .कीमोथेरेपी में भी नई नई दवाईयां आजकल उपलब्ध है जिससे दवाईयों केप्रतिकूल प्रभाव काफी कम हो जाते हैं
(e)  इम्मुनोथेरेपी :- इस उपचार में मरीज को दवाईयां दी जाती है , जिससे उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सके . यह बाकि अन्य थेरेपी के आलावा या साथ साथ भी दी जाती है .
(f)   हारमोन थेरेपी :- कुछ विशेष प्रकार के केंसर जैसे प्रोस्टेट केंसर तथा स्तन केंसर के मरीजों को हारमोन थेरेपी भी दी जाती है .
(g)  बोनमेरो ट्रांसप्लांट :- ब्लड केंसर जैसे लिम्फोब्लास्टिक लयूकेमिया नामक केंसर के मरीजों को बोनमेरो ट्रांसप्लांट भी किया जाता है . जिसमे हड्डियों की मज्जा को स्वस्थ डोनर से निकालकर मरीज को दिया जाता है .
(h) स्टेम सेल ट्रांसप्लांट :- यह भी एक उपचार की पद्धति है , जो फ़िलहाल हमारे देश में नहीं की जाती है .

प्रश्न 14 :- केंसर के उपचार के पश्चात क्या बाद में आगे बार बार जाँच होनी चाहिए या नहीं ?
 आवश्यक तौर पर मरीज को उसके केंसर का पूरा पूरा उपचार करवाने के बाद भी, निरंतर चिकित्सक के सम्पर्क में रहने की सलाह दी जाती है . मरीज का उपचार हो जाने के बाद भी उसे नियमित अन्तराल में चिकित्सक से मिलाकर अपनी आवश्यक जाँच करवाते रहना चाहिए , ताकि केंसर फिर से बढ़ने ना लग जाये . शुरुवात में चिकित्सक केंसर के पूर्ण उपचार हो जाने के बाद तीन माह में एक बार जाँच करवाने की सलाह देते हैं . धीरे धीरे यह अवधि बढ़ जाती है . फिर साल में एक बार ही चिकित्सक से मिलाकर जाँच करवाना जरुरी होता है .

प्रश्न 15 :- हमें कौन कौन सी सावधानी अपनानी चाहिए , ताकि केंसर की बीमारी से बच सकें ?
जी हाँ , “ बीमारी के उपचार से बेहतर है उससे बचाव “ जिसे चिकित्सक कहते हैं :- “ Prevention is better than cure.” इसलिए हह सावधानी अपनाने से केंसर से बचाव हो सकता है .
(1) नियमित दिनचर्या अपनाना बेहद आवश्यक है .समय पर भोजन करना, समय पर सो जाना , समय पर जागना जरुरी है . भोजन में संतुलित आहार लेना जरुरी है . अधिक मिर्च मसाले युक्त भोजन अधिक नहीं खाना चाहिए .भोजन में सलाद का भरपूर उपयोग किया जाना ज्यादा फायदे मंद होता है . फ़ास्ट फ़ूड तथा जंक फ़ूड को अधिक से अधिक खाने से बचना चाहिए . ताजे फल तथा हमारे आसपास उपलब्ध सभी प्रकार के फलों का धिक्त्क इस्तेमाल शरीर के लिए फायदेमंद होता है .
(2) नियमित शारीरक व्यायाम अत्यंत जरुरी कार्य है . प्रतिदिन कम से कम एक घंटे तेजचाल से चलने का व्यायाम सबसे सस्ता तथा सबसे अच्छा व्यायाम है . इसके आलावा यदि आप कोई खेल जैसे फुटबाल , बोलिबोल , साइकिलिंग , तैराकी या डांस वगैरह जो भी करें वह सब अच्छा ही है . कुल मिलाकर अपने शरीर के वजन को नियंत्रण में रखना आवश्यक हैं .यह सब कार्यों से हम ना केवल केंसर जैसी बीमारी से दूर रह सकते हैं बल्कि अनेक प्रकार की दूसरी बीमारियाँ जैसे ब्लड प्रेशर , डाइबीटीज, हार्ट डिसीज , किडनी डिसीज ,ब्रेन स्ट्रोक लीवर फेलुअर इत्यादि से भी निजात पा सकते हैं
(3) सभी प्रकार की नशीली वस्तुओं का इस्तेमाल करना तुरंत बंद कर देना ही बेहतर है . बीडी सिगरेट, तम्बाखू , गुड़ाखू, पानमसाले, पाऊच , शराब इत्यादि नुकसानदेय होते हैं .
(4) कुछ केंसर के बचाव के लिए आजकल टीकाकरण किया जाता है . जिसमे लड़कियों को गर्भाशय के केंसर से बचाव के लिए HPV नामक वेक्सिन लगाया जाता है . जो महिलाओं को होने वाले गर्भाशय के केंसर के लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने में सहायक होता है .
(5) इसके आलावा बच्चे के जन्म के पहले दस वर्ष की अवस्था तक विभिन्न प्रकार की बिमारियों से बचाव के लिए जो भी टीकाकरण किया जाता वह भी केंसर की बीमारी से बचाव के लिए सहायक होता है .   

अंत में स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन तथा मस्तिश्क होता है , तथा स्वस्थ शरीर देश को विकास के दिशा में उत्तरोत्तर आगे ले जाता है .

(आमजन में केंसर की घातक बीमारी के बारे में जागरूकता पैदा किये जाने हेतु संक्षेप में यह लेख लिखा गया है.)