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Reservations should be review?

क्या आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए
आरक्षण पर दलितों में दो फाड़
संजीव खुदशाह 
आर एस एस समेत दलितों का कुछ तबका मांग कर रहा है कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए। इस मुद्दे को दूर से देखने पर मामला एक जैसा लगता है लेकिन आर एस एस और दलितों की आरक्षण समीक्षा मांग में बुनियादी फर्क है। और उसके मायने भी अलग-अलग है। आइये सबसे पहले इस फर्क की पड़ताल करते है। 

आर एस एस प्रमुख मोहन मागवत जब यह कहते है कि अब आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए तो वे बिहार वि़धान सभा चुनाव बुरी तरह हार जाते है। इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि यह मामला कितना संवेदन शील है। जैसा की आर एस एस की हिन्दू  राष्ट्र को लेकर अवधारणा है वह यह चाहता है कि आरक्षण की समीक्षा की जाय इसके क्या मायने है वह इस एक तीर से कई निशाने लगाना चाहते है। 

1 अपने सवर्ण वोटरों को (जो आरक्षण विरोधी है) उन्हे  खुश करना। 
2 आरक्षण समीक्षा के बहाने आरक्षित वर्ग (एस सी एस अी ओ बी सी) को छेड़ना ताकी वे आरक्षण को स्थाई अधिकार न माने। 
3 आरक्षण समीक्षा के आधार पर उसकी प्रासंगिकता को खत्म (कम) आकां जा सके। 
4 आरक्षण समीक्षा के आधार पर कुछ जातियों को आरक्षण की परिधी से बाहर किय जाये। उनके प्रतिशत में कमी किया जा सके। 
5 असल मकसद आरक्षण को खत्म किया जाय। 

इसके इतर कतिपय दलित जातिया या उनके नेता यह मांग करते रहे है कि आराक्षण की समीक्षा होनी चाहिए। वे तर्क देते है कि आरक्षण पर डॉं अंबेडकर का मकसद रहा है कि समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति को आरक्षण का लाभ मिल सके। वे कहते है कि इसकी समीक्षा होनी चाहिए ताकि पता चल सके की आरक्षण का लाभ किन जातियों को मिल रहा है। 

हांलाकि ऐसा कोई आकड़ा उपलब्धं नही है जिससे ये बताया जा सके की आरक्षण का लाभ किन जातियों को कितना मिला है। लेकिन वे कतिपय दलित जातियां यह मानती है की आरक्षण की पूरी मलाई कुछ जातियां ही उठा रही है जैसे महाराष्ट्र में महार, उत्तर भारत में जाटव चमार अहिरवार, मध्य  भारत में सतनामी आदि। बांकि दूसरी जातियों को इसका लाभ नही मिल पा रहा है। आप इसी प्रकार राज्यवार भी दलित जातियों को चुन सकते है। जिन्हे यह माना जाता रहा है कि वे आरक्षण का पूरा लाभ लेती है बाकि छोटी या अल्प संख्यक या अतिदलित जातियों को इनके कारण आरक्षण का लाभ नही मिल पा रहा है। 

यहां पर यह बताना जरूरी है कि इसी प्रकार दिल्ली  समेत उत्तर भारत में वाल्मीकि जातियां भी आरक्षण लाभ लेने में अन्य दलित जातियों से काफी आगे है। वाल्मीकि जाति से तात्पर्य चूहड़ा जाति से है, जो लालबेगी कहलाती थी बाद में हिन्दूकरण के दौरान वाल्मीकि कहलाई। इनका प्रतिशत देशभर के सफाई कामगारों का 5 प्रतिशत है। ऐसी करीब 40 जातियां देश भर में परंपरागत सफाई पेशे से जुड़ी हुई है। सफाई कामगार जातियों का एक समूह यह चाहता है कि उन्हे यानी सफाई कामगारों को अलग से आरक्षण दिया जाय। 

असल झगड़ा क्या है?

आर एस एस के आरक्षण समीक्षा का असल मकसद आप जान चुके है। अब जानने की कोशिश करते है कि कतिपय जातियां ऐसी मांग क्यों कर रही है। यह मामला इतना सीधा नही जितना लगता है। ऐसी मांग करने वाले लोग दलितों में दो फाड़ करना चाहते है। वे चाहते है कि चमार दलित और सफाई कामगार दलित को अलग-अलग आरक्षण दिया जाय। ताकि इसका लाभ सफाई कामगारों को भी मिल सके।(यह एक ऐसा मांग है जो आर एस एस के ऐजेण्डेल में भी है।) दरअसल पूरे दलितों को दो भागो में विभाजित करके देखा जा रहा है। पहला चमार वर्ग दूसरा सफाई कामगार वर्ग । वे मानते है कि इसके इतर कोई दलित जाति नही होती है। यह एक गलत सोच है। चमार और सफाई कामगार जातियों के अलावा भी दलित जातियों की भरमार है जैसे धोबी, ढोल बजाने वाली जाति, ढोल बनाने वाली जाति, मृतक को अग्नी देने वाली जाति, बांस का काम करने वाली जाति, घास काटने वाल जाति, मुसवा(चूहा) ,खाने वाली जाति मुसहर आदि आदि। आरक्षण का ये झगड़ा असल में जातिगत झगड़ा ही है।

 क्या  सचमुच एक ही जाति पूरा आरक्षण का लाभ ले रही है?

ऐसा भ्रामक प्रचार हिन्‍दू कट्टर वादी संगठन करते रहे है। यदि ऐसा होता तो आजतक बैकलाग खाली क्यो  रहते? क्यो‍ दलित जाति की सीटे खाली रह जाती? बाद में योग्य, उम्मीदवार नही है कहकर सवर्णो से भर दी जा‍ती। 

यदि दलित आरक्षण के दो फाड़ हो जाये तो क्या इसकी गुन्जाईश नही है कि इसके जातिवार 25 फाड़ हो जायेगे। मान लिया जाय अरक्षण के लिए दलितों में दो फाड़ कर दिया जाता जैसा की कतिपय दलित जातियां चाहती है चमार वर्ग सफाई कामगार वर्ग। सफाई कामगार वर्ग में सिर्फ एक जाति है जो की आरक्षण, शिक्षा से लेकर सभी निकायों में काफी तरक्की पर है वह है वाल्मीकि जाति। सफाई कामगार वर्ग के लिए अलग आरक्षण मिल जाने पर (जिसमें लगभग 40 अन्ये जातियां भी शामिल है) यही जाति पूरा लाभ उठायेगी। सुदर्शन समाज, नवल समाज गोगापीर, डोम डुमार, मखियार हेला जैसी तमाम जातियों को इसका लाभ नही मिल पायेगा। समस्या जस की तस रहेगी। इन्हे भी जातिवार आरक्षण देना पड़ेगा। इस तरह के आरक्षण बटवारे का कोई अंत नही है। 

सुप्रीम कोर्ट में ओपी शुक्ला के द्वारा ऐसा वाद दाखिल किया गया था। जिसे सुनवाई पश्चात खारिज कर दिया गया। जैसा की कुछ लोगो के द्वारा अलग आरक्षण की मांग की जा रही है उससे लगता है की इसका अंत नही होने वाला। प्रश्न खड़ा होता है कि क्या अलग आारक्षण लेने वाली अगड़ी जातियां अपने से कमजोर और अल्पसंख्यक जाति को उसका अधिकार देगी अथवा सुदर्शन समाज जैसी जातियों को भी इसके इतर आरक्षण हेतु अवाज उठाना पड़ेगा। इस का सबसे बुरा प्रभाव दलितों की एकता पर पड़ेगा जिसको मिल बैठकर सुलझाया जाना चाहिए।

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