ईट के सहारे किडनी फैलियर का इलाज नहीं किया जा सकता | यह टोटकेबाजी है ।
डॉ क्रांती भूषण बनसोडे
डॉ विश्वरूप चौधरी कोई डॉक्टर नही है ।
उसका इतिहास यह है कि वह चूंकि एक अच्छा वक्ता है , तो वह शुरुवात में मोटिवेशनल स्पीकर का काम करता था । बाद में मेमोरी गुरु बन गया । बच्चों की याददाश्त बढ़ाने के नाम पर जबरदस्त ठगी किया । उसके बाद सिंगापुर से फर्जी डिग्री लेकर डाइटीशियन बन गया । लोगों की डाइबिटीज को जड़ से ठीक करने के नाम पर पैसे कमाया ।
अब होता यह है कि हमारे देश की जनता को चमत्कार पर अखंड विश्वास होता है , तथा विज्ञान या एलोपैथी से भयानक डर लगता है । तो इसलिये इस प्रकार के लोगों की दुकानदारी आराम से चलती रहती है । इसके अलावा एक बड़ी बात यह भी है कि चूंकि सत्ता धारी लोगों तथा अफसरों से इनकी सांठगांठ भी होती है , इसलिये इनके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही भी कोई कर नही सकता है । क्योकि इनकी पहुंच ऊपर तक होती है ।
अब यह किडनी की बीमारी का भी ईलाज बताकर लोगों को गुमराह कर रहा है । इसी की तरह एक और व्यक्ति हैं , जो पानी के टब में लोगों को बिठाकर उनकी डायलिसिस करके किडनी की बीमारी से उनको छुटकारा दिलवाने के दावा करते हैं । वह भी बकवास ही है ।
मेरी समझ से इन सबसे किडनी की समस्या से बिल्कुल भी निजात मिलना संभव नही है ।
सभी मानव के शरीर में दो किडनी होती है । किसी ना किसी वजह से किडनी अपना काम करना बंद कर देती है । जैसे कि डाइबिटीज तथा हाई ब्लड प्रेशर के कारण किडनी अपना काम करना धीरे धीरे इसलिये बन्द कर देती है क्योंकि उसके नेफ्रॉन्स में गड़बड़ी होना शुरू हो जाती है । पहले शुरुवात में किडनी के नेफ्रॉन्स के खराब होने से उसके आंतरिक फिल्टरेशन कम होने लगता है । जिससे हमारे शरीर के खराब तत्व यानी यूरिया एवम क्रिएटिनिन का पेशाब के जरिये निकलना जो जरूरी होता है , वह कम हो जाता है । इस समय दवाओं से ही किडनी का उपचार किया जाता है । कोई भी बीमारी की तरह किडनी की बीमारी और उसकी गड़बड़ी धीरे धीरे शुरू होती है । धीरे धीरे किडनी काम करना बंद कर देती है । जिसे चिकित्सीय भाषा में *"End Stage Renal Disease"* कहते हैं । तब हमें चिकित्सक डायलिसिस की सलाह देते हैं ।
डायलिसिस से यूरिया तथा क्रिएटिनिन को रक्त से छानकर निकाला जाता है । यह एक टेम्पररी काम है । इसलिये सप्ताह में दो बार या कई बार तीन बार भी डायलिसिस करना जरूरी होता है । किसी भी अस्पताल में जाकर मशीन के द्वारा डायलिसिस करने को हीमोडायलिसिस कहा जाता है । इसमें मशीन के द्वारा पूरे शरीर के रक्त को मशीन में लगे फिल्टर से गुजारकर उसमें खराब तत्व तथा अधिक पानी जो शरीर के लिये जरूरी नही होता उसे निकाल दिया जाता है ।
इसके अलावा पेरिटोनियल डायलिसिस भी एक तरीका है । जिसमें मरीज खुद घर पर ही खुद ही डायलिसिस कर लेता है । इस विधि से पेट में डाइलाइजर को एक तरफ से डालकर दूसरी तरफ से निकला जाता है । इससे भी शरीर के खराब तत्व तथा अधिक पानी निकल जाता है ।
लेकिन यह सब तक तक सही है , जब तक किडनी ट्रांसप्लांट ना किया जा सके । लंबी उम्र तक जीने के लिये किडनी ट्रांसप्लांट ही एक मात्र उपाय होता है ।
बिस्तर के नीचे ईंट रखकर सिर को नीचे की तरफ झुकाकर तथा पैरों को ऊपर उठा देने से ग्रेविटी के कारण या गर्म पानी के टब में बैठाकर कोई डायलिसिस नही होती है ।
यह सब टोटकेबाजी है ।
क्योकि ,
जब तक रक्त से यूरिया और क्रियेटीनीन को नही निकाला जायेगा , तो शरीर के अन्य आंतरिक अंग जैसे लिवर , स्प्लिन , ब्रेन तथा समस्त मांस पेशियों इत्यादि में खराबी आने लगती है । तथा व्यक्ति की मृत्यु जल्द हो जाती है ।
फिर भी यदि किसी ऐसे मरीज को जिसका गुर्दा काम ना करता हो , और वह डायलिसिस पर ही निर्भर हो वैसा व्यक्ति जिसे इस विधि के द्वारा उसका ब्लड यूरिया तथा सीरम क्रिएटिनिन नियंत्रण में है , उसकी जब तक पूरी छानबीन ना कर ली जाये , तब तक उसे सही नही माना जा सकता है ।
कई बार फर्जी मरीज बनाकर भी ये तिकडमी लोग सामान्य जनता को बेवकूफ बनाने के लिये ऐसा कार्यक्रम करते हैं । चार छह माह तक इनका कार्यक्रम करके पैसा बनाकर लोगों को ठग कर भाग जाते हैं ।
यदि आपके पास किसी मरीज की जानकारी हो तो उसकी विस्तारित छानबीन करने से हकीकत मालूम हो जायेगी ।
शायद मेरी जानकारी से आपकी शंका का कुछ समाधान हुवा होगा । कृपया बताईये ।
डॉ क्रांति भूषण ने बहुत बढ़िया जानकारी दी है और इस तरह के नियम हकीमो की पोल खोली है इस वीडियो को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं और यह सामग्री लोगों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में सहायक होगी
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