चीरफाड़/शव परीक्षा
देश को गुलाब कोठारी जैसे छद्म प्रगतिशील से आज़ाद होना
पड़ेगा
संजीव खुदशाह
दैनिक पत्रिका दिनांक 30 अगस्त 2015 को प्रकाशित लेख ‘’आरक्षण से अब आज़ाद हो देश’’ जिसके लेखक है श्री
गुलाब कोठारी की प्रतिक्रिया में लिखी गई है। ग़ौरतलब है की यह लेख पत्रिका की जैकेट स्टोरी (मुख्य पेपर के मुख्य पत्र पर) के रूप में प्रकाशित
हुआ था।
इस लेख को प्रारंभ करने के पहले बता दू की श्री गुलाब
कोठारी एक व्यवसायी है वे पत्रिका (पूर्व में इसका नाम राजस्थान पत्रिका था) के
मालिक एवं प्रधान संपादक है। वे जैन धर्म से ताल्लुख रखते है इस लिहाज से वे अल्पसंख्यक
की श्रेणी में आते है।
विवादित लेख का मुख्य शीर्षक है ‘जातियों
के आंदोलन की नई रणनीति हमें भी जोड़ों या खत्म करो जातिगत आरक्षण व्यवस्था’
श्री गुलाब कोठारी को आरक्षण से आपत्ती है वे कहते है ‘अच्छी योग्यता वाले युवा सरकारी नौकरी से परहेज क्यो करने लग गये? उनका पलायन भी होने लगेगा तो सरकार और देश के
पास सिवाए ‘’ब्रेन ड्रेन’’ का रोना
रोने के क्या रह जायेगा? फिर आरक्षित वर्ग में भी सभी को
इसका लाभ भी नही मिल पा रहा है।’
श्री कोठारी जी यहां एक औसत दर्जे के
ब्राम्हण वादियों की भाषा बोल रहे है। शायद उन्हे नही मालूम की आई ए एस की परीक्षा में अधिक अंक
पाने वाले आरक्षित प्रत्यासी को नौकरी नही मिल पाती क्योकि ओरल में सामान्य वर्ग को ज्यादा अंक दे दिये
जाते है। वो सिर्फ इसलिए की आरक्षित वर्ग को कमतर आंका जा सके। यदि सवर्ण ब्रेन ड्रेन नही है
तो बताएं सर्वणों ने आज तक
कौन सा अविष्कार किया है सिवाए ऊँच नीच छुआ छूत के। आरक्षित वर्ग में किसको लाभ मिल रहा है किसे नही। इसकी चिन्ता आपको
क्यो हाने लगी कोठारी जी ? आपकी छाती में सौंप इसलिए लोट रहा है न कि एक पिछड़ा दलित तरक्की कर रहा है।
गुलाब कोठारी का दुख है की आरक्षण
विरोध में कौन साथ देगा आरक्षण वाले तो आधे है।
कोठारी जी मनु का आरक्षण पाकर प्रधान
संपादक तो आप बन गये लेकिन सिर्फ लिखते रहे, पढ़ने की जहमत आपने नही उठाई मै यहां बतादू की SC ST OBC
& MINORITY मिलाकर आरक्षित वर्ग 85% होते है वर्तमान जनगणना के आधार पर। भले ही इन्हे आज 50% आरक्षण मिल रहा हो। लेकिन आप तो आरक्षित वर्ग को ही 50% बता रहे हो।
कोठारी जी लिखते है कि ‘जो
काम 700 सालों से मुगल नही कर पाये, 200 सालों से अंग्रेज नही कर पाये वही उजाड़ मात्र पांच मिनट में पूर्व प्रधान मंत्री
वी.पी.सिंह कर गये। यह कांटा कोई बौध्दिक तर्क से
निकलने वाला कांटा नही है। देश बांटने का इतना सहज उपक्रम शायद इतिहास में अन्यत्र नही होगा। आरक्षण’
कोठारी जी मनु ने 6,500
जातियों में बाँटा उनके धंधे भी आरक्षित किये तो आपको देश बटने का खतरा नही हुआ। लेकिन वर्तमान आरक्षण से देश बटने का खतरा दिख रहा है
आपको। आपका दर्द ये है कि अंगरेज़ों के पूर्व लगभग 1700 वर्ष तक किसी आंक्रांताओं ने जाति प्रथा को नही छेड़ा इसलिए आप उन आंक्रांताओं के ग़ुलाम बनने के लिए तैयार थे, उनसे खुश थे। क्योकि
आपके ग़ुलाम आपकी पकड़ में थे। लेकिन अँग्रेज़ काल में ही आपकी पकड़ ढीली पड़ने
लगी जब साइमन कमीशन का कम्युनल एवार्ड आया जो अनुसूचित जाति और जनजाति आरक्षण का आधार बना बाद में मण्डल कमीशन
आया जो पिछड़ा वर्ग आरक्षण का आधार बना। इसे आप देश को बांटने का आधार बता रहे है।
मुझे तरस आता है आपकी बुध्दी
पर और साथ-साथ आप ये धमकी भी देते है की ये कांटा बौध्दिक तर्क से नही निकलने वाला। याद रखिये कोठारी साहब आज भी अनारक्षित वर्ग भारत में सिर्फ 14.5% ही है तो क्या आप 85% आरक्षित वर्ग पर
तलवार चलाऐंगे ?
हॉं ये बात सही कि अब
ये बाते आप बौध्दिक तर्क से नही जीत सकते क्योकि आरक्षित
वर्ग पढ़ लिख कर तर्क करना सीख गया है। आपके बेतुके तर्क का माकूल जबाब दे सकता
है।
गुलाब कोठारी आरक्षण के विरोध में कुछ
आंकड़े पेश करते है वे लिखते है ‘’देश को नुकसान हो रहा है ‘अध्ययन
के अनुसार नौकरी में आरक्षण का लाभ उठाने वाले पिछड़े छात्रों को फायदा तो हुआ पर
यही निवेश अगर सामान्य छात्रों पर किया जाता तो देश को
अधिक लाभ होता।’’
कोठारी जी ये अध्ययन कहां ओर किस
ऐजेन्सी ने कराए है यदि ये बताने की जहमत उठाते तो अच्छा रहता। आप ये बताई ये- वर्षो से मरीज़ के पेट में कैची तौलिया छोड़ने वाले डाक्टर किस वर्ग के है।
जितने आई ए एस घोटाले में फसे है किस वर्ग के है?
आज 15% सामान्य वर्ग के
लिए 50% आरक्षण लागू है। जबकि संख्या के मुताबिक 15% सामान्य वर्ग के लिए सिर्फ 15% ही भागीदारी होनी
चाहिए लेकिन कोठारी जी 50% से मन नही भरता वे तो पूरा 100% चाहिए वो भी 15% के लिए।
वे एक गुमनाम तथाकथित दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद के हवाले से लिखते है कि सम्पन्न
तबके को ही आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। पता नही ये कौन व्यक्ति है उन्हे ये तक
नही मालूम पूरे आरक्षण का आज भी आधा प्रतिशत पद खाली रह जाता है। जिसे बैकलाग से भरने की कोशिश की जाती है। जो बाद
में उपयुक्त उम्मीदवार नही है बता कर सामान्य वर्ग से भर दिया जाता है।
गुलाब कोठारी के लिए राह, अब
आसान नही है कई दलित, आदिवासी,
पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग एवं पूरा
आरक्षित वर्ग उनके विरूद्ध कानूनी कार्यवाही का मन बना रहा है। साथ ही उनके समाचार
पत्र ‘पत्रिका’ को पूरे देश में बहिस्कार
की योजना बना रहा है। ताकि कोई ऐसा दुस्साहस न कर सके।
दर असल पूरे विश्व में वंचित समुदाय को
आरक्षण देकर आगे बढाना कोई नई बात नही है।
विकसित देश इसी सहारे आज विकसित हो पाये है। हमारे देश की तरह विदेशों में भी राज तंत्र, सामंती तंत्र और पादरी पूरोहित तंत्र का खात्मा करने के लिए तथा
वंचित वर्ग के अधिकार हड़पने का सिलसिला खत्म करने के लिए आरक्षण
जैसी सुविधाऐं दी गई हे। अमेरिका में इसे लिंडन जान्सवन के समय ‘एफर्मेटिव एक्स न’ के नाम से प्रक्रिया शुरू की गई। तब
जाकर अमेरिका महाशक्ति बन सका। इसी प्रकार फ्रांस में डिप्रेस्ड क्लास के नाम से तो कनाडा और यूरोप
में अलग अलग नाम से यह आरक्षण व्यवस्था लागू की गई। लेकिन
इसके पीछे वही सिद्धांत है जो हमारे यहां आरक्षण व्यवस्था के लिए है। कुछ
देशों में ‘’ तरजीही नियुक्तियां ’’ नाम से तो कहीं ‘’रिवर्स डिस्क्रमनेशन ’’ के नाम पर आरक्षण लागू कर देश को तरक्की पर लाने की कोशिश हो
रही है। बात यही तक नही रूकती बडी बडी मल्टी नेशनल कम्पनियां प्रतिवर्ष अपने कर्मचारियों का एक
कम्युनल रिर्पोट भी प्रकाशित करती है कि
किस जाति या समुदाय का व्यक्ति कितनी संख्या में किस पद पर कार्यरत है। फेसबुक सहित कई कम्पनियाँ ऐसी रिर्पोट पेश करती रही है। ताकि भाई भतिजा वाद, बैक डोर एन्ट्री पर रोक लगे तथा जिसकी जितनी संख्या , उसकी उतनी भागी दारी के सिद्धांत पर संतुलन बनाया जा सके। ये विदेशी कम्पनियाँ ऐसा करने में गर्वाविंत महसूस करती है।
इस लेख मे संविधान का मज़ाक उड़ाया गया
वे लिखते है की ‘स्वतंत्रता के बाद हमारे ही प्रतिनिधियों ने
हमारे ज्ञान की जमकर धज्जियाँ उड़ाई। संविधान को धर्म निरपेक्ष कहकर हमारी संस्कृति के साथ भौड़ा मज़ाक ही किया । शासन में धर्म का प्रवेश वर्जित हो गया। हमारी संस्कृति
का आधार आश्रम व्यवस्था तथा इसी के साथ वर्ण व्यवस्था रही है।’
आश्चर्य है कि आखिर किस बल पर कोठारी
जी संविधान के विरूद्ध ऐसी बाते लिखते है। उनके
विरूद्ध देश द्रोह का मुकदमा
दायर हो सकता है। उनकी न्यूज पेपर पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। दरअसल उनका असली दर्द यही है की संविधान को धर्म निरपेक्ष नही रखा जाना था। इसे हिन्दू धर्म से जोड़ा जाना था। ताकि पिछड़ा को
पिछड़ा दलित को दलित और अल्पसंख्यक को और अल्पसंख्यक रखा जा सके। उन्हे वर्णाश्रम जाति व्यवस्था जिन्हे वे अपनी महान संस्कृति मान रहे है, टूटने
का भय सता रहा है।
वे आगे लिखते है ‘संविधान में आरक्षण का जो विष बीज बोया गया था वह अब वट वृक्ष बनकर पनपने
लगा है।’
ये वाक्य संविधान के विरूद्ध घोर अपमान जनक है। आरक्षण के विरोध में अपना एक
तर्क हो सकता है लेकिन सीधे सीधे संविधान को नीचा दिखाने का प्रयास आजद भारत में पहली बार इस तरह पढ़ने मिला। यह
एक प्रकार से देश द्रेाह का
मामला है।
कोठारी जी सीधे-सीधे ये क्यो नही कहते मै संविधान को नही मानता। आप कहते है संविधान
में आरक्षण का विष बोया गया।
आपको मालूम भी है आरक्षण क्यो मिला। कोठारी जी लिखने के साथ थोड़ा पढ़ने की जहमत उठाते तो बेहतर होता। मै आपको बता दू की आरक्षित वर्ग को आरक्षण किसी एहसान के तले नही मिला है। आज़ादी के पहले सायमन कमीशन ने अंबेडकर के सिफारिश पर दलित आदिवासी के लिए कम्युनल एर्वाड की घोषणा की थी। यानि दलितों को पृथक निर्वाचन/ प्रतिनिधीत्व समेत विशेष सुविधाएं। लेकिन गांधी ने इसका विरोध किया वे अनशन में बैठ गये, उनका
तर्क था की ये सुविधाएँ इन्हे नही मिलनी चाहिए इससे हिन्दू धर्म हिस्सो में बट
जायेगा। ये हिन्दू धर्म का अंदरूनी मामला हे मिलकर सुलझायेगे। अंबेडकर पर गांधी के अंनशन तुड़वाने का चौतरफा दबाव बढने लगा। दबाव
में आकर दलित समुदाय ने जो समझौता गांधी के साथ किया वह पूना पैक्ट कहलाया। आज भी
दलित इस समझौते को भी अपनी हार के रूप
में याद करते, वे कहते है यदि समझौता नही होता तो हम अपने
मालिक खुद होते, आरक्षण जैसे भीख की हमे जरूरत ही नही पड़ती।
आज़ादी के बाद यही समझौता आरक्षण, स्कालरशिप जैसी सुविधाओं
के रूप में संविधान में शामिल हुआ। तो अब बताई ये आरक्षण लेकर आरक्षित वर्ग एहसान
कर रहे है या देकर आप ?
और हॉं यह भी बताना जरूरी है की कुछ अशिक्षित लोग ये तर्क देते है की आरक्षण केवल
10 वर्षो के लिए लागू है इसे बढाया जाना गलत है तो मै यह जानकारी दे दू की राजनीति में लागू आरक्षण के बारे में से कानून है न की सरकारी नौकरी
में।
और हॉं वास्तविक आरक्षण के जनक ‘मनु’ की मूर्ति जो रास्थान हाईकोर्ट के परिसर में लगाई गई है उससे तो आपको कोई
आपत्ती नही है न। वह आरक्षण जो 2200 साल से लागू है उसमें तो आपको कोई संशोधन की जरूरत नही महसूस नही होती है न ?
बेहतर होता श्री गुलाब कोठारी राजस्थान
की जरूरी समस्या जैसे खाप पंचायत, कन्या वध प्रथा पर लिखते। वे इस पर भी लिखते की राजस्थान में महिला पुरूष के अनुपात का अंतर क्यो है? क्यो राजस्थान की
गिनती पिछड़े राज्यो में होती है ? लेकिन दुर्भाग्य
है कि उन्हे ये कोई समस्या नही दिखती। लेकिन सौभाग्य उनका है जिन्होने उनके इस
लेख से एक जुट होने और संघर्ष करने की प्रेरणा मिल रही है।