The Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens (Amendment) Bill, 2019

वर्तमान में एकल परिवारों एवं संयुक्त परिवार दोनो में वरिष्ठ नागरिकों के प्रति उपेक्षा बढ़ी है। वरिष्ठ नागरिकों की अवहेलना उनके प्रति अपराध, उनके शोषण तथा परित्याग आदि के मामले में बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो 2018 में जारी रिपोर्ट के अनुसार वरिष्ठ नागरिकों के प्रति अपराध में 13.7% की वृद्धि हुई है। इसमें ज्यादातर अपराध उनके अपने करते हैं। संजीव खुदशाह से जानिए क्‍या है वरिष्‍ठ नागरिकों के अधिकार। क्या इस कानून के आने के बाद वृद्धाश्रम की संख्या में कमी आएगी। देखिए यह महत्वपूर्ण वीडियो।


DMAindiaOnline| Episode No159 Personality of The Week Advocat Clifton D'Rozario Karnataka High Court

इस रविवार पर्सनैलिटी ऑफ़ द वीक की खास कड़ी में संजीव खुदशाह बातचीत कर रहे हैं कर्नाटक का हाई कोर्ट के जाने-माने ह्यूमन राइट एडवोकेट क्लिफटन से। वह बता रहे हैं कि ह्यूमन राइट और काम करने वाले वकीलों को बहुत आर्थिक समस्या में जीना पड़ता है। 80% वकील 10 से 15 हजार महीना में गुजारा करने के लिए मजबूर हैं। देखिए उनसे महत्वपूर्ण बातचीत।

आवाज की दुनिया के बादशाह रहे हैं अमीन सयानी

 

बिनाका गीत माला के अमीन सयानी

संजीव खुदशाह 

आवाज की दुनिया के बादशाह रहे हैं अमिन सयानी। हीरो हीरोइन गायक कलाकारों के पीछे तो हमेशा लोग पागल रहे हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ जब किसी एनाउंसर के पीछे लोग इस तरह दीवाने थे। इनका क्रेज किसी सुपरस्टार से कम कभी नहीं रहा।  वे भारतीय उपमहाद्वीप के अनाउंसरों के आदर्श रहे हैं। और लगभग हर दूसरा एनाआंसर उनकी तरह बोलना चाहता है। 50, 60 और 70 के दशक में पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में यह माहौल था कि हर बुधवार को रात 8:00 बजे गलियां और सड़के सुनसान हो जाया करती थी। लोग ट्रांजिस्टर, रेडियो से चिपक जाते । आधे घंटे का यह प्रोग्राम लोगों को बहुत आकर्षित करता था। खास तौर पर अमीन सयानी की डायलॉग डिलीवरी का जो अंदाज था वह काबिले तारीफ था। वो न ही कठिन हिंदी में था न ही कठिन उर्दू में खालीस हिंदुस्तानी भाषा में बोलचाल की तर्ज में वे अपनी बात को कहते थे और यही बात लोगों को पसंद आती थी। बिनाका गीत माला एक काउंटडाउन सो था जिसमें फिल्मी गीतों की लोकप्रियता के आधार पर प्रति सप्ताह करीब 16 गीत सुनाए जाते थे। आधे घंटे की इस शो में गीत पूरे नहीं बजते थे। लेकिन लोगों को यह जानने की उत्सुकता रहती की कौन सा गीत किस गीत के आगे है या पीछे है। सरताज गीत कौन सा है ? कौन सा गीत किस पायदान में है  ?  इसी प्रकार साल भर के सरताज गीत दिसंबंर के आखरी बुधवार को बजते जिसमें एक गीत सभी गीतो का सरताज बनता।

अमित सयानी बताते हैं कि जब उन्होंने बतौर एनाउंसर अपनी करियर की शुरुआत करनी चाही तो ऑल इंडिया रेडियो ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया और यह कहा कि योर वॉइस इस नॉट सूटेबल फॉर अस।

एक उद्घोषक के रूप में अमीन सयानी कुछ कार्यक्रम किया करते थे इसी बीच वह 1952 में रेडियो सीलोन (उस वक्त श्रीलंका को सीलोन कहा जाता था) से प्रसारित होने वाले एक काउंटडाउन रेडियो शो के लिए उन्हें अनुबंधित किया गया।
टूथपेस्ट बनाने वाली कंपनी बिनाका ने इस कार्यक्रम को प्रायोजित किया था जिसमें उन्‍हे हिन्‍दी फिल्‍मों के लोकप्रीय गीतो को बजाना पड़ता। कुछ फेरबदल के साथ यह कार्यक्रम करीब 42 साल तक निर्बाध रूप से चलता रहा। 1989 से बीनाका गीत मला विविध भारती से प्रसारित होने लगा जो की 1994 तक चला। लेकिन उनका क्रेज आज की पीढ़ी में अब भी है।

 आवाज की दुनिया के तीन लोगो ने मुझे बेहद प्रभावित किया है। अमिताभ बच्चन, के के नायकर और अमीन सयानी। अमीन सयानी की बात करने की शैली कुछ ऐसी थी कि लोगों को लगता था कि वह उनके साथ वार्तालाप कर रहे हैं । जिन बातों को वह रेडियो प्रोग्राम में बताते थे तो लोगों को ऐसा लगता था कि जैसे वह कोई जीवंत तस्वीर या पिक्चर देख रहे हैं। यही कारण है कि 50 साल तक अमीन सयानी के पीछे लोग पागल से रहे हैं। बिनाका गीत माला खत्म होने के बाद उन्होंने गीतमाला की परछाई नाम से ऑडियो सीरीज सीडी के रूप में प्रकाशित किया। जिसमें उन्होंने गीतमाला की अपनी यादों को, अनुभवों को साझा किया। जो की बेहद प्रसिद्ध हुई , यह 30 भागों में थी।

हर गायक कलाकार अभिनेताओं की यह चाहत होती कि उनके गीत बिनाका गीत माला में बजे। बिनाका गीत माला में गीत बजने का मतलब होता था की फिल्म सुपरहिट होना तय है । अमीन सयानी इस कार्यक्रम में न केवल गीतों को सुनाते थे बल्कि उस गीत की पृष्ठभूमि के बारे में भी बताते थे । जो की बहुत रोचक हुआ करता था। लगभग उन्होंने तमाम फिल्मी हस्तियों से अपने इस काउंटडाउन शो बिनाका गीत माला में बातचीत की और उसका एक आर्काइव भी अपने पास रखा। जिसे उन्होंने गीतमाला की छांव में के अपने एपिसोड में प्रसारित किया। उन्होंने कुछ फिल्मों में भी बतौर एनाउंसर अभिनय किया जैसे भूत बंगला, तीन देवियां, बॉक्‍सर और कत्‍ल।

पिछले कुछ दिनों से वे काफी बीमार चल रहे थे। लेकिन सक्रियता उनकी आखिरी दिनों तक बनी रही । आज के तमाम रेडियो जॉकी के वे आईकान थे। आज वे हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी आवाज आज भी जैसे कि हमारे कानों में गूंज रही है। जिन्होंने उनका प्रोग्राम रेडियो पर सुना है वह कभी उन्हें भूल नहीं सकेंगे। उनकी यादें हमेशा उनके जहन में बनी रहेगी ।

Sant Ravidas's thoughts are relevant even today

 मन चंगा तो कठौती में गंगा- संत कवि रविदास

संजीव खुदशाह

भारतीय समाज मे संत रविदास का स्थान विशेष है वे भक्ति काल के कवि होने के बावजूद उनके पदो में प्रगतिशीलता और समता छाप स्‍पष्ट झलकती है। उनके जन्म स्थान दिनांक उम्र आदि के बारे विद्वानों में

विरोधा भाष रहा है। किंतु ज्यादातर विद्वान मानते है कि सन 1398 ईसा में उनका जन्म हुआ था तथा उनके दोहे से ज्ञात होता है कि वे एक दलित समुदाय से ताल्लुक रखते है।

जाति भी ओछी, करम भी ओछा, ओछा कसब हमारा।

नीच से प्रभु ऊंच कियो है, कह रविरास चमारा।।

-- रैदास जी की बानी

वे एक मुख्यु धारा के संत कवि थे जिनका सीधा समाज से सरोकार था किंतु साहित्यिक मठाधीश उन्हे  निर्गुण धारा के कवियों में वर्गीकृत करते है। शायद इसलिये की वे समकालीन कवियों रसखान, सूरदास, तुलसीदास की भांती सिर्फ भक्ति में ही डूबकर रचनाएं नही करते थे। वे कबीर की तरह समाज की रूढि़यों पर भी चोट करते रहे। वे संत कवि होने के बावजूद समाज को मार्गदर्शन देने का काम करते रहे। ऐसा कहा जाता है कि संत रविदास बनारस के निवासी थे लेकिन जीते जी उनकी ख्याति‍ पूरे भारत में थी। उनके शिष्‍य और अनुयायी पूरे भारत में मिलते है चाहे पंजाब हो, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश या दक्षिण में महाराष्ट्र  और आंध्रप्रदेश । ऐतिहासिक ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि संत रविदास के जीवन काल के दौरान 

देश में सिकंदर लोधी का शासन था एवं भारत में ऊंच-नीच, धार्मिक पाखण्ड का बोल-बाला था। वे तीक्ष्ण बुध्दि के थे उनकी गजब की तर्क शक्ति थी। उनके जीवन की कुछ घटनाओं, किवदंतियों को पढ़कर ज्ञात होता है कि वे अपनी वाकपटुता और बुध्दि से विरोधियों को लाजवाब कर देते थे।

एक समय ऐसा था जब संत बनने के लिए किसी को गुरू बनाना जरूरी था। चित्तौड़ की रानी मीरा को तत्कालीन संतो ने शिष्या बनाने से इनकार कर दिया क्योकि वे एक स्त्री  थी। वह भी राज परिवार की़। धार्मिक परंपरा के अ़नुसाऱ ये उचित नही माना जाता था। लेकिन संत रविदास ने इस रूढ़ी को तोड़ते हुए मीरा के अनुनय विनय  को स्वीकार करते हुये अपनी शिष्‍या बनाया। मीरा के पदों में रैयदास का जिक्र कई स्थानों में मिलता है। रविदास की रचनाएं- नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिर्पोट के अनुसार उनकी रचनाएं विभिन्न हस्तालिखित ग्रन्थों के रूप मे मिली है ---1. रैदास की बानी, 2. रैदास जी की साखी, 3.रैदास के पद, 4.प्रहलाद लीला। ग़ौरतलब है कि सिक्खो के पवित्र धर्म ग्रन्थ ‘’गुरूग्रंथ साहेब’’ में संत रविदास के 40 पद संग्रहीत है।

रैदास की वाणी मानव भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का संतोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वत: उनके अनुयायी बन जाते थे।

संत रविदास जाति भेद, ऊंच-नीच, रंग-भेद, लिंग-भेद, पितृसत्ता को सारहीन एवं निरर्थक बताते थे। वे परस्पार मिलजुलकर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश देते थे।

वर्णाश्राम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।

सन्देशह-ग्रन्थि खण्ड न-निपन, बानि विमुल रैदास की।।

 इस पद में वे कहते है की मनुष्य मनुष्य‍ से तब तक नही जुड पायेगा जब तक की जाति रहेगी।

 जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।

रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

 वे हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करते थे जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है

रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।

तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।

 हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।

दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।

 

उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से समय तथा वचन के पालन सम्बन्धी उनके गुणों का पता चलता है। एक बार एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का मैंने वचन दे रखा है। यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होगा। गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा ? मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है। मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है।  इस प्रकार उनके मुख से प्रसिध्द  दोहे का जन्म् हुआ ।

- मन चंगा तो कठौती* में गंगा।

*कठौती- चमड़ा साफ करने का बर्तन।

आज भी प्रासंगिक है संत रविदास के विचार Publish on Navbharat 30 Jan 2018

Saint Valentine's Day giving the message of love

 

प्रेम का संदेश देता संत वैलेंटाइन दिवस

संजीव खुदशाह

सदियों से प्रेम और उसकी भावनाओं को धर्म और संस्कृति के ठेकेदारों ने अपनी पैरो की जूती समझा है तथा प्रेम के दीवानों पर सैंकड़ो सितम ढाये है। बावजूद इसके प्रेम के नाम पर अपने आपको न्‍यौछावर कर देने वाले संत वेलेन्‍टाईन के बलिदान दिवस को पूरी दुनिया बडी सिदृत मुहब्बत का त्यौहार मनाती है। आज विश्व की युवा पीढी और हर वह व्यक्ति जो अपने जीवन साथी को प्यार करता हैअपने प्रेम के इजहार के लिए 14 फरवरी के इस मुकदृदस दिन का बडी बेसब्री से इंतजार करता है।

वेलेन्टाइन डे क्यों मनाया जाता है 

इसके पीछे कई मान्यताएं है। सर्वस्वीकृत मत और तथ्य  ये

Valentine day
है की रोम के दुष्‍ट दुराचारी सम्राट क्लॉ्डियस ने अपनी सैन्य शक्ति बढाने के उद्देश्य से अपनी प्रजा के बीच यह भ्रम फैला रखा था की पुरूषों को विवाह नही करना चाहिए इससे उनकी बुध्दि और शक्ति में कमी आती है। उसने इसके लिए बकायदा कानून बनाये और जनता के बीच कडाई से लागू किया, सैनिक और राज्य के अधिकारियों को भी विवाह करने में पाबंदी लगाई गई। ऐसा कहा जाता है कि‍ संत वेलेन्टाईन सम्राट के इस कानून का विरोध करते और युवक युवतियों को मुहब्बत करने के लिए प्रेरित करते उनकी शादियाँ करवाते थे।  जब क्लोडिअस को इस बारे में पता चलाउसने वेलेंटाइन को गिरफ्तार करवाकर जेल में भेज दिया। जिस जेल में पादरी वेलेन्टाईन बंद थे वहां के जेलर की पुत्री का उन्होने उपचार किया था जिससे उन्हे  प्यार हो गया । रोम के सम्राट क्लॉ्डियस द्वारा संत वेलेन्टाईन की 14 फरवरी 269 इसवी को हत्या  करवा दी गई। मारे जाने से एक शाम पहलेउन्होंने पहला "वेलेंटाइन" स्वयं लिखाउस युवती के नाम जिसे वे बेहद प्यार करते थे। ये एक पत्र था जिसमें लिखा हुआ था "तुम्हारे वेलेंटाइन के द्वारा"।

ऐसी मान्यता है की प्रारंभ में रोम के निवासी इस दिन घरों में साफ सफाई किया करत थे और एक दूसरों को प्रेम का संदेश देते थे। यह संदेश हस्त लिखित होता था। बाद में यह दिवस प्रेम के आईकन के रूप में सर्व स्वीकृत होता गया। 1797 ईस्वी ब्रिटेन में पहले पहल छपे हुये संदेश भेजने की परंपरा शुरू हुई बाद में ग्रि‍टिंग (चित्रकारी के साथके रूप में प्रेम के संदेश को प्रेषित किया जाने लगा। वह हस्‍तलिखित पत्र आज इलेक्‍ट्रानिक कार्ड का रूप ले चुका है। बडी बडी कम्पनियाँ इस मौके पर तैयारी करती है और युवाओं को लुभाने का प्रयास करती है। अब होटलबाजारबाग बगीचे सजा ये जाते हैगिफ्ट आईटमों में छूट की पेशकश की जाती है। पूरा बाज़ार मानो सज धज कर तैयार हो जाता है।

विवाह दिवस के रूप में मनाया जाना:- वैसे प्रेम और प्रेम विवाह किसी मूहूर्त के मोहताज नही होते है। बहुत कम लोग जानते है कि इस दिन को विवाह दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। वेलेन्‍टाईन दिवस के दिन विवाह किये जाने का क्रेज जोरों पर है प्रेमी जोडे विवाह करने हेतु इस दिवस को चुनते है। इसलिए इसे विवाह दिवस के रूप में भी जाना जाने लगा है। 14 फरवरी को ऐसी कई हाई प्रोफाईल शादियाँ सुर्खियों में रहती है जो कुण्‍डली मिलानविवाह मुहूर्त के बिना सात फेरे लेकर अपनी शादी को यादगार बनाना चाहते है।

वेलेन्‍टाईन को लेकर विवाद:- आज से 1700 सौ साल पहले जिस प्रकार नफरत का जहर फैलाने वाले कट्टरवादी और तानाशाही विचारधारा के लोग प्रेम के परवानो पर कहर ढाते थे। आज भी उस क्लॉ्डियस की संताने इन प्रेमियों पर जुल्‍म ढाने से बाज नही आजे है। लेकिन उनका तरिका बदल गया है। भारत में कुछ कट्टरपंथियों के द्वारा इस दिवस का विरोध किया जाता है। वे इस दिवस को मनाने से मना करने के कई हास्‍यास्‍पद तर्क देते है जैसे इस प्रेम (वेलेन्‍टाईनदिवस को मनाने से भारतीय संस्‍कृति नष्‍ट हो जायेगीयह विदेशी संस्‍कृति का हमला हैप्रेम करना गलत है आदि आदि। कुछ लोग इस दिवस का भारत में प्रभाव खत्‍म करने की गरज से बजुर्ग दिवस, हिन्‍दू संस्‍कृति विकृत दिवस, पूजन दिवसमातृ-पितृ दिवस मनाने तक की घोषणा करते है। वे अपने आप को भारतीय संस्‍कृति का ठेकेदार समझते है। उनकी नजर में भारतीय संस्‍कृति इतनी कमजोर है की वेलेन्‍टाईन दिवस मनाने से नष्‍ट हो जायेगी, न की और मजबूत होकर फलेगी फूलेगी।

वेलेन्‍टाईन डे के विरोध का वास्‍तविक मकसद क्‍या है यदि गौर से देखे तो जो कट्टरपंथी लोग इस दिवस का विरोध करते हैउनका संस्‍कृति और धर्म से कोई लेना देना नही है वे जानते है कि उन्‍हे लोगो का समर्थन नही है वे इस तथ्‍य से तिल मिला जाते है और किसी न किसी प्रकार से चर्चा में बने रहना चा‍हते हैशायद ये एक सबसे आसान रास्‍ता है मी‍डिया में बने रहने का। दूसरा मकसद यह है कि वह क्‍लोडियस की तरह जनता की आँखो में घूल झोक करनफरत और घृणा का बीज बो कर लंबे समय तक सत्‍ता में काबि‍ज रहना चाहते हो। लेकिन सुखद है कि भारत का युवा इन सब से दूर प्रेम के इस दिवस को बडे ही तहजीब से मनाता आ रहा है। सात समुन्‍दर पार से आये इस प्रेम के त्‍योहार को यहां के युवा ही नही बुजुर्ग भी बडे शान से मनाते है। भारत में जातिधर्मऊंच-नीच के भेद को मिटा कर वास्‍तव में वासुदेव कुटुम्‍बकम का आगाज करने की पहल की जा चुकी है। यही बात इन नफरत के झंण्‍डाबरदारों को खटकती है। बडी ही दुख की बात है जब हमारे देश की दीवाली अमेरिका के वाइट हाउस में मनाई जाती है  तो हम गौरांवित होते है और जब पश्चिमी देशेा का कोई त्‍योहार हमारे देश में मनाया जाता है तो हम हाय तौबा मचाते है। हमें इस दोगली नीति से बचना होगा। हमारे संविधान में लिखा है कि भारत एक स्वतंत्र और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यहाँ सबको अपनी तरह जीवन जीने अधिकार है। यह अधिकार छीनने का हक किसी को भी नही है स्‍वयं माता पिता को भी नही।

Publish on 8/2/2015 Nav Bharat

What is New in भारतीय न्याय संहिता know About Tree new Act Bhartiya sakshya sanhita DMAindia online

जैसा कि आपको मालूम है अंग्रेजों के बनाए दो सौ साल पुराने कानून को भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने बदल दिया है। और भारतीय न्याय संहिता समेत तीन नए कानून पास किए गए हैं। यह कानून कैसे आपकी जिंदगी को प्रभावित करते हैं। इन कानून में क्या है विशेष बात? आईपीसी, सीआरपीसी, एविडेंस एक्ट अब पुराने जमाने की बात हो जाएगी! देखिए इस महत्वपूर्ण वीडियो में।