SC ST youths will perform naked in front of CG Vidhansab

कल विधानसभा के सामने होगा SCST युवाओं का नग्न प्रदर्शन  
                
 फर्जी जाति मामले में कार्यवाही की मांग को लेकर अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के युवा करेंगे पूर्ण नग्न (निर्वस्त्र) प्रदर्शन छत्तीसगढ़ विधानसभा के सामने 18 जुलाई को प्रदेशभर के 100 से अधिक युवा करेंगे प्रदर्शन



छत्तीसगढ़ में इन दिनों फर्जी जाति का मामला गर्माया हुआ है। बता दे, छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से राज्य के विभिन्न विभागों को शिकायते मिली थी कि, गैर आरक्षित वर्ग के लोग आरक्षित वर्ग के कोटे का शासकिय नौकरियों एवं राजनैतिक क्षेत्रों में लाभ उठा रहे है। इस मामले की गम्भीरता देखते हुए राज्य सरकार नें उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति गठित की थी जिसके रिर्पोट के आधार पर समान्य प्रशासन विभाग ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी कर रहे अधिकारी कर्मचारियों को महत्वपूर्ण पदों से तत्काल हटा उन्हे बर्खास्त करने के आदेश जारी कर दिए। 

आदेश खानापूर्ति ही साबित हुए सरकारी आदेश कों पालन में नहीं लाया गया और फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी करने वाले कुछ सेवानिवृत हो गए तो कुछ ने जांच समिति के रिर्पोट कों न्यायलय में चुनौती दी, लेकिन सामान्य प्रशासन की ओर से जारी फर्जी प्रमाण पत्र धारकों की लिस्ट में ऐसे अधिकांश लोग है जो सरकारी फरमान के पालन नहीं होने का मौज काट रहे और प्रमोशन लेकर मलाईदार पदों में सेवाए दे रहे है। इसे लेकर अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के युवाओं ने मोर्चा खोल दिया और बिते पिछले दिनों वे आमरण अनशन पर बैठ गए, प्रदर्शन के दौरान आंदोलनकारी के तबियत बिगड़ गई लेकिन सरकार और प्रशासन का रवैया उदासिन रहा जिसके बाद आंदोलनकारी आमरण अनशन कों स्थगित कर आगामी होने वाले मानसून विधानसभा सत्र में निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन करने जा रहे है। 

सरकार की गठित समिति ने पाये 267 प्रकरण फर्जी

छत्तीसगढ़ सरकार ने मामले को गम्भीरता से लेते हुए फर्जी जाति प्रमाण पत्र के शिकायतों की जांच करने उच्च स्तरीय जाति छानबींन समिति का गठन किया। समिति को वर्ष 2000 से लेकर 2020 तक के कुल 758 प्रकरण मिले जिसमें से 659 प्रकरणों में जांच की गई इसमें 267 प्रकरणों में जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाये गए।

गैर आरक्षित होकर कोटे से बने IAS से लेकर चपरासी

छत्तीसगढ़ के लगभग सभी सरकारी विभागो में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के प्रकरण पाये गए है। इसमें सबसे अधिक खेल एवं युवा कल्याण विभाग में 44 मामले है वहीं भिलाई स्पात संयंत्र में 18 तथा सामान्य प्रशासन विभाग एवं कृषि विभाग में 14-14 प्रकरण है। इस तरह प्रत्येक विभाग में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले है। जिसकी जांच पूरी होने एवं कार्यवाही के सरकारी आदेश के बाद भी कोई एक्शन नहीं लिया गया है।

कौन और क्यों कर रहें निर्वस्त्र प्रदर्शन

दरसअल फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले में छत्तीसगढ़ सरकार के कार्यवाही से खुश रहने वाले अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के युवा अब सरकार से नाराज है, मसलन जिस फर्जी जाति प्रकरणों की जाचं सरकार ने करवाई उसमें पाये गए दोषियों के खिलाफ सरकारी फरमान के बावजूद तीन वर्ष बाद भी कार्यवाही नहीं की गई वहीं फर्जी जाति प्रमाण पत्र धारकों को महत्वपूर्ण पदों में व प्रमोशन दिया जा रहा है।

इससे अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के युवा आंदोलित हो गए है, आंदोलन के नेतृत्वकर्ता विनय कौशल ने बताया उन्होंने इससे पूर्व जिम्मेदार अधिकारियों से बात की थी, उन्होने उपर से दबाव होने की बात कही, हमने कार्यवाही न करने पर आंदोनल की चेतावनी दी और हमने 16 मई कों आमरण अनशन किया था, 10 दिनों तक भूखे रहकर आंदोलन किया हमारे आंदोलनकारी युवा साथी एक-एक कर गम्भिर हालातो में अस्पताल भर्ती कराये गए लेकिन सरकार और प्रशासन की ओर से इस मामले में उदासिन रवैया रहा, हमने आमरण अंनशन कों स्थगित कर दिया लेकिन हम अपने हक और अधिकार के लि किसी भी हद तक जा सकते है हम अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं कर सकते इसलिए हम अपनी इज्जत खोकर पूर्ण रूप से निर्वस्त्र होकर सरकार कों नींद से जगाने का काम करंेगे।

100 से अधिक युवा 18 कों करेंगे नग्न प्रदर्शन

विधानसभा के सामने आरोपियों को सरकारी संरक्षण देने के विरूद्ध तथा आरोपियों पर कठोर कार्यवाही की मांग को लेकर प्रदेशभर के अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के 100 से अधिक युवा पूर्ण रूप से नग्न होकर आगामी मानसून विधानसभा सत्र के दौरान 18 जुलाई कों विधानसभा के सामने करेंगे प्रदर्शन।
                                                                                                                                                
विनय कौशल 
 अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग फर्जी 
जाति प्रमाण पत्र मामला संघर्ष समिति 
 9131214924

आखिर ब्राह्मण बेलगाम क्यों हो रहा है? After all, why is the Brahmin being unrestrained?

 

आखिर ब्राह्मण बेलगाम क्यों हो रहा है?

संजीव खुदशाह

पिछले दिनों यह खबर चर्चा में रही की हवाई जहाज में शंकर मिश्रा नामक व्यक्ति ने एक 70 वर्षीय महिला के ऊपर पेशाब किया। यह मामला ठंडा ही नहीं होता उसके बाद फिर एक वीडियो वायरल होता है जिसमें सीमा द्विवेदी द्वारा छत्‍तीसगढ़ के आदिवासी हॉस्टल में बच्चों को बेरहमी से मारते पीटते नजर आती है। इसके बाद हाल ही में मध्‍यप्रदेश के सीधी में प्रवेश शुक्ला द्वारा एक आदिवासी युवक के ऊपर पेशाब करते हुए मामला वायरल होता है। इसके पहले उत्‍तर प्रदेश लखीमपुर खीरी में आशीष मिश्रा द्वारा  ओबीसी किसानों पर कार चलाने का वीडियो वायरल हो चुका है। यह लिस्ट लंबी है। बहुत सारी ऐसी घटनाएं लगातार घट रही है। जिसमें ब्राह्मण समाज का व्यक्ति बेलगाम होकर आपराधिक कृत्य कर रहा है मानो कि उसे किसी बात का डर ही नहीं है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है इस मुद्दे पर चर्चा जरूरी है।


ऐसी घटनाओं के पीछे सिर्फ दो कारण हो सकते हैं पहला तो यह कि वह समाज उद्दंड है पूरी तरह से भ्रष्ट है अथवा दूसरा कारण यह कि समुदाय को यह लगता है कि उसके अपराध करने के बावजूद उसका अपराध क्षमा कर दिया जाएगा। या उसे बचा लिया जायेगा। उसके जातीय श्रेष्ठता में कोई कमी नहीं आएगी। तब ही व्यक्ति इस प्रकार के कृत्‍य करता है।

इस प्रकार की आपराधिक घटनाएं यहां तक नहीं रुकती है। शंकर मिश्रा मामले में ब्राह्मण समाज ने बकायदा उनका सपोर्ट किया और कहा कि वह नशे में था। ठीक इसी प्रकार प्रवेश शुक्ला के मामले में भी अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा ने बकायदा सपोर्ट करने का एक लेटर जारी किया और प्रवेश शुक्ला के परिवार को 51 हजार रुपए की राशि भी दी। तथा ब्राह्मण समाज को उनके अकाउंट में रुपए जमा करने हेतु आवाहन भी किया।

यदि हिंदूवादी दृष्टिकोण से देखें तो ब्राह्मण और आदिवासी समाज दोनों हिंदू है। इस प्रकार ब्राह्मण महासभा को चाहिए था कि वह आदिवासी समाज को मदद करते । पूरे ब्राह्मण समाज की ओर से पूरे आदिवासी समाज से क्षमा मांगते। लेकिन हुआ इससे उल्टा। देखा जा रहा है कि लगातार ब्राह्मण समाज इस प्रकार के कृत्य में आंख मूंदकर ब्राह्मण आरोपियों का पक्ष लेता रहा है। जैसे कि मानो हिंदू राष्ट्र नहीं ब्राह्मण राष्ट्र का निर्माण होने वाला हो।

ऐसा नहीं है की सभी ब्राम्हण इस प्रकार के विचारधारा वाले हैं। खुद प्रवेश शुक्ला के वीडियो को वायरल करने में बड़ा योगदान सोशल मीडिया में ब्राह्मणों का रहा है। लेकिन इनकी संख्या उंगलियों में गिनने लायक है।

ब्राह्मण समाज में अपने आप को धार्मिक ग्रंथों में गरीब लाचार और विनम्र बताने की कोशिश की है। गरीब ब्राह्मण होने का बड़ा प्रोपेगेंडा किया। लेकिन आपको कहीं भी कोई ब्राह्मण गरीबी के कारण रिक्शा चलाते हुए या फिर नाली साफ करते हुए नहीं मिलेगा।

वर्तमान में ब्राह्मणों की स्थिति

आजादी के बाद ब्राह्मणों ने अपनी स्थिति को बेहद मजबूत बनाया है। जनसंख्या के मुताबिक पूरे देश में ब्राह्मणों की जनसंख्या दो या तीन परसेंट है। लेकिन वे शासन-प्रशासन राजनीति और साहित्य में 90% स्थानों पर कब्जा जमाए हुए। यह कब्‍जा उन्होंने ऐसे ही नहीं प्राप्त किया। उन्होंने बकायदा आरक्षण का डर दिखाकर क्षत्रिय और बनिया को वहां से बेदखल करके अपना कब्जा जमाया है। और यह प्रोपेगेंडा किया गया कि आरक्षण के कारण लोगों को मौका नहीं मिल पा रहा है।

जाने-माने सामाजिक चिंतक प्रोफेसर दिलीप मंडल अपने फेसबुक पेज में लिखते हैं कि

"1947 के उत्तर भारत के किसी भी सूबे की राजधानी के दफ्तरों के अफसरों की लिस्ट देख लीजिए. सीधा हिसाब मिलेगा. बड़े पदों पर मुख्य रूप में अंग्रेज. बाकी पदों पर ब्राह्मण, मुसलमान और कायस्थ लगभग बराबर और थोड़े से ठाकुर-वैश्य.  

ओबीसी और दलित या आदिवासी एक भी नहीं. दिल्ली के सरकारी दफ्तरों की शक्ल यही थी.

1947 के बाद अंग्रेज अफसर पूरी तरह चले गए और मुसलमान अफसरों का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान शिफ्ट कर गया.

इनसे खाली हुई जगह किसने भरी?

इसके लिए आपको 1950 के बाद के अफसरों की लिस्ट देखनी होगी. राष्ट्र को कौन चलाएंगे और राष्ट्र पर दबदबा किनका होगा, ये इसी समय तय हुआ है.

आजादी के बाद उच्च स्तरीय नौकरशाही में कायस्थ कम होते चले गए. सबसे बड़ा घाटा उनका हुआ. मुसलमान अफसरों की संख्या काफी कम हो गई.

यानी अंग्रेज गए, कायस्थ घटे और मुसलमान कम हो गए.

ये सारी खाली जगह किसने भरी?

समझ में नहीं आ रहा है तो भारत सरकार और राज्य सरकारों के सेक्रेटरी, एडिशनल सेक्रेटरी, डीजीपी, बैंकों और पीएसयू के चेयरमैन, एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर्स, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज, विदेशों में भारत के राजदूत इनकी लिस्ट देख लीजिए.

लेकिन वर्चस्व के इस दौर में भारत लगातार पिछड़ता चला गया. मानव विकास के इंडेक्स में भारत आज दुनिया का 130वें नंबर का देश है."

 

इसी प्रकार नवभारत टाइम्स 1 जुलाई 1990 में प्रकाशित 1935 से 90 तक नौकरियों में जाति आधारित प्रतिनिधित्व में कहा गया है कि 1935 में सबसे ज्यादा संख्या में कायस्थ नौकरियों में थे 40%, अंग्रेज 15%, मुसलमान 35%, ब्राह्मण 3%, अन्य ठाकुर बनिया 7%, नौकरियों में थे। आजादी के 60 साल बाद 1990 में स्थिति इसके उलट हो गई कायस्थ 2% हो गया, अंग्रेज चुकी ब्रिटेन चले गए तो उनका प्रतिशत 0% हो गया मुसलमान ज्यादातर पाकिस्तान चले गए इसलिए उनका प्रतिशत 1% हो गया। लेकिन ब्राह्मणों का प्रतिशत अप्रत्याशित रूप से बढ़ा वे 75% स्थान पर काबिज हो गए। इस प्रकार आप देख सकते हैं कि आजादी के बाद ब्राह्मणों ने खासतौर पर कायस्थ, ठाकुर, बनिया का प्रतिनिधित्व को कब्जा कर लिया और इसके लिए यह प्रोपेगेण्‍डा किया कि एससी एसटी ओबीसी के आरक्षण के कारण सवर्णों को नौकरी नहीं मिल पा रही है। हालांकि प्रस्तुत तालिका में दावा किया गया है कि यह नवभारत टाइम्स में प्रकाशित है लेकिन इसकी पुष्टि लेखक नहीं करता है।

1935 से 90 तक नौकरियों में जाति आधारित प्रतिनिधित्व


तो हम बातचीत कर रहे थे कि ब्राह्मण बेलगाम क्यों होता जा रहा है। ऊपर के तर्को और दिए गए तथ्यों से स्पष्ट हो रहा है कि आजादी के बाद ब्राह्मणों ने बहुत बड़ी संख्या में लोकतंत्र के चारों स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया पर 90% कब्जा जमाए रखा है। इस कारण इनके मामले या तो मीडिया में नहीं आते हैं। आते हैं तो उन्हें दबा दिया जाता। अगर सोशल मीडिया में आ भी गए तो कार्यपालिका, न्यायपालिका में उपस्थित उनके सगे संबंधी उन्हें हर हाल में बचा ले जाते हैं। प्रत्येक ब्राह्मणों को यह लगता है कि उन्हें बचा लिया जाएगा यह विश्वास उनके अंदर घर बना चुका है। भाजापा की सरकार में यह विश्‍वास और मजबूत हुआ है।  यही कारण है की ब्राह्मणों की इस प्रकार की अपराधिक प्रवृत्ति की संख्या लगातार बढ़ी है।

राजनीतिक खामियाजा किसको होगा?

ब्राह्मणों की इस हरकत का राजनीतिक खामियाजा निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ेगा। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने सबसे ज्यादा ब्राह्मण समाज को प्रमोट किया है और सबसे ज्यादा मंत्री पद न्यायपालिका में और मीडिया में ब्राह्मण समाज के व्यक्तियों को बैठाया गया है। क्योंकि भाजपा कि मातृ संगठन आर एस एस एक ब्राह्मण वादी संगठन है। भले ही भाजपा के मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री ओबीसी हैं लेकिन वह ब्राह्मणों के हितो को सर्वोपरि रखकर ही अपने सारे काम निपटाते हैं। इस कारण ब्राह्मणों को लगता है कि वह सचमुच इस धरती के देवता हैं और वह कुछ भी कर सकते हैं।  किसी के ऊपर भी मूत सकते हैं।

इसके कारण भारतीय जनता पार्टी की हिंदूवादी छवि को नुकसान पहुंचता है। आदिवासी और ओबीसी तथा दलित हिंदू इन सब घटनाओं से सीखता है। समझता है। कि क्या हिंदू राष्ट्र उनके लिए बन रहा है या सिर्फ ब्राह्मणों के लिए। निश्चित तौर पर इसका खामियाजा भविष्य में भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ेगा।



मुख्य आपत्ती क्या है?

ब्राह्मणों द्वारा जिस प्रकार से अपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है
यह एक कॉमन बात है। हर जाति में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग होते हैं। लेकिन उससे ज्यादा आपत्तिजनक बात यह है की कोई भी जाति का संगठन अपराधियों के पीछे आकर सपोर्ट में खड़ा नहीं होता है। जबकि ब्राह्मण अपराधियों के मामले में ब्राह्मण समाज के संगठन अपराधियों को सपोर्ट करने पर आमादा हो जाता है। यह घटना विचलित करने वाली है। इससे लोगों में यह संदेश जाता है की ब्राम्हण संगठन और ब्राम्‍हण अपराधियों से सांठगांठ है तथा ब्राह्मणों को हिंदुओं से कोई लेना-देना नहीं है। वह सिर्फ अपने जाति के बचाव के लिए ही विद्यमान है। जबकि ब्राम्‍हण समाज अपने आपको हिन्‍दूओं का रक्षक कहते नहीं थकता।



 

Right to Repair मरम्मत का अधिकार

मरम्मत का अधिकार
Right To Repair

संजीव खुदशाह

पिछले दिनों मरम्मत का अधिकार यानी राइट टू रिपेयर का वेबसाइट सेंट्रल गवर्नमेंट के द्वारा जारी किया गया। इस पर लेकर कंपनियों और उपभोक्ताओं के बीच अधिकारों को लेकर चर्चा जोरों पर है। दरअसल अब तक होता यह रहा है कि उपभोक्ता किसी यंत्रों की खरीदी के बाद अगर वह यंत्र बिगड़ जाए तो उसे सुधार करने में या सुधार करवाने में एड़ी चोटी एक करना पड़ता था। कंपनी ने एक नियम बना रखा है कि यदि आप अनाधिकृत सुधारक से सुधार करवाते हैं तो उसकी वारंटी खत्म हो जाएगी। कंपनी ऐसा करके उपभोक्ताओं के अधिकारों का हनन करती है और उपभोक्ता परेशान होते हैं। कंपनी के रिपेयर सेंटर कुछ खास बड़े शहरों में ही होते हैं। इसीलिए उन शहरों तक जाना,  रिपेयर हो जाने के बाद, फिर लेने जाना, इस प्रक्रिया में उपभोक्ता का बहुत पैसा बर्बाद हो जाता है। कंपनियां सुधार करने का मोटा चार्ज भी वसूल करती है। मजबूरन उसे नया प्रोडक्ट लेना पड़ता है।


इसी प्रकार कई कंपनियां उपभोक्ताओं को खराब हुए कलपुर्जे उपलब्ध नहीं कराती है। कलपुर्जे नहीं मिलने के कारण उपभोक्ताओं को परेशानी झेलनी पड़ती है और उनको अपना प्रोडक्ट औने पौने दामों में कबाड़ी को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

इससे कंपनी एवं दुकानदार दोनो मुनाफा कमाते हैं। आम जनता को नुकसान होता है। आम जनता की इसी परेशानी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस वेबसाइट को जारी किया है। जिस पर जाकर उपभोक्ता अपने प्रोडक्ट रिपेयर करा सकता है या उसके कलपुर्जे मंगवा सकता है।

https://righttorepairindia.gov.in/index.php

क्या है कानून?

इस प्रकार के कानून अमेरिका समेत विकसित देशों में पहले से लागू है और इसका कड़ाई से पालन किया जाता है। लेकिन भारत में इस प्रकार के कानून की मांग बहुत समय से होती रही है।

हमारे देश में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय (एमसीए) ने 'मरम्मत के अधिकार' ढांचे के साथ एक समिति गठित की है। 'राइट टू रिपेयर' से लोग इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल सहित कई उत्पादों को सस्ते दाम पर रिपेयर करवा सकते हैं। इससे उत्पादों की वारंटी प्रभावित नहीं होगी।

कानून प्रक्रियाधीन है लेकिन राइट टू रिपेयर नाम के वेबसाइट से सरकार ने आम जनता को जागरूक करने और अधिकार देने का काम शुरू कर दिया है।

अब तक क्या होता था?

इसे दो काल्पनिक घटनाओं से समझना जरूरी है

1. एक उपभोक्ता ने RO वाटर प्यूरीफायर मशीन खरीदा 1 साल के बाद उस मशीन में खराबी आ गई और कलपुर्जे नहीं मिलने के कारण उसे अपनी मशीन को कबाड़ी में बेचना पड़ा। अब कंपनियों की जिम्मेदारी होगी कि वह उपभोक्ताओं को जरूरी कलपुर्जे उपलब्ध कराएं।

2. एक उपभोक्ता का महंगा मोबाइल खराब हो गया, जिसे वह सुधरवाना चाहता है। कंपनी के सर्विस सेंटर ने बहुत महंगे दामों में मोबाइल सुधारने की पेशकश की। लेकिन स्थानीय दुकान में बहुत ही सस्ते में वह मोबाइल सुधर सकता था। कंपनियों ने ऐसे नियम बना रखे हैं कि यदि आप अधिकृत सर्विस सेंटर से रिपेयर नहीं करवाते हैं तो वारंटी खत्म हो जाएगी।

मरम्मत का अधिकार के अंतर्गत कंपनियों को क्या करना होगा?

1      कंपनियों को अपने प्रोडक्ट के साथ ऐसे यूजर मैन्युअल बनाने होंगे जिससे स्थानीय मैकेनिक उसे सुधार सकें।

2      अनधिकृत सर्विस सेंटर से रिपेयर कराने पर वारंटी खत्म होने की शर्त को हटाना होगा।

3      कंपनियां ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए प्रोडक्ट आउटडेटेड हो गया है कह कर उसके कलपुर्जे उपलब्ध नहीं कराती है। अब उन्हें यंत्रों के समस्त कलपुर्जे बाजार में उपलब्ध कराने होंगे।

4      अब कंपनियों को राइट टू रिपेयर वेबसाइट पर उपलब्ध होना पड़ेगा।

 

 मरम्मत के अधिकार के फायदे

1      अब उपभोक्ता अपने यंत्रों को मरम्मत करवा सकेंगे नया यंत्र खरीदने की मजबूरी नहीं होगी।

2      खराब यंत्रों के कबाड़ बन जाने (स्क्रैप) में कमी आएगी। इससे प्रदूषण भी कम होगा।

3      छोटे दुकानदारों और मैकेनिक को रोजगार मिलेगा।

4      यह उपकरणों के जीवन काल, रखरखाव, पुन: उपयोग, उन्नयन, पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करके चक्रीय अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों में योगदान देगा।

5      पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों को बल मिलेगा।

 

कौन-कौन से उत्पाद शामिल हैं?

राइट टू रिपेयर के तहत आप मोबाइल, टैबलेट, वायरलेस हेडफोन, ईयरबड्स, लैपटॉप, यूनिवर्सल चार्जिंग पोर्ट, यूनिवर्सल चार्जिंग केबल, बैटरी, सर्वर और डेटा स्टोरेज, प्रिंटर जैसे उपकरणों का लाभ उठा सकते हैं। इसके अलावा वाटर प्यूरिफायर, वाशिंग मशीन, रेफ्रिजरेटर, टेलीविजन, इंटीग्रेटेड/यूनिवर्सल रिमोट, डिशवॉशर, माइक्रोवेव, एयर कंडीशनर, गीजर, इलेक्ट्रिक केटल, इंडक्शन कुकटॉप, मिक्सर ग्राइंडर और इलेक्ट्रिक चिमनी, कार, बाइक, कृषि यंत्र जैसे उत्पाद भी शामिल हैं।

निश्चित रूप से सरकार के इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। क्योंकि इस तरह के कदम से जहां एक ओर आम जनता को फायदा मिलेगा, वही दूसरी ओर रोजगार भी बढ़ेगा, साथ ही साथ प्रदूषण को नियंत्रण करने में भी मदद मिलेगी। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है उपभोक्ताओं की जागरूकता। यह तभी हो पाएगा जब उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होंगे और अपने अधिकार को समझेंगे उस अधिकार को लेने के लिए आगे आयेंगे।

 Publish on Navbharat 15/5/2023

आजादी के 75 साल में स्त्रियों की भागीदारी पर सवाल

आजादी के 75 साल में स्त्रियों की भागीदारी पर सवाल




        अम्बेडकर जयंती के उपलक्ष्य में स्थानीय वृंदावन हाल, सिविल लाइंस, रायपुर (छत्तीसगढ़) में डीएमए इंडिया ऑनलाइन यूट्यूब चैनल की ओर से आयोजित सेमिनार में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हुए। इस सेमिनार के प्रथम सेशन में आजादी के 75 साल और महिलाओं की भागीदारी विषय पर जागरूक महिलाओं ने अपनी बात को रखा नंदा रामटेके अध्यक्षा आदर्श फाउंडेशन गुढ़ियारी रायपुर, विन्नी खुदशाह अध्यक्षा डीएमए इंडिया ऑनलाइन, नसीम बानो सामाजिक कार्यकर्ता, डॉ दीप्ति धुरंधर मनोवैज्ञानिक रंगकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता, सुरेखा जांगड़े संयोजक संयुक्त मोर्चा ने ओजस्वी पूर्ण अपना व्याख्यान दिया। इस कार्यक्रम का सफल संचालन जानी मानी रेडियो एंकर मंजूषा माटे ने किया।


        इस सेमिनार में दूसरा सेशन अंधविश्वास से मुक्ति ही गुलामी से मुक्ति का प्रथम सोपान है विषय पर आयोजित हुआ। जिसके प्रमुख वक्ता थे‌ डॉ क्रांति भूषण बनसोडे तर्कशील कार्यकर्ता, टिकेश कुमार साहू अध्यक्ष एंटी सुपर स्टेशन ऑर्गेनाइजेशन, देवलाल भारती को फाउंडर सोशल जस्टिस लीगल सेल, कैलाश बनवासी प्रसिद्ध कहानीकार, साहू रामलाल गुप्ता सामाजिक चिंतक, डॉ रमेश सुखदेवे संयोजक छत्तीसगढ़ तर्कशील परिषद और कार्यक्रम का सफल संचालन किया बहुजन चिंतक डॉक्टर नरेश कुमार साहू जी ने।
इस अवसर पर सुप्रसिद्ध लेखक संजीव खुदशाह की सद्य प्रकाशित पुस्तक "वास्तुशास्त्र की वास्तविकता" का विमोचन कार्यक्रम उल्लासपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ ।
कार्यक्रम में शहर के जाने-माने बुद्धिजीवी सामाजिक कार्यकर्ताओं लेखकों ने भाग लिया।

दूज कुमार भास्कर 
दलित मूव्हमेंट एसोसिएशन,
 रायपुर (छत्तीसगढ़) ।

Backward Classes - Past & Future

सौजन्य से त्रैमासिक पत्रिका 'अपेक्षाजुलाई दिसम्बर अंक क्रं 36-37

पिछड़ा वर्ग: विगत-अगत

           टेकचंद

17 नवंबर 2011 के ‘नव भारत टाइम्स’ के मुखपृष्ठ की खबर- ‘ओ.बी.सी. में 100 नई जातियां।’

18 नवंबर 2011 के ‘जनसत्ता’ के मुखपृष्ठ की खबर- ‘मलाईदार तबके के लिए आय सीमा दोगुनी करने की सिफारिश।’

3 और 5 दिसंबर के ‘नई दुनिया’ की खबर -‘पिछड़े मुस्लिम वर्ग को आरक्षण।’

पहली खबर में बीस राज्यों के उम्मीदवारों को फायदा मिलने की बात की गई है।  दूसरी खबर में ओ.बी.सी. के लिए बनी ‘क्रीमी लेयर’ (मलाईदार तबके) की सीमा दोगुनी कर इसे सालाना नौ लाख रूपये करने की


सिफारिश की है। तीसरी खबर से स्पष्ट हो जाता है कि सरकार ‘मंडल आयोग’ के तहत सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी में अलग से 5-6 प्रतिशत कोटा तय करने जा रही है।

तीनों खबरों को और घोषित किया जाने वाले ‘मुहुर्त’ को देखकर लगता है कि केंन्द्र सरकार आगामी चुनावों को ठीक उसी तरह ‘इन्फ्लूएंस’ करना चाहती है जैसे छठा वेतन आयोग लागू कर दिया था। बहरहाल! ऐसे में अन्य पिछड़ा वर्ग को जानना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। मोटे तौर पर देखे तो आज यह सामाजिक वर्ग से बढ़कर राजनीतिक अवधारणा ज्यादा लगी है। जहां-तहां राजनीतिक मंचों से उनके हितों की बात की जा रही है, लेकिन उसकी विगत स्थिति, इतिहास और भविष्य को समझने-समझाने के प्रयास कम ही दिखाई देते है।

दलित व पिछड़े वर्गों के साथ एक विचित्र सी स्थिति है कि साधन संपन्न होते ही वे भी वेदों, पुराणों की तरफ मुड़ने लगते है। जाति नामक अवधारणा से सदियों पीड़ित, शोषित, रहने के बावजूद अवसर मिलते ही स्वयं को श्रेष्ठ ठहराना और अपने नीचे एक आध छोटी जाति टोह लेते है। लोग, व्यक्ति, वर्ग अथवा ज्ञान की तह में जाति के लिए मनुस्मृति, शतपथ बा्रम्हण इत्यादि को आधार बनाते है। ऐसे में रचनाएं भी आऐंगी तो कुछ ऐसी--

ऑरजिन ऑफ शूद्र ऐ क्रिटिकल एनालसेज’: रामरतन सूद

चमार जाति का गौरवशाली इतिहास’: सत्तनाम सिंह

जाट जाति का स्वर्णिम इतिहास’: इत्यादि

उपर्युक्त जातियों तथा ऐसी ही अन्य जातियों को तथाकथित गौरव ‘स्वर्णिम युग’ का अहसास करवाने के लिए उसी ब्राम्हणवादी ग्रंथ परंपरा का ‘संदर्भ पुस्तक’ के तौर पर प्रयोग किया जाता है, जिनकी रचना का उद्देश्य ब्राम्हण जाति को श्रेष्ठ व अन्य के बीच स्वामी सेवक का संबंध विकसित करना था। दूसरी और वैज्ञानिक नृविज्ञान, सामाज विज्ञान, अर्थशास्त्र का उपयोग लगभग नही किया जाता है।

ऐसे परिदृश्‍य में एक महत्वपूर्ण शोध पढ़ने का अवसर मिलता है। ‘आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग’ (पूर्वाग्रह, मिथक एवं वास्तविकताएं) लेखक और शोधार्थी ‘संजीव खुदशाह’ ने इस पुस्तक में पिछड़ा वर्ग के विगत-अगत पर गंभीर शोध किया है। उनकी ‘सफाई कामगार समुदाय’ पुस्तक पहले ही चर्चित हो चुकि है। प्रस्तुत-पुस्तक में पिछड़ा वर्ग की उन वास्तविकताओं को उभारा है, जो स्वयं और अन्यों द्वारा, गढ़े-रचे पूर्वाग्रहों, मिथकों में दब चुकी थी । कुल जमा 140 पृष्ठों व चार अध्याय में ‘पिछड़ा वर्ग की उत्पत्ति, स्थिति एवं वर्गीकरण’ में संजीव पिछड़ा वर्ग की वास्तविकता बयां करते है-‘‘पिछड़ा वर्ग एक ऐसा कामगार वर्ग है जो न तो सवर्ण है न ही अस्पृश्य या आदिवासी। इसी बीच की स्थिति के कारण न तो इसे सवर्ण होने का लाभ मिल सका न ही निम्नतम होने का फायदा।’’ (पृष्ठ 14) सदैव सवर्ण-अवर्ण के बीच झूलते पिछड़ा वर्ग में संजीव चेतना की कमी मानते हैं । और चेतना आती है वैज्ञानिक सोच से। पिछड़ा वर्ग आज तक धार्मिक ग्रंथों में अपनी जड़े सींचने का प्रयास करता रहा है। जहां अमुक देवता के अमुक-अमुक अंग से फलां-फलां जाति के मनुष्य की उत्पत्ति के मिथक पर आज भी पुरोहित वर्ग जान देता है। धार्मिक ग्रंथों की मानव उत्पत्ति संबंधी एक-एक मान्यता का संजीव तार्किक विश्लेषण करते है और पाते है कि स्वयं हिंदू धर्म-ग्रंथ मानव उत्पत्ति को लेकर एकमत नही है।

मनव उत्पत्ति की वैज्ञानिक खोजों में संजीव पांच सौ (500) करोड़ वर्ष पूर्व के अजीव काल अठारह करोड़ वर्ष पूर्व के जुरेसिककाल, नवपाषाण, धातुकाल के आकड़ों का खाका प्रस्तुत कर मनुष्य की उत्पत्ति और विकास को समझाते है। पिछड़ा वर्ग की सामाजिक स्थिति को परिभाषित करते हुए संजीव लिखते है कि -‘‘हिंदू धर्म में से यदि ब्राम्हण क्षत्रिय एवं वैष्य को निकाल दे तो शेष वर्ग ‘शूद्र’ को हम पिछड़ा वर्ग कह सकते है, इसमें अति शूद्र शामिल नही है। पिछड़ा वर्ग वर्षो से तिरस्कृत होता आया बल्कि यों कहें कि हाशिए पर रहा तो ज्यादा बेहतर होगा जिसे सवर्ण न हो पाने का क्षोभ है तो अस्पृश्य न होने का गुमान भी। वर्षो से हिंदू सभ्यता एवं संस्कृति को संजोए यह वर्ग आज भी अपने हस्ताक्षर को बेताब है। यदि हम पिछड़ा वर्ग को रेखांकित करें तो पाएंगे कि वर्ण-व्यवस्था का एक वर्ण शूद्र, जिनमें कुछ नई एवं उच्च समझी जाने वाली जातियां भी शामिल है जो सवर्ण होने का दावा करती है, किंतु सवर्ण इन्हे अपने में शामिल करने को तैयार नहीं है।’’ (वही 22)

यह ‘अस्पृश्य न होने का गुमान’ ‘सवर्ण होने का दावा’ महत्वपूर्ण है। क्योकि इन्ही कारणों से पिछड़ा वर्ग की मानसिकता मध्यवर्ग जैसी हो चली है। उपर वाले इन्हे नीचे धकेलेंगें और नीचे ये जाना नही चाहते। इसी संदर्भ में 28 नवंबर 2011 को दलित नेता उदितराज के नेतृत्व में हुई रैली के पर्चे को देखना जरूरी है। वे लिखते है कि -‘‘मंडल कमीशन की लड़ाई मूलतः दलितों ने ही लड़ी थी और जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वी.पी.सिंह ने इसे लागू करने की घोषणा की तब जाकर कुछ पिछड़े वर्ग के लोग समर्थन में आए।’’

ठसी तरह की घटनाएं सन् 2004 में उस समय हुई जब मेडिकल में ओ.बी.सी. को लागू किया गया और उसका देशव्यापी विरोध किया गया। विरोध दलितों आदिवासियों को झेलना पड़ा था, क्योकि ओ.बी.सी. वर्ग तो तब भी- इसी टू बी और नॉट बी. की उहापोह भरी स्थिति में था। उनको लग रहा था कि आरक्षण की आरक्षण की मांग करने से वो शूद्रों अस्पृश्‍यों में गिने जाने लगेगें। इसका कारण समझ में आता है जब संजीव ओ.बी.सी. जातियों का वर्गीकरण करते है। वे इन्हे खेत कार्य, पशुपालन, कपड़े का काम, बर्तन, लोहा, धातु, तिलहन का काम, मछली पकड़ने तथा इस्कार जैसे लगभग 10-11 वर्गों में मानते है। दूसरी ओर चमार, सफाई कामगार, वैश्य, नाई, धोबी, मल्लाह, वेद्य इत्यादि को ‘अनुत्पादक’ किंतु सृजनात्मक माना है। सृजन आधुनिक युग में उत्पादन ही है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि ये सब जातियां पिछड़ी तो है किंतु साफ-सफाई खाल-मांस इत्यादि का काम करने वाली अनुसूचित जातियों के मुकाबले कुछ ‘उन्नत’ है। ऐसे में इन्हे स्वयं को ‘उच्च’ साबित करने के लिए अच्छा-खासा आधार मिल जाता है। उपर से सवर्णो के लिए वे थोड़े कम अस्पृष्य है। उनके काम धंधे भी ऐसे है जो सवर्णो के सीधे ‘टच’ में है। जैसे माली (सैनी) के फूल-फसल से, अहीर यादव के डंगरों से कुम्हार के बर्तन से , लोहार के औजार से , सुनार के गहने से, नाई के हाथ से केवट की नाव से, बढ़ई के काम से सवर्ण को उतनी घृणा नही होती जितनी मेहत्तर के मैला ढोने से, चमार द्वारा मृत पशुओं को उठाने, खाल खीचने से होती है। संभवतः वे सवर्णो (उपर के तीनों वर्ण) के सीधे संपर्क में भी उतने नही रहते जितने ओ. बी.सी. वर्ग की जातियां । इसी कारण ओ.बी.सी.जातियों ने ब्राम्हणवादी कर्मकांड पूजा-पाठ रह-सहन और सबसे ज्यादा हिंन्दू धार्मिक ग्रंथों की संस्कृति को लगभग ओढ़ लिया। वे उसमें धंस गए। उसी शतुर्मुर्ग की तरह, जो खतरा होने पर मुंडी तो रेत में छिपा लेता है लेकिन पूरा शरीर शिकारी को सौंप देता है। क्या आज पिछड़े वर्ग ने अपनी ताकत, राजनीति और अस्तित्व को दलितों से अलगाकर सवर्ण शिकारियों को नहीं सौंप-सा दिया है? संजीव तफसील से ओ.बी.सी. वर्ग द्वारा, पूजे जा रहे धार्मिक ग्रंथों के संदर्भो से ही बताते है कि -‘‘क्षत्रिय पिता व ब्राम्हण माता से सूत, शूद्र पिता व ब्राम्हण माता से चांडाल उत्पन्न होता है।’’ इन सभी स्मृति एवं पुराणों के आधार पर कोई भी पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति अपने उपर गर्व नही कर सकता। यदि वे इन धर्म-ग्रंथों को मान्यता देते है, तो उन्हे यह भी मानना होगा कि वे किसी न किसी की  अवैध संतान की संतति है। इसी तरह ‘जाति एवं गोत्र विवाद तथा हिन्दूकरण’ नामक अध्याय में वे उन जातियों की वास्तविकता बताते है, जो सवर्ण होनक का दावा करती है किन्तु हिंदु धर्म ग्रंथ उनके प्रति कटुता से भरे पड़े है। कायस्थ, मराठा, भूमिहार, सूद आदि ऐसी विवादास्पद जातियां है। इसी अध्याय में गोत्रों, देवों व जातियों के हिन्दूकरण को शोधपरक ढंग से समझाया गया है।

लेखक लिखता है कि -‘‘ये पिछड़े वर्ग की जातियां जिन धर्म ग्रंथों पर अकाट्य श्रद्धा रखती है, जिनकी दिन रात स्तुति करती है, वे इन्हे इन्ही सवर्णो (ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य) की नाजायज संतान ठहराते है। आज हिंदू धर्म के बड़े पोषक के रूप् में पिछड़ा वर्ग शामिल है, जिनमें हजारों-हजार जातियां है। वे सभी वर्ण-व्यवस्था के अनुसार शूद्र में आति है।’’ (वही 43)

हम देख सकते हे कि किस प्रकार आरक्षण के लिए तो पिछड़ा वर्ग आवाज उठाता है किंतु अनुसूचित जाति व जनजाति के प्रति उनमें न सहानुभूति है, न सहयोग की भावना। मंडल कमीशन हो या एससी/एसटी का विवाद सवर्णो व प्रतिक्रिया वादियों का कोपभाजन 50/57 को बनना पड़ा था। यही कारण है कि पिछड़ा वर्ग आचार-विचार, संस्कार-संस्कृति कर्मकांड से पूरा सवर्ण हिंन्दूवादी बना रहेगा। साधन-संपन्न होते ही वह स्वयं को सवर्ण हिंन्दू मानने-मनवाले के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देता है। लेखक ऐतिहासिक तथ्य देते हुए मराठा शिवाजी द्वारा 6 जून 1674 को वंषावली, जाति सुधारने व्रातय स्तोम उपनयन तथा राज्याभिषेक का उदाहरण देता हैः ‘यदि मान भी ले कि वंशावली सच्ची थी फिर भी शिवाजी को उंची जाति में प्रवेश करने के लिए (सामाजिक स्वीकृति) एड़ी-चोटी एक करनी पड़ी। साथ ही अपने राज्याभिषेक के समय रूपये पानी की तरह बहाने पड़े जिसमें गागाभाट को 7000 हण दिए गए तथा शिवाजी को चांदी,तांबा,लोहा आदि से और कपूर, नमक, शक्कर, मक्खन, विभिन्न फलों, सुपारी आदि से भी तौला गया, जिसके मूल्य को ब्राम्हण में वितरित कर दिया गया। कुल खर्चा 1,50,000 हण था।’(वही 48) अब यदि उस वक्त के हिसाब से लगाएं तो एक हण तीन रूपये मूल्य का था। अर्थात आज के हिसाब से करोड़ों रूपये। इस प्रकार जब शासकों की यह हालत थी तो आम जनता की मानसिक स्थिति समझी जा सकती है।

जाति के हिन्दूकरण के साथ-साथ संजीव ‘रक्त सम्मिश्रण’ तथा गोत्रों के बदलाव, ग्रहण, त्याग व हिंदूकरण पर भी तथ्यात्मक जानकारी देते है। इनमें महत्वपूर्ण है-स्थानीय देवी-देवताओं का हिन्दूकरण। वे तफसील से समझाते हे कि किस प्रकार ब्राम्हणों ने अनार्य देव शिव शक्ति गणपति आदि का हिन्दूकरण कर दिया। यहां तक कि बुध्द को भी विष्णु का दसवां अवतार घोषित कर दिया। उड़ीसा, पुरी जगन्नाथ का उदाहरण बेहद दिलचस्प है कि आदिवासियों के आराध्यदेव जगन्नाथ को इस प्रकार वैदिकों के बंधन में जकड़ा गया कि-‘‘राजाओं के प्रशासनिक हितों की रक्षा करने वाले वैदिकों ने आसानी से जगन्नाथ पर धार्मिक कब्जा कर लिया और दलितों को मंदिर से बाहर कर दिया। जगन्नाथ के दर्शन आम जनता के लिए दुलर्भ हो गए।’’(वही 70) इसी संदर्भ में हम साई बाबा (शिरडी) वैष्णों देवी, केदारनाथ, कैलाश इत्यादि व गुड़गांव, बेरी जैसे स्थानीय देव-देवियों के हिन्दूकरण और ब्राम्हणीकरण को भी देख सकते है।

तीसरे अध्याय ‘विकास यात्रा के विभिन्न सोपान’ में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं का विश्लेषण किया गया है। जिससे लेखक की गहन शोध दृष्टि का पता चलता है। जैसे- जाति आधारित आरक्षण आदिकाल से ही शुरू हो जाता है। ‘‘साईमन कमीशन दलित वर्णो के लिए भी संवैधानिक संरक्षणों की सिफारिश करने वाला था, किंतु कांग्रेस तथा हिंदू महासभा ने इसका विरोध किया।’’(वही 77)

काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि ‘पिछड़ेपन का दोष इन्ही जातियों का है,’ ‘सरकारी नौकरियों में आरक्षण गलत है,’ ‘पिछड़ेपन की शिनाख्त से जाति-व्यवस्था स्थायी तौर पर हावी रहेगी’(वही 80)। इनके अतिरिक्त मंडल आयोग की सिफारिशों पर विस्तार से बात की गई है। आरक्षण विरोधी बुद्धिजीवियों पर तीखे प्रश्न दागे गए है, जैसे-‘मैला साफ करने की नौकरी में आरक्षण पर दलितों का विरोध क्यो नही करते ?’

दलित एवं पिछड़ा वर्ग के बुद्धिजीवी को पंडित का दर्जा क्यों नही देते?’

मैनेजमेंट शीट क्या है? पेमेंट शीट क्या है? क्या इस रास्ते अगड़ों के बिगड़े बच्चे लाखों देकर नही आते? ये सीटें किसके लिए आरक्षित है?’

आरक्षण के विरोध को आंदोलन के रूप में क्यों पेष किया जाता है?’

ऐसे ही सवालों से जूझता लेखक सामाजिक-व्यवस्था पर प्रहार करता है-‘मेरी दृष्टि में आंदोलनरत डाक्टरों तथा सवर्ण पंचायत द्वारा सरपंच पद के लिए पर्चा दाखिल करने वाली दलित महिला को नंगी करके गांव में घुमाकर जला देने वाले जातिभिमानी लोगों में कोई अंतर नही है।’ (वही 85)

लेखक ने पिछड़े वर्ग के संत नामदेव, संत चोखामेला, संत कबीर, गुरू नानक, संत सेनजी, महात्मा ज्योतिबा फुले, पेरियार ई.वी.रामास्वामी, नारायण गुरू, संत रैदास इत्यादि समाज-सुधारकों के संघर्षों का ब्यौरा दिया हे और इसके बावजूद पिछड़ा वर्ग के अब तक पिछड़ा बना रहेन पर क्षोभ प्रकट किया है।

अंतिम अध्याय चार ‘पेशे के आधार पर पिछड़ा वर्ग (शूद्र जातियों) की जातियों की विवेचना प्रस्तुत करते है । मंडल कमीशन की सिफारिशों को ज्यों का त्यों अंग्रेजी में प्रकाशित भी किया गया है। इसी आधार पर पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित जातियों की आधिकारिक सूची जारी की है।’

अंत में लेखक ने महत्वपूर्ण समाधान भी प्रस्तुत किए हे जो बेहद महत्वपूर्ण है, जो आज के समय में दलितों एवं पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ अन्यों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। कहा जा सकता हक कि अपने शोध परक दृष्टिकोण एवं सीमित कलेवर के कारण पुस्तक न केवल पठनीय हे बल्कि जरूरी भी है।

यह उनकी पिछली पुस्तक ‘सफाई कामगार समुदाय’ को सार्थकता व संपूर्णता भी प्रदान करती है। एक तरह से बौद्धिक रूप् से यह पुस्तक हमें और ज्यादा मांजेगी, हमारी सोच को और परिष्कृत करेगी ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

टेकचंद

म.न.166 गांव नाहरपुर

रोहिणी सेक्टर-7 दिल्ली 110085


 पुस्तक का नाम    आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग

(पूर्वाग्रहमिथक एवं वास्तविकताएं)   

लेखक   संजीव खुदशाह   

ISBN               97881899378 

मूल्य      200.00 रू.       

संस्करण 2010    पृष्ठ-142

प्रकाशक

शिल्पायन 10295, लेन नं.1

वैस्ट गोरखपार्कशाहदरा,

दिल्ली -110032  फोन-011-22821174