बाबासाहेब के परिनिर्वाण दिवस की याद में संगोष्ठि का आयोजन


16 दिसंबर 2012 को छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर में दलित मुव्हमेन्ट ऐसोसियेशन कि ओर से बाबासाहेब के परिनिर्वाण दिवस की याद में एक संगोष्ठि का आयोजन किया गया। यह सेमिनार दो सत्र में विभाजित था, पहला सत्र का विषय था- बाबा साहेब डाँ अम्बेडकर के बाद दलित आंदोलन की दशा एवं दिशा। दूसरा सत्र-कांचा इलैया की किताब 'मै हिन्दू क्यो नही हूँ?' के पाठ एवं पुस्तकचर्चा पर केंद्रित था। प्रथम सत्र के मुख्य अतिथी तमिलनाडु से आये बसपा के प्रदेश महासचिव श्री जीवन मलार थे। इस सत्र का संचालन श्री रतन गोण्डानेजी ने किया सत्र के प्रमुख वक्ता थे-श्री तुहीन देब निदेशक स्टेट रिरोर्स सेन्टर छ.ग., अरविन्द चुहान, कार्यकर्ता एम्बस, श्री विष्णु बघेल, सी.ए., श्री विश्वास मेश्राम, अध्यक्ष विज्ञान सभा सर्वप्रथम श्री रतन गोण्डानेजी ने दलित मुव्हमेन्ट ऐसोसियेशन के क्रियाकलापों का परिचय दिया कि किस प्रकार यह ऐसोसियेशन छोटी-छोटी गुमनाम दलित जातियों जैसे डोम, डोमार, हेला, मखियार, लालबेगी एवं खटीक के बीच कार्य कर रही है एवं उनमें दलित आंदोलन का प्रचार कर रही है। श्री तुहिन देब ने कहा जो गलतियां कम्युनिष्टो ने जाति भेद को नकार कर की है अब उन्हे यह नही करना चाहिए अब कम्युनिष्ट एवं दलित आंदोलन को एक होकर चलने कि जरूरत है। श्री अरविंद ने कहा हम मूलत: नागवंशी एवं बुध्दिष्ठ है। उसी प्रकार श्री विष्णु बघेल ने कहा दलित आंदोलन में काशिराम का बहुत बडा योगदान है। उन्होने अंबेडकर को पूरे भारत में स्थापित करने का काम किया तथा दलित आदिवासी एवं पिछडो को जागरूक किया। विश्वास मेश्राम ने कहा बाबासाहेब की सोच बहुत व्यापक थी उनके बारे में व्यापक दायरे में सोचने कि आवश्यकता है। सिर्फ बाबासाहेब मेरी जाति के है कहने से नही होगा। हरेक जाति आज अपने आपको श्रेष्ठ समझती है। उन्होने कहा बाबा साहेब द्वारा दिये फायदे को खत्म करने का षडयंत्र हो रहा है। ततपश्चात मुख्य अतिथी श्री जीवन कुमार मलार ने अपना वक्तव्य दिया। उन्होने कहा आज बहुजन आंदोलन के पुरोधा श्री कांशीराम को भुलाने कि कोशिश कुछ षडयंत्रकारियों के द्वारा की जा रही है। तथा मायावती ने बहुजन विरोधी विचार धारा सव्रजन को लाकर अंबेडकरी आंदोलन को नेस्तनाबूत करने का बीडा उठा लिया हे। अब हमें मायावती के बीएसपी पर किये गये बेजा कब्जे से मुक्त कराना है। श्री जीवन ने कहा बाबा साहेब के शिक्षित संगठित एवं संर्घषशील से मतलब एम ए बीए या शासकिय नौकरी नही था। शिक्षित से तात्पर्य शिक्षित दिमाग को विकसित करना है जो अपने शोषकों एवं हितैसियों में फर्क कर सके। इस प्रकार प्रहला सत्र समाप्त हुआ।
दूसरा सत्र प्रसिध्द किताब 'मै हिन्दू क्यो नही हूँ ?' के पाठ एवं परिचर्चा पर केन्द्रीत थी। जिसमें मुख्य वक्ता थे श्रीमति शोभा मुंगेर, श्री संजय पराते, श्री संजीव खुदशाह, श्री शेखरन एवं श्री विश्वास मेंश्राम। सर्वप्रथम श्री संजीव खुदशाहजी ने इस किताब के बारे में बताया कि किस प्रकार एक ओबीसी गडरिया जाति में जन्में श्री कांचा ईलैया हिन्दू धर्म से अंजान थे एवं शासकीय मिशनरियों ने उन्हे उनसे बिना पूछे हिन्दू लिखना एवं पूकारन शुरू कर दिया। श्री खुदशाह जी ने इस किताब के कुछ महत्वपूर्ण अंशो का पाठ किया जिस पर श्री संजय पराते ने आलेख प्रस्तुत किया एवं उडिसा से आये श्री शेखरन ने इस विषय पर विस्तार से अपना मत दिया। अंत में श्री विश्वास मेंश्राम ने संजय पराते के द्वारा उठाये कुछ सवालो का जवाब दिया तथा कहा कि दलितों पर अत्याचार भारतीय संबिधान के वजह से नही बल्कि प्रशासन के कुटिल रवैये के कारण है। इस प्रकार धन्यवाद ज्ञापन करते हुए श्री मेश्राम ने सभी को चाय हेतु आंमंत्रित किया।

हरीश कुण्डे

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