महिशासुर आंदोलन का इतिहास

महिशासुर आंदोलन का इतिहास
29 सितम्‍बर 2013
Photo: महिशासुर आंदोलन का इतिहास  29 सितम्‍बर 2013  जेएनयू में पहली बार 25 अक्टूबर 2011 को 'महिशासुर शहादत दिवस' मनाया गया। 2013 का यह आयोजन शहादत दिवस की तीसरी वर्षगांठ होगी। विरोध और स्वीकार से गुजरते हुए इस वर्श देश के अलग-अलग 60 जगहों पर महिशासुर शहादत दिवस का मनाया जाना अप्रत्याषित ही है। दरअसल, महिशासुर का प्रश्‍न देश के 85 फीसदी पिछड़ों-दलितों और आदिवासियों के पहचान से जुड़ा हुआ है। अपनी जड़ों की तरफ लौट रहे हैं, अपने नायकों को इतिहास में तलाश रहे हैं। इतिहास का बहुजन पाठ अभी बाकी है।    महिशासुर-दुर्गा विवाद  2011 के दशहरा के मौके पर 'ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम' ने 'फारवर्ड प्रेस' में प्रकाशित प्रेमकुमार मणि का लेख 'किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन' के माध्यम से जेएनयू छात्र समुदाय के बीच विमर्श के लिए महिशासुर के सच को सामाने लाया। दुर्गा ने जिस महिशासुर की हत्या की, वह पिछड़ा वर्ग का न्यायप्रिय और प्रतापी राजा था। आर्यों ने छलपूर्वक इस महाप्रतापी राजा की हत्या दुर्गा नामक कन्या के हाथों करवाई। जेएनयू में जारी इस पोस्टर को लेकर संघी-सवर्ण छात्रों ने बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम के छात्रों के साथ मारपीट की। इस प्रकरण में जेएनयू प्रशासन ने ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम के अध्यक्ष जितेंद्र यादव को धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में नोटिस जारी किया। लगभग 1 महीने तक चले इस विवाद में अंततः पिछड़े वर्ग के छात्रों की जीत हुई। देश के बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और राजनेताओं के दबाव में जेएनयू प्रशासन ने एआईबीएसएफ से लिखित रूप में मांफी मांगते हुए कहा कि जितेंद्र यादव के खिलाफ कोई प्रॉक्टोरियल जांच नहीं चल रही है। इस जीत से उत्साहित पिछड़े वर्ग के छात्रों ने 25 अक्टूबर 2011 को जेएनयू परिसर में महिशासुर शहादत दिवस मनाया। इस बार देश के 60 से अधिक जगहों पर महिशासुर शहादत दिवस का आयोजन हो रहा है।   इतिहास में महिशासुर  जब भारत पर आर्यों का हमला हुआ उस समय महिशासुर बंगाल-बिहार-उडी़सा के राजा थे। गंगा का दोआब होने के कारण बंगाल-बिहार-उडी़सा की जमीन बहुत उपजाऊ थी। आर्य इस पर कब्जा करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने 7 बार आक्रमण किया और हर बार परास्त हुए। 'बल नहीं तो छल, छल का बल' अंत में आर्यों ने   छलपूर्वक महिशासुर की हत्या का शड्यंत्र रचा। हिन्दू धर्मषास्त्रों के अनुसार दुर्गा नामक कन्या 8 दिन तक महिशासुर के भवन में रही और 9वें दिन उनकी हत्या कर दी। चुंकी महिशासुर ने स्त्रियों और पशुओं पर हाथ नहीं उठाने का प्रण किया था। उस समय के अनार्य समाज में स्त्रियों से युद्ध करना और पशुओं का वध परंपरा के विरूद्ध था। दुर्गा ने इसी का फायदा उठाया और महिशासुर की हत्या कर दी और उत्तर भारत पर आर्यों का कब्जा हो गया। अब बारी महिशासुर को उनके ही लोगों के बीच बदनाम करने की थी। क्योंकि आर्य को यह भय था कि महिशासुर के लोग उन पर कभी भी हमला कर सकते हैं और आमने-सामने की लड़ाई में आर्यों की हार सुनिश्‍चित है। एक बार फिर छल का सहारा। महिशासुर को बदनाम करने के लिए बड़े पैमाने पर उनकी हत्या के जश्‍न मनाए गए और अनार्य के मन में उनके खिलाफ घृणा भरी गई। हत्या जश्‍न के पीछे के शड्यंत्र को समझना होगा। इस प्रकार आने यहां के मूल निवासियों को मानसिक रूप से गुलाम बना लिया और यह प्रक्रिया आज भी चल रही है। जातियों में विभक्त कर यहां के मूल निवासियों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से असक्त बना दिया गया। महिशासुर दुर्गा युद्ध दरअसल आर्य-अनार्य, ब्राम्हण-शु्द्र, सवर्ण-अवर्ण, निम्न-और उच्च जाति और देव-दानव का युद्ध था।  असुरः भारत के मूल निवासी  संस्कृति और भाषा कैसे किसी समाज पर कैसे वर्चस्व स्थापित करती है, हिन्दू/आर्य/देव/ब्राम्हण संस्कृति इसका सर्वश्रेष्‍ट उदाहरण है। असुर/दैत्य/राक्षस आदि शब्दों में घृणा भरे गए। असूर/दैत्य/राक्षस से यहां के मूल निवासी भी घृणा करने लगे। जबकि ये शब्द ब्राम्हण संस्कृति के शब्दों के विपरीतार्थक हैं। असुर अर्थात् जो सुर नहीं है। जो देवता नहीं है वह दानव है। जो आर्य नहीं वह अनार्य है। जबकि अर्थ लगाया गया कि देवता अच्छे हैं और दानव खराब हैं। आर्य अच्छे हैं और अनार्य बुरे हैं। इतिहास में देवताओं/आर्यों और सुरों ने हमेशा बुरा काम किया है। फिर भी वे अच्छे हैं जबकि असुरों ने एक भी मानवता विरोध काम नहीं किए। वे अपने और अपने मूलनिवासियों की रक्षा में संघर्ष किए और छलपूर्वक मारे गए। आज की भाषा में असुर का तात्पर्य इस देष का दलित-पिछड़ा-आदिवासी है। समुद्र मंथन में जो लोग सांप की पूंछ की तरफ से उन्हें अमृत मिला और जो लोग मुंह की तरफ थे उन्हें विष। यही है आर्यों का न्याय, देवताओं और सवर्णों का  न्याय! आजादी के आंदोलन में भी जिन्होंने जान दी उन्हें क्या मिला? 50 वर्षो के बाद बधिया 27 प्रतिशत आरक्षण। सत्ता-संस्‍थानों और संसाधनों पर एकछत्र सवर्णों का कब्जा है। असुरों/पिछड़ों के हक की लड़ाई लड़ने वालों को आज भी दमन किया जा रहा है, बदनाम किया जा रहा है। जिसके कारण हमारे नेता पिछड़ों का नाम लेने से कतराने लगे हैं।  महिशासुरः पिछड़ों के नायक  देश के विभिन्न हिस्सों में कई जातियां महिशासुर को अपना नायक मानती हैं। बंगाल के पुरूलिया जिले में महिशासुर की पूजा होती है और मेला लगता है। वहां के लोग महिशासुर को अपना पूर्वज मानते हैं। झारखंड में असुर जनजाति के लोग अपने को महिशासुर का वंशज मानते हैं। कवयित्री सुषमा असुर ने 'फारवर्ड प्रेस' के साथ साक्षात्कार में कहा था-'देखो मैं महिशासुर की वंशज हूं।' झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन भी महिशासुर को अपना पूर्वज मानते हैं। शिबू सोरेन ने रावण को अपना पूर्वज बताते हुए पुतला दहन से इनकार कर दिया था। मध्यप्रदेश में रहने वाली कुछ  जनजातियां महिशासुर को अपना पूर्वज मानती है। 2008 में 'यादव शक्ति' पत्रिका ने दावा किया था कि महिशासुर पषुपालक जातियों के नायक थे। पत्रिका का आवरण कथा ही था-'यदुवंश शिरोमणि महिशासुर।'   हत्या के जश्‍न दशहरा को प्रतिबंधित किया जायः  अब जब यह साबित हो गया है कि यहां के मूल निवासियों (पिछड़ा-दलित-आदिवासी) के राजा थे तब उनकी हत्या के जश्‍न के रूप में दशहरा मनाने से मूलनिवासियों की भावनाएं आहत होती हैं। वैसे भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी की हत्या का जश्‍न मनाना कहां तक जायज है? हम भारत के राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री और सवर्ण की पक्षधर सुप्रीम कोर्ट से मांग करते हैं कि दशहरा पर रोक लगाई जाय। हम सामाजिक न्याय की पक्षधर शक्तियों से महिशासुर के पक्ष में खड़े होने की अपील करते हैं।   17 अक्टूबर, 2013 को जेएनयू में आयोजित महिशासुर शहादत दिवस में आप सभी आमंत्रित हैं।  स्थानः .1 ऑडिटोरियम, जेएनयू, नई दिल्ली, 3 बजे दिन।   आमंत्रित अतिथिः कांचा इलैया, चंद्रभान प्रसाद, प्रेमकुमार मणि, प्रो विवेक कुमार    ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम           संपर्कः 9716839326
जेएनयू में पहली बार 25 अक्टूबर 2011 को 'महिशासुर शहादत दिवस' मनाया गया। 2013 का यह आयोजन शहादत दिवस की तीसरी वर्षगांठ होगी। विरोध और स्वीकार से गुजरते हुए इस वर्श देश के अलग-अलग 60 जगहों पर महिशासुर शहादत दिवस का मनाया जाना अप्रत्याषित ही है। दरअसल, महिशासुर का प्रश्‍न देश के 85 फीसदी पिछड़ों-दलितों और आदिवासियों के पहचान से जुड़ा हुआ है। अपनी जड़ों की तरफ लौट रहे हैं, अपने नायकों को इतिहास में तलाश रहे हैं। इतिहास का बहुजन पाठ अभी बाकी है।
महिशासुर-दुर्गा विवाद
2011 के दशहरा के मौके पर 'ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम' ने 'फारवर्ड प्रेस' में प्रकाशित प्रेमकुमार मणि का लेख 'किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन' के माध्यम से जेएनयू छात्र समुदाय के बीच विमर्श के लिए महिशासुर के सच को सामाने लाया। दुर्गा ने जिस महिशासुर की हत्या की, वह पिछड़ा वर्ग का न्यायप्रिय और प्रतापी राजा था। आर्यों ने छलपूर्वक इस महाप्रतापी राजा की हत्या दुर्गा नामक कन्या के हाथों करवाई। जेएनयू में जारी इस पोस्टर को लेकर संघी-सवर्ण छात्रों ने बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम के छात्रों के साथ मारपीट की। इस प्रकरण में जेएनयू प्रशासन ने ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम के अध्यक्ष जितेंद्र यादव को धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में नोटिस जारी किया। लगभग 1 महीने तक चले इस विवाद में अंततः पिछड़े वर्ग के छात्रों की जीत हुई। देश के बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और राजनेताओं के दबाव में जेएनयू प्रशासन ने एआईबीएसएफ से लिखित रूप में मांफी मांगते हुए कहा कि जितेंद्र यादव के खिलाफ कोई प्रॉक्टोरियल जांच नहीं चल रही है। इस जीत से उत्साहित पिछड़े वर्ग के छात्रों ने 25 अक्टूबर 2011 को जेएनयू परिसर में महिशासुर शहादत दिवस मनाया। इस बार देश के 60 से अधिक जगहों पर महिशासुर शहादत दिवस का आयोजन हो रहा है।
इतिहास में महिशासुर

जब भारत पर आर्यों का हमला हुआ उस समय महिशासुर बंगाल-बिहार-उडी़सा के राजा थे। गंगा का दोआब होने के कारण बंगाल-बिहार-उडी़सा की जमीन बहुत उपजाऊ थी। आर्य इस पर कब्जा करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने 7 बार आक्रमण किया और हर बार परास्त हुए। 'बल नहीं तो छल, छल का बल' अंत में आर्यों ने
छलपूर्वक महिशासुर की हत्या का शड्यंत्र रचा। हिन्दू धर्मषास्त्रों के अनुसार दुर्गा नामक कन्या 8 दिन तक महिशासुर के भवन में रही और 9वें दिन उनकी हत्या कर दी। चुंकी महिशासुर ने स्त्रियों और पशुओं पर हाथ नहीं उठाने का प्रण किया था। उस समय के अनार्य समाज में स्त्रियों से युद्ध करना और पशुओं का वध परंपरा के विरूद्ध था। दुर्गा ने इसी का फायदा उठाया और महिशासुर की हत्या कर दी और उत्तर भारत पर आर्यों का कब्जा हो गया। अब बारी महिशासुर को उनके ही लोगों के बीच बदनाम करने की थी। क्योंकि आर्य को यह भय था कि महिशासुर के लोग उन पर कभी भी हमला कर सकते हैं और आमने-सामने की लड़ाई में आर्यों की हार सुनिश्‍चित है। एक बार फिर छल का सहारा। महिशासुर को बदनाम करने के लिए बड़े पैमाने पर उनकी हत्या के जश्‍न मनाए गए और अनार्य के मन में उनके खिलाफ घृणा भरी गई। हत्या जश्‍न के पीछे के शड्यंत्र को समझना होगा। इस प्रकार आने यहां के मूल निवासियों को मानसिक रूप से गुलाम बना लिया और यह प्रक्रिया आज भी चल रही है। जातियों में विभक्त कर यहां के मूल निवासियों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से असक्त बना दिया गया। महिशासुर दुर्गा युद्ध दरअसल आर्य-अनार्य, ब्राम्हण-शु्द्र, सवर्ण-अवर्ण, निम्न-और उच्च जाति और देव-दानव का युद्ध था।
असुरः भारत के मूल निवासी
संस्कृति और भाषा कैसे किसी समाज पर कैसे वर्चस्व स्थापित करती है, हिन्दू/आर्य/देव/ब्राम्हण संस्कृति इसका सर्वश्रेष्‍ट उदाहरण है। असुर/दैत्य/राक्षस आदि शब्दों में घृणा भरे गए। असूर/दैत्य/राक्षस से यहां के मूल निवासी भी घृणा करने लगे। जबकि ये शब्द ब्राम्हण संस्कृति के शब्दों के विपरीतार्थक हैं। असुर अर्थात् जो सुर नहीं है। जो देवता नहीं है वह दानव है। जो आर्य नहीं वह अनार्य है। जबकि अर्थ लगाया गया कि देवता अच्छे हैं और दानव खराब हैं। आर्य अच्छे हैं और अनार्य बुरे हैं। इतिहास में देवताओं/आर्यों और सुरों ने हमेशा बुरा काम किया है। फिर भी वे अच्छे हैं जबकि असुरों ने एक भी मानवता विरोध काम नहीं किए। वे अपने और अपने मूलनिवासियों की रक्षा में संघर्ष किए और छलपूर्वक मारे गए। आज की भाषा में असुर का तात्पर्य इस देष का दलित-पिछड़ा-आदिवासी है। समुद्र मंथन में जो लोग सांप की पूंछ की तरफ से उन्हें अमृत मिला और जो लोग मुंह की तरफ थे उन्हें विष। यही है आर्यों का न्याय, देवताओं और सवर्णों का न्याय! आजादी के आंदोलन में भी जिन्होंने जान दी उन्हें क्या मिला? 50 वर्षो के बाद बधिया 27 प्रतिशत आरक्षण। सत्ता-संस्‍थानों और संसाधनों पर एकछत्र सवर्णों का कब्जा है। असुरों/पिछड़ों के हक की लड़ाई लड़ने वालों को आज भी दमन किया जा रहा है, बदनाम किया जा रहा है। जिसके कारण हमारे नेता पिछड़ों का नाम लेने से कतराने लगे हैं।
महिशासुरः पिछड़ों के नायक
देश के विभिन्न हिस्सों में कई जातियां महिशासुर को अपना नायक मानती हैं। बंगाल के पुरूलिया जिले में महिशासुर की पूजा होती है और मेला लगता है। वहां के लोग महिशासुर को अपना पूर्वज मानते हैं। झारखंड में असुर जनजाति के लोग अपने को महिशासुर का वंशज मानते हैं। कवयित्री सुषमा असुर ने 'फारवर्ड प्रेस' के साथ साक्षात्कार में कहा था-'देखो मैं महिशासुर की वंशज हूं।' झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन भी महिशासुर को अपना पूर्वज मानते हैं। शिबू सोरेन ने रावण को अपना पूर्वज बताते हुए पुतला दहन से इनकार कर दिया था। मध्यप्रदेश में रहने वाली कुछ जनजातियां महिशासुर को अपना पूर्वज मानती है। 2008 में 'यादव शक्ति' पत्रिका ने दावा किया था कि महिशासुर पषुपालक जातियों के नायक थे। पत्रिका का आवरण कथा ही था-'यदुवंश शिरोमणि महिशासुर।'
हत्या के जश्‍न दशहरा को प्रतिबंधित किया जायः
अब जब यह साबित हो गया है कि यहां के मूल निवासियों (पिछड़ा-दलित-आदिवासी) के राजा थे तब उनकी हत्या के जश्‍न के रूप में दशहरा मनाने से मूलनिवासियों की भावनाएं आहत होती हैं। वैसे भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी की हत्या का जश्‍न मनाना कहां तक जायज है? हम भारत के राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री और सवर्ण की पक्षधर सुप्रीम कोर्ट से मांग करते हैं कि दशहरा पर रोक लगाई जाय। हम सामाजिक न्याय की पक्षधर शक्तियों से महिशासुर के पक्ष में खड़े होने की अपील करते हैं।
17 अक्टूबर, 2013 को जेएनयू में आयोजित महिशासुर शहादत दिवस में आप सभी आमंत्रित हैं।
स्थानः .1 ऑडिटोरियम, जेएनयू, नई दिल्ली, 3 बजे दिन।
आमंत्रित अतिथिः कांचा इलैया, चंद्रभान प्रसाद, प्रेमकुमार मणि, प्रो विवेक कुमार

ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम संपर्कः 9716839326



2 comments:

  1. काफी अध्ययन के साथ लिखा गया है...
    मुझे अच्छा लगा.
    :-)

    ReplyDelete
  2. Skand Puran, the story available at website ………………………

    EXECUTION OF SHUMBH, NISHUMBH & MAHISHASUR
    Demons ( Asurs) by Hindu mythology:
    1.) Mahishasur: the king of Purliya Distt.of West Bengal & Mysore (Karnatka) ( todays Yadav caste),
    2.) Prachanda: the king of upper Himalya (Nepal) ( today Maoist),
    3.) Chamar: The king of Dalit (Shiva) North India ( Today Dalit),
    4.) Mahahanu:शिव। (. तक्षक जाति का एक प्रकार का साँप), Shiva’s people/follower,
    5.) Dahan: The demon of Sambalpur distt.( Today’s Jat ),
    6.) Vikataksha: Chief of the Asuras, in the reign of king Bali.Non-Aryans, (Today non-brahamins)
    7.) Mahamauli: Barbarian ( outsider of the Aryavarta),Non-aryans Today Non-Brahamins
    8.) Shumbh and Nishumbh: The kings of Vindyachal mountain ( todays Dalit & backwords in Vindhyachal distt)
    The demons named Shumbh and Nishumbh had received boons from Brahma according to which no deity, demon or Man could kill him. Shumbh and Nishumbh became excessively arrogant and started tormenting the deities. All the deities including Lord Vishnu went to Lord Shiva and requested for his help. Lord Shiva assured them that both the demons would be killed at the opportune time. The deities were satisfied and returned back to their respective abodes. Parvati was of dark complexion. She thought that Shiva would be more affectionate towards her if she somehow discarded her dark skin. She eventually discarded her dark skin at a place and it instantly got transformed into 'Kali Kaushiki'. She then did an austere penance at Vindhyachal mountain. At that time, Shumbh and Nishumbh lived there. When both the demons saw goddess Kali Kaushiki her divine beauty infatuated them. But Goddess Kali Kaushiki ultimately killed both of them.
    Goddess Chamunda (Durga) severed the heads of 'Chand' and 'Mund' with her chakra. Mahishasur was enraged and he attacked goddess Durga. Some other demons like Prachanda, Chamar, Mahamauli, Mahahanu, Ugravaktra, Vikataksha and Dahan also came forward to help him but each one of them was killed by goddess Durga. Now, Mahishasur's anger crossed all limits and he menacingly ran towards goddess Durga. A severe battle was fought between both of them. When Mahishasur realized that the goddess was dominating the battle, he started changing his guises frequently. He tried to dodge goddess Durga by transforming his appearance into that of a boar. But, goddess Durga kept on chasing him. Then, Mahishasur became a lion. This way he kept on changing his appearances frequently to avoid getting killed by goddess Durga. Once he transformed himself into a buffalo but goddess Durga attacked him.
    This way, Mahishasur was forced to change his appearance frequently on account of relentless attack by goddess Durga. Ultimately Durga killed him. Goddess Durga picked up his severed head and danced in joy. The deities were relieved at the death of Mahishasur.

    Ref.:- http://www.bharatadesam.com/spiritual/skanda_purana.php


    ReplyDelete

We are waiting for your feedback.
ये सामग्री आपको कैसी लगी अपनी राय अवश्य देवे, धन्यवाद