Story to being Periyar

पेरियार बनने की कहानी

संजीव खुदशाह

अगर प‍ेरियार को समझना है तो ये जानना जरूरी है कि पेरियार कैसे पेरियार बने। बतादू की ई वी रामास्‍वामी पेरियार एक समृध परिवार से थे। एक बार काशी के मंदिर में एक सामूहिक भोज रखा गया और उस भोज से पेरियार को उठा दिया गया। क्‍योकि वे एक ओबीसी परिवार से आते थे। ओबीसी होने के कारण उन्‍हे जलील होना पड़ा। धर्म की सत्‍ता का उन्‍हे ज्ञान हुआ की धर्म की सत्‍ता वास्‍तव में क्‍या है। वहां उन्‍होने देखा की काशी में जो दान दाता की लिस्‍ट है उसमें सबसे ज्‍यादा ओबीसी समाज के ही लोग है। लेकिन उन्‍हे भोज में शामिल होने का अधिकार नहीं है क्‍योकि वे पिछड़े(शूद्र) समाज के है। वे छोटी जाति के है।

Periyar E V Ramaswamy Naiker

 ठीक इसी के समांनतर ऐसी ही घटना अंबेडकर और महात्‍मा फूले के साथ भी घटती है । महात्‍मा फूले जब अपने सवर्ण मित्र की बरात में जाते है तो ओबीसी होने के कारण उनको बेइज्‍जत किया जाता है, उन्‍हे जलील होना पड़ता है। जबकि वे भी एक समृध्‍द ठेकेदार परिवार से थे। ठीक इसी प्रकार डॉ अंबेडकर जब ट्रेन से उतर कर अपने पिता के पास जाते है जिल बैलगाड़ी में बैठते है। उस बैलगाड़ी में उनको छोटी यानि दलित जाति का होने के कारण जलील किया जाता है। जबकि डॉ अंबेडकर एक सैन्‍य अफसर सूबेदार के बेटे थे।

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मैं यही बतलाना चाहता हूँ की अगर कोई व्‍यक्ति जाति के नाम पर उसे जलील होता है तो बेगैरत व्‍यक्ति धार्मिक गुलाम बन जाता है। लेकिन जिसमें थोड़ी भी गैरत बची है, जिसमें थोड़ा भी स्‍वाभिमान बचा है, वह व्‍यक्ति तर्कवादी बनेगा। पेरियार बनेगा। वह व्‍यक्ति अंबेडकर बनेगा। महात्‍मा फूले बनेगा। अगर पेरियार उस घटना से आहत नहीं होते तो वे धार्मिक गुलाम बनते। जिस प्रकार करोड़ो ओबीसी, एससी, एस टी धार्मिक गुलाम बने हुये है।

बहुत सारे ओबीसी, एस सी, एसटी के लोग कहते है कि उनके साथ कभी जातिगत भेद भाव नहीं हुआ। वे कहते है हमारा प्रमोशन हो गया, हम बड़े पद में चले गये। हमारा बिजनेस है, करोड़ो की सम्‍पत्ति, बंगला है। फिर भी हमें किसी ने जाति के नाम पर जलील नहीं किया गया। तो वे लोग झूठ बोलते है। दरअसल वे लोग अपनी औकात को भूल गये है। इनमें यह पहचान करने का गुण कि उनके साथ भेद भाव हो रहा है, खत्‍म हो चुका है। जैसे जैसे आप डिस्क्रिमिनेशन को स्‍वीकार करते जाते है। आपको जलालत महसूस होना बंद हो जाता है। और आप व्‍यवस्‍था को स्‍वीकार कर लेते है। धार्मिक गुलाम बन जाते है। अपनी जलालत को ही अपनी इज्‍जत समझने लगते है। ऐसा कोई ओबीसी, एस सी, एस टी का व्‍यक्ति नहीं होगा जिन्‍हे जाति का लांछन सहन नहीं करना पड़ा हो। एक आदिवासी महिला राष्‍ट्रपति तक को जाति के नाम पर पुरी के मंदिर में जलिल होना पड़ता है, जबकि वह धार्मिक थी। तो आम आदमी की बात ही क्‍या करे।

पंडित बाल गंगा धर तिलक ने सार्वजनिक रूप से आखिर क्‍यों कहा की तेली, तंबोली, कुर्मी क्‍या संसद में आकर गाय भैस चराएंगे?  क्‍या इससे उनका पूरा समाज जलील नहीं हुआ। मेरा कहने का मतलब है कि कही न कही, कभी न कभी ये समाज, छोटी जाति का होने के कारण जलील होता है। चाहे कितनी भी ऊची पोस्‍ट में हो या व्‍यापार में हो। इस प्रकार जलील होने के कारण दो बाते होती है। एक या तो वह इन जलालत को स्‍वीकार करने के बाद हमेंशा के लिए धार्मिक गुलाम बन जायेगा। या फिर तर्कवादी-विद्रोही बन जायेगा, पेरियार, अंबेडकर या महात्‍मा फूले बन जायेगा। तीनो की स्थिति को देखिये वे समृध्‍द शाली परिवार से आते थे। उन्‍हे किसी चीज की कमी नहीं थी। बावजूद इसके उन्‍हे जलालत झेलनी पड़ी। तो यह कहना की आपने कभी जलालत नहीं झेली यह एक झूठ है। ऐसा हो नहीं सकता। ये हो सकता है कि आप धार्मिक गुलाम बन गये हो और आपमें जलालत को सहने का गुण आ गया हो।

यहां मैं बताना चाहूंगा की पेरियार ने 4 महत्‍वपूर्ण बाते कहीं है

(पहली) बात वह कहते हैं ईश्वर के बारे में

(दूसरी) बात कहते हैं धर्म के बारे में

(तीसरी) बात कहते हैं धर्म शास्त्र के बारे में

(चौथी) बात कहते हैं वो ब्राह्मणवाद के बारे में

वो कहते हैं की इन चार चीजों का खात्मा किया जाना चाहिए। वो कहते हैं की जब तक इनका खात्मा नहीं होगा। तब तक उनका उत्थान संभव नहीं। वे कहते हैं की ईश्वर को इसलिए रचा गया, ईश्वर का निर्माण इसलिए किया। ताकि छोटी जाति से अपनी सेवा करा सके। इसीलिए ईश्वर की रचना की गई। और  ईश्वर को स्थापित करने के लिए धर्म की रचना की गई। धर्म को स्थापित करने के लिए शास्त्र लिखा गया है। और यह कहा गया है की यह अपौरुषेय है। इसको किसी पुरुष ने नहीं रचा भगवान ने लिखा है। वे दावा करते है कि यह ग्रंथ आकाश से उतरा है।  उसके बाद अंत में जो चौथा है वह ब्राह्मणवाद। इन तीनों चीजों को स्थापित करने के लिए ब्राह्मणवाद को लागू किया गया। ब्राह्मणवाद का मतलब होता है अंधविश्वास का पालन करना, ब्राह्मणवाद का मतलब है भेदभाव को स्थापित करना। ब्राह्मणवाद का मतलब होता है स्त्रियों का शोषण करना। ब्राह्मणवाद का मतलब है किसी एक जाति‍ को सर्वश्रेष्ठ बताना बाकी जाती को निम्न बताना। इन चार चीजों का खात्मा होना चाहिए। ईश्वर  का, धर्म का, शास्त्रों का और ब्राह्मणवाद का। वे कहते है कि इनके खात्‍में के लिए मैं जीवन भर आंदोलन करता रहूंगा।

एक महत्‍वपूर्ण बात पेरियार से जुड़ी हुई है वह है तर्क। वे एक तर्कशास्‍त्री के रूप में काम करते है। वे कहते है कि तर्क और विज्ञान का रास्‍ता कल्‍याण का रास्‍ता है। मतलब आप समझ लीजिए की कोई व्यक्ति अगर वो दावा कर रहा है की मैं वंचित वर्ग के लिए उनके भलाई के लिए काम कर रहा हूं और उसके अंदर तर्क शक्ति नहीं है। उसके अंदर विज्ञान की विचारधारा नहीं है। तो वो झूठा है। अगर वो व्यक्ति कलावा पहने हुए हैं, वो व्यक्त जनेऊ पहने हुए हैं, तिलक लगाए हुए हैं और तरह-तरह के धार्मिक आडंबर करता है। तो वो वंचितों के लिए काम नहीं कर रहा। वह वंचितों को ठग रहा है। अगर वह बहुत सारे अंगूठियां को पहना हुआ है। मतलब कहीं न कहीं ऐसे चिन्ह को धारण कर रहा है। जिससे की यह मैसेज जाता है की वह एक अंधविश्वासी व्यक्ति है। तो वो वंचितों के लिए काम नहीं कर रहा। बल्कि वंचितों के साथ में ठगी का काम कर रहा हैं। उनको ठगने का काम मत करो। क्योंकि जो वैज्ञानिक विचारधारा है, जो विज्ञान को बढ़ाने वाली विचारधारा है, जो तर्क की विचारधारा है। वो वास्तव में वंचितों की मुक्ति का मार्ग है। अगर अंधविश्वास को हटा दिया जाए, विज्ञान को ला दिया जाए तो जो मानसिक गुलाम है वह अपने आप तर्कशील हो जाएंगे। सबसे पहले उन गुलामों को विज्ञान की तरफ लाना होगा। अंधविश्वास से मुक्त करना होगा। क्योंकि जितनी भी गुलामी का माहौल बनाया गया है। वह अंधविश्वास के बल पर बनाया गया। ऊंच-नीच क्या है एक अंधविश्वास है। भेदभाव क्या है एक अंधविश्वास है। जाति क्‍या है एक अंध विश्‍वास है। विज्ञान को ना मानना क्या है एक अंधविश्वास है। तो इससे मुक्ति किए बगैर आप किसी भी गुलाम को या किसी भी वंचित वर्ग एस सी एस टी ओबीसी का उध्‍दार का आप सपना देखते है। तो वो सपना कभी भी पूरा नहीं हो सकता। वो एक झूठ है,  एक सपना है, एक भ्रम है, छल है। ऐसा अगर आप कर रहे है तो लोगों के साथ एक छल कर रहे है।

अंधविश्‍वास को भी दो हिस्‍से में बांट दिया गया है। एक उच्‍च वर्ण का अंधविश्‍वास दूसरा निम्‍न वर्ण का अंधविश्‍वास। छुआ छूत, वेद शास्‍त्र, जातिवाद, जनेऊ, कुंडली, फलित ज्‍योतिष, हस्‍तरेखा जैसे उच्‍च वर्ण के अंधविश्‍वास को वे अंधविश्‍वास नहीं मानते । वे सिर्फ निम्‍न वर्ण के अंधविश्‍वास झाड़फूक, डायन प्रथा, तोता मैना से भविष्‍य बतना को ही अंधविश्‍वास मानते है। असल में अंधविश्वास का दायरा सीमित नहीं होना चाहिए।  आप एक निम्न वर्ग का विश्वास को ही आप खुलासा करिए और जो उच्च वर्ग का अंधविश्वास है उसको आप बचाइए।  ये जो सोच है। इस सोच का भी पर्दाफाश करने की जरूरत है।  साथियों कितने लोग इस पर काम करते हैं। अगर आप एक सामाजिक कार्यकर्ता है। वंचितों के लिए काम कर रहे हैं। अपने समाज के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन आप के अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता के गुण नहीं है तो आप का ये काम अधूरा है। आप लोगों को छलने का काम कर रहे है। आप उसके साथ ठगी कर रहे हैं।  आपको एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ एक अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता भी बनना पड़ेगा। तब कहीं जाकर आप किसी वंचित वर्ग का भला कर पाएंगे। डॉक्टर अंबेडकर, महात्मा फुले, कबीर, पेरियार साहब की जिंदगी को देखिए।  इन्होंने जो काम किया साथ-साथ दोनों प्रकार के अंधविश्वास पर उन्होंने चोट किया।

 उन्होंने सच्ची रामायण इसी उद्देश्य लिखी।उन्होंने उस समय मौजूद जितने 20 प्रकार के अलग-अलग रामायण का अध्ययन किया। उन्‍होने एक ही किताब पढ़कर सच्‍ची रामायण नहीं लिखी। गहरा अध्‍ययन किया था उन्‍होने।

जेंडर जस्टिस पर उनके विचार

वो स्त्री पुरुष की बराबरी की बात करते हैं। वे बात करते हैं की किस प्रकार से महिला पुरुष का विवाह हो, उनका संबंध बराबरी को हो। वे कहते है कि पति पत्नी नहीं बोलना चाहिए। क्‍योकि पति का मतलब मालिक है और पत्नी का मतलब दासी। मालिक एवं दासी का रिश्‍ता नहीं हो सकता। दोनो के बीच दोस्‍ती का रिश्‍ता होना चाहिए। उनके बीच बराबरी, एक दूसरे के सम्‍मान का रिश्‍ता होना चाहिए। वे कहते है कि विवाह आडंबर रहित कोर्ट में होना चाहिए। समारोह खर्चीले नहीं होना चाहिए।

धर्म ग्रंथ नहीं पॉलिटिकल ग्रंथ है

दूसरा जो एक महत्वपूर्ण बात ये है की वे कहते हैं की धर्म ग्रंथ रामायण और महाभारत धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि ये पॉलिटिकल ग्रंथ है। लोगों का ब्रेन को वॉश करने के लिए ग्रंथ को बनाया गया। इन ग्रंथो का मकसद सांस्कृतिक गुलाम बनाये रखना है। उसका असर आपको देखने के लिए मिलता है। अब देखिए तमिलनाडु में जो उनकी बनाई पार्टी है वह आज सत्‍ता में है। तमिलनाडु के सरकारी कार्यालय में आपको किसी देवी देवता की तस्वीर या मूर्ति नहीं मिलेगी! बकायदा वहां पर एक ऑर्डर पास किया गया है की सरकारी कार्यालय में कोई भी देवी-देवता, अल्ला भगवान, का फोटो नहीं लगाया जाएगा। लेकिन आप यदि उत्तर भारत में आकर के देखेगें सरकारी कार्यालय को मंदिर सा बना दिया जाता है। क्यों बनाया जाता है? क्या आजादी किसी खास जाति‍ या किसी खास धर्म का योगदान से ही मिली है। संविधान में सभी धर्म के लोगों ने अपना योगदान दिया। यह एक डेमोक्रेटिक देश है। ये धर्मनिरपेक्ष देश है, ये सेकुलर देश है। जिसकी नजर में सारे धर्म एक है। एक जैसे है। धर्म से रहित देश है। संविधान कहता है की धर्मनिरपेक्ष का मतलब होता है किसी भी धर्म से जुड़ा हुआ नहीं है। लेकिन संसद धार्मिक स्वतंत्रता भी देता है। इसका मतलब यह नहीं है की है देश किसी धर्म का उसका पालन करने के लिए खड़ा हो जाए। एक डेमोक्रेटिक देश के सरकारी कार्यालयों में, थानों में मंदिर और मस्जिद क्‍यों दिखाई पड़ते हैं। ये सोचना पड़ेगा। इसी के बारे में पेरियार साहब बोलते हैं की वोट का पॉलिटिक्स से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है सांस्कृतिक बदलाव।

सांस्कृतिक बदलाव कितना जरूरी है। आरएसएस जैसा बड़ा संगठन क्यों आपने आपको सांस्कृतिक संगठन कहता है। कितना महत्वपूर्ण है सांस्कृतिक बदलाव। इसको आप समझिए पेरियार साहब उस समय क्‍या कह रहे हैं। की सांस्कृतिक बदलाव की बहुत जरूरत है। इसीलिए आर एस एस ने अपने आप को कभी भी पॉलिटिकल संगठन नहीं माना। सांस्कृतिक संगठन माना। उसके लिए ही काम किया। लेकिन आजादी के बाद का जो माहौल है। उसको आप देख सकते हैं की किस प्रकार से वोट की राजनीति पर ध्‍यान केन्द्रित किया गया। जो वंचित वर्ग एस सी, एस टी, ओबीसी के द्वारा संचालित राजनीतिक पार्टी चाहे बीएसपी की बात कहे, चाहे एसपी की बात कहें, चाहे और दूसरी आरजेडी की बात करे। इन्होंने सिर्फ वोट की राजनीति पर ध्‍यान केन्द्रित किया। इसका हस्र क्या हो रहा है। आज उत्तर प्रदेश में आप देख सकते हैं। बिहार में आप देख सकते हैं। सांस्‍कृतिक परिवर्तन नहीं हुआ। सांस्कृतिक परिवर्तन नहीं होने के कारण वोट की सत्‍ता हाथ से निकलती जा रही है। आज तमिलनाडु में आरक्षण विधेयक पास किया और 50% से ज्यादा आरक्षण वे अपने लोगों को दे रहे हैं। ये कैसे हो पाया। इस सांस्कृतिक परिवर्तन, विचार के प्रति अडिग रहने का उनका जो संकल्प है। उसके कारण वे ऐसा कर पाए। आज वे ईडबल्‍यूएस आरक्षण को अपने यहां लागू नहीं कर रहे है। क्योंकि उन्होंने सांस्कृतिक परिवर्तन किया,  वैचारिक परिवर्तन की उन्होंने बात रखी है। उसकी बात करते हैं और उसको लागू करते हैं। वह एक तरफ ऐसा नहीं करते हैं जैसे की उत्तर भारत में होता है। वह एक तरफ कहते हैं की वह दलितों वंचितों, अल्‍पसंख्‍यकों की पार्टी है। दूसरी तरफ वो सवर्ण की ईडब्ल्यूएस आरक्षण के समर्थन की भी बात करते हैं। वैचारिक जो लडंखडांने वाली बात उनके अंदर नहीं है। इस चीज को उत्तर भारत के लोगों को सीख लेनी चाहिए। तब कहीं वह बदलाव हो पाएगा जिसका सपना रामास्वामी पेरियार ने देखा था।

आप कोई भी सामाजिक काम करते हैं या सामाजिक बदलाव की बात करते हैं, आप एक लेखक हैं या आप स्कॉलर हैं और आप बहुत बुद्धिजीवी हैं और आप वैज्ञानिक कार्यकर्ता हैं वंचितों के लिए कम करते हैं। आप चाहते हैं की समता समानता हो और साथ-साथ आप चाहते हैं की जो सुरक्षा चक्र के घेरे में आप रहे। तो संभव नहीं है। आपको जोखिम उठाना पड़ेगा। आपको हर प्लेटफार्म में अपने एजेंडे की बात को रखना पड़ेगा। बिना जोखिम उठाए कोई भी काम आप नहीं कर सकते। जोखिम से डर करके आप कोई भी काम नहीं कर सकते ।

मतलब सुरक्षा चक्र में रहना चाहते हैं तो आप सामाजिक काम करना छोड़ दीजिए। मात करिए क्योंकि सामाजिक काम विज्ञान को लेकर के काम करने के लिए आपको कुछ लोगों को नाराज करना पड़ेगा। तब कहीं जाकर के समता समानता वाला प्रबुध्‍द भारत। जिसका सपना हमारे पूर्वजों ने देखा था। वैसे भारत का अपने निर्माण कर पाएंगे। नहीं तो फिर मेरा ख्याल है की आप सिर्फ नाम और अपने फेम के लिए काम करना चाहते हैं। आपका मकसद कुछ और है। वो मकसद नहीं है जो की आप दिखाना चाह रहे हैं।

तो पेरियार का सपनों का भारत बनाने के लिए हमको पेरियार के बताए हुए रास्ते पर चलना पड़ेगा। तब कहीं जाकर के हम उनके मकसद को कामयाब बना सकते हैं और वैसा भारत हम बना सकते हैं जिसका सपना बाबा साहब ने महात्मा फुले ने देखा था।

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