Son of a sanitation Labour, former mayor of Nagpur, Dalit Mitra, Babu Ramratan Janorkar.

 सफाई मजदूर के बेटे पूर्व महापौर नागपुर दलित मित्र बाबूरामरतन जानोरकर

संजीव  खुदशाह

बाबू रामरतन जानोरकर एक ऐसे शख्स का नाम है जिन्होंने नागपुर की धरती में सफाई मजदूर के घर जन्म लिया डॉं भीमराव अंबेडकर के साथ काम किया। वे 14 अक्टूबर 1956 के डॉ भीमराव अंबेडकर की धम दीक्षा संयोजक समिति के उपसचिव रहे है। 1957 में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा 1957 भारतीय बौद्ध महासभा के अखिल भारतीय अधिवेशन की वे जनरल सेक्रेटरी रहे।

राम रतन जानोरकरजी को प्यार से बाबूजी भी कहते थे। बाबूजी का जन्म 8 अगस्त 1931 में पांच पावली की सफाई मजदूर बस्ती में हुआ था। इनके पिताजी जालिम जियालाल नगर पालिका में सफाई जमादार थे और माता गंगाबाई भी नगरपालिका में सफाई मजदूर का काम करती थी। वह कहते हैं कि उनका परिवार


उत्तर प्रदेश के बांदा जिला से हिंदु जाति व्यवस्था और उनकी प्रताड़ना से तंग आकर नागपुर आ गये। वे डोमार अनुसूचित जाति वर्ग से आते थे।

प्रसिद्ध लेखक एडवोकेट भगवान दास कहते हैं कि जानोरकर साहब का जन्म डोमार जाति में हुआ था। जो बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में आबाद है। डोमार जाति अन्य अछूत जातियों से भिन्न है। बांदा जिले के गांव राजापुर तथा आसपास के इलाके में यदि कोई अछूत जाति सम्मान के लिए टक्कर देती है तो वह केवल डोमार लोग ही हैं। कई बार लड़ाई में उनके हाथों कत्ल भी हो जाता है। जानोरकर के दादा स्वर्गीय जियालाल दीवान इसी गांव में रहते थे। आज भी जानोरकर के परिवार के सदस्य इसी गांव में निवास करते हैं। 19वीं शताब्दी में ऐसी हालत में जातिगत लड़ाई के बाद डोमार जाति के लोग राजाओं रियासतों जातिवाद के अत्याचारों से तंग आकर या कहें भाग कर नजदीक के अंग्रेजी शासन के इलाके में शरण लेते रहे। गांव में उनका वहां कोई खास पेशा नहीं था। अन्य छोटी जातियों की तरह वे खेत मजदूर थे या वे सभी काम कर लेते थे जिन्हें गंदा और नीच समझा जाता था। बड़े शहर में जीविका के लिए जो भी बिना शिक्षा दीक्षा का काम मिला उन्होंने कर लिया। कुछ लोग नई बनी म्यूनिसिपल कमेटियों में सफाई का काम करने लगे और वहीं फस गए। आबादी बढ़ती चली गई और वह यही के होकर रह गए।

 राम रतन जी जब 5 वर्ष के हुए तो उनके पिताजी का साया उठ गया और 10 वर्ष की आयु में माताजी ने साथ छोड़ दिया। परिवार आर्थिक संकट में फस गया। बाल्यावस्था में ही रामरतन जी को सफाई मजदूर की नौकरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा। बड़ी बहनो समेत लंबा चौड़ा संयुक्‍त परिवार था। इस बीच उन्होंने अपनी पढ़ाई को भी जारी रखा। दलितों के मसीहा डॉ आंबेडकर से प्रेरणा लेकर राम रतन छात्र जीवन में ही दलित उद्धारक राजनीति से जुड़ गए थे। नागपुर में जब शेड्यूल कास्ट स्टूडेंट फेडरेशन बना तो वह उसके सचिव बन गए। छात्रों के बीच सक्रिय हिस्सेदारी के कारण बड़ी आसानी से उन्हें सक्रिय राजनीति में बिना किसी की उंगली पकड़े प्रवेश मिल गया। नागपुर महानगर पालिका की सेवा में स्वयं होकर मुक्ति‍ पाई और दलितों की सेवा के काम में जुट गए। नागपुर शहर में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के सचिव बन गए। इस पद के कारण भी सार्वजनिक तौर पर दलितों के बीच एक चमकते सितारे की तरह उभरे।

जानोरकर जी को पुस्तक, पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने का शौक था। शासन को अंदर से देखा राजनीति को बाहर से सोचने समझने और कुछ करने की आदत थी। जो बहुत कम लोगों में होती है। जिंदगी के कुछ उसूल बनाए

और उन पर दृढ़ता से अमल किया। न झुके, न बिके, न डरे, न बहके अपने रास्ते पर चलते रहे हैं। बाबू हरिदास आवडे एक लंबे अरसे तक इस इलाके में काम करते रहे हैं। उनकी तरह ईमानदार निष्ठावान सूझबूझ वाले बहुत कम लोग पैदा होते हैं। जानोरकर जी उनके संपर्क में आये और उनकी मृत्यु तक वफादारी के साथ काम करते रहें।

जानोरकर जी ने 1949 में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन में दिलचस्पी ली। परंतु नौकरी छोड़ने के बाद फेडरेशन तथा रिपब्लिकन पार्टी में पूरी लगन और दिलचस्पी से काम किया। कई महत्‍वपूर्ण पदों पर नियुक्त हुऐ, आंदोलन में भाग लिया, कई बार जेल भी गए, रिपब्लिकन पार्टी के झंडे तले इलेक्शन भी लड़े। 1951 के बाद वह बौद्ध धर्म में दिलचस्पी लेने लगे। 1956 में अन्य लोगों के साथ बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर द्वारा महान दीक्षा सम्मेलन में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। दिक्षा समिति के उपसचिव रहे। 1975 में वे भारतीय बौद्ध महासभा में शामिल हुए।  वे 1976 में नागपुर महानगर पालिका में मेयर चुने गए। 

नागपुर में सफाई कर्मचारियों को कर्ज और जमाखोरों से मुक्त करने के लिए उन्होंने एक कोऑपरेटिव सोसाइटी कायम करने का सोचा और लोगों को यह समिति बनाने पर राजी किया।  मेहतर को ऑपरेटिव सोसाइटी के नाम से स्थापित समूचे भारत में मेहतरों की या सबसे बड़ी कोऑपरेटिव सोसाइटी नागपूर (मेहतर बैंक) है जो करोड़ों अरबो रुपए का लेनदेन करती है।

जानोरकर जी राजनीतिज्ञ होने के अलावा समाज सुधारक भी थे। वह जात-पात विरोधी थे और केवल जात-पात के खिलाफ भाषण नहीं देते थे। बल्कि उसे अमल भी करते थे। अपने बच्चों के विवाह अपनी जन्म जाति से बाहर किया। खुद भी अंतरजातीय विवाह किया। उनके रिश्तेदारों में मेहतर, वाल्मीकि, इसाई आदि कई जाति के लोग हैं। नागपुर में विवाह और मृत्यु में अन्य अछूत जातियों में बहुत फिजूल खर्ची होती थी। परंतु अपनी लड़कियों के विवाह उन्होंने ठीक बाबा साहब डॉं अंबेडकर की दिखाएं रास्ते के मुताबिक किया। जानोरकर जी शराब सिगरेट बीड़ी आदि का सेवन नहीं करते थे और यह प्रचार भी करते थे कि नशा नहीं करना चाहिए। वह बहुत स्पष्टवादी थे उनकी यह आदत कभी-कभी कुछ लोगों को नाराज कर देती थी। परंतु उनके सोचने का ढंग बहुत ही तार्किक था।

जानोरकर जी सफाई कामगार जातियों में शिक्षा के प्रसार को महत्व देते थे। इसके लिए उन्होंने मध्य प्रदेश समेत अन्य प्र‍देशों में प्रचार भी किया। पंपलेट और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने इस काम को आगे बढ़ाया। लेकिन संसाधनों की कमी के कारण यह लंबे समय तक नहीं चल सका। उन्‍होने पूरे देश में घूमकर बौध्‍द धर्म का प्रचार किया और लोगो को बौध्‍द धर्म की दीक्षा दी।

बाबू राम रतन जानोरकर जी बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे। वे रिपब्लिकन पार्टी और अंबेडकर आंदोलन की बढ़ोतरी के लिए संघर्षशील न रहते तो उनसे यह क्षमता थी कि वह समूचे भारत में एक जातियां वर्ग के नेता बन सकते थे। परंतु उन्होंने अंबेडकर आंदोलन को बढ़ाने और संगठन को महत्व दिया और पार्टी के प्रति वफादार रहे। यदि अन्य नेताओं की तरह वे बिक जाते तो ऊंचा पद और धन दोनों उनके पास होता। परंतु वह असूल से बंधे रहे एक छोटी सी झोपड़ी नुमा घर में रहकर भी बाबा साहब की मिशन को आगे बढ़ाने का प्रयास करते रहे। वह सही मायने में दलित मित्र हैं उस बीज की तरह जो मिट्टी में मिलकर अपना वजूद खोकर नए वृक्ष को जन्म देता है। उनके बारे में कहा जाता है कि वह गरीब स्थिति होने के बावजूद रोज सुबह ब्रेड, डबल रोटी गरीबों में बांटा करते थे और यह काम उन्होंने अपने जीवन पर्यंत किया। इन पंक्तियों के लेखक ने उन्‍हे ऐसा करते देखा है।

पहले नागपुर में सफाई कामगारों की नौकरियां जाति आधारित निकाली जाती थी। जिसमें सिर्फ सफाई कामगार जातियां ही आवेदन कर सकती थी। रामरतन जानोरकर ने इसका विरोध किया। उन्‍होने सभी जाति के लिए यह मार्ग खुलवाया। उन्होंने कहा कि जिस दिन सफाई कामगार जातियां दूसरे कामों में लग जायेगीं तथा सफाई काम में अन्‍य जातियां आएंगी तभी यह देश प्रगति हुआ है माना जाएगा। 

भले ही वे वाल्‍मीकि एवं सुदर्शन जयंती में जाते थे। किन्‍तु वे यह मानते थे की सफाई कामगारों का भला पौराणिक ऋषियों की पूजा अर्चना करने से नहीं होगा क्योंकि इससे सफाई कामगार समाज धार्मिक जाति व्यवस्था के सामने नतमस्तक होकर शिक्षा से दूर हो जाता है। जिसके कारण वह विरोध नहीं कर पाता। वह मानते थे कि अंबेडकर वादी आंदोलन और विचारधारा के प्रभाव में आने के बाद ही समाज का भला हो सकेगा। उन्‍हे महाराष्ट्र सरकार द्वारा बाबा साहेब अंबेडकर दलित मित्र सम्‍मान दिया गया। वे पूरी जिंदगी सक्रिय रहे 19 जून 2005 को 74 वर्ष की आयु में उनका परी निर्वाण हुआ। काश पूरा समाज उनसे प्रेरणा लेता और उनके बताऐ रास्‍ते पर चलता।

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