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ये फिल्म जरूर देखे जय भीम कामरेड

पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त- जयभीम कामरेड
संजीव खुदशाह
पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। ये जुमला आनंद पटवर्धन की फिल्म ‘‘जयभीम कामरेड’’ पर सौ फीसदी सही बैठता है। उन्होने एक ऐसी फिल्म बनाई जो डाक्युमेन्ट्री होते हुए भी फिचर फिल्म की तरह आगे बढ़ती है। इसके पात्र असल जिंदगी के है। वे गाते है, नुक्कड़ नाटक करते है, लोगो को जागृत करते है, शहीद भी होते है, आत्महत्या भी करते है तथा जेल भी जाते है। बिल्कुल फीचर फिल्म की तरह। किन्तु इसके पात्रों की मृत्यु होना, जेल जाना अभिनय का हिस्सा नही हैं। एक वास्तविक घटना है। यह फिल्म कुल 14 साल में बन कर तैयार हुई। इसमें कई कहानियां एक साथ चलती है। शायर विलास घोगरे, ईस्पेक्टर मनोहर कदम, भोतमागे परिवार, कबीर कलामंच, शीतल साठे आदि आदि।
ये फिल्म 11/7/1997 को मुम्बई के रमाबाई नगर मे स्थित अम्बेडकर की मूर्ति पर चप्पल की माला पहनाकर अपमानित करने की घटना से प्रारंभ होती है। इस अपमान  के विरोध में रमाबाई नगर के दलित मजदूर शांति पूर्वक प्रदर्शन करने के लिए निकले ही थे कि महाराष्ट्र पुलिस ने उन पर फायरिंग कर दी। इस गोली कांड में 10 दलित मारे गये। इसी नगर में शायर विलास घोगरे झोपड़ीनुमा घर मे रहते है और अपनी सुरीले गीतो से लोगो में जागृति लाने का काम कर रहे है। वे इस घटना से इतने आहत होते है कि 4 दिनो बाद 15 जुलाई को आत्महत्या कर लेते है।
चारो ओर इस गोली कांड की निदा की जाती है। गौर तलब है कि इस हत्याकांड को सही साबित करने के लिए पुलिस ने एक झूठा विडियो भी जारी करती है। जिसमें काटछांट कर यह दिखाने की कोशिश की गई कि टैंकर में आग लगने के कारण बचाव में फायरिंग की गई थी, जबकि वहां कोई टैकर था ही नही। अम्बेडकरवादियों ने इस हत्याकांड के विरोध में प्रदर्शन किया और दबाव में आकर तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने इसकी जांच के लिए गुण्डेवार कमीशन बिठाया। लेकिन फायरिंग का आदेश देने वाले इंस्पैक्टर मनोहर कदम को तरक्की दे दी गई। लंबी लड़ाई के बाद 2009 में कोर्ट ने इंस्पैक्टर कदम को धारा 304 के तहत आजीवन करावास की सजा सुनाई। दूसरी ओर हाई कोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया। तब तक सरकार ने कदम को अस्पताल में रखा। महाराष्ट्र के डीजीपी ने ब्यान दिया की तकनीकी गलती की वजह से कदम को सजा हुई इसलिए उन्हे अस्पताल में रखा है। ये सारी घटनाएं क्रमानुसार इस फिल्म में बखूबी फिल्माया गया है।
इसी प्रकार खैरलांजी की बलात्कार हत्याकांड की घटना तथा उसके खिलाफ हुए प्रदर्षन को विस्तार दिखाय गया है। इस फिल्म का दूसरा भाग में कबीर कला मंच और उसकी गतिविधियों पर फोकस  है। कबीर कला मंच के मुख्य सदस्यों में से एक दलित कलाकार शीतल साठे है वह एक ऐसे गरीब परिवार से ताल्लुक रखती है जहां उसकी मां थाली में देवी देवताओं की मूर्ती सजाकर भिक्षा मांगने का व्यवसाय करती है। उसका घर झोपड़ पट्टीयों के बीच पुरानी टीन के चादरों से बना हुआ है। कबीर कला मंच के कार्यक्रमों के दौरान उन्होने अंर्तजातिय विवाह किया। तंगहाली होने के बावजूद शीतल पुणे यूनिवर्सिटी से एम.ए. गोल्डमेडलिस्ट है और वह गलियां, नुक्कड़ो में गीत के माध्यम से अम्बेडकर, फूले, कबीर एवं भगत सिंह के विचारों से लोगो को जागृत करने में लगी हुई है।
शीतल साठे फिल्म ‘‘जयभीम कामरेड’’ में एक कुशल अभिनेत्री की तरह सामने आती है इस फिल्म में वह कई सभाओं में कार्यक्रम प्रस्तुत करती देखी जाती है। मै आपको बताना चाहूगां की शीतल ने ये काम किसी फिल्म के लिए नही किया बल्कि फिल्मकार ने इसकी गतिविधियों को एक फिल्म की तरह पर्दे पर उतारा है। कहा जाता है, इसी दौरान गरीबों की जमीन हड़पने वाले सेज तथा विल्डरों के खिलाफ इस मंच ने आंदोलन छेड़ा। इसी से खफा होकर सरकार ने इन्हे नक्सली बताना प्रारंभ कर दिया। और उनके खिलाफ ए.टी.एस. (आंतंकवाद निरोधक दस्ता) को लगा दिया। सबसे पहले 2011 में दीपक डेगले की  गिरफतारी Unlawful Activities (Prevention) Act (UAPA) के तहत हुई। दिपक का टार्चर हुआ। मंच के बाकी सदस्य भूमिगत हो गये. तब जक जय भीम कामरेड प्रद‍िर्शित हो चुकि थी, और कबीर कला मंच के बारे में झूठा प्रचार कमजोर हुआ। हाई कोर्ट ने दीपक और 5 अन्य को जमानत दे दी। मंच हिम्मत बढी और आखिर 2 अप्रैल 2013 को महाराष्ट्र विधान सभा के सामने सत्याग्रह के दौरान शीतल साठे और सचिन माली स्वयं सामने आये और गिफतार हो गये। इन पर भी (UAPA) के तहत आरोप लगाये गये। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस समय शीतल गर्भवती है।
हालांकि फिल्म ‘‘जयभीम कामरेड’’ 1997 से प्रारंभ होकर 2011 में पूरी हो गई थी। लेकिन इस फिल्म में पर्दे पर उतारी गई घटनाएं और किरदार आज भी गतिशील है। आज टीवी पर शीतल के रिहाई का दृश्‍य देखकर लगता है फिल्म अभी भी चल रही है।
सचमुच यह फिल्म आम दर्शको से अपने आपको जोड़ पाती है। चौदह साल तक एक फिल्म पर कार्य करना मजबूत इरादे की बदौलत ही संभव है। इसके लिए आनंद पटवर्धन बधाई के पात्र है। इस फिल्म को कई राष्ट्रीय अंर्तराष्ट्रीय अवार्ड से नवाजा गया है। जयभीम कामरेड दरअसल उन लोगो की कहानी है जो नाच गाने के माध्यम से अम्बेडकरी और मार्क्सवादी विचार धारा का मेल कर जन-जन तक पहुचा रहे है इनका प्रभाव समाज में इस कदर पड़ रहा है कि लोग भ्रष्टाचार, शोषण के खिलाफ उठ खड़े हो रहे है और सामंतवादी सरकार को इन्हे नक्सली कहकर जेल में डालने को मजबूर हो ना पड़ रहा है।
आज शीतल साठे जमानत पर आजाद हो गई लेकिन उनके तीन साथी सचिन माली, सागर गोरख और रमेश गायचर अभी भी जेल में है। महाराष्ट्र देश में सांस्कृतिक क्रिया कलापों की धानी मानी जाती है। ऐसे स्थान में कबीर कला मंच को नक्सली करार देने से महाराष्ट्र के सांस्कृतिक आंदोलन हानि पहुच रही है। क्या इस देश में कबीर, आंबेडकर और भगत सिंह के गीत गाना गैर कानूनी है। यदि सरकार ऐसा मानती है तो कबीर, आम्बेडकर और भगत सिंह को नक्सली घोषित कर देना चाहिए।
यह बड़ा ही गंभीर मसला है कि सरकार के निशाने में आज बुध्दिजीवी है। वह वर्ग जो अपने विचार के बल पर समाज को जागृत करने का काम कर रहे है, आज लेखक, साहित्यकार, सांस्कृतिक कर्मी, फिल्मकार सभी सरकार के रडार पर है। जो भी व्यक्ति व्यवस्था की खामियों को उठाता है उसे सरकार आतंकवादी या नक्सली घोषित करने में जरा भी देर नही करती। यह नही भूलना चाहिए की भारत एक लोकतांत्रिक देश है जनता के लिए जनता के द्वारा शासित। मुझे ऐसा लगता है अब आनंद पटवर्धन को जयभीम कामरेड पार्ट-2 बनाने की आवश्‍यकता पड़ेगी क्योकि इसके पात्र अभी भी अपने लक्ष्य के लिए संघर्ष कर रहे है।
संजीव खुदशाह
Sanjeev Khudshah
M-II/156, Phase-1,

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