Blackmailer Journalism, Fourth Pillar of Democracy

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता पर लगती दीमक

योगेश प्रसाद

पत्रकारो द्वारा ब्‍लेकमेलिंग "मामला बहुत गंभीर है और राज्य मशीनरी को इसका संज्ञान लेना चाहिए और ऐसे पत्रकारों का लाइसेंस रद्द करना चाहिए, यदि वे अपने लाइसेंस की आड़ में इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में संलिप्त पाए जाते हैं। राज्य सरकार के पास ऐसी मशीनरी है जो मामले के सही पाए जाने पर इस तरह की गतिविधियों को रोकने में सक्षम है।" इलाहाबाद उच्‍च न्यायालय।[1]  

सरकारी अमले से लेकर गैर सरकारी सैक्टर आज पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेलिंग से परेशान है। ये पीड़ा इतनी बढ़ गई है कि समाज हर पत्रकार को हेय दृष्टि से देखने लगा है। ब्लैकमेलिंग के शिकार लोगों/विभागों की शिकायत/फरियाद सुनने के लिए आजतक कोई भी संगठन सामने नहीं आया। कोई भी पत्रकार संगठन यदि आगे आये और ब्लैकमेलिंग करने वाले पत्रकारों को सजा दिलवाने का काम करे तो इस तरह की पहल से पत्रकारिता की लुटती इज्जत को बचाया जा सकता है। भड़ास मीडिया।[2]

कानपूर प्रेस कलब ने 17 मई 2024 पुलिस कमिश्नर को बकायदा पत्र लिखकर ब्लेक मेलिंग करने वाले पत्रकार के खिलाफ कार्यवाही करने को कहा। पुलिस कमीशनर कानपूर उत्‍तरप्रदेश ।[3]

समाज में पत्रकारों का चोला ओढ़कर केवल अपराध करने वाले ही नही है अब पत्रकारिता को कलंकित करने वाले कथित पत्रकार नकली पीडीएफ बनाकर व्हाट्सएप ग्रुपों में डालकर समाज में भय कारित कर धन उगाही कर रहे है. ऐसे पत्रकार गांव से लेकर शहर तक हजारों बार अपनी फजीहत कराने के बाद भी सीना ताने हर रोज उन्हीं कार्यालयो में खडे़ मिलते हैं जहां उनको तमाम उपाधियों से नवाजा जा चुका होता है. ग्राम सभा के प्रधानों से लेकर विधायकों, सांसदों  की गालियां उनके लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं है. ऐसे धन उगाही के बहुतेरे मामलो में पीड़ितों ने ऐसे कथित पत्रकारों को गाली देते हुए पीटा भी है लेकिन नकली पीडीएफ का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा है। भारतीय बस्‍ती डाट काम.[4]

पत्रकारिता को लेकर बहुत सारी बातें होने लगी है बहुत सारे सवाल भी सामने आए हैं। जिसका समय रहते जवाब ढूंढना होगा। आज के समय में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया को देखा जाता है और मीडिया को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका पत्रकार निभाते हैं। एक समय था जब पत्रकारिता को एक पाक और साफ पेशे में गिना जाता था। लेकिन बहुत सारी ऐसी घटनाएं  हो रही हैं जिससे पता चलता है कि पत्रकारिता के पेशे में दीमक लग चुकी हैं। 

अगर आपको जानना है कि पत्रकारों के बारे में लोग क्या राय रखते हैं तो आप एक रियल एस्टेट कंपनी के मालिक से पूछिए, खनन उद्योग में लगे लोगों से पूछिए, पूछिए उनसे जो ईट उत्पादन के काम में लगे हुए हैं, यह जानने की कोशिश कीजिए कि स्थानीय दुकानदार, सरपंच, थानेदार, तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर पत्रकारों के बारे में क्या राय रखते हैं। पी डब्लू डी के अधिकारियों से पूछिए पत्रकारों के बारे में उनकी क्या राय है। ज्यादातर लोगों के लिए पत्रकारों के प्रति कटु अनुभव रहता है। बहुत सारे लोगों को अपनी नौकरी, पेशे, व्यवसाय को बचाने के लिए पत्रकारों को हफ्ता देना पड़ता हैं। यह मसला इतना गंभीर है की अगर इसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया। तो स्थिति विकट हो सकती है। लोग कानून हाथ में ले सकते हैं। 

पत्रकार को जवाबदेही के आधार पर दो भागों विभाजित किया जा सकता है1

ग्रुप ए.          स्थापित टी वी चैनल अखबार आदि के अधिकृत पत्रकार ऐसे पत्रकार अपने टीवी चैनल एवं अखबार संस्‍थान के प्रति जवाबदेह होते है। इनके गलत खबर चलाने पर शासन या जनता के द्वारा आपत्ति करने पर संस्‍थान एवं पत्रकार पर प्रेस एंड रजिस्‍ट्रेशन ऑफ बुक्‍स एक्‍ट 1867 द इंडियन प्रेस काउंसिल एक्‍ट 1978 के अंर्तगत कार्यवाही की जा सकती है। इसलिए ये ज्यादातर पुरी पुष्टि के बाद खबर चलाते है।

ग्रुप बी.         पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल वाले गैर पंजीकृत पत्रकार ऐसे पत्रकार किसी के लिए जवाबदेह नहीं होते है। चूकि इनका कोई पंजीकरण अनिवार्य नहीं है इसलिए ये ज्यादातर पुष्टि के बगैर मनमाने ढंग से समाचार चलाते है। चूकि ये स्थानीय समाचार पत्र, पोर्टल या यूट्यूब चैनल पर पत्रकारिता करते है इसलिए इन्‍हे पत्रकारिता के कानून का भय नहीं होता है।

पत्रकारिता को लेकर कोई मापदंड कोई ट्रेनिंग कोई शिक्षा या कोई परीक्षा नहीं होती है।

कोई भी व्यक्ति जिसके पास एक मोबाइल और नेट पैक है वह मुफ्त में वेबसाइट निर्माण करके, ब्लॉग्स, यूट्यूब चैनल बना करके अपने पत्रकार करियर का शानदार आगाज कर सकते हैं। देखा जाता है कि ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में पत्रकारिता वे लोग कर रहे हैं जिन्होंने उस इलाके में न्यूज़ पेपर बांटने की जिम्मेदारी ली हुई है, वही समाचार का लेनदेन भी करते हैं, यहां तक की विज्ञापन लाने की जिम्मेदारी भी उन पर होती है। वह स्थानीय तौर पर अपने आप को पत्रकार बता कर गौरवान्वित होते हैं। एक समय था जब पत्रकारिता करना बहुत कठिन था। आपको बहुत सारे संसाधन जुटाने पड़ते। कर्मचारी रखना पड़ता या फिर किसी संस्थान में पत्रकार की नौकरी के लिए गुहार लगाना पड़ता तब पत्रकार बन पाते थे।

आइये जानने की कोशिश करते है कि आज कल ज्‍यादातर लोग पत्रकार क्‍यो बनना चाहते है। लोकतंत्र को ध्यान में रखते हुए या कहें लोकतंत्र के चौथे स्तंभ बनने की खातिर बहुत सारे लोग पत्रकारिता में हाथ आजमाने लगे हैं। इसके कुछ कारण है जिनकी चर्चा यहां पर करना जरूरी है। 

A. अच्छी कमाई का जरिया- बहुत सारे लोग पत्रकारिता में इसलिए आते हैं क्योंकि उन्‍हे लगता है कि कम समय में बहुत सारे पैसे यहां पर कमाए जा सकते हैं और ऐसे बहुत सारे पत्रकारों की लिस्ट हैं राष्ट्रीय स्तर पर जो करोड़ों अरबो के मालिक हैं। हालांकि यह रुपए उनके पास कैसे आए हैं यह जांच का विषय है।

B. फेमस होने की चाह- बहुत सारे लोग पत्रकारिता में सिर्फ इसलिए आते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में आने के बाद बहुत जल्दी प्रसिद्ध होने की आशा होती है। परिचय में जब आप पत्रकार बताते हैं तो लोग आपकी बातों को गौर करने लगते हैं। यह उन लोगों के लिए बड़ी बात है जिनकी बातों को कोई गौर नहीं करता है।

C. राजनीति और ब्यूरोक्रेसी में पहुंच- पत्रकारिता में आने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि आपका संबंध सीधे अपने कस्बे के विधायक मंत्री नेता अथवा बड़े अफसर से बन जाता है. बड़े नेता और अफसर के सामने जो व्यक्ति खड़े होने की भी योग्यता नहीं रखता। वह पत्रकार बनकर उस योग्यता को पा लेता है और अपनी ज़रूरतें बहुत आसानी से पूरी करता हैं । 

D. समाज सेवा का दिखावा कुछ लोग इस पेशे में इसलिए आना चाहते है कि उनकी प्रतिष्‍ठा समाज सेवक त्‍याग मूर्ती की बने।

पत्रकारिता पर दीमक कैसे लग रहा है

मीडिया पत्रकारों के हाथों में है और जब पत्रकारिता में भ्रष्टाचार की बात आती है तो सारे पत्रकार टूट पड़ते हैं। एक हो जाते हैं। और ऐसे पत्रकार को पत्रकार मानने से ही इनकार करते हैं। कहते हैं कि फर्जी पत्रकार है। यानी जो पत्रकार भ्रष्टाचार करता हुआ पकड़ा नहीं जाता है वह पत्रकार होता है और जो पत्रकार पकड़ा जाता है वह फर्जी पत्रकार हैं, पत्रकारों की भाषा में।  ऐसे ही कुछ कारणों से पत्रकारिता पेशे पर कलंक लगता जा रहा है, इन्हें संरक्षण मिलता है। जिस पर चर्चा करना यहां पर जरूरी है। खास तौर पर ग्रुप बी के पत्रकार के बारे में। पत्रकार आज इतने ताकतवर हो चुके है कि वे सरकार की छवि को बिगाड़ कर उसे सत्‍ता से बेदखल कर सकते है। या सत्‍ता पर काबिज करवा सकते है।

ब्लैकमेलिंग और अवैध वसूली का धंधा 

ग्रुप बी के वेब पोर्टल और यूट्यूब वाले कुछ पत्रकार ब्लैकमेलिंग और अवैध वसूली के धंधे में लगे हुए दिखाई पड़ते हैं। हाल ही में एक घटना का जिक्र में करना चाहूंगा एक पत्रकार ने अपनी वेबसाइट में न्यूज़ कवर किया की बड़े पैमाने में अवैध खनन किया जा रहा है। 200 डंपर मुरूम को डम्प किया गया है। जिसमें वहां के कलेक्टर से लेकर एसडीएम तहसीलदार तक मिले हुए हैं। डम्प करने वाले व्यक्ति के नाम को उजागर किया गया, प्रशासन पर भी लांछन लगाया गया। जब अधिकारी इसकी जांच के लिए पहुंचे तो ज्ञात हुआ कि यह सारा काम परमिशन से वैद्य तरीके से किया जा रहा था। पूछताछ करने पर ज्ञात हुआ कि उस पत्रकार ने ठेकेदार से ₹2 लाख की मांगा था और नहीं देने पर बदनाम करने की धमकी दे रहा था। इस तरह की घटना रोज घटती है। अगर आप गूगल में पत्रकार ब्लैक मेलिंग अवैध वसूली टाइप करके सर्च करेंगे तो आपको लाखों समाचार एक ही स्थान पर मिल जाएंगे। ऐसे पत्रकारों के कारण शासन की छवि को भी नुकसान पहुँचता है।

कई कर्मचारी और अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि उन्हें अपनी बदनामी के डर से ऐसे पत्रकारों को हफ्ता देना पड़ता है। वे यह भी कहते हैं कि पत्रकारों के खिलाफ कड़े कानून नहीं होने के कारण थाने में शिकायत करने पर या कोर्ट में जाने पर भी कोई राहत नहीं मिलती है। इस कारण ऐसे पत्रकारों के हौसले बुलंद रहते हैं और वह इस तरह की अवैध गतिविधि करते रहते हैं। 

यह जांच का विषय होना चाहिए की‌ पत्रकार चार-पांच सालों में करोड़ों की संपत्ति के मालिक कैसे हो जाते हैं ? यह विषय ध्यान देने योग्य है कि एक पोर्टल या यूट्यूब चलाने वाला पत्रकार जिसके व्यूज के आधार पर या हिट के आधार पर उसे पेमेंट मिलता है। यह पेमेंट इतना कम रहता है कि वह अपना केवल घर परिवार हीं चला सकता। विज्ञापन भी इतनी कम मात्रा में मिलता है कि उसकी विलासी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पाती। लेकिन इन पत्रकारों के पास पक्के मकान, गाड़ियां, शानदार कार्यालय, कर्मचारी होते हैं। जाहिर है इसके पीछे ब्लैक मेलिंग और उगाही का नेटवर्क काम करता है। यह बातें ग्रुप बी के पत्रकारों में ज्‍यादा देखने को मिलती है।

ऐसे ही एक याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेल करने वाले पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए। 13 जून 2024 को सुनाए गए इस निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य मशीनरी को उन पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए जो अपने लाइसेंस की आड़ में साधारण व्यक्ति को ब्लैकमेल करने जैसी असामाजिक गतिविधियों में शामिल हैं।

दरअसल इलाहबाद हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में मांग की गई थी कि ब्लैकमेलिंग के आरोपों का सामना कर रहे पत्रकार, उसके दो साथियों एवं एक समाचार पत्र वितरक के विरुद्ध कार्रवाई को रद्द किया जाए। इसी मांग को ठुकराते हुए जस्टिस शमीम अहमद की पीठ ने कहा कि राज्य को पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेलिंग जैसी असामाजिक गतिविधियों में लिप्त पाए जाने वाले पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए।

मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से उपस्थित जी.ए. तथा अपर महाधिवक्ता ने कहा कि पूरे राज्य में एक गिरोह सक्रिय है, जिसमें पत्रकार शामिल हैं। यह गिरोह समाचार पत्रों में आम आदमी के विरुद्ध सामग्री छापने तथा समाज में उनकी छवि खराब करने की आड़ में उसे ब्लैकमेल कर आर्थिक लाभ तथा अन्य लाभ प्राप्त करने जैसी असामाजिक गतिविधियों में संलिप्त है।

इस पर कोर्ट ने कहा, “मामला बहुत गंभीर है और राज्य मशीनरी को इसका संज्ञान लेना चाहिए। ऐसे पत्रकारों का लाइसेंस रद्द करना चाहिए, यदि वे अपने लाइसेंस की आड़ में इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में काम करते पाए जाते हैं। राज्य सरकार के पास ऐसी मशीनरी है जो इस तरह की गतिविधियों को रोकने में सक्षम है, अगर मामला सही पाया जाता है।”[5]

टीवी चैनल जैसे बड़े संस्थानों को तो लाइसेंस की जरूरत पड़ती है। लेकिन यूट्यूब तथा पोर्टल चलाने वाले पत्रकारों को किसी प्रकार की कोई लाइसेंस की जरूरत नहीं पड़ती है। यह इस तरह के अवैध काम धड़ल्ले से करते हैं।

लोकतंत्र के इस स्वयंभू स्तंभ को ठीक से चलाने के लिए शासन को कुछ निर्णय लेने चाहिए। 

1. बिना वैद्य सबूत के सूचना के समाचार प्रकाशन/प्रसारण करने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। क्योंकि इससे समाज में पीड़ित व्यक्ति की छवि खराब होती है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती।

2. पत्रकारों के अपने आय के साधन का खुलासा करना चाहिए कि उनके पास यह संपत्ति कहां से आ रही है। और वह अपने संसाधन को चलाने के लिए पैसे कहां से ले रहे हैं?

3. ऐसे व्यक्ति जो पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हैं उनकी आजीवन पत्रकारिता करने में रोक लगा देना चाहिए।

4. मान हानि के दावे के संबंध में बने कानून को कड़ाई से लागू करना चाहिए और सीमित समय में ऐसे पत्रकारों के खिलाफ तुरंत निर्णय आना चाहिए. 

5. पत्रकारिता प्रारंभ करने के लिए किसी योग्यता का निर्धारण करना चाहिए. परीक्षा पास करने के बाद ही पत्रकारिता करने की अनुमति मिलनी चाहिए.

लेखक पत्रकारिता एवं जन संचार विषय के शोधार्थी है।



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