आरक्षण की आंच बनी गले की फांस



 छत्तीसगढ में दलितों के आरक्षण में ४ प्रतिशत की कटौती

रायपुर !   कांग्रेस के भारी विरोध और अपने ही पार्टी के असंतुष्टों का आक्रोश झेल रही डॉ. रमन सिंह की सरकार चौतरफा घिरती नजर रही है। आरक्षण के नए बंटवारे को लेकर अनुसूचित जाति वर्ग ने मोर्चा खोल लिया है। भाजपा ने हाल में ही आदिवासियों को 32 फीसदी आरक्षण का लाभ देकर एक बड़े वर्ग को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है, लेकिन अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षण में 4 फीसदी की कटौती कर उसे 16 से 12 फीसदी कर दिया है, इससे समूचा अनुसूचित जाति वर्ग आक्रोशित है। अनुसूचित जाति वर्ग के आक्रोश को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आरक्षण की यह आंच रमन सरकार की गले की फांस बन गई है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेगा। आठ वर्ष से सत्ता से दूर कांग्रेस को नित नये मुद्दे मिल रहे है। पिछड़ा वर्ग समुदाय भी 40 फीसदी आबादी की तर्ज पर 40 फीसदी आरक्षण को लेकर लामबंद होने लगा है। आरक्षण को लेकर उभरा आक्रोश आगामी चुनाव में भाजपा के वोट बैंक पर सेंध मार सकता है। महंत सतनामी समाज, गुरूघासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, छत्तीसगढ़ सतनामी समाज, आरक्षित वर्ग आंदोलन, सत्यनाम सेवा संघ एवं डॉक्टर अम्बेडकर अधिवक्ता समिति ने रमन सरकार के इस फैसले को गलत करार दिया है।
आरक्षण मसले पर आज जिला न्यायालय में डॉ. अम्बेडकर समिति की बैठक आहूत की गई। समिति के प्रांतीय सचिव अधिवक्ता रामकृष्ण जांगड़े ने कहा कि रमन मंत्रिमंडल की बैठक में आरक्षण परिसीमन कमेटी के सदस्य एवं मंत्री पुन्नूलाल मोहले मौजूद थे, लेकिन केबिनेट द्वारा अनुसूचित जाति वर्ग को आबादी के हिसाब से 12 फीसदी आरक्षण देकर 4 फीसदी कटोती किए जाने पर उन्होंने आपत्ति नहीं दर्ज कराई। समिति संतोष मारकण्डेय ने इसे लेकर श्री मोहले एवं दयालदास बघेल से इस्तीफे की मांग की है तथा निंदा प्रस्ताव पारित किया है। समिति की बैठक में विजय बघेल, भजन जांगड़े, एके अनंत, ओपी मारकण्डेय, हरिशंकर धृतलहरे, जीडी सोनवानी आदि मौजूद थे।
उल्लेखनीय है कि रमन मंत्रिमंडल ने हाल में ही जनसंख्या के आधार पर आदिवासी अनुसूचित जनजाति वर्ग को 20 की जगह 32 फीसदी तथा पिछड़ा वर्ग समुदाय को 14 फीसदी आरक्षण यथावत् देने की घोषणा की है। मध्यप्रदेश सरकार के समय से लागू आरक्षण नीति को अपनाते हुए छत्तीसगढ़ ने प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग को 20 फीसदी तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 फीसदी आरक्षण की पात्रता प्रदान की थी, लेकिन आदिवासियों के बलबूते सरकार बनती रही भाजपा सरकार ने लगातार उठ रही मांग को देखते हुए हैट्रिक मारने आदिवासियों को 32 फीसदी आरक्षण तो दिया, लेकिन अनुसूचित जाति वर्ग से 4 फीसदी छीन लिया।
छत्तीसगढ़ सतनामी समाज के संचालक मंडल सदस्य एलएल केशले, आरएस बांधी, पीआर गहिने, एनआर टोण्डर आदि ने आरक्षण में कटौती की निंदा करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा अनुसूचित जाति की संविधान से प्राप्त आरक्षण के लाभ को जानबूझकर वंचित किया जा रहा है। अनुसूचित जाति के आरक्षण को सोची-समझी साजिश द्वारा समाप्त करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है।
उच्च शिक्षा विभाग, छग शासन द्वारा वर्ग तीन एवं चार के कर्मचारियों के भर्ती का विज्ञापन विभागाध्यक्ष स्तर से निकाला गया है, जिसमें अनसुूचित जाति वर्ग के लिए एक भी पद आरक्षित नहीं रखा गया है। कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी प्रवेश में आरक्षण की अनदेखी करते हुए अजा वर्ग के छात्र को प्रताड़ित करने का मामला प्रकाश में आया है। छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल में अजा आरक्षित वर्ग के अधिकारियोंकर्मचारियों को पदोन्नति देकर सामान्य वर्ग को अनुभाग अधिकारियों को लेखा अधिकारी पद पर छग राज्य पॉवर कंपनी में नियम विरूध्द कार्रवाई की गई है।
वर्ष 2001 की जनगणना में अजा की जनसंख्या 11.61 प्रतिशत दर्शाया है, जो वास्तविकता में सर्वथा परे है। शासकीय दस्तावेजों के परीक्षण से यह बात सामने आई है कि कई अजाअजजा बाहुल्य ग्रामों में उनकी जनसंख्या निरंक बताया गया है, गांवों को वीरान दर्शाया गया है। अनुसूचित जाति वर्ग की जनसंख्या कम कर देने अथवा बढ़ जाने से संविधान की व्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता, परंतु शासन द्वारा जनगणना 2001 के आंकड़ों को लगभग 10 वर्ष बाद आधार मानकर लिया गया निर्णय अव्यवहारिक तथा दुर्भाग्यपूर्ण है।
उपरोक्त कमियों को दूर करने के उपाय के बजाय छग मंत्रिमंडल द्वारा वर्ग विशेष को संविधान द्वारा प्राप्त 16 फीसदी आरक्षण में कटौती कर 12 फीसदी करने का तुगलकी फरमान जारी किया है, जिससे सम्पूर्ण सतनामी समाज, बौध्द समाज एवं अनु. जाति के लोग उध्देलित आक्रोशित हैं। छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल अपने निर्णय पर यदि पुनर्विचार यथाशीघ्र नहीं करती है तो पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में विरोध के स्वर मुखर होंगे। आरक्षण कम करने को राजनैतिक षड़यंत्र बताते हुए सतनाम सेवा संघ महिला विंग की प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती यशोदा मनहरे ने कहा है कि जनसंख्या किसी भी समाज की हो, दिनोंदिन बढ़ती है, कि घटती है, आदिवासी समाज को जनसंख्या बढ़ोत्तरी के तहत 20 से 32 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। ये बहुत अच्छी बात है, परंतु अजा का आरक्षण बढ़ने के बजाय कम किया जा रहा है, जबकि सालों-साल परिवार बढ़ रहा है, यह एक राजनैतिक षड़यंत्र है। पूर्व में भी हमारे एक लोकसभा सदस्य एवं राज्यसभा सदस्य कम करके अजा. समाज का अपमान किया गया है, चूंकि पूर्व में आरक्षण 16 फीसदी था, अब इसे बढ़ाकर 20 फीसदी किया जाए कि 16 से 12 फीसदी
आरक्षित वर्ग आंदोलन के प्रमुख संयोजक राजेन्द्र चंद्राकर ने अनु. जातिजनजाति पिछड़ा वर्ग के सामाजिक राजनैतिक नेताओं से अपील की है कि उनके लिए आरक्षण एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है, अत: वे आपस में सामंजस्य बिठा सयंत हो, कोई भी अगला कदम उठावें।
श्री चंद्राकर का कहना है प्रदेश सरकार की नीयत आरक्षित वर्गों को उनके हक के हिसाब से आरक्षण देने की कतई नहीं है, वरन् वह इस मुद्दे पर उन्हें उलझाकर उनके साथ राजनीति कर रही है। श्री चंद्रकार ने आगे कहा विगत वर्ष जब सरकार ने अनु. जनजाति के 32 फीसदी आरक्षण देने अनु. जाति के आरक्षण को 16 से 12 फीसदी करने का निर्णय लिया था, तब अनु. जाति के नेताओं ने आरक्षण कम करने का पुरजोर विरोध किया था और सरकार ने इस पर पुनर्विचार की बात कही थी, लेकिन एक साल बाद सरकार ने फिर वही पुराना निर्णय दुहरा दिया।
महंत सतनामी समाज के सीएल बंजारे ने कहा कि तमिलनाडू कर्नाटक में आरक्षण की सीमा 68 और 70 फीसदी है। हमारे छत्तीसगढ़ में 58 फीसदी हो रहा है, फिर भी ये क्या अनु. जा. के आरक्षण को कटौती करना न्याय संगत है। हमेशा जातिगत संख्या में वृध्दि जनसंख्या में वृध्दि हो रही है, के बवजूद कटौती हमेशा से आरक्षण में बढ़ोत्तरी के लिए समय-समय पर शासन को ज्ञापन सौंपा जाता रहा है। अनु. जाति के साथ आरक्षण में कटौती करना खिलवाड़ है। अनु. जाति के हितैषी होने का सरकार खोखला ड्रामा कर रही है, जो नौकरी, पदोन्नति, विशेष भर्ती, भर्ती भी सही क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। अनु. जाति के लोग बेरोजगारी के कारण पलायन कर रहे हैं। इस वर्ग के साथ इस प्रकार की नीति अनु. जाति वर्ग के साथ खिलवाड़ ही है।
साभार देशबंधु से