Why should I worship Raja Ramchandra?

 मै राजा रामचंद्र जी को क्यों पूजूं?

चंद्रभूषण सिंह यादव

दशरथ नंदन राजा रामचंद्र जी ने अकारण अहीरों के राज्य "द्रुमकुल्य" का विनाश वहां के यादवों के वध के साथ क्यों किया?..... जब भी राजा रामचंद्र जी का नाम आता है तो मैं अपने पुरखों की हत्या के दुख से दुखी महसूस करता हूं.......

        अयोध्या के राजा दशरथ जी के पुत्र राजा रामचन्द्र जी का भव्य मंदिर अयोध्या में बनकर तैयार हो गया
है। देश में वे लोग जो राजा रामचंद्र जी के कुल -खानदान के हैं वे जश्न मनाएं या वे लोग जिनकी वैचारिकी को स्थापित करने हेतु राजा रामचंद्र जी ने शंबूक का कत्ल किया अथवा द्रुमकुल्य राज्य का नाश किया तो समझ में आता है लेकिन वे लोग भी जश्न मनाते हुए ढोल पीटें जिनके पुरखों ने राजा रामचंद्र जी द्वारा सजा पाई है तो मैं उन्हे यही सुझाव दूंगा कि आपलोग एक बार "बाल्मीकि रामायण" जरुर पढ़ लें।

       राजा रामचंद्र जी अगर पैदा हुए थे, यह सच है तो बाल्मीकि जी भी थे, यह भी सच माना जायेगा और बाल्मिकी जी 


की लिखी किताब "बाल्मिकी रामायण" ही रामचंद्र जी की "बायोग्राफी" मानी जायेगी।

      राजा रामचंद्र जी की प्रतिमा में 22 जनवरी 2024 को अयोध्या स्थित नव निर्मित मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो गई है जिसकी खुशी में देश भर में दीपावली मनाई गई है। मुझसे तमाम साथियों ने सवाल किया कि राजा रामचंद्र जी को आप क्यों नहीं मानते हैं? मैं उनसे कहना चाहता हूं कि मै भी पढ़ते समय राजा रामचंद्र जी का भक्त था। रामचरित मानस, विनय पत्रिका, रत्नावली, दोहावली आदि खरीद कर उनका मैं वाचन करता था लेकिन बाल्मिकी रामायण पढ़ने के बाद राजा रामचंद्र जी के प्रति मेरी न केवल धारणा बदल गई बल्कि उनके कृतित्व और व्यक्तित्व को मैं खास तौर पर अपने लिए और अपनी यादव जाति के लिए आदरणीय नहीं मान सका।

        बाल्मिकी जी अपने द्वारा लिखित राजा रामचंद्र जी की जीवनी "रामायण" के युद्ध कांड के द्वादिश सर्ग में लिखते हैं कि राजा रामचंद्र जी जब लंका जाने हेतु समुद्र के किनारे पन्हुच समुद्र से सूखने को कहते हैं तो समुद्र कहता है कि "हे राम! मै सूख नहीं सकता क्योंकि मेरे अंदर असंख्य जल चर रहते हैं जो मेरे सूखने से मर जाएंगे।" समुद्र के इस कथन पर राजा रामचंद्र जी ने अपने धनुष पर बाण चढ़ाकर कहा कि "अब मैं तुम्हे अपने वाण से सुखा दूंगा।"राजा रामचन्द्र जी के क्रोधित हो ऐसा कहने पर समुद्र राजा रामचंद्र जी से कहता है कि"आप मेरे उपर सेतु बना पार हो जाएं। ऐसा करने से आप मुझे पार भी कर जायेंगे और मेरा प्रवाह भी नहीं रुकेगा।"राजा रामचन्द्र जी समुद्र द्वारा ऐसा कहने पर कहते हैं कि "हे समुद्र! अब तुम मुझे यह बताओ कि,मैं अपने इस विशाल और अमोघ बाण को कहां छोड़ूं?"राजा रामचन्द्र जी के यह कहने पर समुद्र कहता है कि"हे राम!जैसे आप सम्पूर्ण जगत में विख्यात और पुण्यात्मा हैं वैसे ही मेरे उत्तर तरफ एक द्रुमकुल्य नाम से  विख्यात बड़ा ही पवित्र देश है जहां अहीर आदि जातियों के बहुत से लोग निवास करते हैं जिनके रूप और कर्म बहुत ही भयानक हैं।ये सब के सब पापी और लुटेरे हैं।ये लोग मेरा जल पीते हैं।इन पापाचारियों का स्पर्श मुझे प्राप्त होता रहता है।इस पाप को मैं नहीं सह सकता इसलिए अपने इस उत्तम बाण को वही सफल कीजिए।"समुद्र के इतना कहने के बाद राजा रामचन्द्र जी ने अपना बाण यादवों के राज्य द्रुमकुल्य पर छोड़ दिया जिससे वहां दुर्गम मरुभूमि बन गई। यादवो का सम्पूर्ण राज्य द्रुमकुल्य राजा रामचंद्र जी द्वारा नष्ट कर दिया गया।

          राजा रामचन्द्र जी की जीवन गाथा लिखने वाले महर्षि बाल्मीकि जी द्वारा "रामायण" में लिखित इस दृष्टांत का मुझे जब -जब स्मरण होता है तो मुझमें अपने निर्दोष पूर्वजों के संहार पर दुःख और विषाद का अनंत ज्वार उफान मारने लगता है। मैं सोचता हूं कि आखिर दुनिया किस आधार पर राजा रामचन्द्र जी को मर्यादा पुरुषोत्तम कहती है? राजा रामचन्द्र जी की जब द्रुमकुल्य राज्य के आभीरों (अहीरों) से कोई दुश्मनी नहीं थी, रामचन्द्र जी उन्हे जानते तक नहीं थे तो फिर उन्होने समुद्र के कहने पर पूर्णतया निर्दोष यादवों पर अपने उस बाण को क्यों छोड़ दिया जो समुद्र को सुखाने के लिए उन्होंने अपने प्रत्यंचा पर चढ़ाया था?

       आखिर मैं उस राजा रामचन्द्र जी को क्यों भगवान मानूं जिन्होंने कथित त्रेता में हमारे निर्दोष पूर्वजों का समूल नाश व वध कर डाला?आखिर वे हमारे लिए पूजनीय या मर्यादा पुरुषोत्तम कैसे हुए?आखिर मैं ऐसे रामराज्य की कल्पना क्यों करूं जहां एक समुद्र के कहने मात्र पर द्रुमकुल्य निवासी (यादवों) दूसरे पक्ष को सुने बिना ही राजा रामचंद्र ने उनका समूल नाश कर दिया हो?

         मैं राजा रामचंद्र जी के इस उपरोक्त कृत्य के बाद यही कहूंगा कि मुझे आज संविधान राज की जरूरत है जिसमें वादी और प्रतिवादी दोनो को अपनी बात कहने का अधिकार प्राप्त है जिसके बाद निर्णय (जजमेंट)का प्राविधान है।

         मै कश्मीरी ब्राह्मण और रिटायर न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू जी से ख़ुद को संबद्ध करते हुए राजा रामचंद्र जी की अंध भक्ति में लीन यादवों, पिछड़ों, दलितों और बहुजनो से कहूंगा कि इन सारे भेदो को छुपाने के लिए ही हिन्दू शास्त्रों को पढ़ने,सुनने और छूने पर दंड का प्राविधान था, संस्कृत (देववाणी) पढ़ने की मनाही थी जो भारत की स्वतंत्रता के बाद मनुस्मृति के संविधान की जगह अंबेडकर रचित संविधान ने इस प्रतिबंध को खत्म कर सबको सब कुछ पढ़ने और जानने का अधिकार दे दिया है जो रामराज्य में नहीं था तभी तो पढ़ने - पढ़ाने के कारण ऋषि शंबूक का भी बध किया गया था, अस्तु दो सौ से तीन सौ रुपए खर्च कर गीता प्रेस- गोरखपुर से छपे संस्कृत -हिंदी अनुवाद वाले बाल्मिकी रामायण (दो खंड) को खरीद कर लाएं और अवश्य पढ़ें।

          यदि कोई राजा रामचन्द्र थे तो उस राजा रामचंद्र जी की वास्त्विक जीवनी "बाल्मिकी रामायण" को पढ़ने के बाद आपकों ज्ञात हो जायेगा कि राजा रामचंद्र जी कौन थे, क्या थे,उन्होंने कितनी मर्यादा का पालन किया और कैसे शंबूक या द्रुमकुल्य का समूल संहार किया? 

(23 जनवरी 2024)

From   Facebook Chandra Bhushan Shing Yadav


2 comments:

  1. दुःख तो तब होता है जब शंबूक के वंशज अर्थात वर्तमान ओबीसी राम को आराध्य मानकर घंटा बजाते हैं। स्त्रियां भी उस निष्ठुर राम की पूजा करती हैं जिस राम ने अपनी गर्भवती पत्नी का परित्याग किया। दरअसल बात यह है कि त्रेता में राम शंबूक को ऐसा रेला कि शंबूक के कायर और मूर्ख वंशज युगों युगों तक राम की पूजा करेंगे ही। आखिर भय बिनु होय न प्रीति।

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