आम्बेडकरी आंदोलन का अंर्तद्वंद

आम्बेडकरी आंदोलन का अंर्तद्वंद
(समाजवादी, प्रगतिशील एवं कम्युानिष्ठ  आंदोलन के परिप्रक्ष्यं में)
संजीव खुदशाह
पिछले दिनों जाति उन्मूलन आंदोलन का गठन किया गया। तथ्य है की कम्युनिष्ठ विचारधारा के एक धडे़ ने इसका निर्माण किया है। कामरेड तुहीन ये कहते है कि कम्यु‍निष्ठ ने पूर्व में जाति को कभी समस्यों की तरह नही देखा। वे केवल वर्ग को ही समस्या के रूप में देखते रहे। जो की एक गंभीर भूल थी। हम अब ये भूल को सुधारना चाहते है। वे आगे कहते है की जाति व्ययवस्था को नष्ट किये बिना भारत में समानता का लक्ष्य नही पाया जा सकता ।
जाति उन्मूहलन आंदोलन मूलत: एक गैर-राजनीतिक संगठन है। इसके संस्थापक ये आहवान करते है की सभी आंम्‍बेडकरवाददी, समतावादी, प्रगतिशील व्यक्ति एवं संगठन जो जाति उन्मूलन चाहते है वे इस आंदोलन के सहभागी बने, क्योकि ये केवल राजनीतिक जरूरत नही बल्कि वर्तमान समय की जरूरत भी है।
रा‍ष्ट्रीय परिप्रेक्षय में भी देखे तो जाति व्‍यवस्‍था एक भयंकर समस्या  के रूप में खड़ी दिखती है जो भारत के विकास, उत्थान के लिए एक बाधा है। ये भारत की सामाजिक एकता में बाधाकार्ता तो है ही, साथ साथ आपसी कटुता बढ़ाने का भी एक साधन है। आजकल राजनीतिक दल ऐसी कटुता को हवा देकर मतो का धुवीकरण करते है।
रायपुर छत्तीसगढ. में जाति उन्मूदलन आंदोलन के तृतीय अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। ग़ौरतलब है की जाति उन्मूलन आंदोलन की रायपुर इकाई का बागडोर आम्बेडकर वादियों ने थामा हुआ है। और वे मुस्तैदी से इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबध्द है। दरअसल इस सम्मेलन के बाद कुछ आम्बेडकर वादियों के बीच बहस चल पड़ी है। वे कहते है की यह कम्युनिष्टों का एक छल है। कम्युानिष्ट  अब हांसिये पर है और वे अम्बेडकर और जाति के मुद्दे को भुनाना चाहते है। जाति उन्मूलन जैसे मुद्दों को उठाकर पीडि़त वर्ग को आकर्षित करना उनका मकसद है ताकि सत्‍ता में ब्जाह किया जा सके। उसी प्रकार एक साथी कहते है कि दलित आंदोलन के दो प्रकार के शत्रु है एक प्रत्यक्ष शत्रु दुसरा अप्रत्यक्ष(छुपे हुये) शत्रु वे कहते है कांग्रेस और कम्युंनिष्ट छीपे शत्रु है और भाजपा प्रत्यक्ष शत्रु, यदि मुझे इनमें से किसी एक को चुनने का मौका मिले तो मै भाजपा को चुनूगां। वे इसके पीछे तर्क देते है की प्रत्यक्ष शत्रु से अप्रत्यक्ष शत्रु ज्यादा खतरनाक होता है।
कुछ का कहना है कम्युनिष्टपार्टियों में शीर्ष नेतृत्वु हमेशा सवर्णो के हाथ रहा है और वे कम्यु‍निष्ट  आंदोलन में अवर्ण वर्ग के कार्यकर्ताओं को दरी उठाने तक सीमित कर रखा है। वे अपनी पार्टी में उसी प्रकार पिछड़ी जाति‍ के कार्यकर्ताओं का शोषण करते है जिस प्रकार भाजपा आदी अन्यअ बड़ी पार्टियों में होता है। अत: दोनो में फर्क नही है।
यह बहस दो मुख्यह प्रश्नों को जन्मे देती है।
1. क्या जाति उन्मूलन और आंबेडकर केवल आंबेडकरवादियों के मुद्दे है?
2. क्या आंम्बेडकरवादियों में भी एक ऐसा वर्ग है जो येन केन प्रकारेण फासीवादियों दक्षिण पंथी पार्टियों की मदद के लिए आतुर है?
पिछले तीन सालों में हुये घटना क्रम पर गौर करे तो पाते है की आंबेडकरवाद में भी फासीवाद और कट्टरवाद का ग्राफ़ बढ़ा है। जिस त्याग बलिदान के लिए, तर्क और सहिष्णुता के लिए आंबेडकरवाद जाना जाता है। उसे तथाकथित कुछ छदृम आम्बेडकरवादियों नेनेताओं ने लांछित करने में कोई कसर नही छोड़ा। चाहे मामला उदित राज का हो या रामदास आठ वाले का या रामविलास पासवान या मायावती या अजय सोनकर शास्त्री । सभी ने अम्बेडकरवाद को अपने पैरो तले कुचला है। और वे इसे जायज़ ठहराने के लिए बेतुके तर्क देने, कट्टरवाद बढ़ाने में कोई कसर नही छोड़ते है। वे जान बूझ कर ऐसे कदम उठाते है की प्रगतिशील शक्तियां कमजोर हो जाये। मैने देखा है दलित आंदोलन से जुडे नेता या आंदोलनकारी हमेशा कांग्रेस की ही बुराई करते है इनका लक्ष्य उनके वे लोग जो परंपरागत तौर पर कांग्रेस में वोट देते है। उनकी बातों से प्रभावित होकर ये लोग कांग्रेस को तो वोट नही देते न ही उन अंबेडकर वादियों को वोट देते है। ये वोट सीधे दक्षिण पंथी पार्टी को जाता है। यानी वे किसी न किसी रूप में दक्षिण पंथी पार्टियों को मदद पहुचाते है। आज आम्बेडकर मिशन अलग थलग पड़ चुका है। जिस अंबेडकर मिशन के बदौलत बहुजन समाज पार्टी और आर पी आई खड़ी हुई थी। आज इन पार्टीयों का हस्र किसी से छि‍पा नही है। अब समय है की आम्‍बेडकर मिशन में नई जान फूका जाय वे अपने दोस्त् और दुश्‍मन की सही पहचान करे। उनके कदम से किसे फायदा हो रहा है किसे नुकसान, उसके दूरगामी परिणामों का विश्लेषण किया करे। साथ ही ऐसे छदम मौकापरस्त, विचारक और नेताओं की पहचान भी करना होगा जो दीमक की तरह आम्बेडकर मिशन को खोखला करने में तुले हुये है।
वही पर डॉं आम्बेडकर और कम्यु्निष्ट के बीच सबंध को कमतर आंकना एक भूल होगी। कम्युनिष्टो के जमीन और मजदूर आंदोलन को, समता आंदोलन में उनके योगदानो को याद करना होगा। इन सभी में डॉं आम्‍बेडकर का जर्बजस्त समर्थन रहा है। दरअसल वक्त आ गया है की आम्बेडकरवादी समस्या को बड़े फलक पर देखे। समता आंदोलन के अन्य  विकल्प को शंका की नजर से न देखे क्यो कि अम्बेडकर आंदोलन अपने लक्ष्य से आज भी कोशो दूर है। उसे अपनी जमीनी हकीकत को समझना होगा। ऐसे बहस को बढ़ावा देकर कही अंजाने या जाने में फासीवादियों की मदद तो नही पहुंचाई जा रही है।
इस विमर्श का एक अन्य  पहलू यह भी हे की जिस नजरिये से ये अंबेडकरवादी कम्युरनिष्टो  को देखते है उसी प्रकार छोटी अतिदलित, महादलित (आंबेडकरवाद से महरूम) जातियां भी अंबेडकर वादियों को उसी दृष्टिकोण से देखती हे। वे भी अंबेडकर वादियों के उनके साथ हुये कड़ुवे अनुभव साझा करती है। शंका की निगाह से देखती है। मै इसे आम्बेडकरवादियों की हार के रूप में देखता हूँ। पहले तो ये की वे समस्त  दलित जातियों में ही आम्‍बेडकर मिशन को पहुचाने में नाकाम रही है दूसरा अन्य समतावादी, प्रगतिशील संगठनों में आम्‍बेडकर के महत्व को बताने की कोशिश नही की गई। इसका परिणाम यह हुआ की अम्बेयडकर की विचार धारा चार-पांच दलित जातियों में सिमट कर रह गया। उनका मिशन भी इन्ही जातियों में घूमता रहा। जबकि इनका ये फर्ज था की वे अन्य दलित जातियेां की बस्तियों में जाते उनके दुख दर्ज साझा करते, अम्बे्डकर के मिशन से उन्हे् जोड़ते। लेकिन ऐसा नही हुआ। उल्टे‍ इन अतिदलित जातियों को दलित कैन वास से ही भुला दिया। फलस्वरूप ये उपेक्षित दलित जातियां दक्षिण पंथी एवं फासीवादियों के चंगुल में चली गई। अति दलित या महादलित जातियों के रूप में अपना अलग अस्तित्वं खेाजने लगी।
जाति उन्मूलन को भी वृहद दृष्टि कोण से देखने की आवश्यकता है। सभी  प्रकार के अंधविश्वास, सभी प्रकार के भेद को मिटाने की आवश्यकता है। जाति उन्मूलन का मकसद ये नही होना चाहिए की एक दमनकारी व्यकवस्था को खत्म  करके नई दमन कारी व्यलवस्था को शुरू करना। इसलिए अंधविश्वास, रूढीवाद, पुरूष सत्तात्मक मौहोल के रहते अर्तजाति विवाह जाति टूटने का एक सुखद भ्रम तैयार करती है। दरअसल हमें अर्तजाति विवाह को जाति उन्मूमलन का प्रतीक या सोपान मानने की गलती नही करनी चाहिए।
मेरे इस लेख का मकसद किसी व्यक्ति विशेष या संस्था विशेष को कोसना नही है न ही किसी पार्टी या विचारधारा विशेष का पक्ष लेना है। मै चाहता हूँ अम्बे्डकर मिशन आत्म विशेलषण करे की क्या उसे अपने इतिहास के सीख लेने की जरूरत है? क्या  वह अपने हितैशी और विरोधी में फर्क करने का पहल कर सकता है? इस मिशन को यह भी विचार करना होगा की जिस कट्टरता के विरोध में तैयार हुआ कही उसी कट्टरता की ओर तो नही जा रहा है? आज जरूरत है की समान विचारधारा के लोग एक साथ अपना कार्य करे। एक दूसरे के मुद्दे को समझने का प्रयास करे। क्यो कि कहीं न कहीं समान विचारधारा के साथियों का लक्ष्य  एक ही है। ये अपने लक्ष्य  तक नही पहुँच पाया इसका कारण है समान विचारधारा वालों का आपसी अंर्तद्वद। आपसी अंतद्वंद का मतलब है आप अपने मिशन के प्रति समर्पित नही है।