Baba Guru Ghasidas, the great social reformer of Chhattisgarh

  

छत्तीसगढ़ के महान समाज सुधारक बाबा गुरु घासीदास

संजीव खुदशाह

छत्तीसगढ़ के महान एवं सुप्रसिद्ध संत बाबा गुरु घासीदास का जन्म छत्तीसगढ़ के गिरोधपुरी नामक गांव मे 1756 में हुआ था। बाबा गुरु घासीदास ने जो संदेश दिया उसको समझने के लिए हमें उनके जन्म के समय की परिस्थितियों को समझना होगा। वह एक ऐसा समय था जब छत्तीसगढ़ में मराठाओं का शासन था और छत्तीसगढ़ की राजधानी रतनपुर थी। शोषण का बोलबाला था। जातिवाद ऊंच नीच चरम पर था, ऐसी स्थिति में बाबा का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। वह आम लोगों की तरह जीवन जी रहे थे। लेकिन लगानजमीदारी, टैक्स आदि से ग्रामीण जीवन आर्थिक और सामाजिक रूप से निर्बल हो चुका था। आम जनता भूख प्‍यास से निहाल थी। इस कारण वह बहुत व्यथित थे।

Guru Ghasidas Navbharat

सर्वोत्‍तम स्‍वरूप जी अपनी किताब गुरु घासीदास और उनका सतनाम आंदोलन में जिक्र करते है कि बाबा गुरु घासीदास ने भुवनेश्‍वर स्थित जगन्नाथ मंदिर की महिमा सुनकर तीर्थ यात्रा की योजना बनाई। शायद मंदिरों में भगवान के दर्शन से ऊंच नीच छुआछूत प्रताड़ना से मुक्ति मिले लेकिन मंदिरों में उनके साथ और ज्यादा भेदभाव हुआ  जिससे बाबा व्यथित हो गये। उन्होंने उत्तर भारत के लगभग सभी मंदिरों में तीर्थ यात्रा की। यह ज्ञात हुआ सभी जगह शूद्रो अछूतो के साथ भेद भाव हो रहा है। बाबा का भगवान पर से भरोसा उठ गया और वे तर्कवादी बन गये। उन्‍होने कहा जब भगवान हमे छुआ छूत भेदभाव से मुक्ति नहीं दिला सकते तो ऐसे भगवान का त्‍याग करदो। बाबा ने एक ऐसे संसार की कल्‍पना की जहां सभी मानव बराबर हो। एक दूसरे में भेद न हो। पूरे संसार को यही संदेश दिया। कहा जाता है कि उन्होंने तप किया। जिसे हम तपस्या या अध्‍ययन या चिंतन भी कह सकते हैं। चिंतन किया की क्‍यों दलितों आदिवासी पिछड़ो के साथ अन्‍याय किया जाता है? क्‍यों वे गरीबी की मार झेल रहे है? पूजा भक्ति के बाद भी क्‍यों उन्‍हे प्रताडि़त किया जाता है? वे घर परिवार छोड़कर गिरौधपुरी से सोनाखान के जंगल छाता पहाड़ में 6 महीने तक चिंतन मनन करते रहे। तप करने के पश्चात उन्होंने जो निष्कर्ष निकाले। जो उन्‍हे आत्‍मज्ञान की अनुभूति हुई। उसका संदेश उन्‍होने लोगों को दिया। सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश। वह आगे चलकर सतनाम कहलाया। जिसे मानने वालों को आम भाषा में सतनामी भी कहते हैं।

आज बाबा गुरु घासीदास की वाणियां लोगों के बीच प्रचलित हैं, वह श्रुति परंपरा से आई है। उनकी जीवनी पढ़ने पर ज्ञात होता है कि भ्रमण करने के पश्चात उनके जीवन पर गुरु रैदास, संत कबीर, गुरु नानक जैसे निर्गुण धारा के संतों का प्रभाव रहा। इसीलिए बाबा गुरु घासीदास को भी निर्गुण परंपरा का संत माना जाता है। उनके संदेशों में बुद्ध का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से दिखता है। उन्होंने जो सात शिक्षाएं दी है वही शिक्षाएं पंचशील में भी मिलती हैं।

आइए जानते हैं कि वह सात शिक्षाएं क्या है ?

1. सतनाम पर विश्वास करना

2. जीव हत्या नहीं करना

3. मांसाहार नहीं करना

4. चोरी जुआ से दूर रहना

5. नशा सेवन नहीं करना

6. जाति पाति के प्रपंच में नहीं पड़ना

7. व्यभिचार नहीं करना

कुछ विद्वान मानते हैं की गुरु घासीदास की शिक्षाएं सीमित नहीं थी इसमें और भी शिक्षाएं शामिल थी। श्रुति परंपरा पर आधारित सतनामी समाज में बहुत सारी शिक्षाओं पर विश्वास किया जाता है। गुरु घासीदास बाबा विश्व को जाति पाती से दूर मनखे मनखे एक समान का संदेश दिया है। वह कहते हैं की अंधश्रद्धा और पाखंड में डूबा समाज गर्त में जाता है चाहे वह अपने को कितना ही महान समझे। इसीलिए इन सब से बाहर निकलो और सत्य पर चलो। उनके पिताजी श्री महंगूदास एक वैद्य थे। इस कारण गुरु घासीदास बाबा ने उनसे यह गुण सीखा और वह भी एक प्रसिध्‍द वैद्य बन गए। जड़ी बुटी पर आधारित चिकित्‍सा करते थे। वह एक वैज्ञानिक एवं तर्क वादी विचारधारा के व्यक्ति थे। उन्होंने दबी कुचली जनता को संगठित होने एवं अत्याचार से लड़ने का संदेश दिया। कहा जाता है कि उनके इस संदेश से प्रभावित होकर बहुत सारी अन्य जातियों के लोग बाबा गुरु घासीदास के प्रभाव में आये। वे सतनाम पंथ को मानने लगे। बाबा गुरु घासीदास की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई थी। कुछ अंग्रेज लेखकों ने बाबा गुरु घासीदास का जिक्र अपनी किताबों में किया है। 

बाबा गुरूघासी दास की शिक्षाओं को पंथी गीत एवं नृत्‍य के माध्‍यम से  स्‍मरण किया जाता है। जो अपनी खास शैली के लिए पूरे देश में प्रसिध्‍द है। पंथी गीत की एक बानगी यहां देखिये।

मंदिरवा म का करे जइबो ,

अपन घट के देव ल मनइबों ।

पथरा के देवता ह हालत ए न डोलत ,

ए अपन मन ल काबर भरमईबो ।

मंदिरवा म का करे जइबों ।

जैत खंभ की स्‍थापना

सर्वोत्‍तम स्‍वरूप जी लिखते है कि गुरु घासीदास की जहां रावटी लगती थी, वहां सबसे पहले छोटे रूप में पतली लकड़ी का खंभा और उसमें छोटा सा झंडा गाड़कर अपनी विजय पताका लहराते थे। इसी का बड़ा रूप सर्वप्रथम तेलासी मेंजहां मंदिर बना है उसके सामने जैतखाम गड़ाया गया है। बाबा गुरू घासीदास साहेब ने अपने जीवन काल में  इक्‍कीस संदेशो का प्रतीक 21 फीट का खंभा( 21 हाथ ) अर्थात 5 तत्‍व, 3 गुण, 13 सदगुण का खंभा गड़वाया था। जो की 21 सदगुणों का प्रतीक है। सार रूप में कहा जाय तो जैतखंभ 21 दुर्गुणों पर विजय पाने का प्रतीक है। जो की इस प्रकार है 1. काम 2. क्रोध 3. लोभ 4. मोह 5. झूठ 6. मत्सर 7. द्वेष 8. ईर्ष्या 9. अभिमान 10. छल 11. कपट 12. बैर-विरोध 13. मांसाहार 14. शराबखोरी 15. गांजाभांगबीड़ीतंबाकू 16. जुआ खेलना 17. निकम्मापन 18. चोरी करना 19. ठगी करना 20. बेईमानी करना 21. स्वार्थ साधन । गुरु घासीदास बाबा के अनुयायी आज भी अपने मुहल्‍ले, गांव या आंगन में जैत खंभ स्‍थापित करते है। जो उनकी श्रध्‍दा एवं सम्‍मान का प्रतीक है। राज्‍य शासन के द्वारा बाबा के गृह ग्राम गिरौदपुरी में विशाल जैख खंभ का निर्माण करवाया गया है जो की आज छत्‍तीगढ़ के प्रसिध्‍द पर्यटन स्‍थलों में शामिल है। इसी प्रकार सोनाखान के जंगल में स्थित छाता पहाड़ भी एक प्रसिध्‍द पर्यटन स्‍थल बन गया है।

कुछ लोग सतनामी समाज को छत्‍तीसगढ़ के बहार नारनौल का बताते है। इसबीच नारनौल पहुच कर अध्‍ययन करने वाले जाने माने सामाजिक कार्याकता श्री संजीत बर्मन कहते है कि हमारा नारनौल के सतनामी से कोई संबंध नहीं है क्‍योंकि वे पंजाबी राजपूत है। हमारा संबंध रैदास से एवं वहां के दलितो से जिनकी विचारधारा बाबा गुरूघासी दास से मिलती है क्‍योंकि वे भी सत्‍यनाम की बात करते है। यहां के सतनामी छत्‍तीसगढ़ के मूलवासी है।

इस प्रकार बाबा ने बाल विवाह पर रोक, विधवा विवाह को बढ़ा देने का प्रयास किया। मृतक भोज एवं कर्मकाण्‍ड का न करने का संदेश दिया। ऐसे समय जब सांमंत वाद जोरो पर था तब ऐसे संदेश देना किसी क्रांतिकारी कदम से कम नहीं था। इस लिए इसे सतनाम आंदोलन भी कहा जाता है। छत्‍तीसगढ़ में शांति सदभाव लाने में बाबा का बड़ा योगदान है। अब ये समय है की हम बाबा गुरूघासी दास के दिये गये संदेश को याद करे और अपने जीवन में उतारे। तभी बाबा के द्वारा किये गये उपकार का कुछ ऋण अदा हो पायेगा।

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2 comments:

  1. बहुत अच्छा लेख है जय सतनाम 🙏🙏🙏

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  2. अरुण कान्त शुक्लाDecember 19, 2023 at 12:21 AM

    आपका यह लेख गुरु बाबा घासीदास जी के विचार-आचार का सही अवलोकन प्रस्तुत करता है| यदि लोग इसके दशांस को भी आचरण में लायें तो समाज में क्रांतिकारी बदलाव देखने मिल सकता है| पर, अभी जोर धर्म-भक्ति से ज्यादा धर्म और भक्ति के जरिये जनता पर शासन करने की स्वीकृति प्राप्त करने का है| इस पर अलग से आपके विचार विस्तार से आना चाहिये, क्योंकि इस विषय में आपका अध्यन है| आपको इस लेख के लिये बधाई| मैं इसे कॉपी कर अपनी वाल पर ले रहा हूँ| आपकी स्वीकृति तो सहज उपलब्ध होगी ही|

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