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अन्ना इन भ्रष्टाचारों पर मौन क्यों है ?

संजीव खुदशाह
अन्ना तथा कथित पाक-साफ छबी के बताये जाते है। यहां पाक छबी के भी अपने-अपने पैमाने है। चाहे कुछ भी हो अन्ना अपने आपको आम भारतीय का प्रतिनीधि बताते है जो कम से कम लोकतंत्र में एक सफेद झूठ जैसा है। चंद शहरी लोगों को लेकर सिविल सोसाईटी का निमार्ण करने कि प्रक्रिया, आम भारतीय की जुबान बनने का प्रमाण पत्र नही है। दरअसल प्रश्न ये उठता है कि क्या ये सोसाईटी चंद तथाकथित बुध्दिजीवि, धनी, राजनेताओं का जमावड़ा है जिसमें कुछ पर्दे के सामने है कुछ पर्दे के पीछे ?

यदि अन्ना और उसके प्रमुख सहयोगियों कि बात करे तो वे गांधीवादी होने के बहाने हमेशा हिन्दूवाद को ही बढ़ावा देते है। उनके इस आन्दोलन में दलित आदिवासी एवं अल्पसंख्यक का कोई स्थान नही है यदि स्थान है भी तो केवल भीड़ बढ़ाने के लिए। इस आन्दोलन में हावी वे ही लोग है जो समाजिक धार्मिक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मौन रहते है।

अन्ना के आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य लोकपाल है न कि भ्रष्टाचार का खत्मा
अन्ना ने लोकपाल विधेयक पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या सिवील सोसायटी का जनलोकपाल के पास हो जाने पर भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा? क्या प्रधानमंत्री को लोकपाल के नीचे लाने पर भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा। शायद सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए ये जुमले अच्छे लगते है लेकिन ऐसा लोकपाल लागू होने पर लोकतंत्र को ही खतरा हो सकता है। चुने हुए प्रतिनीधि का महत्व खत्म हो जायेगा। अन्ना के साथ-साथ आम जनता को गुमराह करने का सबसे बड़ा काम चंद धर्मवादी मीडिया भी कर रही है। जो अन्ना को एक हीरों कि तरह पेश कर रही है । आखिर टी आर पी भी तो काई चीज़ है चाहे इसके लिए समाजिक हितों की ही क्यो न बली देनी पड़े।  इस काम के लिए प्राईवेट न्यूज चैनलो को महारत हासिल है।
इन भ्रष्टाचार पर अन्ना मौन है
उपरी तौर पर जो भ्रष्टाचार हो रहा है उसका कारण यह है कि हमारे रोम रोम में भ्रष्टाचार व्याप्त है जबतक भारत का आम आदमी भ्रष्ट रहेगा तब तक ऐसे हजारो लोकपाल बिल व्यवस्था को बदलने मे असक्षम रहेगे। आईये अब आपको बताते है कि भ्रष्टाचार की शुरूआत कहा से हो रही है।
बच्चे के जन्म से भ्रष्टाचार- आज एक आम भारतीय के घर कोई महिला गर्भवती होती है, तो भ्रष्टाचार प्रारंभ हो जाता है। परिवार के लोग लड़का होने के लिए मन्नत, चिरैरी करते है जो आगे बढ़कर सोनोग्राफी तक पहुच जाता है। लड़का हुआ तो भ्रष्टाचार को आचार बनायेगा, लड़की हुई तो वो भी उसी भ्रष्टाचार का अभिन्न अंग बनेगी। क्लास में पास होना तो भ्रष्टाचार, एंडमिशन होना हो तो भ्रष्टाचार। रोम-रोम में भ्रष्टाचार बसा है तो जब वो बच्चा या बच्ची बड़ी होकर उच्चे ओहदे में आने के बाद भ्रष्टाचार में लिप्त नही होगे ऐसा कैसे हो सकता है।
धार्मिक भ्रष्टाचार- भारत में जिस प्रकार से धार्मिक भ्रष्टाचार को मान्यता है वह किसी वहसी समाज में ही संभव है। मनुस्मृति, वराह पुराण, भागवत गीता आदि हिन्दू धर्म ग्रंथ हमेशा उच-नीच को ही बढ़ावा देते है। जिससे जाति भेद, लिंग भेद को धार्मिक स्वीकृति मिलती है। इन्ही धर्म ग्रंथो से जिन जातियों को शोषण करने का अधिकार मिलता है वे हिन्दूवाद को बढ़ाना चाहते है तथा वे ये भी चाहते कि भारत का संविधान इन धर्म ग्रन्थो से प्रतिस्थापित हो जाये ताकि भ्रष्टाचार में उनका ऐकाधिकार रहे। यदि अन्ना वास्तव में भ्रष्टाचार मिटाना चाहते है तो इन उच-नीच को बढ़ावा देने वाले धर्म ग्रन्थों की मान्यता रद्ध करवाये उसकी सार्वजनिक होली जलाये। लेकिन वे ऐसा नही करेगे क्योकि कोई अपने पैरो में कुल्हाड़ी क्यो मारेगा। यानि जिससे हमे हानी हो रही हो वो भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिए और जिससे हमे लाभ हो रहा हो वो भ्रष्टाचार जारी रहना चाहिए। ऐसा शिक्षीत समाज का मानना है।
समाजिक भ्रष्टाचार- भारत में सामाजिक भ्रष्टाचार धर्म ग्रंथो की कोख से पैदा हुआ है। जिसके गिरफ्त में हिन्दू तो है ही साथ में मुस्लिम, सिक्ख, जैन, बौध्द, इसाई भी इससे अछूते नही है। यानि ये नही कहा जा सकता की फला धर्म में समाजिक भ्रष्टाचार नही है। भारत में जिस भी धर्म ने प्रवेश किया वे समाजिक भ्रष्टाचार से नही बच सके क्योकि जितने भी लोगो ने उन धर्मो को अपनाया वे पहले से ही समाजिक भ्रष्टाचार में लिप्त थे। बहुत इमानदार समझने वाला व्यक्ति भी यदि अपनी कालोनी मे गैस सिलेडर की ट्राली आते देख ५० रूपये ज्यादा देकर अपनी पारी आये बिना सिलेडर लेने में कोई गलती नही समझता है। उसे लगता है कि उसने कोई भ्रष्टाचार नही किया। यहां बिना लाईन पर खड़े हुये ब्लैक में टिकिट लेना, टैक्स चोरी करना, सीना जोरी कर प्रशासन से नियम विरूध काम करवाना, अपनी जाति भाई के लोगो को फायदा पहुचांना भ्रष्टाचार में शामिल नही है।
राजनीतिक भ्रष्टाचार-पहले के बजाय आज राजनीतिक भ्रष्टाचार कम है, आज जो भ्रष्टाचार दिख रहा है जिसके विरूध अन्ना लाम बंद हो रहे है वो दरअसल राजनीतिक भ्रष्टाचार ही है पहले सामंति युग में यह भ्रष्टाचार चरम पर था जहां एक ओर किसी वर्ग को देवतुल्य सुविधाऐ थी तो एक वृहद जन समुदाय को जानवर से भी बदतर समझा जाता था। उसे मानव अधिकार भी प्राप्त नही थे। लेकिन अब तक ज्ञात भारत के इतिहास में पहली बार लोकतंत्र लागू हुआ है और हासिये पर पड़े उस वर्ग को भी थोड़े बहुत मानव अधिकार प्राप्त हुऐ है। उसके बावजूद आज का भारत अन्य देशो के मुकाबले राजनीतिक मुआमले में ज्यादा भ्रष्ट है। ये महज इत्तेफाक नही है कि आजादी के तुरंत बाद भारत के प्रधानमंत्री सहित देश के सभी राज्यो के मुख्यमंत्री किसी एक ही जाति से ताल्लुक रखते थे।
प्रशासन में भ्रष्टाचार- चूकि भारत में राजनीतिक शक्ति किसी एक वर्ग के पास थी इसलिए प्रशासन में भी उसी वर्ग का राज था और वे लोग भ्रष्टाचार को सदाचार समझ कर निभाते आये। जब तक राजनेता भ्रष्ट रहेगे उनके द्वारा संचालित प्रशासन भी भ्रष्ट ही रहेगा। आज प्रशासन की कार्यविधी इतनी जटील है कि एक साधारण से कर्लक के पास ये अधिकार है कि वह फाईल को रोक ले या आगे बढने दे। प्रशासन में जवाबदेही को लेकर आज भी संदेह है। अधिकारी अरामतलब है तो कर्मचारी काम के बोझ तले दबा जा रहा है। काम की अधिकाता वेतन में विसंगती वर्तमान में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है। महत्चपूर्ण पद पर बैठे अधिकारी कर्मचारी का वेतन इतना कम है कि वे अपने परिवार का पोषण करने में असक्षम पाते है। और महत्वपूर्ण कार्य में भ्रष्टाचार के आफर को वे ठुकरा नही पाते। इसलिए प्रशासन में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए सबसे पहले हर पदो की जवाबदेही निश्चित की जानी चाहिए साथ ही पदानुसार वेतन सुविधाओं की विसंगती को खत्म किया जाना चाहिए।
प्राईवेट क्षेत्रो में भ्रष्टाचार चरम पर है -आज प्राईवेट क्षेत्रों में भ्रष्टाचार चरम पर है जिसके तरफ कोई ध्यान नही देता है। इसके लिए मै एक उदाहरण देना जरूरी समझता हू। एक लोकप्रिय राष्ट्रीय समाचार पत्र ने १०० पद सर्वेयर का निकाला जिसमें युवक युवती की भर्ती की गई ५०००/- वेतन की बात हुई। सर्वेयर को समाचार पत्र का विज्ञापन करना था तीन महिने शहर गांव की गली-गली की खाक छानी और सामाचार पत्र की चल पड़ी । उस समाचार पत्र ने इन्हे एक-एक महिने का वेतन थमाया और तुम्हारी जरूरत नही कह कर नौकरी से निकाल दिया। ये भर्तियां पहले से ही सुनियोजित होती है। इसी प्रकार का छल फैक्टी में, दुकानो में, घर में काम करने वाले नौकरो के साथ रोज घटीत होता है लेकिन आवाज कौन उठाये। बड़ी-बड़ी नेशनल इन्टरनेशनल कम्पनीयां इस काम में माहिर है। चाहे मामला जमीन हड़पने का हो या ३जी घोटाले का। लोगो से महिनो काम लिया जाता लेकिन वेतन नसीब नही होता। शिकायत कहां करे। प्रशासन में भ्रष्टाचार हो तो उसकी शिकायत उसके बड़े अधिकारियों से कि जा सकती है प्राईवेट सेक्टर में शिकायत किससे करे।
बेहतर होता अन्ना भ्रष्टाचार को गहराई से समझते और उसे समूल उखाड़ने की मुहीम चलाते किन्तु ये मुहिम आम लोगो की मुहिम नही है इसलिए इस बात की गुन्जाईश भी नही है जिसके लिए मैने तर्क उपर दिये है। दरअसल जबतक अन्ना या अन्ना जैसे लोग धार्मिकवाद का मोह नही त्यागेगें तब तक भारत से भ्रष्टाचार का खात्मा नही होगा यदि भ्रष्टाचार है तो है चाहे वह किसी भी मुआमले में हो वह गलत है उसका खात्मा होना चाहिए। लोकपाल तो लोकप्रियता और टीआरपी का खेल है इससे न कुछ खास होना है न वे (आश्य आन्ना आंदोलन से है) ऐसा कुछ खास होने देना चाहते है।


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संजीव खुदशाह
Sanjeev Khudshah 

अन्ना, क्या यह गांधी की भाषा है ?

कविता
अन्ना, क्या यह गांधी की भाषा है ?
भारत माँ की शान में,
बुर्जुग अन्ना बैठ गये है
रामलीला मैदान में।
अन्ना आपसे देश को
बहुत आशा है।
मिल रहा समर्थन भी,
अच्छा खासा है।
            
सिर पर गांधी टोपी पहने,
हाथ में लेकर झण्डा,
जय जयकारे लगा रहे है,
भ्रष्टों के कारनामे बांच रहे है
भ्रष्टाचार पर नाच रहे है,
क्या खूब
करप्शन उत्सव है !
कहा जा रहा है,
यह क्रान्ति है, यह विप्लव है।
गली गली से
रामलीला तक
`मैं अन्ना हूँ`
का अजब तमाशा है।
पर लेन देन ही भ्रष्टाचार है
लोकपाल  में करप्शन की
इतनी सीमित क्यों परिभाषा है ?
अन्ना आपसे देश को बहुत आशा है।
            
इस आन्दोलन से -
बरसों बाद लोग फिर जागे है।
गांधी के हत्यारे सबसे आगे है।
सिब्बल को वे `कुत्ता` कहते,
दिग्गी को वे `चूहा` मानते।
उनके लिये -
सोनिया भ्रष्टाचार की मम्मी है।
राजनीति को कहते, बहुत निकम्मी है।
वे सरकार को नंगा करेंगे,
नही तो जमकर पंगा करेंगे।
विरोधियो  को भेजेंेगे पागलखाने
फिर क्या होगा, रामजाने।
किरण जी ने कह दिया है-
अन्ना ही भारत है,
भारत है वो अन्ना है।कुछ भी कहते, कुछ भी बकते
ना ही रूकते, ना ही थकते।
मचा रखा एक शोर चारो ओर है,
जो अन्ना संग नहीं , वे सब चोर है।
बोलो गां धीवादिय़ॉ
क्या यह भाषा, गांधी की भाषा है ?
उत्तर दो अन्ना ,देश को जिज्ञासा है।
अन्ना आपसे देश को बहुत आशा है।
            
अब `से ` अन्ना `है
और है ` ` से ` अराजकता `
`` से आवारा भीड़ भी है
और है उसके खतरे भी,
आज अगर ये जीत जायेंगे
कल फिर से ये दिल्ली आयेंगे
दुगने जोर से चिल्लायेंगे
आरक्षण को खत्म करायेंगे
संविधान को नष्ट करायेंगे
लोकतंत्र की जगह
तानाशाही राज लायेंगे
फिर वो होगा, जिसकी हम को
सपने में भी नहीं आशा है।
जन मानस में बढ़ने
लगी हताशा है।
अन्ना आपसे देश को बहुत आशा है।
            
मगर निराश न हों
हताश न हों
उठो, देशवासियो ,
गरीब, गुरबों,
मजदूरों, किसानों
दलितों, आदिवासियों
जवाब दो
इस अराजक आवारा भीड़ को
कि कोई हमारे लोकतंत्र को
`बंधक` नहीं बना सकता
और अपनी शर्तों पर
डेमोक्रेसी को नहीं चला सकता।
हमें अपनी आजादी
अपना संविधान
अपना लोकतंत्र
और अपना मुल्क
बेहद प्यारा है जिसे एक ` हजारे ` ने नहीं `हजारो ने
लाखों और करोड ने
अपने खून, पसीने से संवारा है।
यह प्रण है हमारा -
हम `जनता` के नाम पर
असंवैधानिक आचरण चलने नहीं देंगे
`जनलोकपाल ` की आस्तीन में
`तानाशाही` के सांप को पलने नहीं देंगे।
            
हाँ, हम उठ खड़े होंगे
चीखेंगे और चिल्लायेंगे
कि हमें हमारा लोकतंत्र चाहिए
हमें हमारा सं विधान चाहिए
हमें हमारी आजादी चाहिए।
कि हम निर्भीक होकर
खुली हवा मे सांस लेना चाहते है,
हमंे मजबूर मत करो,
हमें पानी में चांद मत दिखाओं
जन लोकपाल के नाम पर मत भरमाओं,
हम जानते है
एक कानून नहीं बदल सकता है
देश की तकदीर
लोकपाल नहीं मिटा सकता है
भ्रष्टाचार
क्योंकि भ्र ष्टाचार तो
इन चतुर सयानों के दिमागों में है
इनकी वर्ण व्यवस्था, जाति प्रथा
और पुरातन संहिताओं में है।
हम उस भ्रष्टाचार से सदियों से सन्तप्त है
उसके अत्याचार, उत्पीड़न और अत्याचार से त्रस्त है
जिसमें लिप्त है सब।
            
और अन्ना आप भी,
कभी नहीं बोले -
छुआछूत पर,
दलितों पर हो रहे अत्याचारों
के विरूद्ध,
आदिवासियों के विस्थापन के खिलाफ,
क्यों चुप रहे
अन्ना आप ?
खैरलांजी पर, सिंगुर, नंदीग्राम,
पोस्को, जेतापुर
क्या क्या गिनाऊं
क्या यह भी कहूँकि आपके ही आदर्श गांव रालेगण सिद्धि में
दलितों को
क्यों नहीं मिल पाया सामाजिक न्याय
और आपके ही राज्य में
आत्महत्या करने वाले लाखों किसानों को,
क्यों नहीं बचा पाये ?
तीन साल की एक बच्ची
जो नहीं समझती
कि `जनलोकपाल` क्या है ?
और क्या है भ्र ष्टाचार ?
उसका तो अनशन तुड़वाकर
खूब बटोरे गये बाइटस मीडिया पर
लेकिन क्या
ग्यारह बरस से अनशन पर बैठी
पूर्वोत्तर की बेटी
इरोम शर्मिला चानू
आपको अपनी बेटी नहीं लगताी,
उसका अनशन कौन तुड़वायेगा,
इन सब पर कब सोचेंगे आप
मराणी मानुष राजठाकरे
और हजारो बेगुनाहों के
नरसंहार के साक्षी
नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा
से फुर्सत मिले,
तो जरा सोचना
इनके लिये भी,
क्योंकि अन्ना आपसे देश को बहुत आशा है।
- भँवर मेघवंशी
(डायमंड इंडिया के सम्पादक है
जिनसे -  -bhanwarmeghwanshi@gmail.com तथा मोबाइल -९४६०३२५९४८
पर सम्पर्क किया जा सकता है)