शून्‍य परछाईं दिवस जब परछाईं भी आपका साथ छोड़ देती है

शून्‍य परछाईं दिवस
जब परछाईं भी आपका साथ छोड़ देती है
 संजीव खुदशाह
आमतौर पर यह माना जाता है कि परछाईं कभी आपका पीछा नहीं छोड़ती लेकिन दिलचस्प बात यह है कि साल में अमूमन दो बार परछाईं कुछ पलों के लिए आपका पीछा छोड़ देती है .  हम इस दिवस को शून्य परछाईं दिवस  zero shadow day कहते हैं . मुझे याद है मां कहती थी कि बाहर के काम जल्दी निपटा लो नहीं तो 12:00 बज जाएंगे. यहां 12:00 बजने से तात्पर्य सिर के गर्म हो जाने से है जो कि सूर्य के ठीक सिर के ऊपर आने से ताल्लुक रखता है. कुछ लोग यह भी मानते है कि 12:00 बजे सिर के ऊपर सूरज आ जाता है और हमारी परछाई नहीं बनती. लेकिन यह भी धारणा गलत है.'
जीरो सैडो डे क्‍या है?                                                          
कर्क रेखा से भूमध्य रेखा के बीच तथा भूमध्य रेखा से मकर रेखा के बीच  आने वाले स्थानों में  शून्य परछाईं दिवस आता है. दरअसल यह शुन्य परछाई दिवस का वह क्षण,  दिन भर के लिए नहीं बल्कि कुछ ही पलों के लिए दोपहर के 12:00 बजे के आस पास होता है.  इस समय दुनिया के तमाम वैज्ञानिकजिज्ञासु  विद्यार्थीतर्कशील लोग कई अनोखे प्रयोग करते हैं.  वह इस खास पल में खड़े होकर अपनी परछाईं को ढूंढते हैं. गिलास को उल्टा रखकर यह देखते हैं कि उसकी परछाईं किस तरफ आ रही है.  कई कई तरह के रोचक प्रयोग इस दौरान किए जाते हैं.  आइए इस दिवस को हम एक विज्ञान के चश्मे से समझने की कोशिश करें और इस खगोलीय घटना को यादगार पल में बदले.
दरअसल  सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायण होने के दौरान  23.5 अंश दक्षिण पर स्थित मकर रेखा  से  23.5 अंश उत्तर  की कर्क रेखा की ओर  सूर्य जैसे जैसे दक्षिण से उत्‍तर दिशा की ओर बढता है वैसे-वैसे दक्षिण से उत्तर की और  गर्मी की तपन  दक्षिणी गोलार्ध में कम होती जाती है  और उत्तरी गोलार्ध में  बढ़ती जाती है . सूर्य की किरणे पृथ्‍वी पर जहाँ जहाँ सीधी पड़ती जाती  है वहां वहाँ  उन खास स्‍थानों पर ठीक दोपहर में  शून्‍य परछाईं पल निर्मित होता जाता  है.  ठीक इसी प्रकार उत्‍तर से दक्षिण की ओर सूर्यवापस आते समय ठीक मध्यान में उसी अक्षांश पर फिर से शून्य परछाई बनाता है.  यानी कर्क रेखा  से मकर रेखा के बीच  दक्षिणायण होते सूर्य से यह दुलर्भ खगोलिय घटना होते दुबारा देख सकते  है.  कन्‍या कुमारी से  कर्क रेखा तक मध्‍य भारत के  तमाम स्‍थानों  में अप्रेल  से  जून तक और वापसी में जून से अगस्त  तक  किसी खास दिन  वास्तविक मध्यान्ह में   इस खगोलिय घटना को हर वर्ष दो बार  देखा जा सकता है.
 
इस सम्बन्ध में छत्तीसगढ़  विज्ञान सभा के श्री विश्‍वास मेश्राम  बताते है मध्य प्रदेश उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के विज्ञान कार्यकर्ताओं के लिए  एक प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन शीघ्र ही किया जा रहा है जिसमे वरिष्ठ खगोलभौतिकविदो तथा वैज्ञानिको द्वारा  हमारे अक्षांश के ठीक उपर जेनिथ  से सूर्य कब गुजरेगा तथा इसे हम विद्यार्थियों के साथ क्योंकिस प्रकार और कैसे अवलोकन कर सकेंगे इसे प्रयोगों द्वारा बताया जायेगा.  
आईये देखे कि कुछ खास स्‍थानो में ये  शून्य परछाई दिवस कब कब पडने वाला है-
 उत्तरायण में  शून्य परछाई  दिवस
दक्षिणायण में   शून्य परछाई  दिवस
स्‍थान
11 मई
1 अगस्त    
कोंटा
13 मई
30 जुलाई      
सुकमा
14 मई
29 जुलाई      
किरंदुल, बचेली/बीजापुर
15 मई
28 जुलाई
दंतेवाडा
16 मई
27 जुलाई      
जगदलपुर      
18 मई
25 जुलाई      
कोंडागांवनारायणपुर
21 मई
22 जुलाई      
कांकेर /नगरी
23 मई   
20 जुलाई
दल्ली-राजहराधमतरी
24 मई
19 जुलाई      
बालोद
25 मई
18 जुलाई
कसेकेरा, राजनांदगांव
26 मई
17 जुलाई      
भिलाईडोंगरगढ़, महासमुंद, पिथौरा
27 मई
16 जुलाई
बसना, रायपुर 
29 मई
14 जुलाई      
बलोदा-बाजार
30 मई
13 जुलाई      
बालाघाट, भाटापारा
31 मई
12 जुलाई      
कवर्धारायगढए चाम्पा
1 जून  
11 जुलाई      
बिलासपुरमुंगेली
3 जून  
9 जुलाई
कोरबा
6 जून    
6 जुलाई
कुनकुरी
8 जून  
4 जुलाई        
जशपुर
12 जून
30 जून
चिरमिरी, सूरजपुर

भारत में सूर्य की इस गति को एक खास नाम दिया गया है। सूर्य की उत्तर की ओर यात्रा को उत्तरायण कहा जाता है और दक्षिण की ओर यात्रा को दक्षिणायण कहा जाता है।
यदि आप उत्सुक है ये जानने के लिए कि आपके शहर में ये  शून्य परछाईं दिवस कब आएगा तो आप आपने मोबाइल से इस लिकं को क्लिक कर सकते है.
परछाईं गायब होने के पीछे क्या है राज?
 परछाईं गायब होने के पीछे कोई जादू नहीं बल्कि यह हर साल होता है यह धरती की परिभ्रमण गति की सामान्य प्रक्रिया है. धरती सूर्य का चक्कर लगाने के साथ अपनी जगह पर भी घूमती है. वह अपने अक्ष में 23.5 डिग्री झुकी हुई हैजिस कारण सूर्य का प्रकाश धरती पर सदा एक समान नहीं पड़ता और दिन रात की अवधि में अंतर आता है. 21 जून (आपके भागोलिक स्थिति के अनुसार ये तारीख बदल जाती है.) के दिन दोपहर में कर्क रेखा सूर्य पर होता हैजिस कारण हमारी छायाएं भी वहां पर साल की सबसे छोटी होती हैं। जब सूर्य भूमध्य रेखा से कर्क रेखा की ओर उत्तरायण में होता है तो उत्तरी गोलार्ध में सूर्य का प्रकाश अधिक व दक्षिणी गोलार्ध में कम पड़ता है . जिस कारण उत्तरी गोलार्ध में गर्मी होती है जबकि दक्षिणी गोलार्ध में ठीक इसी समय सर्दी.  ठीक यही कारण है कि अन्टार्कटिका अभियान नवंबर-दिसम्बर में जाते है क्योंकि तब दक्षिणीगोलार्ध में गर्मी की ऋतु होती है. इसके बाद 21 सितंबर के आसपास दिन व रात की अवधि बराबर हो जाती है. धीरे-धीरे दिन की अवधि रात के मुकाबले बड़ी होने लगती है. यह प्रक्रिया 21 दिसंबर(आपके भौगोलिक स्थिति के अनुसार ये तारीख बदल जाती है.)  तक जारी रहती है. इस दिन उत्तरी गोलार्ध में रात वर्ष की सबसे लंबी होती है, जबकि दिन सबसे छोटा होता है. धरती पर 23½º उत्तर और 23½º दक्षिण अक्षांशो के बीच साल में ऐसे दो दिन आते  है, जब हमारी परछाईं एक पल के लिए शून्य हो जाती है. यह घटना कर्क रेखा से भूमध्य रेखा पर आने वाले भूभाग में ही होती है. 21 जून को जब सूर्य ठीक कर्क रेखा के ऊपर होता है तब वहां दोपहर को हमारी परछाई शुन्य होती है जबकि उसके उत्तर में स्थित सभी स्थानों के लिए यह दिन सबसे छोटी परछाई वाला दिन होता है. ज्ञात हो कि कर्क रेखा के उत्तर में तथा मकर रेखा के दक्षिण में शुन्य परछाई दिवस नहीं होते.  यह बात स्थिर रूप से सीधी खड़ी रहने वाली वस्तु पर ही लागू होती है. आपको यकीन नहीं हो आप इस दिवस को जरुर आज़माए चाहे आप घर पर हो या अपने कार्यस्‍थल पर.


संजीव खुदशाह
लेखक तर्कशील सोसाईटी एवं भारतीय विज्ञान सभा के सदस्‍य है। 
This article published  in Jansatta 20 may 2017

दिवंगत प्रसिध्‍द दलित लेखक एडवोकेट भवानदास, एस एल सागर तथा संजीव खुदशाह को धमकी

अपने आपको वाल्‍मीकि (भंगी) समाज का समाज सेवक बताने वाले संत दर्शन रत्‍न रावण का ये लेख पढने के लिए भेज रहा हूं। इन्‍हे अंबेडकर भी चाहिए राम भी। वे अंबेडकर वादियों पर कडी टिप्‍पणी करते है खास कर वे दिवंगत प्रसिध्‍द दलित लेखक एडवोकेट भवानदास, एस एल सागर तथा संजीव खुदशाह पर धमकी भरे शब्‍दों का प्रयोग करते है।

650 वर्ष से पूर्व भंगी जाति के साथ वाल्मीकि व स्वपच शब्द जुड़ा है।

-दर्शन 'रत्न' रावण

बुद्ध हमारे लिए उस वक्त एक आदर्श बनने लगे थे जब हम अभी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर रहे थे। उनका तर्क को प्रधानता देना और खुद की बुद्धि पर तर्क को कस कर देखना यह सब प्रभावित करता था और जब यह पढ़ा कि माँ सुजाता ने केवल खीर नहीं ज्ञान भी दिया था तो और भी अच्छा लगा।

अचानक हमारा सामना कुछ ऐसे लोगों से हुआ जो स्वयं को असली बौद्धि कहते थे मगर आचार-व्यवहार से किसी खिस्याए हुए ब्राह्मण जैसे। एकदम मूढ़ व जड़। किसी दूसरे को बात करने ही नहीं देनी और किसी बात पर तर्क नहीं करना। बस जो वो कहे उसे मानों ! यह कैसा बुद्धिज़्म ? हो ही नहीं सकता ये बुद्धिज़्म।

थाईलैंड की बाघों की खाल का धन्दा करने वाली ख़बर पर हमें तर्क दे रहे हैं कि वो कुछ लोगों की करतूत हो सकती है और उन्हें गिरफ्तार करने वाले भी बौद्ध ही हैं। भारत के हिन्दू संत नित्यानंद,आसाराम हो या प्रज्ञा ठाकुर इनको पकड़ने वाले अधिकारी भी हिन्दू ही थे। मगर फिर भी मुद्दा बनाया जाता है।

हमारा भी दुःख है। हम भी निरंतर कहते रहे हैं कि सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान पर बिना वजह ऊँगली मत उठाओ। मगर किसी ने हमारी बात न सुनी न मानी। अब जब अकारण ही हमारे द्वारा सवाल उठा दिए गए तब सभी को तर्क याद आने लगे। तर्क की बात तो आदिकवि वाल्मीकि दयावान भी कहते हैं कि किसी खरे कुँए का पानी इसलिए मत पियो कि वह आपके बुज़ुर्गों का लगाया है।

क्या कहते हैं ये सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान के बारे में ?

  1. रामायण मिथिया है।
  2. रावण एक महात्मा व महान योद्धा है। बताइए दोनों बाते साथ-साथ कैसे हो सकती हैं ?

1. महामुनि शम्बूक का कातिल राम है।

2. महामुनि शम्बूक के दोषी हैं वाल्मीकि।

कौन सी बुद्धि की कसौटी पर ये बात कही जा रही है ? मुझे तो पूरी तरह मूर्खता नज़र आती है।

न आदिकवि वाल्मीकि कहीं महामुनि शम्बूक की हत्या को जायज़ ठहराते मिलते हैं। न राम को इस कुकृत्य को करने को कहते हैं। फिर दोषी कैसे ? सिर्फ इसलिए कि वो इस घटना को उजागर करते हैं ? अगर पर्दा डालते तो कोई बात होती।

जबकि दोषी खुद हैंबड़े-बड़े साहित्यकार कहलाने वाला भी "शम्बूक-वधलिखता है। इन्हें इतनी समझ नहीं कि वध होता है जायज़ क़त्ल। जैसे फाँसी या जेहाद। अभी तक एक भी दलित लेखक इस बात को समझ नहीं पाया। बस मक्खी पर मक्खी मार रहे हैं बेचारे।

कुछ मूर्ख हैं या बड़े शातिर हैं। सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान को बार-बार ब्राह्मण साबित करने का कुप्रयास करते हैं। जबकि कबीर साहिब और संत रविदास जी ने अपनी वाणी में माना है कि उस वक्त {लगभग। उनकी वाणी पिछले 400 वर्ष से गुरु ग्रन्थ साहिब में सुरक्षित हैजिसके साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं की गई है।

हमें सवाल करते हैं। वाल्मीकि का काल बताओ ? रामायण कब लिखी गई ? योगविशिष्ट की रचना कब हुई ? ये सब तो बहुत पुरानी बातें हैं। आप बुद्ध का जन्म अभी तक तय नहीं कर पा रहे हो। रोज़ नया शिलालेख या प्रतिमा निकलती है और बिना सोचे ये बुद्ध से जोड़ते हैं। देखिए ! बुद्ध कोई 2600 वर्ष पूर्व हुए और प्रतिमा 3000 वर्ष पुरानी पर भी दवा कर देते हैं। {वैसे हमें पता है हम अभी नहीं कहेंगे इन प्रतिमयों का सच}

हमारे एतराज़ हैं वो रहेंगे। क्यों बुद्ध अपनी शिक्षाओं को "आर्यशब्द से जोड़ते हैं ? क्यों सुनीत बुद्ध के घर में भी एक सफाई वाला ही बना रहता है ? हम सवालों का हमला भी करेंगे कि गाँधी के तीन बन्दर समझ कर बहुत ऊँचे-ऊँचे तर्क देने वाले अब क्यों चुप हैं जब पता चल गया कि ये तीन बन्दर का सिद्धांत बुद्ध का था ?

इन सबके बावजूद हम टकराव नहीं चाहते। मगर सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान पर कटाक्ष चाहे भगवान दास करे याएस.एल.सागर हो या संजीव खुदशाह हम किसी को सहन नहीं करेंगे। खुलेआम नंगा करेंगे। ये हमारे लिए नए नव-बौद्ध नहीं अपितु नए पोंगा-पंडित हैं। ललई सिंह वाल्मीकि रामायण पेश कर ही हाई-कोर्ट से बचे थे। क्यों लिया रामायण का सहारा ?

बाबा साहेब डॉभीमराव अंबेडकर ने लिखा है--"मैं इतना हठधर्मी भी नहीं हूं कि यह सोचूं कि मेरा कथन ब्रह्म वाक्य है या इस विचारविमर्श में योगदान से बढ़कर कुछ है।.......मुझे इस बात पर गर्व है कि मैंने जातिप्रथा के बारे में एक सिद्धांत प्रतिपादित किया है। यदि यह आधारहीन लगेगा तो मैं इसे तिलांजलि दे दूंगा।"

हमने बाबा--कौम वंशदानी डॉ अम्बेडकर के नाम और काम दोनों से एक विशाल जन-समूह को भली-भांति अवगत करवाया है जबकि ये नव-बौद्ध लोगों में भ्रान्ति और ज्ञान-प्रतीक डॉ अम्बेडकर से दूरी बनाते रहे।  बाबा साहिब ने अगर बुद्ध धर्म अपनाने का फैसला लिया तो वो उस वक्त जरुरी था।बुद्धिज़्म से सम्राट अशोक और बाबा साहिब डॉ अम्बेडकर दोनों के समय नुकसान ही हुआ।

आज जो लोग बुद्ध धम्मा को अपना रहे हैं उनमें से कुछ मंशा तो राजनीतिक है। ज्यादा पलायनवादी हैं। जिन्हें आफिस की सीट पर बैठे एक सरल व सुगम रास्ता मिल गया परिचय देने को। जब कोई पूछे कि आप कौन झट से कह दें कि मैं 50 देशों में फैले बुद्ध धर्म का हूँ। यह अपने आपको छोटा समझने की सोच है। हम आदिकवि वाल्मीकि से शम्बूकमाँ शबरीमाँ कैकसीमहात्मा रावणएकलव्य से लेकर कबीर साहिबसंत रविदास व वंशदानी डॉ अम्बेडकर तक आदि-आरम {धम्मकी सोच रखते हैं।इसी में हमारा इतिहास और पहचान है। डॉ अम्बेडकर जी को अगर समय मिलता तो वो भी यही करते।
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comment on that groups

1 'AJAY GONDANE' 
The writer has the right to express his opinion and analysis. More such analytical and even contrarian articles should help and refine the social conversation.  But nobody has a right to threaten anybody else. 
Civil discourse, even if insipid at times, is preferable to threatening, evocative or fashionable conversation. We shd all develop mutually rather than dig our mutual graves.  
Best wishes. A M Gondane

2 Shrawan Deore
08/06/2016 
to DMA 
सब जाती का परिणाम है। जाती से बाहर देखने की स्थिती कब आएगी???

sudesh kumar
09/06/2016
to dalit-movement. 
प्रिय महोदय,
आपका लेख अच्छा है लेकिन रामायण एक साहित्यिक रचना है और उसके पात्र काल्पनिक. इन्हीं काल्पनिक पात्रों के आधार पर एक और राम-हनुमान के मंदिर बनते हैं और दूसरी और शम्बूक-बाली इत्यादि का वध नाजायज़ ठहराया जाता है. ये एक अनंत बहस है इस देश में जहाँ भारत ही नहीं दुनिया के महानतम ऐतिहासिक जीते-जागते पात्रों को इन काल्पनिक पात्रों से कमतर आँका जाता रहा है. ये इस देश की नियति है और साथ ही दुर्भाग्य भी, जो संभवता इसके बार-बार होते पतनों का बड़ा कारण भी रहा है. जहाँ तक बुद्धिज्म की बात है, आपके लेख से ज्ञात है कि वह आपकी बुद्धि और सोच से परे है.
सादर,
सुदेश तनवर
9868862563

4 Sanjeev Khudshah
12/06/2016
to dalit-movement. 
यह लेख पूरी तरह से गप्‍प पर आधारित है ऐसा प्रतीत होता है। 
650 वर्ष से पूर्व भंगी जाति के साथ वाल्मीकि व स्वपच शब्द जुड़ा है। इसका कोई आधार नही बताया गया है। न ही गुरूग्रंथ साहीब के उस पद काेे लिखा गया है। यदि ऐसा होता तो शायद सफाई कामगारो के शोध को एक नई दिशा मिलती। तय हैै ऐसा कोई तथ्‍य है ही नही। यदि ऐसा कोई तथ्‍य है भी तो उससे क्‍या होना है ? पूरे लेेख को लिखने का मकसद अपनी खीज एडवोकेट भगवानदास, एस एल सागर और संजीव खुदशाह के प्रति निकालना लगता है। क्‍योकि वाल्‍मीकि समाज के लोग पढ लिख रहे है, सही गलत का फैसला कर रहे है। अब इन संतो के कार्यक्रम में भीड कम होने लगी है, वे वाल्‍मीकि पर और उनके पाखण्‍ड पर प्रश्‍न उठाने लगे है। जिनका जवाब इन संतो के पास नही है। वाल्‍मीकि समाज की जागृति ही इनकी परेशानी का सबब है।
Bharti Kanwal
12/06/2016
to dalit-movement. 
Please read, all of you, recently published  book 'POLITICS OF THE UNTOUCHABLES" written by pro. Shayam Lal, on the same subject. He  does not admit this "BAKWAS"

6 'KAILASH CHANDER CHAUHAN CHAUHAN' 
13/06/2016
to dalit-movement. 
संजीव खुदशाह जी आपका जवाब तर्कपूर्ण, सार्थक है. सफाई कर्मी समाज में वाल्मीकि को लेकर सवाल उठने लगे हैं. मैंने हरियाण्ा के सिरसा जाकर वाल्मीकि समाज में अंबेडकरवाद को लेकर एक रिपोर्टिंग की थी. इसके लिए में वहा वाल्मीकि बस्तियों व घरों में गया. एक रिपोर्ट एक अखबार में प्रकाशित हुई. सफाई कर्मी समाज परिवर्तन की आेर है, बेशक गति कम है.

अंबेडकरवादी बहुजन समाज पार्टी के हार की समीक्षा

अंबेडकरवादी बहुजन समाज पार्टी के हार की समीक्षा
·         संजीव खुदशाह
विगत दिनों उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में अंबेडकरवादी पार्टी मानी जाने वाली बी एस पी की करारी हार हुईवही भारतीय जनता पार्टी की बंपर जीत हुई. बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती सहित उसके कार्यकर्ता हार को स्वीकार नहीं कर पा रहे है. बस हार का ठीकरा evm के सर फोड़ रहे है. कुछ तो को कुछ मोहन भागवत को और निर्वाचन आयोग को गरिया रहे है. दरअसल हार की समीक्षा हर हालत में होनी चाहिए चाहे हार का कारण जो भी हो लेकिन bsp evmके मुद्दे की आड़ में हार की समीक्षा से बचना चाहती है. ऐसा प्रतीत होता है. यह उन लोगों के साथ छल की तरह जिन्होंने अपने खून पसीने की कमाई से इस पार्टी को खड़ा किया. इस पार्टी के दान दाता कोई औधोगिक घराना नहीं रहा है इसे उन लोगों ने दान देकर खड़ा किया जिन्हें खुद दो वक्त की रोटी मुश्किल से नसीब होती रही हैं. इनके कार्यकर्ताओं ने बेहद कम संसाधनों में कैम्प आयोजित कर-कर के लोगों को जगाया उन्हें सामाजिक न्याय से अवगत कराया. हर वे लोग जो समानता, समता, प्रगतिशीलता, लोकतंत्र पर यकीन करते थे उन्होंने अम्बेडरवादी पार्टी ब स पा को सपोर्ट किया था और उसे एक ऊंचाई पर देखना चाहते थे. हालांकि राजनैतिक पार्टियों की हार एवं जीत का आम बात है.  बावजूद इसे बसपा का एक-एक समर्थक उन वास्तविक कारणों को जानना चाहता है जिसके कारण उसकी हार हुई है.

इस पर पूर्वाग्रह से मुक्त होकर एक समीक्षा करने का प्रयास कर रहा हूं इसके साथ उन मुद्दों पर बात करूँगा की कैसे और किन कारणों से भारतीय जनता पार्टी जीत सुनिश्चित हुई.
(अ) बसपा ने अपना मूल वोट बैंक (मतदाताओं) का विश्वास खोया
(1) यह एक मात्र पार्टी है जो समाज के वंचितों, दबे कुचले, पिछड़ों के हितों की रक्षा को लेकर खड़ी हुई खासकर उनके आरक्षण के पक्ष को जनता तक पहुंचायालेकिन bsp के सरकार बनते ही सवर्णों को  आरक्षण देने की वकालत करने वाली भी यही एक माह पार्टी बन गई.
(2) यह पार्टी अंबेडकर फुले की विचारधारा को लेकर पैदा हुइ जिसमें लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्खा करनाहर प्रकार की भेदभावसामंतवादब्राह्मणवाद को ख़त्म करने की बातें इसके मूल सिद्धांत में शामिल हैं और अंबेडकर फूल वाद का सबसे बड़ा सिद्धांत है कुर्सी के खातिर अपने सिद्धांतो की बलि को ना चढ़ाना. लेकिन मायावती ने मुख्यमंत्री बनने के लिएbjp के साथ समझौता कर यह संदेश अपने वोटरों को दिया कि वे अंबेडकर सिद्धांत को अपने पैरों तले कुचल ने के लिए आमादा है
(ब)  पार्टी में लोकतांत्रिक मूल्यों की कमी
(1) काशीराम ने जिन लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए इस पार्टी को खड़ा कियापार्टी एक परिवार / व्यक्ति की संपत्ति बनकर रह गई है के प्रति तीन साल बी एस पी में अध्यक्ष पद का चुनाव महज एक औपचारिकता बन कर रह गया काशीराम के बाद मायावती लगातार अध्यक्ष बनती रही. पार्टी सदस्यता का कहना है कि अध्यक्ष चुनाव में नियमानुसार वोटिंग पद्धति का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
(2)  आम कार्यकर्ता और जनता से दूरी
कांशीराम ने जिस प्रकार एक आम कार्यकर्ताओं की तरह जीवन गुजारा,लोगों के बीच रहकर मिशन को खड़ा किया. मायावती ठीक इसके उलट आम आदमी तो दूरविधायक और सांसद को भी मिलने का समय छः – छः  महीने के बाद का देती है. (नाम ना छापने की शर्त पर एक पूर्व सांसद ने इन पंक्तियों के लेखक को यह जानकारी दी है)
(3) हिटलर शाही
मायावती पार्टी की सर्वे सर्व है अगर सतीश चंद्र मिश्रा को छोड़ दे तो शेष कोई भी नहीं है जो मायावती के आगे बैठ सके. वे इस पार्टी की प्रवक्ता है,मीडिया प्रमुख भी खुद ही हैसारे राज्यों की अध्‍यक्ष  वही है कोषाध्‍यक्ष  भी वे ही है याने पार्टी की सारे अधिकार वो अपने पास ही रखती है उन्‍हे पार्टी के किसी कार्यकर्ता और नेताओं पर एक कौड़ी का विश्‍वास नही है।
(4) दूसरी लाइन के नेताओं को ठिकाने लगाना
यदि मैं आपसे पूछ हूं कि bsp मैं कौन-कौन से नेता प्रमुख है तो शायद आप सोच में पड़ जाएंगे। या कोई नाम नहीं बता पाएंगे। मायावती ने बड़ी सोची समझी रणनीति के तहत काशीराम के समय के नेताओ और कार्यकर्ताओं को ठिकाने लगाया है। नतीजतन किसी ने नहीं पार्टी बना लियातो किसी ने दूसरी पार्टी जॉइन कर लियाकिसी ने नया संगठन बना लियाकिसी ने बामसेफ को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया और वे बिखर कर अपने अपने स्तर पर काम करते रहे।
(स) भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए मायावती जरूरी है
सभी जानते हैं कि अंबेडकरवादी बिकाऊ नहीं होते लेकिन बीजेपी कांग्रेस को अपनी राजनीतिक रोटी सेक ने के लिए ऐसे बिकाऊ नेता की नितांत अवश्‍यकता होती है जो देखने में लगे कि यह गरीबों के दलितों के मसीहा हैंअंबेडकरवादी है,लेकिन वास्तव में ऐसा ना हो। इस कड़ी में आप उदित राजरामदास आठवले,रामविलास पासवान आदि का नाम ले सकते हैं इन सभी में मायावती अहम है क्योंकि उनकी मुठ्ठी में बहुजन समाज पार्टी जैसी पार्टी है जिसकी कार्यकर्ता उसे अंधभक्तों की तरफ पूजते हैं(जिस व्‍यक्ति पूजा का विरोध डॉं अंबेडकर ने किया था) उनकी गलतियों तक को सुनने के लिए तैयार नहीं है। स्वर्ण पार्टियों के प्रमुख जानते हैं कि बी एस पी में मायावती के रहते कोई सच्चा लीडर नहीं आ सकता। इसलिए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस समय समय पर जब जैसा चाहें मायावती और बहुजन समाज पार्टी का प्रयोग करती रही है।
इसी प्रकार मायावती को भी इन केंद्र सरकार वाली पार्टियों की सख्त जरुरत हैक्‍योकि मायावती आय से अधिक संपत्ति (जो की कार्यकर्ताओं के खून पसीने से भेजी गई चंदा की रकम है) भाई के 50 कंपनियों के घोटालेताज कारीडोर जैसे कई मामले में फसी हुई है उन्हें कभी भी सजा हो सकती है उनकी लाख करोड की संपत्ति जप्‍त किया जा सकता है। 
सभी सवर्ण पार्टियां और उनकी मीडिया चाहती है कि मायावती का इसी प्रकार महिमा मंडन किया जाएताकि देश में एक मात्र दलितों की लीडर के रूप में वे नजर आए और उनकी भारी भरकम छवि बनी रहे। आज बहुजन समाज पार्टी नियमानुसार अपनी राष्ट्रीय पार्टी होने का तमगा भी खो चुकी है
(ड) क्या मायावती सच में दलितों की लीडर है?
यह प्रश्न हमेशा खड़ा होता है कि क्या दलित परिवार में जन्म देना ही इस योग्‍यता को समृद्ध करता है कि वह दलितों का नेता है। जबकि यह सच नहीं हैमायावती ने उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री रहने के दौरान दलितों आदिवासियों वंचितों के लिए क्या-क्या काम किए? उनकी शिक्षा के लिए कितने कॉलेजविश्वविद्यालय बनाएंकितने किताब छपवाएंकौन-कौन सी पत्रिकाएं निकलवाईदेश में होने वाले कितने आंदोलन में वे जमीनी तौर पर शामिल हुईया कौन सा आंदोलन उन्होंने खड़ा किया ? वे कभी भी एक जन नेता के रुप में नहीं जानी गई। जबकि उन्‍होने अंबेडकर सिद्धांत की विरुद्ध अपने कार्यकाल के दौरान निजीकरण को बढ़ावा दिया।

वह कभी भी रोहित वेमुलाजिग्नेश कन्‍हैया कुमार के आंदोलन के साथ नहीं खड़ी हुई। न ही वे किसी दलित प्रताडना या महिला प्रताडना के पक्ष में आंदोलन करते देखा गया। जबकि इसके साथ खड़ी होकर up में बहुजन आंदोलन के रफ्तार को बढ़ा सकती थी।
समाधान
आइए जाने की कोशिश करें की किस प्रकार भारतीय जनता पार्टी ने कैसे जनता का विश्वास जीता
(1) इन्होंने 2014 से पूरे up में अपने कार्यकर्ताओं को काम पर लगवाया जो फूल टाइमर थे इन्‍हे नियत वेतन दिया गया। जबकि बहुजन समाज पार्टी ने सदस्यता का अभियान तक नहीं चलाया और जो कार्यकर्ता फिल्ड में काम करते थे उन्हें आर्थिक सहायता देना तो दूर उनसे चंदा वसूलने का टारगेट दिया जाता रहा।
(2)  भारतीय जनता पार्टी ने अपने मूल सिद्धांत से कभी समझौता नहीं किया हिंदूवाद ब्राह्मणवाद पर अडिग रहे। लेकिन मायावती ने अपने सिद्धांत के उलट ‘’हाथी नहीं गणेश है यह ब्रम्हा विष्णु महेश है ये’’ का नारा बुलंद किया
(3) भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता उत्तर प्रदेश के एक-एक वोटरों से घरों-घर संपर्क किया और वह यह समझाने में कामयाब रहे कि अखिलेश यादवयादव’ के नेता हैं। मायावती चमारों की नेता है। उन्होंने जनता के बीच सबका साथ सबका विकास’ नारा को बुलंद किया जिसकी भनक अखलेश और मायावती तक को नहीं लगी।
(4)  मायावती ने जीतने वाले उम्मीदवारों को दरकिनार कर के मुसलमानों को 100 टिकट देने की कोई कारण नहीं थे। सिवाय इसके की किसी गुप्त समझौते के तहत समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट काटकर भारतीय जनता पार्टी की जीत सुनिश्चित किया जाए। जब की भारतीय जनता पार्टी अपने सिद्धांत के तहत किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को खड़ा नहीं किया।
(5)  चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोक दी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने अपनी पूरी कैबिनेट मंत्रियों को उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार में लगा दिया। जिसमें भारतीय जनता पार्टी से शासित राज्‍यों के मुख्यमंत्री भी शामिल है। जबकि बहुजन समाज पार्टी में मायावती अपने सिवाय किसी और को स्टार प्रचारक तक नहीं बनने दिया।
(6) भारतीय जनता पार्टी और rss ने अपने बुद्धिजीवी लेखकों को चिंतकों को सर आंखों पर बिठाया। उन्होंने बकायदा एक इन्‍टेलेक्‍चुअल विंग का निर्माण किया तथा उन से संवाद जारी रखा। इन्होंने माहौल बनानेदस्तावेज बनाने और चुनाव को जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जबकि बहुजन समाज पार्टी ने अपने लेखकों चिंतकों बुद्धिजीवी को दूध की मक्खी की तरह बाहर का रास्ता दिखा दिया।

बी जे पी की जीत का ठीकरा ई वी एम के सर फोड़ने के पीछे भी एक साजिश की बू आती है। दरअसल मायावती स्वयं यह नहीं चाहती कि बहुजन समाज पार्टी में हार की समीक्षा हो और उनके द्वारा की गई कार गुजारिंया सामने आए। जबकी ई वी एम पर हमला करने पर कार्यकर्ताओं मतदाताओं को आसानी से गुमराह किया जा सकता है।
मैं नहीं कहता कि मायावती बुरी है मैं ये भी नहीं कहता कि बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं ने चुनाव में कोई कोर कसर छोड़ी होगी। मैने वही बात रखी है जो मेरे टेबल में बिखरे समाचार पत्रों दस्‍तावेजो से सामने आई है। कुछ लोगों को लग सकता है कि मैंने मायावती को कुछ ज्यादा ही जिम्मेदार ठहराया है दरअसल हार की समीक्षा तो होनी चाहिए। हार का जिम्मा भी उन्‍ही के सर जाता है जो जीत का सरताज पहने की आगे रहते है। अब मुद्दा ये नहीं रह गया। मुद्दा यह है कि बहुजन समाज पार्टी में कैसे लोकतंत्र की बहाली होकैसे वह अंबेडकर फुले के सिद्धांत पर चलेकैसे वह दबे कुचले लोगों के हितों की बात कर सकेयह तभी संभव है जब बहुजन समाज पार्टी में नेताओं की संख्या में इजाफा होगा और हर एक नेता मुख्यमंत्री बनने की हैसियत रखता हो। लेकिन आज की परिस्थिति में ये संभव नहीं है क्योंकि मायावती अध्यक्ष पद छोड़ेगी नहीयदि छोड़ दिया तो उनका अगला पड़ाव जेल में होगा। क्योंकि जो bsp के नेता उन्हें बचाने की ताकत रखते थे। उन्हें बहनजी ने पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। यदि bsp खत्म होती है यानि मायावती की राजनीतिक ताकत खत्‍म होने की सूरत में भी वे कानून के घेरे में आयेगी। यानी भविष्‍य में भी बहुजन समाज पार्टी एक व्‍यक्‍ति की संपत्ति बनी रहेगी यदि उसके कार्यकता न जागे तो। बेहतर होगा बहुजन समाज पार्टी जल्‍दी से जल्‍दी वास्‍तव में बहुजनों की पार्टी बने उनमें अन्‍दरूनी लोकतंत्र की स्‍थापना हो।