सीवर में मौत या शहादत
संजीव खुदशाह
जब भी किसी सफाई कामगार की मौत सीवर
में होती है तो सोशल मीडिया में घड़ियाली आंसू बहाने वालों की बाढ़ आ जाती है। कोई
उस मृतक को सैनिक शहीद का दर्जा देने की मांग करता है,
तो कोई सरकारी नौकरी, तो कोई करोड़ों रुपये देने की मांग
करता है। ऐसा कहने वाले लोग दो प्रकार के हो सकते है ये बेहद शातिर है या तो मूर्ख
(मैं मूर्ख के बजाय मासूम कहूंगा ताकि बुरा न लगे)।
दरअसल इसे समझने के लिए हमें सामाजिक
जटिलता को समझना होगा।
मैने एक सफाई कामगार से पूछा
:: आप सीवर में क्यों उतरते हो ?
क्या करू और कोई
काम नहीं मिलता।
:: काम तो बहुत से है रिक्शा चला सकते
हो, मजदूरी कर सकते हो?
इसमें मेहनत ज्यादा पैसा कम है साहब।
:: लेकिन स्वाभिमान तो है?
चुप
:: क्या आपको कोई ये काम जबरदस्ती
करवाता है इन मैला गड्ढों (सीवर) में उतरने के लिए?
नहीं साहब
:: कोई दूसरा काम करने से किसी ने मना
किया ?
नहीं सभी काम करने की छूट है।
:: तो ये गंदा काम क्यों करते हो ?
काम दो चार घंटे का होता है लेकिन
पैसा अच्छा है फिर दिन भर की फूर्सत।
:: कहीं सीवर में मर गये तो डर नहीं
लगता?
मरने की सोचता तो अंदर ही नहीं जाता।
रोज का काम है कभी कभी घटना घट जाती है।
एक बार की बात है, डॉक्टर अंबेडकर जब बंबई की महार
बस्ती को संबोधित करने गए तो उन्हें पता चला की कुछ लोग गंदा पेशा अपनाए हुए है।
उन्होने कहा गंदे पेशे हर हाल में छोड़ दो। चाहे कितनी सुविधा या पैसा मिले। गंदा
पेशा दलित जातियों के अपमान का कारण है। स्वाभिमानी जातियां मरते मर जायेगी लेकिन
गंदा पेशा नहीं अपनाएगी। इसका असर यह हुआ जिन दलित जातियों ने गंदा पेशा छोड़ा वे
कहीं और पहुंच गई। लेकिन सफाई कामगारों जातियों के कुछ लोग गंदा पेशा छोड़ने को
तैयार नहीं है।
लेकिन सफाई कामगारों का मुआमला इतना
आसान नहीं है उत्तर भारत में भंगी को भंगी बनाए रखने के लिए वाल्मीकि और सुदर्शन
के नाम से संगठन बनाए गये। इन संगठन को बनाने का मुख्य उद्देश्य इन जातियों को
अंबेडकर से दूर रखा जाए और इनका हिन्दूकरण किया जाय। इन्हे मूर्ख बनाने के लिए
कहा जाता है कि ये मार्शल (लड़ाकू) कौम है। क्या कभी किसी मार्शल कौम को पेट की
आग बुझाने के लिए सीवर में घुस कर काम करते देखा है? इसी प्रकार छोटे छोटे संगठन जैसे
सफाई मजदूर कांग्रेस, महादलित, अतिदलित
आदि के नाम पर बनते गये। सभी ने सफाई काम में सुविधा देने की बात की लेकिन गंदे
पेशे से छुटकारा की बात किसी ने नहीं कही।
ये सारी संगठन संस्थाओं का वजूद तभी तक है,
जब तक की सफाई कामगार है। इसलिए इन लोगों ने कभी गंदे पेशे को छोड़ने का कोई
आंदोलन नहीं छेड़ा।
ये चाहते है की इनकी सैलरी बढ़ जाए, नौकरी पक्की हो जाए, अनुकंपा नियुक्ति मिले ताकि पीढ़ियां
तक गंदा पेशा करती रहे। गमबूट,
किट, दवाई
और बोनस मिलता जाए। सीवर में मरने पर शहीद का दर्जा मिले, सैनिक
का दर्जा मिले, करोड़ो रूपया का मुआवजा मिले। लेकिन
काम तो यही गंदा वाला ही करेगे। अब आप ही बताएये इतने लोग इस काम को करने के लिए
प्रेरित करे, इतनी सारी सुविधाएं मिल तो क्या कभी
कोई स्वाभिमानी कौम इस काम को करने से मना करेगी?
वाल्मीकि सुदर्शन महादलित अतिदलित सफाई मजदूर कांग्रेस पर राजनीति
खेलने वाले का अंतिम लक्ष्य होता है,
राज्य या केंद्र के सफाई कामगार आयोग में जगह पाना। सारी लड़ाई, राजनीति इसी के इर्द गिर्द चलती है ।
इसलिए ये लोग गंदे काम को छोड़ने का कोई आंदोलन नहीं छेड़ते है। अंबेडकर के नाम पर इन्हे सांप सूंघ जाता है।
इनके सवर्ण आका भी यही चाहते है कि वे अंबेडकर और अंबेडकर वादियों से नफरत करते
रहे। उन्हे हिन्दू विरोधी बता कर ठिकाने लगाया जाए ताकि मैला ढोने वालों की कभी
कमी न हो।
आज व्यक्ति चांद तक पहुच गया है।
मंगल की यात्रा की तैयारी है। लेकिन सीवर साफ करने के लिए यंत्र नहीं है। न ही
इसका आविष्कार किया गया। क्यों हो भला जब यहां सीवर में उतरने के लिए दलित जो है
मार्सल कौम। शासन प्रशासन ने भी कभी सफाई कामगार उन्मूलन के लिए काम नहीं उठाया।
ठेका प्रथा को मैं महत्वपूर्ण मानता हूँ क्योकि इससे सुविधाएं कम होने के
कारण लोग दूसरे काम की ओर रूख कर रहे है। प्रशासन को चाहिए की सुविधाएं खत्म करके
यंत्रों के द्वारा सफाई काम किया जाए ताकि सफाई कामगार व्यक्ति को मानव निहित जीवन
जीने का सम्मान मिल सके।
उन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही किया जाना चाहिए जो सीवर में मौत को सैनिक की शहादत से जोड़कर एक शहीद सैनिक का अपमान करते है। यदि किसी को शहीद का दर्जा पाना है तो वह सीना ठोककर सेना में भर्ती हो जाये। लेकिन किसी सैनिक को अपमानित करने का हक उसे नहीं है। जाहीर है इन पर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने वाले लोग फिर भी बाज नहीं आयेगे कयोकि ये उनकी रोजी रोटी का सवाल है।
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