Manu Smriti's Combustion How Much Wrong


मनुस्मृति का दहन कितना सही कितना गलत
संजीव खुदशाह
किताबों के दहन का किस्सा बहुत नया नहीं है। प्राचीन इतिहास में भी किताबें जलाने का जिक्र यदा कदा मिलता रहा है। और यह सिलसिला अब तक चल रहा है। नालंदा बुद्ध विहार एवं विश्वविद्यालय में  जलाई गई किताबें 3 महीने तक  जलती रही। अभी कुछ ही दिनों पहले चंद लोगों के द्वारा भारतीय संविधान को भी जलाया

गया।
किताबे दो मकसद से जलाई जाती है।
एक किताबें इसलिए जलाई जाती हैं ताकि उस विचारधारा को नष्ट कर दिया जाए। इतिहास को खत्म कर दिया जाए। जानकारियों पर नए सिल सिक्के लगा दिए जाए।
दूसरा किताबें प्रतीकात्मक रूप से भी जलाई जाती हैं ताकि उस में लिखे गए कंटेंट का विरोध किया जा सके। मनुस्मृति का जलाना इसी ओर इशारा करता है।
25 दिसंबर 1927 को डॉ अंबेडकर ने पहली बार मनुस्मृति में दहन का कार्यक्रम किया था। उनका कहना था कि भारतीय समाज में जो कानून चल रहा है। वह मनुस्मृति के आधार पर है। यह एक ब्राम्‍हण, पुरूष सत्‍तात्‍मक, भेदभाव वाला कानून है। इसे खत्म किया जाना चाहिए इसीलिए वे मनुस्मृति का दहन कर रहे हैं।
आईये संक्षिप्‍त में जाने आ‍खिर मनुस्‍मृति में ऐसा है क्‍या ?
           -नीच वर्ण का जो मनुष्य अपने से ऊँचे वर्ण के मनुष्य की वृत्ति को लोभवश ग्रहण कर जीविका यापन करे तो राजा उसकी सब सम्पत्ति छीनकर उसे तत्काल निष्कासित कर दे ।10/95-98
           -ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य कर्म कहा गया है । इसके अतिरक्त वह शूद्र जो कुछ करता है , उसका कर्म निष्फल होता है ।10/123-124
           -शूद्र धन संचय करने में समर्थ होता हुआ भी शूद्र धन का संग्रह न करें क्योंकि धन पाकर शूद्र ब्राह्मण को ही सताता है । 10/129-130
           जिस देश का राजा शूद्र अर्थात पिछड़े वर्ग का हो , उस देश में ब्राह्मण निवास न करें क्योंकि शूद्रों को राजा बनने का अधिकार नही है ।  4/61-62
           -राजा प्रातःकाल उठकर तीनों वेदों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मणों की सेवा करें और उनके कहने के अनुसार कार्य करें । 7/37-38
           -जिस राजा के यहाँ शूद्र न्यायाधीश होता है उस राजा का देश कीचड़ में धँसी हुई गाय की भांति दुःख पाता है । 8/22-23
           -ब्राह्मण की सम्पत्ति राजा द्वारा कभी भी नही ली जानी चाहिए , यह एक निश्चित नियम है , मर्यादा है , लेकिन अन्य जाति के व्यक्तियों की सम्पत्ति उनके उत्तराधिकारियों के न रहने पर राजा ले सकता है । 9/189-190
           -यदि शूद्र तिरस्कार पूर्वक उनके नाम और वर्ण का उच्चारण करता है , जैसे वह यह कहे देवदत्त तू नीच ब्राह्मण है , तब दश अंगुल लम्बी लोहे की छड़ उसके मुख में कील दी जाए । 8/271-272
           -यदि शूद्र गर्व से ब्राह्मण पर थूक दे तब राजा दोनों ओंठों पर पेशाब कर दे तब उसके लिंग को और अगर उसकी ओर अपान वायु निकाले तब उसकी गुदा को कटवा दे ।  8/281-282
           -यदि कोई शूद्र ब्राह्मण के विरुद्ध हाथ या लाठी उठाए , तब उसका हाथ कटवा दिया जाए और अगर शूद्र गुस्से में ब्राह्मण को लात से मारे , तब उसका पैर कटवा दिया जाए । 8/279-280
           -इस पृथ्वी पर ब्राह्मण वध के समान दूसरा कोई बड़ा पाप नही है । अतः राजा ब्राह्मण के वध का विचार मन में भी लाए । 8/381
           -शूद्र यदि अहंकारवश ब्राह्मणों को धर्मोपदेश करे तो उस शूद्र के मुँह और कान में राजा गर्म तेल डलवा दें । 8/271-272
           -शूद्र को भोजन के लिए झूठा अन्न , पहनने को पुराने वस्त्र , बिछाने के लिए धान का पुआल और फ़टे पुराने वस्त्र देना चाहिए ।10/125-126
           -बिल्ली , नेवला , नीलकण्ठ , मेंढक , कुत्ता , गोह , उल्लू , कौआ किसी एक की हिंसा का प्रायश्चित शूद्र की हत्या के प्रायश्चित के बराबर है अर्थात शूद्र की हत्या कुत्ता बिल्ली की हत्या के समान है । 11/131-132

           -यदि कोई शूद्र किसी द्विज को गाली देता है तब उसकी जीभ काट देनी चाहिए , क्योंकि वह ब्रह्मा के निम्नतम अंग से पैदा हुआ है ।
           -निम्न कुल में पैदा कोई भी व्यक्ति यदि अपने से श्रेष्ठ वर्ण के व्यक्ति के साथ मारपीट करे और उसे क्षति पहुंचाए , तब उसका क्षति के अनुपात में अंग कटवा दिया जाए ।
           -ब्रह्मा ने शूद्रों के लिए एक मात्र कर्म निश्चित किया है , वह है गुणगान करते हुए ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य की सेवा करना ।
           -शूद्र यदि ब्राह्मण के साथ एक आसन पर बैठे , तब राजा उसकी पीठ को तपाए गए लोहे से दगबा कर अपने राज्य से निष्कासित कर दे ।
           -राजा बड़ी बड़ी दक्षिणाओं वाले अनेक यज्ञ करें और धर्म के लिए ब्राह्मणों को स्त्री , गृह शय्या , वाहन आदि भोग साधक पदार्थ तथा धन दे ।
           -जानबूझ कर क्रोध से यदि शूद्र ब्राह्मण को एक तिनके से भी मारता है , वह 21 जन्मों तक कुत्ते बिल्ली आदि पापश्रेणियों में जन्म लेता है ।
           -ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने से और वेद के धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी है ।
           -शूद्र लोग बस्ती के बीच में मकान नही बना सकते । गांव या नगर के समीप किसी वृक्ष के नीचे अथवा श्मशान पहाड़ या उपवन के पास बसकर अपने कर्मों द्वारा जीविका चलावें ।
           -ब्राह्मण को चाहिए कि वह शूद्र का धन बिना किसी संकोच के छीन लेवे क्योंकि शूद्र का उसका अपना कुछ नही है । उसका धन उसके मालिक ब्राह्मण को छीनने योग्य है ।
           -राजा वैश्यों और शूद्रों को अपना अपना कार्य करने के लिए बाध्य करने के बारे में सावधान रहें, क्योंकि जब ये लोग अपने कर्तव्य से विचलित हो जाते हैं तब वे इस संसार को अव्यवस्थित कर देते हैं ।
           -शूद्रों का धन कुत्ता और गदहा ही है । मुर्दों से उतरे हुए इनके वस्त्र हैं । शूद्र टूटे फूटे बर्तनों में भोजन करें । शूद्र महिलाएं लोहे के ही गहने पहने ।
           -यदि यज्ञ अपूर्ण रह जाये तो वैश्य की असमर्थता में शूद्र का धन यज्ञ करने के लिए छीन लेना चाहिए ।
           -दूसरे ग्रामवासी पुरुष जो पतित , चाण्डाल , मूर्ख , धोबी आदि अंत्यवासी हो उनके साथ द्विज न रहें । लोहार , निषाद , नट , गायक के अतिरिक्त सुनार और शस्त्र बेचने वाले का अन्न वर्जित है ।
           -शूद्रों के समय कोई भी ब्राह्मण वेदाध्ययन में कोई सम्बन्ध नही रखें , चाहे उस पर विपत्ति ही क्यों न आ जाए ।
           -स्त्रियों का वेद से कोई सरोकार नही होता । यह शास्त्र द्वारा निश्चित है । अतः जो स्त्रियां वेदाध्ययन करती हैं , वे पापयुक्त हैं और असत्य के समान अपवित्र हैं , यह शाश्वत नियम है ।
           -अतिथि के रूप में वैश्य या शूद्र के आने पर ब्राह्मण उस पर दया प्रदर्शित करता हुआ अपने नौकरों के साथ भोज कराये ।
           -शूद्रों को बुद्धि नही देना चाहिए अर्थात उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नही है । शूद्रों को धर्म और व्रत का उपदेश न करें ।
           -जिस प्रकार शास्त्रविधि से स्थापित अग्नि और सामान्य अग्नि , दोनों ही श्रेष्ठ देवता हैं , उसी प्रकार ब्राह्मण चाहे वह मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही रूपों में श्रेष्ठ देवता है ।
           -शूद्र की उपस्थिति में वेद पाठ नही करना चाहिए । ब्राह्मण का नाम शुभ और आदर सूचक , क्षत्रिय का नाम वीरता सूचक , वैश्य का नाम सम्पत्ति सूचक और शूद्र का नाम तिरस्कार सूचक हो ।
           -दस वर्ष के ब्राह्मण को 90 वर्ष का क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र पिता समान समझ कर उसे प्रणाम करे ।
मनु के इस कानून से अनुमान लगाया जा सकता है कि शूद्रों अतिशूद्रों और महिलाओं पर किस प्रकार और कितने अमानवीय अत्याचार हुए हैं ।

कुछ बानगी यहां भी देखिये
न शूद्रराज्ये निवसेन्नाधार्मिकजनावृते ।
न पाषण्डिगणाक्रान्ते नोपसृष्टेऽन्त्यजैर्नृभिः ॥
(मनुस्मृति, अध्याय 4, श्लोक 61)
(न शूद्र-राज्ये, न अधार्मिक-जन-आवृते, न पाषण्डि-गण-आक्रान्ते, न अन्त्यजैः नृभिः उपसृष्टे निवसेत्।)
अर्थ – (व्यक्ति को) शूद्र से शासित राज्य में, धर्मकर्म से विरत जनसमूह के मध्य, पाखंडी लोगों से व्याप्त स्थान में, और अन्त्यजों के निवासस्थल में नहीं वास नहीं करना चाहिए।

न शूद्राय मतिं दद्यान्नोच्छिष्टं न हविष्कृतम्।
न चास्योपदिशेद्धर्मं न चास्य व्रतमादिशेत्॥
(मनुस्मृति, अध्याय 4, श्लोक 80)
(शूद्राय मतिम् न दद्यात्, न उच्छिष्टम्, न हविष्कृतम्, न च अस्य धर्मम् उपदिशेत्, न च अस्य व्रतम् आदिशेत्।)
अर्थ किसी प्रयोजन की सिद्धि को ध्यान में रखते हुए दिया जाने वाला उपदेश शूद्र को न दिया जाये। उसे जूठा यानी बचा हुआ भोजन न दे और न यज्ञकर्म से बचा हविष्य प्रदान करे। उसे न तो धार्मिक उपदेश दिया जाये और न ही उससे व्रत रखने की बात की जाये।

खास तौर पर स्त्रियों पर मनु के आपत्‍त‍ि जनक विचार
स्वभाव एष नारीणां  नराणामिहदूषणम . 
अतोर्थान्न प्रमाद्यन्ति, प्रमदासु विपश्चित:
अविद्वामसमलं लोके,विद्वामसमापि  वा पुनः
प्रमदा द्युतपथं नेतुं काम क्रोध वाशानुगम
मात्रस्वस्त्रदुहित्रा वा न विविक्तसनो भवेत् 
बलवान इन्द्रिय ग्रामो विध्दांसमपि कर्षति !
अर्थात:-पुरुषों को अपने जाल में फंसा लेना तो स्त्रियों का स्वभाव ही है! इसलिए समझदार लोग स्त्रियों के साथ होने पर चौकन्ने रहते है, क्योंकि पुरुष वर्ग के काम क्रोध के वश में हो जाने की स्वाभाविक दुर्बलता को भड़काकर स्त्रियाँ, मूर्ख  ही नहीं विध्द्वान पुरुषों तक को विचलित कर देती है! पुरुष को अपनी माता,बहन तथा पुत्री के साथ भी एकांत में नहीं रहना चाहिए,क्योंकि इन्द्रियों का आकर्षण बहुत तीव्र होता है और विद्वान भी इससे नहीं बच पाते .
अस्वतंत्रता: स्त्रियः  कार्या: पुरुषै स्वैदिर्वानिशम
विषयेषु च सज्जन्त्य: संस्थाप्यात्मनो वशे
पिता  रक्षति कौमारे भर्ता यौवने
रक्षन्ति  स्थाविरे पुत्र,न स्त्री स्वातान्त्रयमर्हति
सूक्ष्मेभ्योपि प्रसंगेभ्यः स्त्रियों रक्ष्या विशेषत:
 द्द्योहिर कुलयो:शोक मावहेयुररक्षिता:
इमं हि सर्ववर्णानां पश्यन्तो  धर्ममुत्तमम
 यतन्ते भार्या भर्तारो  दुर्बला अपि
अर्थात:- पुरुषों को अपने घर की सभी महिलाओं को चौबीस घंटे नियन्त्रण में रखाना चाहिए और विषयासक्त स्त्रियों को तो विशेष रूप से वश में रखना चाहिए! बाल्य काल में स्त्रियों की रक्षा पिता करता है! यौवन काल में पति  तथा वृधावस्था में पुत्र उसकी रक्षा करता है! इस प्रकार स्त्री कभी भी स्वतंत्रता की अधिकारिणी नहीं है! स्त्रियों के चाल ढाल में ज़रा भी विकार आने पर उसका निराकरण करनी चाहिये ! क्योंकि बिना परवाह किये स्वतंत्र छोड़ देने पर स्त्रियाँ दोनों कुलों (पति व पिता ) के लिए दुखदायी सिद्ध हो सकती है! सभी वर्णों के पुरुष इसे अपना परम धर्म समझते है! और दुर्बल से दुर्बल पति भी अपनी स्त्री की यत्नपूर्वक रक्षा करते है!
न निष्क्रय विसर्गाभ्यांभर्तुभार्या विमुच्यते
  एवम धर्म विजानीम: प्राकप्रजापति  निर्मितं!
अर्थात:  पति द्वारा त्याग दिये जाने तथा किसी दूसरे के हाथ बेच दी जाने पर भी कोई स्त्री दूसरे की पत्नी नहीं कहीं जा सकती .  उसके विवाहित पति का उस पर आजन्म अधिकार बना रहेगा.
यस्मैदद्धपित्तात्तात्वेनां भ्राता  चानुमते पितु:
 तं शुश्रुषेत जीवन्तं  संस्थितं च न लंघयेत
विशील: कामवृत्तो वा गुनैर्वा परिवर्जित:
 उपचर्य:स्त्रिया  साध्व्या सततं देववत्पति:
नास्ति स्त्रीणां प्रथग्यज्ञों न व्रतं नीप्युपोषितम
पतिं शुश्रुषते येन तेन स्वर्गे महीयते
अर्थात :-स्त्री का पिता अथवा पिता की सहमति से इसका भाई जिस किसी के साथ उसका विवाह कर दे,जीवन-पर्यन्त वह उसकी सेवा में रत रहे और पति के  न रहने पर भी पति की मर्यादा का उल्लंघन कभी न करे . स्त्री का पति दु:शील, कामी तथा सभी गुणों से रहित हो तो भी एक साध्वी स्त्री को उसकी सदा देवता के सामान सेवा व पूजा करनी चाहिये . स्त्री को अपने पति से अलग कोइ यज्ञ ,व्रत या उपवास नहीं करनी चाहिए , क्योंकि उन्हें अपने पति की सेवा-शुश्रुषा से ही स्वर्ग प्राप्त हो जाता है.   यहाँ पर मनु की उन व्यवस्थाओं को दे देना भी उपयुक्त रहेगा, जिन्हें स्त्रियों के लिए हिन्दू, अत्यंत श्रेष्ठ व अनुकरणीय आदर्श घोषित करते है:
मनुस्‍मृति का 10 वां अध्‍याय सबसे ज्‍यादा आपत्तिजनक है जिसमें सभी जातियों को नाजायज संतान बताया गया।
मनुस्‍मृति का सबसे आपत्तिजनक पहलू यह है कि इसके अधयाय 10 के श्‍लोक संख्‍या 11 से 50 के बीच समस्‍त द्विज को छोड़कर समस्‍त हिन्‍दू जाति को नाजायज संतान बताया गया है मनु के अनुसार नाजायज जाति दो प्रकार की होती है।
1 अनुलोम संतान- उच्‍च वर्णिय पुरूष का निम्‍न वर्णिय महिला से संभोग होने पर उत्‍पन्‍न संतान
2 प्रतिलाम संतान- उच्‍च वर्णिय महिला का निम्‍न वर्णिय पुरूष से संभोग होने पर उत्‍पन्‍न संतान
मनुस्‍मति के अनुसार कुछ जाति की उत्‍पत्ति आप इस तालिका से समझ सकते है।
पुरूष की जाति
महिला की जाति
संतान की जाति
ब्राम्‍हण
क्षत्रिय
मुर्धवस्तिका
क्षत्रिय
वैश्‍य
महिश्‍वा
वैश्‍य
शूद्र
कायस्‍थ
ब्राम्‍हण
वैश्‍य
अम्‍बष्‍ट
क्षत्रिय
ब्राम्‍हण
सूत
वैश्‍य
क्षत्रिय
मगध
शूद्र
क्षत्रिय
छत्‍ता
वैश्‍य
ब्राम्‍हण
वैदह
शूद्र
ब्राम्‍हण
चाण्‍डाल
निषाद
शूद्र
पुक्‍कस
शूद्र
निषाद
कुक्‍कट
छत्‍ता
उग्र
श्‍वपाक
वैदह
अम्‍बष्‍ट
वेण
ब्राम्‍हण
उग्र
आवृत
ब्राम्‍हण
अम्‍बष्‍ट
आभीर
टीप – इसी प्रकार औशनस एवं शतपथ ब्राम्‍हण ग्रंथ में भी जाति की उत्‍तपत्ति का यही आधार बताया गया है जिसमें चामार, ताम्रकार, सोनार, कुम्‍हार, नाई, दर्जी, बढई धीवर एवं तेली शामिल है।

प्रतिकात्‍मक मनुस्‍मृति जलाना क्‍यों जरूरी है?
कुछ लोग यह मानते है कि मनुस्‍मृति तो क्‍या किसी भी किताब को जलाना अज्ञानता है। किताब को जलाया जा सकता है लेकिन उसके विचार को नही। इसलिए यदि जलाना है तो उसके विचार को समाज से मन मस्तिष्‍क से हटाना जरूरी है।
दरअसल मनुस्‍मृति भारत के जन मानस मे बस चुका है भारतीय समाज, पंचायतरूढियांपरम्‍पराएं जाने अनजाने इसी विधान का पालन करती है।
Ø  भारतीय जाति पंचायत को किसने बताया की पंचायत की मुखिया एक महिला नही हो सकती?
Ø  क्‍यो एक महिला को पढ़ने लिखने आधुनिक कपड़े पहनने से रोका जाता है?
Ø  पिता की संपत्ति में बहन को बराबर का अधिकार नही देना चाहिए यह उसे किसने बताया?
Ø  हिन्‍दू महिला की केवल एक बार शादी हो सकती है, दोबारा वैदिक विवाह अमान्‍य होता है, यह किसने बताया(चूड़ी पहनाकर या स्‍थानीय परंपरा से वह किसी पुरूष के साथ रह सकती है।)
Ø  अर्तजातिय विवाह होने पर जाति पंचायत द्वारा हत्‍या करने का फैसला सुनाया गया। यह किससे प्रेरित है? 8/266
Ø  समाज में स्त्रियों की स्थिति दोयम दर्जे की होनी चाहिए, यह किसने बताया?
Ø  शव को स्‍पर्श करने के बाद स्‍नान करना चाहिए किसने बताया ? 5/85-86
इन सारे प्रश्‍नों का एक ही जवाब है मनुस्‍मृति । मनुस्‍मृति को वेदो का सार कहा गया है।इसी से भारतीय समाज की परम्‍पराएं विचार पोषित है। आज भी विश्‍वविघालयों में मनुस्‍मृति पाठ्यक्रम में मौजूद है। राजस्‍थान के उच्‍चन्‍यायालय में मनु की आदम कद प्रतिमा आज भी स्‍थापित है।
मनु के आपत्तिजनक विधान को यदि मानव मस्तिष्‍क से बाहर करना हैपाठ्यक्रम एवं न्‍यायालयो बेदखल करना है तो आप लोगो में चेतना लाने के लिए एवं मनुवादियों को जगाने के लिए प्रतिकात्‍मक पतियों का दहन और इस पर चर्चा एक जरूरी कदम होगा।

इस पर आधारित विडियो यहाँ देखे

International human rights day seminar at raipur

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की 70वीं वर्षगांठ पर

आज के दौर में मानवाधिकार आन्दोलन का महत्त्व पर परिचर्चा संपन्न

रायपुर 10 दिसम्बर 2018 |

*पीस रायपुर व छत्तीसगढ़ नागरिक संयुक्त संघर्ष समिति (CNSSS) द्वारा* अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की 70वीं वर्षगांठ पर “आज के दौर में मानवाधिकार आन्दोलन का महत्त्व” पर परिचर्चा आज राजधानी रायपुर में वाई.एम.सी.ए. प्रोग्राम सेंटर में आयोजित की गई |

छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी 1857 के विद्रोह शहीद वीर नारायण सिंह को कार्यक्रम में श्रद्धापूर्वक स्मरण किया गया | 

कार्यक्रम में अध्यक्षता प्रख्यात लेखक संजीव खुदशाह ने की | 

कार्यक्रम में आधार वक्तव्य क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम), पीस रायपुर व ‘विकल्प आवाम का घोषणापत्र’ के संपादक तुहिन देब ने “हिरासत व जेलों में घुटता भारतीय जीवन” नामक आलेख के ज़रिये प्रस्तुत किया | 

दलित मुक्ति मोर्चा के संयोजक एवं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. गोल्डी एम. जॉर्ज, भिलाई के ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता जयप्रकाश नायर ने इस अवसर पर अपना उद्बोधन दिया| 

इनके अलावा डॉ. बिप्लव, डॉ. प्रवीर चटर्जी, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा मजदूर कार्यकर्ता समिति की श्रेया, उर्मिला देवी, भा.क.पा. (माले) के राज्य सचिव कॉ. सौरा आदि ने भी इस अवसर पर अपनी बात रखी | कवयित्री शिवानी मोइत्रा ने मानवाधिकार पर कविता, भिलाई की संस्कृतिकर्मी समीक्षा नायर एवं नाचा थिएटर के संयोजक निसार अली ने जनगीत प्रस्तुत किया | संचालन अखिल भारतीय क्रांतिकारी विद्यार्थी संगठन के संयोजक विनय ने किया |

वक्ताओं ने कहा कि 1945 में दुसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उपनिवेशवाद – साम्राज्यवाद से मुक्ति, आज़ादी, शांति, समानता व समाजवाद के पक्ष में दुनिया की अधिकांश जनता इकट्ठे होने लगी | ऐसी ही परिस्थिति में मानव के मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की अगुवाई में 10 दिसम्बर 1948 को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस घोषणापत्र अस्तित्व में आया |

मानवाधिकार प्रत्येक मानव का जन्मसिद्ध अधिकार है | अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की 70वीं वर्षगांठ पर मानवाधिकारों के प्रति बढ़ती जागृति के बावजूद तस्वीर का बदरंग पहलू है मौजूदा परिस्थिति में कॉर्पोरेट फासीवादी राज में मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन | छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश में अघोषित आपातकाल है तथा पुलिस, सशस्त्र बलों व निरंकुश कानूनों के ज़रिये धार्मिक कट्टरपंथ व जल – जंगल – ज़मीन की कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को जेल, यातना और यहां तक कि शारीरिक रूप से समाप्त कर खामोश किया जा रहा है | जनवादी अधिकारों की बहाली व संरक्षण के लिए तमाम संघर्षशील, प्रगतिशील व जनवादी ताक़तों को एकजुट होकर आवाज़ उठानी पड़ेगी | 

कार्यक्रम में भीमा – कोरेगांव घटना के नाम पर गिरफ्तार तमाम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों को रिहा करने की तथा भीमा – कोरेगांव घटना के  मास्टरमाइंड संघ के प्रचारक मिलिंद एकबोटे व सम्भाजी भिड़े को तत्काल गिरफ्तार करने की तथा दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, मेहनतकशों व महिलाओं पर हो रहे दमन पर रोक लगाने हेतु प्रस्ताव पारित किए गए |

आभार छत्तीसगढ़ नागरिक संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक अखिलेश एडगर ने किया | 

सभा में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए हस्ताक्षर – पोस्टकार्ड अभियान चलने का निर्णय लिया गया | 

संगोष्ठी में बड़ी संख्या में विद्यार्थी – बुद्धिजीवी व जनसंगठनों के लोग उपस्थित थे |
Tuhin

Change or EVM?

परिवर्तन या ईवीएम?

ललित सुरजन
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की मतगणना में अब सिर्फ पांच दिन शेष रह गए हैं। छत्तीसगढ़ में 12 नवंबर को पहले चुनाव के मतदान के साथ जो सिलसिला शुरू हुआ वह 11 दिसंबर को थम जाएगा। वैसे तो यह कुल तीस दिन का मामला है, लेकिन हमें और पीछे जाकर चुनाव तिथियों की घोषणा तथा आचार संहिता लागू होने के दिन से इस सिलसिले की शुरूआत मानना चाहिए। बहरहाल सबकी निगाहें नतीजों पर टिकी हैं। कांग्रेस इस बारे में बेहद आश्वस्त नजर आ रही है कि चार राज्यों में वह फिर सत्ता में लौटेगी और मिजोरम के मतदाताओं का लगातार तीसरी बार उस पर विश्वास प्रकट होगा। लगभग अचानक रूप से ही परिवर्तन शब्द आम लोगों की जुबान पर चढ़ गया है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के अपने दावे और अपना विश्वास है। उनका कहना है कि परिवर्तन की बात ऊपरी-ऊपरी है।  वे जिस दम-खम के साथ अपनी जीत सुनिश्चित बताते हैं उसे देखकर कांग्रेसजन भी विचलित दिखाई पड़ते हैं।

एक तरफ कांग्रेसी खेमों में अगली सरकार बनाने को लेकर गुणा-भाग चल रहा है, वहीं दूसरी ओर पार्टी चुनावों में भाजपा द्वारा धांधली किए जाने की आशंका से भी ग्रस्त है। उसकी चिंता चुनाव के दौरान घटित कुछ प्रसंगों के चलते वाजिब प्रतीत होती है। छत्तीसगढ़ के जशपुर में कुछ स्थानों पर कांग्रेस के एजेंटों को ईवीएम पर अपनी सील लगाने से रोक दिया गया, वहीं धमतरी में पार्टियों को सूचित किए बिना तहसीलदार अपने अमले को लेकर स्ट्रांगरूम में चले गए और तीन घंटे तक कथित रूप से विद्युत लाइन ठीक करवाते रहे। उधर मध्यप्रदेश में एक जगह होटल में वोटिंग मशीनें मिलीं, तो अन्यत्र तकरीबन अड़तालीस घंटे देरी से मशीनें जमा करवाई गईं।  एक और जगह कथित विद्युत अवरोध के कारण सीसीटीवी कैमरा बंद हो गए। इन सारी बातों की शिकायतें कांग्रेस ने चुनाव आयोग से की हैं। भाजपा कांग्रेस के भय को निर्मूल बताकर उनकी खिल्ली उड़ा रही है, लेकिन ये सारे प्रसंग गंभीर अव्यवस्था की ओर संकेत करते हैं।

इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इन प्रदेशों के अपने कार्यकर्ताओं को हर तरह से सावधान और सतर्क रहने की सलाह दी है। छत्तीसगढ़ में प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने अपने उम्मीदवारों को आगाह किया है कि विजयी घोषित होने के बाद वे जुलूस वगैरह न निकालें और यहां-वहां जाने के बजाय एक पूर्व निर्दिष्ट स्थान पर एकत्र हों। समझ आता है कि पार्टी किसी भी तरह की जोखिम नहीं उठाना चाहती। पिछले साल-दो-साल में भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए जो हथकंडे अपनाए हैं उन्हें देखते हुए ये आशंकाएं खारिज नहीं की जा सकतीं।   गोवा भले ही छोटा सा प्रदेश हो, लेकिन वहां सरकार बनाने के लिए और सरकार में बने रहने के लिए भाजपा ने जो कुछ भी किया उसे जनतंत्र की हत्या ही कहा जाएगा। मेघालय में भी ऐसा ही हुआ। यदि अभी के चुनावों में कांग्रेस को किसी राज्य में विजय मिलती है और वह बहुमत से बहुत अधिक नहीं होती तो आशंका बनती है कि भाजपा वहां खरीद-फरोख्त से बाज नहीं आएगी।

जनतंत्र में हार-जीत लगी रहती है।  इसे जीवन-मरण का प्रश्न बना लेना किसी भी दृष्टि से वांछित नहीं है। लेकिन ऐसा लगता है कि श्रीमान मोदी और श्रीमान शाह की जुगल जोड़ी पर हर हालत में जीत चाहने का भूत सवार है। मेरी समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों है? हमने यह देखा है कि पिछले सत्तर साल में केन्द्र और राज्य दोनों में बार-बार सत्ता परिवर्तन होते रहा है। जब तक जनता संतुष्ट है तब तक ठीक है; और जनता जब असंतुष्ट होती है तो वह सरकार बदल देती है। आज आप भीतर हैं, कल बाहर हैं, लेकिन परसों फिर भीतर आ सकते हैं। इसी आशा पर चुनावी राजनीति होना चाहिए। जो राजनेता अनंत काल तक राज करने का स्वप्न संजोते हैं उनकी प्रवृत्ति तानाशाही की होती है और वे भूल जाते हैं कि वे अमृत फल खाकर इस दुनिया में नहीं आए हैं। मुझे बशीर बद्र का शेर याद आता है- 'लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई।' हमारे राजपुरुषों को इसका मर्म समझना चाहिए। 

ऐसा नहीं कि भारतीय जनता पार्टी का वर्तमान नेतृत्व ही सत्तामोह से इस तरह ग्रस्त हो। हम जिसे दुनिया का सबसे पुराना जनतांत्रिक देश मानते हैं और जिसके साथ अपने देश को सबसे बड़े जनतांत्रिक देश घोषित कर आत्मश्लाघा करते हैं उस संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी समय-समय पर इस मनोभाव का परिचय दिया है।  1972 का चुनाव बहुत पुरानी बात नहीं है। राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने दुबारा चुनाव जीतने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए। उन्होंने विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी की  जासूसी ही नहीं करवाई बल्कि उनके मुख्यालय में सेंधमारी भी करवाई। वह शोचनीय प्रसंग वाटरगेट कांड के नाम से कुख्यात है। वाशिंगटन पोस्ट अखबार ने इसका खुलासा किया तो निक्सन को दूसरी पारी के बीच में ही इस्तीफा देना पड़ा और उपराष्ट्रपति स्पेरो एग्न्यू शेष अवधि के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। निक्सन किसी तरह महाभियोग से तो बच गए, लेकिन देश और दुनिया की जनता की निगाह से जो गिरे तो फिर गिरे ही रह गए।

अमेरिका में ही दूसरा प्रकरण इस सदी के प्रारंभ में घटित हुआ जब पूर्व राष्ट्रपति जार्ज एच. डब्ल्यू बुश के पुत्र जार्ज डब्ल्यू बुश जूनियर रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी बन कर मैदान में उतरे। उनके सामने डेमोक्रेटिक पार्टी के उपराष्ट्रपति रह चुके अल गोर थे। इस चुनाव को जीतने के लिए बुश बाप-बेटे ने धांधली की। उन्होंने अमेरिका की जटिल चुनाव प्रणाली का फायदा उठाया। अल गोर को बुश जूनियर से अधिक मत (पापुलर वोट) मिले थे, लेकिन फ्लोरिडा राज्य की मतगणना में धांधली कर बुश को जिता दिया गया। ध्यान देने योग्य है कि बुश जूनियर के बड़े भाई जेब बुश उस समय फ्लोरिडा राज्य के गवर्नर थे। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन वहां भी बुश सीनियर द्वारा मनोनीत जजों ने मामला खारिज कर दिया। इन दोनों प्रकरणों के चलते अमेरिका क्रमशः सीनेटर जॉन मैक्गवर्न और सीनेटर अल गोर जैसे बुद्धिजीवी, सुयोग्य और प्रतिष्ठित राजनेताओं की राष्ट्रपति पद पर सेवा पाने से वंचित रह गया।

मैं यहां सुप्रसिद्ध अमेरिकी उपन्यासकार अपटन सिंक्लेयर के उपन्यास 'द जंगल' का एक अंश उद्धृत करना चाहूंगा-

"एक या दो माह बाद युर्गिस को वह व्यक्ति मिला जिसने उसे अपना नाम मतदाता सूची में रजिस्टर्ड कराने की सलाह दी। जिस दिन मतदान होना था, उसे सूचना मिली कि सुबह नौ बजे तक वह कहीं बाहर रहे। फिर वह व्यक्ति युर्गिस और उसके झुंड को मतदान केंद्र तक ले गया और एक-एक को समझाया कि उन्हें कैसे और किसे वोट देना है। जब वे वोट देकर बाहर निकले तो उस व्यक्ति ने उन्हें दो-दो डॉलर दिए।  युर्गिस इस अतिरिक्त कमाई से बेहद खुश था, लेकिन जब बस्ती में वापिस लौटा तो योनास ने यह बताकर उसकी खुशी छीन ली कि उसने तो तीन वोट डाले जिसकी एवज में उसे चार डॉलर की कमाई हुई।" 

यह उपन्यास 1906 में प्रकाशित हुआ था। मतलब यह हुआ कि यह दृश्य सन् 1900 या 1904 के राष्ट्रपति चुनाव के समय होगा। आप इसी उपन्यास का एक और अंश देखिए-

"और फिर यूनियन दफ्तर में युर्गिस को वही व्यक्ति फिर मिला जिसने उसे समझाया कि अमेरिका किस तरह रूस से अलग है। अमेरिका में जनतंत्र है और वहां जो भी व्यक्ति राज करता है, तथा घूस लेने का अधिकारी बनता है, उसे पहले चुनाव जीतना होता है। इस तरह घूसखोरों के दो पक्ष होते हैं, जिन्हें राजनीतिक दल के नाम से जाना जाता है। जीतता वह है जो सबसे अधिक वोट खरीद पाता है। कभी-कभी मुकाबला कांटे का होता है। तब गरीब लोगों की जरूरत पड़ती है।"

इसे पढ़कर हम कह सकते हैं कि अमेरिका हो या भारत, बीसवीं सदी हो या इक्कीसवीं सदी, जब तक जनता जागरूक नहीं होगी, हम इस तरह की सरकार चुनने के लिए अभिशप्त रहेंगे।

#देशबंधु में 06 दिसंबर 2018 को प्रकाशित

Cast & class system in India book review

भारत की वर्ण और जाति व्यवस्था.... पुस्तक समीक्षा


शुरुआत मानव उत्पत्ति पर विचार करते हुए की गई है। खुदशाह ने इस हेतु धर्मशास्त्रों में मानव उत्पत्ति को लेकर व्याख्यायित मान्यताओं को सम्मिलित किया है। हिंदू, ईसाई (सृष्टि का वर्णन)और इस्लाम (सुरतुल बकरति, आयत् सं. 30 से 37) को भी उद्धृत कर अंत में वैज्ञानिक मान्यताओं के अंतर्गत स्पष्ट किया है कि मानव उत्पत्ति करोड़ों वर्ष के सतत् विकास

का परिणाम है। इसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानव उत्पत्ति के प्रश्नों को जिस तार्किक और तथ्यपूर्ण ढंग से लेखक ने पाठकों के समक्ष रखा है, वह एक नई दृष्टि देता है। फिर भी आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग। पुस्तक की शुरुआत अगर मानव उत्पत्ति के प्रश्नों को सुलझाते हुए नहीं भी की जाती तो भी पुस्तक का मूल उद्देश्य प्रभावित नहीं होता।

चूंकि भारत में जातीय प्रथा होने के कारण मानव का शोषक या शोषित होना या शासक या शासित होना धार्मिक व सामाजिक व्यवस्थाओं के कारण है, इसलिए लेखक श्री संजीव ने पिछड़े वर्ग की पहचान करने के लिए हिंदूधर्म शास्त्रों, स्मृतियों सहित कई विद्वानों के मतों को खंगाला और उद्धृत किया है।
चार अध्यायों में समाहित यह पुस्तक पिछड़े वर्ग से संबंधित अब तक बनी हुई अवधारणाओं, मिथक तथा पूर्वाग्रह जो बने हुए हैं उनकी पहचान कर पाठकों के सामने तर्क संगत ढंग से मय तथ्यों के वास्तविकताएं रखती है। जैसे आज का पिछड़ा वर्ग हिंदूधर्म के चौथे वर्ण 'शूद्र' से संबंधित माना जाता है। किंतु खुदशाह के इस शोध प्रबंध से स्पष्ट होता है कि आधुनिक भारत का पिछड़ा वर्ग मूलरूप से आर्य व्यवस्था से बाहर के लोग हैं। शूद्र वर्ण के नहीं। यह अलग बात है कि बाद में इनका शूद्रों में समावेश कर लिया गया। लेखक ने इसे स्पष्ट करने से पूर्व शूद्र वर्ण की उत्पत्ति और उसके विकास को रेखांकित किया है। उनके अनुसार आर्यों में पहले तीन ही वर्ण थे। लेखक ने ऋग्वेद, शतपथ ब्राह्मण और तैत्तरीय ब्राह्मण सहित डॉ. अम्बेडकर के हवाले से कहा है कि यहे तीनों ग्रंथ आर्यों के पहले ग्रंथ हैं और केवल तीन वर्णों की ही पुष्टि करते हैं। (पृष्ठ-26) वैसे ऋग्वेद के अंतिम दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में चार वर्णों का वर्णन है किंतु उक्त दसवें मंडल को बाद में जोड़ा हुआ माना गया है।

शूद्रों के उद्भव पर प्रकाश डालते हुए खुदशाह ने दोहराया है कि सभी पिछड़े वर्ग की कामगार जातियां अनार्य थीं, जो आज हिंदूधर्म की संस्कृति को संजोए हुए हैं। क्योंकि कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र इन सूचियों में अवैध संतान घोषित नहीं किए गए हैं (पृष्ठ-30) वह लिखते हैं—"यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि मनु ने शूद्र को उच्च वर्णों की सेवा करने का आदेश दिया है, किंतु इन सेवाओं में ये पिछड़े वर्ग के कामगार नहीं आते। यानि पिछड़े वर्ग के कामगारों के कार्य उच्च वर्ग की प्रत्यक्ष कोई सेवा नहीं करते। जैसा कि मनु ने कहा है—शूद्र उच्च वर्ग के दास होंगे। यहां दास से संबंध उच्च वर्णों की प्रत्यक्ष सेवा से है। वह आगे लिखते हैं—उक्त आधारों पर कहा जा सकता है कि 1. शूद्र कौन और कैसे में दी गई व्याख्या के अनुसार क्षत्रियों की दो शाखा सूर्यवंशी तथा चंद्रवंशी में से सूर्यवंशी अनार्य थे, जिन्हें आर्यों द्वारा धार्मिक, राजनीतिक समझौते द्वारा क्षत्रिय वर्ण में शामिल कर लिया गया।
2. बाद में इन्हीं सूर्यवंशीय क्षत्रियों का ब्राह्मणों से संघर्ष हुआ जिसने इन्हें उपनयन संस्कार से वंचित कर दिया। इसी संघर्ष के परिणाम से नए वर्ग की उत्पत्ति हुई, जिसे शूद्र कहा गया। ये ब्राह्मण वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत आते थे। यहीं से चातुर्वर्ण परंपरा की शुरुआत हुई। शूद्रों में वे लोग भी सम्मिलित थे जो युद्ध में पराजित होकर दास बने फिर वे चाहे आर्य ही क्यों न हों। अत: शूद्र वर्ण आर्य-अनार्य जातियों का जमावड़ा बन गया।
शेष कामगार (पिछड़ा वर्ग) जातियां कहां से आईं। यह निम्न बिंदुओं के तहत दिया गया है।
1. यह जातियां आर्यों के हमले से पूर्व से भारत में विद्यमान थीं, सिंधु घाटी सभ्यता के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि उस समय लोहार, सोनार, कुम्हार जैसी कई कारीगर जातियां विद्यमान थीं।
2. आर्य हमले के पश्चात इन कामगार पिछड़ेवर्ग की जातियों को अपने समाज में स्वीकार करने की कोशिश की, क्योंकि
(अ) आर्यों को इनकी आवश्यकता थी क्योंकि आर्यों के पास कामगार नहीं थे।
(ब) आर्य युद्ध, कृषि तथा पशु पालन के सिवाय अन्य किसी विद्या में निपुण नहीं थे।
(स) आर्य इनका उपयोग आसानी से कर पाते थे, क्योंकि ये जातियां आर्यों का विरोध नहीं करती थीं चूंकि ये कामगार जातियां लड़ाकू न थीं।
(द) दूसरे अन्य राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी असुर, डोम, चांडाल जैसी अनार्य जातियां जो आर्यों का विरोध करती थीं आर्यों द्वारा कोपभाजन का शिकार बनीं तथा अछूत करार दी गईं।
3. चूंकि कामगार अनार्य जाति शूद्रों में गिनी जाने लगीं। इसलिए सूर्यवंशी अनार्य क्षत्रिय जातियों के साथ मिलकर शूद्रों में शामिल हो गई। (पृष्ठ-31-32)
अभी तक यह अवधारणा थी कि शूद्र केवल शूद्र हैं, किंतु आर्यों ने शूद्रों को भी दो भागों में विभाजित किया हुआ था। एक अबहिष्कृत शूद्र, दूसरा बहिष्कृत शूद्र। पहले वर्ग में खेतिहर, पशुपालक, दस्तकारी, तेल निकालने वाले, बढ़ई, पीतल, सोना-चांदी के जेवर बनाने वाले, शिल्प, वस्त्र बुनाई, छपाई आदि का काम करने वाली जातियां थीं। इन्होंने आर्यों की दासता आसानी से स्वीकार कर ली। जबकि बहिष्कृत शूद्रों में वे जातियां थीं, जिन्होंने आर्यों के सामने आसानी से घुटने नहीं टेके। विद्वान ऐसा मानते हैं कि ये अनार्यों में शासक जातियों के रूप में थीं। आर्यों के साथ हुए संघर्ष में पराजित हुईं। इन्हें बहिष्कृत शूद्र जाति के रूप में स्वीकार किया गया। इन्हें ही आज अछूत (अतिशूद्र) जातियों में गिना जाता है।

जिस तरह शूद्रों को दो वर्गों में बांटा गया है। संजीव ने कामगार पिछड़े वर्ग(शूद्र) को भी दो भागों में बांटा है—(1) उत्पादक जातियां (2) गैर उत्पादक जातियां। किंतु पिछड़े वर्ग में जिन जातियों को सम्मिलित किया गया है उसमें भले ही अतिशूद्र (बहुत ज्यादा अछूत) जातियों का समावेश न हो किंतु उत्पादक व गैर उत्पादक दोनों तरह की जातियों को पिछड़ा वर्ग माना गया है। चौथे अध्याय (जाति की पड़ताल एवं समाधान) में पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित जातियों की जो आधिकारिक सूची दी है। उसमें भी यही तथ्य है। जैसे लोहार, बढ़ई, सुनार, ठठेरा, तेली (साहू) छीपा आदि यह उत्पादक कामगार जातियां हैं। जबकि बैरागी (वैष्णव) (धार्मिक भिक्षावृत्ति करने वाली) भाट, चारण (राजा के सम्मान में विरुदावली का गायन करने वाली) जैसी बहुत-सी गैर जातियां हैं। पिछड़े वर्ग में उन जातियों को भी सम्मिलित किया गया है। जो हिंदूधर्म में अनुसूचित जाति के तहत आती होंगी। किंतु बाद में उन्होंने ईसाई तथा मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया; लेकिन धर्मांतरण के बाद भी उनका काम वही परंपरागत रहा। जैसे शेख मेहतर (सफाई कामगार) आदि।

पिछड़े वर्ग की पहचान के बाद भी वह दूसरे अध्याय—'जाति एवं गोत्र विवाद तथा हिंदूकरण' में पिछड़े वर्ग की उत्पत्ति के बारे में स्मृतियों, पुराणों के मत क्या हैं, उसे पाठकों के सामने रखते हैं। क्योंकि पिछड़े वर्ग की कुछ जातियां अपने को क्षत्रिय और ब्राह्मण होने का दावा करती रही हैं। लेखक ने उसके कुछ उदाहरण भी दिए हैं किंतु हम भी लोकजीवन में कई ऐसी जातियों को जानने लगे हैं, जिनका कार्य धार्मिक भिक्षावृत्ति या ग्रह विशेष का दान ग्रहण करना रहा है। सीधे तौर पर अपने आप को ब्राह्मण बतलाती हैं तथा शर्मा जैसे सरनेम ग्रहण कर चुकी हैं। आज वे पिछड़े वर्ग की आधिकारिक सूची में दर्ज हैं। जबकि हिंदू स्मृतियां उन्हें वर्णसंकर घोषित करती हैं और इन्हीं वर्ण संकर संतति से विभिन्न निम्न जातियों का उद्भव हुआ बताती हैं।

पिछड़े वर्ग की जो जातियां स्वयं को क्षत्रिय या ब्राह्मण होने का दावा करती हैं, लेखक ने उनमें मराठा, सूद और भूमिहार के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। किंतु उच्च जातियों ने इनके दावों को कभी भी स्वीकार नहीं किया। यहां शिवाजी का उदाहरण ही पर्याप्त होगा। मुगलकाल में मराठा जाति के शिवाजी ने अपनी वीरता से जब पश्चिमी महाराष्ट्र के कई राज्यों को जीत कर उन पर अपना अधिकार जमा लिया और राज तिलक कराने की सोची तब ब्राह्मणों ने उनका राज्याभिषेक कराने से इंकार कर दिया तथा तर्क दिया कि वह शूद्र हैं। इस अध्याय में गोत्र क्या है? तथा अनार्य वर्ग के देव-महादेव का कैसे हिंदूकरण करके बिना धर्मांतरण के अनार्यों को हिंदू धर्म की परिधि में लाया गया की विद्वतापूर्ण विवेचना की गई है। इस में बुद्ध के क्षत्रिय होने का जो मिथक अब तक बना हुआ था, वह भी टूटा है और यह वास्तविकता सामने आई कि वे शाक्य थे। और शाक्य भारत में एक हमलावर के रूप में आए। बाद में ये जाति भारतीयों के साथ मिल गई और यह जाति शूद्रों में शुमार होती थी। (देखें पृष्ठ-71-72)

अध्याय-तीन विकास यात्रा के विभिन्न सोपान में लेखक ने उच्च वर्गों के आरक्षण को रेखांकित किया तथा पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने की पृष्ठभूमि को भी वर्णित करते हुए लिखा है कि—"जब हमारा संविधान बन रहा था तो हमारे पास इतना समय नहीं था कि दलित वर्गों में आने वाली सभी जातियों की शिनाख्त की जा सकती और उन्हें सूचीबद्ध किया जाता। अन्य दलित जातियों (पिछड़ा वर्ग की जातियां) की पहचान और उसके लिए आरक्षण की व्यवस्था करने के लिए संविधान में एक आयोग बनाने की व्यवस्था की गई। उसी के अनुसरण में 29 जनवरी 1953 में काका कालेलकर आयोग बनाया गया। यह प्रथम पिछड़े वर्ग आयोग का गठन था। किंतु इस आयोग ने इन जातियों की भलाई की अनुशंसा करने के बजाए ब्राह्मणवादी मानसिकता प्रकट की जिससे पिछड़ों का आरक्षण खटाई में पड़ गया। बाद में 1978 में मंडल आयोग बना जिसे लागू करने का श्रेय वी.पी.सिंह को गया।'' संजीव ने पिछड़ेवर्ग को आरक्षण देने के विषय और उसके विरोध की व्यापक चर्चा की है।
लेखक कई ऐसे प्रश्न खड़े करते हैं जिनका उत्तर जात्याभिमानी लोगों को देना कठिन है। इस अनुपम कृति के लिए लेखक बधाई ।
राजेंद्र प्रसाद ठाकुर 
राष्ट्रीय प्रधान महासचिव 
महामुक्ति संघ

MORE ABOUT THE BOOK ADHUNIK BHARAT ME PICHDA VARG
पुस्तक का नाम

आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग

(पूर्वाग्रह, मिथक एवं वास्तविकताएं)

लेखक -संजीव खुदशाह
ISBN -97881899378
मूल्य -200.00 रू.
संस्करण -2010 पृष्ठ-142
प्रकाशक - शिल्पायन 10295, लेन नं.1
वैस्ट गोरखपार्क, शाहदरा,

दिल्ली-110032 फोन 011-22326078

ME TOO CAMPAIGN IS BASED ON ELITE CLASS


अभिजात वर्गीय है मी टू कैंपेन
संजीव खुदशाह
पिछले दिनों से मी टू कैंपेन सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक काफी चर्चित हो रहा है। इस मूवमेंट में महिलाएं #MeToo के साथ कडुवे अनुभव कुछ स्क्रीन शॉट्स भी शेयर कर रही हैं। भारत में इसकी शुरूआत 2017 से हुई थी लेकिन अभिनेत्री तनुश्री दत्ता के मामले ने  पहले पहल तूल पकड़ा । उन्होंने नाना पाटेकर पर आरोप लगाए थे।
सबसे पहले सोशल मीडिया पर इस #MeToo की शुरुआत मशहूर हॉलीवुड एक्ट्रेस एलिसा मिलानो ने की थी. उन्होंने बताया कि हॉलीवुड प्रोड्यूसर हार्वे विंस्टीन ने उनका रेप किया था । मी तू कैम्पेन की  शुरूआत अमेरिकी सिविल राइट्स एक्टिविस्ट तराना बर्क ने की थी। भारत में मी टू कैंपेन शुरू होने के बाद से अब तक कई बड़ी बॉलीवुड हस्तियों के नाम इसमें सामने आ चुके हैं इनमें विकास बहल, चेतन भगत, रजत कपूर, कैलाश खैर, जुल्फी सुईद, आलोक नाथ, सिंगर अभिजीत भट्टाचार्य, तमिल राइटर वैरामुथु और मोदी सरकार में मंत्री एमजे अकबर शामिल हैं।
बता दूं कि बेसिकली यह कैंपेन सोशल मीडिया पर आधारित है और सोशल मीडिया के दबाव के कारण कुछ मामलों ने पुलिस ने संज्ञान लिया है। 

कैंपेन को असहमति की सहिष्णुता नहीं है
इस कैंपेन की एक खास बात यह भी है की वे लोग जो इस कैंपेन से सहमत नहीं है उन्हें ट्रोल भी किया जा रहा है असहमति यों को बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है  कुछ साहित्यका,र लेखक, व्यक्ति, राजनैतिक लोगों ने अपनी असहमति जाहिर की है  और वे ट्रोल का शिकार हो गए । आखिर यह लोकतंत्र है कोई ब्राह्मणवादी या तानाशाही तंत्र नहीं है। किसी एक जाति या लिंग के आधार पर किसी को गलत या सही नहीं ठहराया जा सकता । पुरुष सभी गलत होते हैं या महिलाएं सभी अच्छी होती हैं। इस मान्यता से ऊपर उठना होगा। असहमति की गुंजाईस होनी चाहिए।

इस कैंपेन से क्या हो रहा है
मीटू के इस कैंपेन से हो यह रहा है कि करीब 10 साल या 20 साल या उससे भी ज्यादा समय के बाद महिलाएं अपने साथ हुए शोषण को सोशल मीडिया पर रख रहे हैं और उन लोगों को बेनकाब कर रही हैं जिन्होंने उनके साथ शोषण किया है अमेरिका की तरह भारत में भी यह कैंपेन फिल्मी दुनिया के इर्द-गिर्द घूम रहा है जबकि फिल्मी दुनिया में यौन कर्म एक आम बात है ऐसा माना जाता रहा है कास्टिंग काउच हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक आम बात है। फिल्मी दुनिया में कामयाबी पाने के लिए अपने आप को और अपने संबंधों को इस्तेमाल करना कोई नया नहीं है ।  लेकिन इस कैम्पेन से लोगों की नींद उड़ी हुई है। और कई नकाबपोश बेनकाब हुए हैं। यही इस कैंपेन की उपलब्धि है। इस कैंपेन के कारण शोषण करता की बदनामी हो रही है और उसे जवाब देते नहीं बन रहा है। महिला वर्ग खासकर महिला वादी लोग इस कैंपेन पर बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।

कानूनी पहलू
इस कैंपेन का कानूनी पहलू यह है कि इसे कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। हालांकि किसी भी शिकायत को थाने में दर्ज कराया जा सकता है। या फिर सीधे कोर्ट में मामला लिया जा सकता है। लेकिन काफी समय हो जाने के कारण सबूत और गवाह नष्ट हो चुके हैं और परिस्थितियां बदल चुकी हैं इसीलिए शोषण करता को सजा के निकट ले जाने में मुश्किल आ सकती है।
काश वंचित वर्ग की महिलाओ को इस कैम्पेन  में जगह मिलती.
जैसा कि इस कैंपेन से नाम से जाहिर है की यह एक निजी कैंपेन है। किसी और की पीड़ा को इस कैंपेन में शामिल नहीं किया जा रहा है। इसीलिए इस कैंपेन के दौरान हुई अन्य महिलाओं के साथ बदसलूकी बलात्कार हत्याओं को इस कैंपेन में नहीं उठाया गया है। अब तक यह मामला या इसे कैंपेन कहें अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित है या सेलिब्रिटी वर्ग तक सीमित है कह सकते हैं। इसमें वे महिलाएं जो कमजोर और पीड़ित वर्ग की आती हैं उनकी बातों को तवज्जो नहीं दी जा रही है । ना ही वे ऐसा करने का हिम्मत कर पा रही है। यह इस कैंपेन का काला पक्ष है। काश दलित और अल्पसंख्यक महिलाओं के साथ हुए शोषण को भी इस कैंपेन में जगह मिलती।

Third moolnivasi film, art & literary festival

तीसरा मूलनिवासी कला साहित्य एवं फिल्म फेस्टिवल
संजीव खुदशाह

आगामी 29 और 30 सितंबर को भिलाई में  मूलनिवासी कला साहित्य एवं फिल्म फेस्टिवल 2018 का आयोजन किया गया है। इस कार्यक्रम में देश भर से तमाम कला साहित्य और फिल्म जगत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर उपस्थित होंगे। कई महत्वपूर्ण विषयों पर शोध पत्र पेश किए जाएंगे। मूलनिवासी नायको की जिंदगियों के बारे में आख्यान प्रस्तुत होगा।
इस फेस्टिवल का मकसद  मूल निवासियों के कला, साहित्य, की विरासत से नई पीढ़ी से अवगत कराना है तथा हमारे स्वस्थ और सामूहिक जीवनमूल्यों को पुनर्जीवित करना है।

यह कार्यक्रम फेस्टिवल के लिए गठित संयुक्त आयोजन समिति के द्वारा कराया जा रहा है जो कि गैर राजनीतिक संस्थाओं और व्यक्तियों का समूह है।
देश के हृदय स्थल में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम का उद्घाटन 29 सितंबर की सुबह ठीक 9:30 बजे *पद्मश्री जेएम नेलसन* के द्वारा किया जाएगा । उद्घाटन सत्र में ही छायाचित्र, शिल्प कला, पेंटिंग, रंगोली, कविता पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया जाएगा। इसके बाद 11:30 बजे मूलनिवासी थीम पर फेंसी ड्रेस शो,  और लोकगीतों का कार्यक्रम किया जाएगा। तत्पश्चात डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का प्रदर्शन, संत रविदास के पदों का गायन तथा राकेश बोम्बार्डे द्वारा निर्देशित नाटक प्रतिनिधित्व का मंचन  होगा।  शाम के सत्र मे भारतीय रंगमंच पर फुले अंबेडकरी विचारों का प्रभाव विषय पर सुप्रसिद्ध नाटककार राजेश कुमार जी अपना व्याख्यान देंगे। फेस्टिवल के दूसरे दिन याने 30 सितंबर रविवार को ठीक 9:30 बजे उच्च शिक्षा पर संगोष्ठी के साथ केरियर काउंसलिंग का कार्यक्रम होगा। 11:00 बजे सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता *मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त बेजवाड़ा विल्सन जो कि सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक हैं* द्वारा हाथों से किए जाने वाले श्रम और मूल निवासियों का इतिहास विषय पर संवाद होगा। इसके बाद 
युवाओ के शोधपत्रों की प्रस्तुति, नागराज मंजुला की फिल्म फेन्ड्री की स्क्रीनिंग औरअरूणा मेश्राम द्वारा निर्देशित नाटक भ्रांति का मंचन किया जाएगा। 
दो दिवसीय इस कार्यक्रम में कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों द्वारा अपने विचार सांझा किये जायेंगे। 
इस कार्यक्रम में भागीदारी  के लिए तमाम मूल निवासी  कला,  साहित्य और फिल्म प्रेमियों से अपील की गई है।