जाति विहीन समाज निर्माण के लिए जाति उन्मूलन आंदोलन

जाति विहीन समाज निर्माण के लिए जाति उन्मूलन आंदोलन का
तृतीय अखिल भारतीय सम्मेलन सम्पन्न

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रायपुरदिनांक 01 नवंबर 2015। आधुनिक भारत के निर्माण में समता मूलक एवं वैज्ञानिक आधार पर समाज निर्माण की आवश्यकता है इस हेतु जाति का उन्मूलन आवश्यक है। इसके मद्देनजर जाति उन्मूलन आंदोलन अखिल भारतीय संयोजक कमेटी द्वारा दो दिवसीय तृतीय अखिल भारतीय सम्मेलन  बाबा साहेब डा. बी.आर. अम्बेडकर हाल (श्री दुलार विश्वकर्मा धर्मशाला)गुरू घासीदास नगर (बढ़ईपारा)रायपुर में सम्पन्न हुआ। प्रथम दिवस ‘‘मौजूदा सांप्रदायिक व ब्राम्हणवादी आक्रमण और जाति उन्मूलन आंदोलन का महत्व‘‘ विषय पर सेमीनार एवं द्वितीय दिवस में प्रतिनिधि सत्र का आयोजन किया गया। सम्मेलन की अध्यक्षता जाति उन्मूलन आंदोलन के अखिल भारतीय समन्वय परिषद् के उमाकांत ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में भाकपा (माले) के राष्ट्रीय महासचिव काॅ. के. एन. रामचंद्रनजाति उन्मूलन आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक जयप्रकाशजाति उन्मूलन आंदोलन के राज्य प्रतिनिधि साथी शैल्वी व एडवोकेट मनोहरण (तमिलनाडु)आई. पी. दलयानिया (गुजरात)साथी गौरी (कर्नाटक)डाॅ. बलराम (बलराम)एस. पी. सिंह (हरियाणा)के. पी. सिंह (दिल्ली)डाॅ. आर.के. सुखदेवेतुहिन व गोल्डी एम. जार्ज (छत्तीसगढ़) उपस्थि थे। कार्यक्रम का संचालन जाति उन्मूलन आंदोलन के छत्तीसगढ़ राज्य संयोजक संजीव व आभार अंजु मेश्राम ने किया। सम्मेलन में बुद्धिजीवीगण लाभ सिंह (पंजाब)परिजात (दिल्ली)काॅ. सौरादुर्गाकाॅ. भारत भूषण ने भी अपनी बात रखी। उक्त संबंध में 31 अक्टूबर को  प्रेस क्लबरायपुर में प्रेसवार्ता का आयोजन एवं उसी दिन सायं 5 बजे जाति व्यवस्था ध्वस्त करो‘ नारे के साथ देशभर के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में रैली निकालकर आजाद चैक‘ में आमसभा का आयोजन किया गया। अतिथियों द्वारा जाति उन्मूलन आंदोलन की हिन्दी में पत्रिका जाति उन्मूलन’ तथा अंग्रेजी में ‘Cast

Annihilation’ का विमोचन भी किया। इस अवसर पर बिपासा रावचंद्रिकाडाॅ. रामबली व कलादास ने हम न लड़ेंगे‘ जनगीत प्रस्तुत किया। सम्मेलन में देशभर से बड़ी संख्या में प्रतिनिधिसंस्कृतिकर्मीबुद्धिजीवी व छात्र उपस्थित थे।
कार्यक्रम में उद्घाटन भाषण देते हुए का. रामचंद्रन ने कहा कि भारत में जाति व्यवस्था के विरोध का लंबा इतिहास रहा है। इसकी शुरूआत गौतम बुद्ध ने की थी। जिसे बाद में कबीररैदासमहात्मा फुले और अंबेडकर ने आगे बढ़ाया। परंतु हम ऐसी स्थिति में आंदोलन की शुरूआत कर रहें है जब जाति-धर्म के नाम पर दमन किया जा रहा है। धर्म व जाति के नाम पर राजनीति हो रही है। धार्मिक व जातीय आधार पर लोगों का बाटा जा रहा हैसभी जनवादी अधिकारों का हनन किया जा रहा है। देश के इतिहास व संस्कृति का विकृतिकरण किया जा रहा है। साम्प्रदायिक ताकतों ने प्रत्येक क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करने का प्रयास तेज कर दिया है। नव-उदारवादी व्यवस्था के चलते देश भर में सामाजिक रूप से उत्पीड़ित जातियों एवं वर्गाें पर जातिवादी हमला बढ़ा है। हाल के दिनों में दबंगों द्वारा राजस्थानबिहारमध्यप्रदेशत्तीसगढ़उत्तरप्रदेशमहाराष्ट्रओड़ीसा सहित पूरे देश में दलितोंमजदुरोंकिसानोंआदिवासियोंअल्पसंख्यकों के ऊपर हमले की अनेक वीभत्स घटनाएं हुई हैं। उनकी हालत बद् से बद्तर हो गयी है। साम्राज्यवाद एवं उसके अनुचरों द्वारा अपने वर्चस्व को चिरायु बनाये रखने के लिए धार्मिक व जातीय कट्टरपंन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है एवं भारत को हिन्दु राष्ट्र बनाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। देश सांप्रदायिक व जाति प्रथा के माध्यम से अंधकार की ओर पूरी तरह बढ़ रहा है। इसके लिए हम सबको एक होकर  आंदोलन को क्रांति का रूप देना होगा। भारत को समाजवादी दिशा में ले जाने के लिए प्रगतिशील लोगों को आगे आकर इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी को स्वीकार करना होगा।
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जे.पी.नरेला ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि देश के तमाम हिस्सों में हो रहे हिंसक हमलोंधर्म के नाम पर हो रहे अत्याचार के कारण अल्पसंख्य सहित दलित समुदाय डरा हुआ है। समाज में दलितों पर जघन्य अपराध लगातार हो रहें हैं हरियाणा इसका ज्वलंत उदाहरण है। दलितों पर हमलोंअत्याचारों की रिर्पोट नहीं लिखी जाती। और यदि लिख भी ली गई तो ज्यादातर आरोपियों को मुक्त कर दिया जाता है। आज भी देश के गावों मे दलितों की हालत बहुत ही खराब है। उन्हें दो जून की रोटी भी नसीब नहीं हो रही। भारत की सभी पार्टियां दलितों का उत्थान नहीं कर पायी। सत्ता के लिए वो जाति पहचान को बनाए रखना चाहती है। इसलिए हम सभी की जिम्मेदारी है कि जनता के वाज़िब हक के लिए सभी संगठनो को साथ लेकर व्यवस्था के खिलाॅफ आंदोलन चलाने की जरूरत है।
तमिलनाडु की साथी शैल्वी ने कहा कि तमिलनाडु एवं पूरे देश में एक जैसी स्थिति है। पिछले डेढ वर्षाें में इसमें बढोतरी हो रही है। अंतर्जातीय-अंतर्धार्मिक विवाह करने वालों को मार डाला जा रहा है। उच्च वर्ण की दबंगई बढ़ती जा रही है। नई तकनीक आने से पीढ़ीगत व्यवसाय खत्म हो रहा है। साम्राज्यवाद-पंूजीवाद खाद पानी देकर जाति व्यवस्था को बढ़ावा दे रहा है। हमें इसके विरोध में उठ खड़ा होना है। असमानता के खिलाफ समानता की लड़ाई लडते हुए जाति व्यवस्था को ध्वस्त कर देना है।
डाॅ. सुखदेवे ने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर ने जाति प्रथा को एक कोढ़ की तरह बताया है। उन्होने जाति उन्मूलन पत्रिका में लिखा कि ये किताब मैने जिनके लिए लिखी है उन्हे ही इसका अर्थ नहीं मालूम। शिक्षित लोग भी ब्राम्हणवादी व्यवस्था को ढो रहे हैउसी का परिणाम है कि यह व्यवस्था अभी तक पूरे समाज में व्याप्त है। हम सबको को मिलकर समाज में चेतना पैदा करना है। अलोचनाओं से डरना नहीं है। सभी संगठनों को जाति उन्मूलन आंदोलन के साथ मिलकर इस व्यवस्था के खिलाफ लोगों को जाकरूक करना है।
तमिलनाडु के एडवोकेट मनोहरन ने कहा कि दलितों को जातिवादी पार्टियां लड़ाने का काम करती हैं। जाति व्यवस्था को पोषित करती हैं। जातिय पहचान की राजनीति करती है। जिससे दलितों में भी कई गुट बन गये है। छद्म चेतना से दलित बाहर आए और वैज्ञानिक चेतना के आधार पर जाति विहीनधर्म विहीन समाज निर्माण में योगदान दें।
कर्नाटक की साथी गौरी ने कहा कि ब्राम्हणों ने ब्राम्हणों के लिए जाति व्यवस्था बनाई यह सही विश्लेषण नहीं है। बल्कि शासक वर्ग ने अपने फायदे के लिए इस व्यवस्था को बनाया। शासक वर्ग समाज को जातियों में बांट कर राज करना चाहती है। हमें इनकी चालों को समझना होगा। सबको बराबर के अधिकार के लिए समानता के आधार पर जाति व्यवस्था के उन्मूलन की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
आई.पी. दलसानिया ने गुजरात का अनुभव साझा करते हुए बताया कि आरक्षण के नाम पर जातियों को लड़ाया जा रहा है। सत्ता पाने के लिए बांटो और राज करो की नीति अपनाई जा रही है। हमारी मूल समस्याओं से ध्यान भटकाकर जनता का शोषण किया जा रहा है। कई दशकों के कठोर संघर्षों से उत्पीड़ित तबकों ने कुछ जनवादी और सामाजिक अधिकारों को हासिल किया थाजिसे आज निष्ठुरता के साथ छीन लिया गया है। हम सबको मिल कर इसका विरोध करअपने हक की लड़ाई लड़नी होगी।
डाॅ. गोल्डी एम. जार्ज ने कहा कि सभी प्रकार क भेदभाव व व्यवस्था को परिवर्तन करना जरूरी हैइसके बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते। समतास्वतंत्रताविश्वबंधुत्व के आधार पर न्याय होना चाहिए। मानवतावादी संस्कृति का विकास करना जाति उन्मूलन आंदोलन का मूल आधार होना चाहिए।
हरियाणा के एस.पी.सिह ने कहा कि जाति विहीन समाज की दशा तो समाज में दिखाई देती है परंतु दिशा हमें तय करनी होगी। दलितों को औजार की तरह तैयार करना होगा। इस पर हमें मनन तथा गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
दिल्ली के के.पी.सिंह ने कहा कि हरियाणा व उत्तरप्रदेश में जाति प्रथा चरम पर है जिसका मूल कारण जमीन है। जिस भी जाति के पास अधिक जमीन है वह दलितों पर अत्याचार करती है। दिल्ली में अधिकतर दलितों के पास जमीन है ही नहीं। वर्तमान सरकार का एजेंडा आरक्षण व एस.सी. एस.टी. एक्ट खत्म करना और जातिवाद व सांप्रदायिक विभेद पैदा कर सत्ता चलाना है।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए उमाकांत ने बताया कि भारत में वर्गीय और जातीय विभाजन एक कड़वी सच्चाई है और ये दोनों व्यापक जनता के नारकीय जीवन के कारण हैं। इसलिएएक जाति विहीन और वर्ग विहीन समाज निर्माण के उद्देश्य से अखिल भारतीय स्तर पर जाति उन्मूलन आंदोलन की शुरूआत की गई है। जाति प्रथा भारत में एक कोढ़ की तरह है। हजारों साल से चली आ रही यह अमानवीय प्रथा बदलते समय के साथ तालमेल बैठाकर नये निर्मम रूप में आज भी बरकरार है। लेकिन बलशाली शासक वर्ग जाति को कोई समस्या नहीं मानता है। या यूं कहें जान बूझकर समस्या मानने से इनकार करता है क्योंकि इसके पीछे उसके निजी हित छिपे हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब संपन्न-दबंगों द्वारा दलितोंआदिवासियोंमहिलाओं और उत्पीड़ित तबके पर जुल्म की खबरें नहीं आती हों। भारत की बहुमत मेहनतकश आबादीजो खेतों से लेकर कारखानों तक दिन-रात खटती हैआर्थिक शोषण के साथ-साथ जाति व्यवस्था के तहत सामाजिक उत्पीड़न के कारण नारकीय जीवन जी रही हैउनके सवालों पर कोई चर्चा तक नहीं की जाती है। इसके पीछे गहरी साजिश है जिसका पर्दाफाश करने की जरूरत है। ऐसे नकाबपोश लोगों के नकाब उतार फेंकने की जरूरत है जो एक ओर तो जाति को सनातन पुराणांे के बहाने बनाये रखना चाहते हैं तोे दूसरी ओर आधुनिक होेने का ढोंग रचते हैं। उन्होंने जाति विहीन वर्ग विहीन समाज के निर्माण के संघर्ष में शामिल होने हेतु सबका आह्वान किया।
सम्मेलन में जाति उन्मूलन आंदोलन के अखिल भारतीय समिति द्वारा कार्यक्रम एवं सांगठनिक विधान पर चर्चा की गई एवं पारित किया गया। सम्मेलन में 17 सदस्यीय अखिल भारतीय समन्वय परिषद्, 5 सदस्यीय केंद्रीय कार्यकारिणी का गठन किया गया एवं सर्वसम्मति से जयप्रकाश नरेला को अखिल भारतीय संयोजक के रूप में चुना गया। सम्मेलन में जातिगत उत्पीड़नकिसानों की बिगड़ती गंभीर हालातोंअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर होने वाले बर्बर हमलोंइतिहास व संस्कृति के विकृतिकरणसांप्रदायीकरण व शिक्षा के भगवाकरणदिन प्रतिदिन बढ़ रही गरीबीमंहगाई व बेरोजगारीमहिलाओंआदिवासियोंअल्पसंख्यक समुदाय व मेहनतकश वर्ग के खिलाफ बढ़ते उत्पीड़न आदि विभिन्न विषयों पर प्रस्ताव पारित किए गए।
     सम्मेलन में देश के दिल्लीपंजाबहरियाणाउत्तरप्रदेशमहाराष्ट्रतमिलनाडुकर्नाटककेरलराजस्थानगुजरातउड़ीसा व छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधियों सहित बड़ी संख्या में गणमान्य बुद्धिजीवीचिंतक व छात्र उपस्थित थे।                                                       
जाति उन्मूलन आंदोलन 
राज्‍य संयोजक परिषद छत्तीसगढ़

जाति उन्‍मूलन आंदोलन का तृतीय राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन

प्रिय साथियों,
खुशी की बात ये है की तृतीय अखिल भारतीय सम्मेलन अगामी 31 अक्तूदबर और 1 नवंबर को 2015 को रायपुर मे आयोजित किये जाने का निर्णय लिया है। हम सभी संस्था ओं एवं सक्रिय व्यक्तियों से सहयोग की अपील कर रहे है। जो किसी न किसी रूप से इस मु‍हीम से अपने आप को जोडे हुये है। उनके सहयोग के बिना यह आंदोलन कामयाब नही हो सकता है।
क्रांतिकारी अभिवादन के साथ
संजीव 
राज्य संयोजक जाति उन्मूलन आंदोलन छत्तीसगढ

जाति प्रथा भारत में एक कोढ की तरह है, लेकिन भारत का एक बलशाली वर्ग जाति को कोई समस्या नही मानता है। या ये कहे जान बूझकर समस्या मानने से इनकार करता है, इसके पीछे उसके निजी हित छिपे। इस कार्य में छदृम प्रगतिशील लोग भी लगे है। महंगाई, भष्‍टाचार को देश की सबसे बडी समस्या बताया जाता है पूरा मीडिया 24 धंटे इसी पर केन्द्रित रहता है, सही मुद्दे से ध्‍यान भटकाने की कोशिश है, इन सब की जननी जाति प्रथा को स्पर्श तक नही किया जाता है। इसके पीछे गहरी साजिश है। अब जरूरत इस बात की है की इसका पर्दाफाश किया जाय। ऐसे नकाब पोश लोगो के नकाब उतारा जाय जो जाति को संस्कृति पुराणो के बहाने बनाये रखना चाहते तो दूसरी ओर आधुनिक वैज्ञानिक होने का ढोंग रचते है। साथियो इस के मद्देनजर वृहद रूप में जाति उन्मूनलन आंदोलन की रूप रेखा बनाई गर्इ। केन्द्रीहय कमेटी का एवं राज्य कमेटी का गठन किया है। हमारे छत्तीसगढ में विगत 2 सालों से जाति उन्मूलन आंदोलन की राज्य इकाई सक्रिय है। गौर तलब है इसकी एक पत्रिका हिन्दी में जाति उनमूलनअंग्रेजी में ‘Cast Annihilation’ सफलता पूर्वक प्रकाशित की जा रही है। यदि आप जाति उन्मूलन आंदोलन में अपना सहयोग देना चाहते है तो हम आप का तहेदिल से इस्तेकबाल करते है। भारत में पिछले करीब दो दशकों से नव-उदारवाद का राज चल रहा है और इस दौरान उत्पीड़ित वर्गों और समुदायों, विशेष रुप से दलितों की हालत बद से बदतर होते गई है। नयी परिस्थितियों के अनुरुप अपने आपको ढालते हुए जाति प्रथा नये रुपों में कायम है।
कई दशकों के कठोर संघर्षों से उत्पीड़ित तबकों ने जिन जनवादी, आर्थिक और सामाजिक अधिकारों को हासिल किया था उसे निष्ठुरता के साथ छिन लिया गया है। आरक्षण से मिले अधिकारों को लगातार हल्का बनाया जा रहा है, जबकि सभी क्षेत्रों में हो रहे निजीकरण के कारण इसमें पहले ही भारी कटौती हो चुकी है। शिक्षा का बाजारीकरण हो रहा है, श्रम बाजार में काम कराओ और निकाल दोकी नीति के आधार पर ठेकेदारी प्रथा हावी हो गई है, देशी व विदेशी काॅरपोरेट घरानों और रीयल इस्टेट माफिया के लिए विस्थापन के चलते गरीब किसान अपने भूमि से वंचित होते जा रहे हैं, पुरुषवादी सत्ता और साम्राज्यवादी संस्कृति के कारण महिलाओं का समाज में जो थोड़ा-बहुत स्थान था वह भी खत्म होता जा रहा है। इसकी मार सबसे ज्यादा दलितों, आदिवासियों, तथाकथित अछूतों पर पड़ रही है जो तेजी से दरिद्रता के गर्त में गिरते जा रहे हैं। साम्राज्यवाद और उसके अनुचरों द्वारा अपने प्रभुत्व को चिरायु बनाए रखने के लिए धार्मिक कट्रपंथ को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
वर्तमान में साम्प्रदायिक ताकतों ने प्रत्येक क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करने का प्रयास तेज कर दिया है। देश भर में सामाजिक रुप से उत्पीड़ित जातियों एवं वर्गों पर जातिवादी हमला बढ़ा है। हाल के दिनों में जातिवादी ताकतों द्वारा राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा आदि स्थानों पर दलितों के ऊपर हमले की अनेक विभत्स घटनायें हुई है। हिन्दुत्ववादी ताकतें एक तरफ तो अम्बेडकर को हथियाने की कोशिश में है, तो दूसरी तरफ आई.आई.टी. मद्रास के अम्बेडकर-पेरियार स्टडी सर्कलछात्र समूह पर प्रतिबंध लगाने जैसी दमनात्मक कार्यवाही भी करती है। साथ ही कॉरपोरेट राज के तहत् समाज के उत्पीड़ित तबकों पर ही इसकी मार सबसे ज्यादा पड़ रही है।
ऐसे परिस्थिति में देश व्यापी ’’जाति उन्मूलन आन्दोलन’’ खड़ा करने, हम सभी मेहनतकश देशभक्त जनता एवं प्रगतिशील ताकतों से सम्मेलन को सफल बनाने का आह्वान करते हैं।
जाति उन्मूलन आन्दोलन छत्तीसगढ़ संयोजक कमेटी
कार्यालय- सी 45, पानी टंकी के पास सेक्टर-1 शंकर नगर, रायपुर (छ.ग.)
प्रधान कार्यालय- सी 141 सैनिक नगर नई दिल्ली फोन- 011-25332343
ईमेल-.chattishgarh.cam@gmail.com.
संपर्क-मोबा.नं. 9977082331, 0589957708, 9425503987, 8959666036.

https://www.facebook.com/groups/cast.annihilation.movement/

भारत में जाति एक राष्ट्रीय समस्या है

जाति उन्मूलन आंदोलन पर प्रथम राज्य स्तरीय सम्मेलन संपन्न
भारत में जाति एक राष्ट्रीय समस्या है

जाति उन्मूलन आंदोलन छत्तीसगढ़ संयोजक कमेटी द्वारा ‘‘भारत में जाति उन्मूलन कैसे‘‘ विषय पर प्रथम राज्य सम्मेलन दिनांक 19 सितंबर 2015 (शनिवार) को वृन्दावन हाल, सिविल लाईन रायपुर में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में मुख्य वक्ता तुहिन अखिल भारतीय संयोजक, क्रांतिकारी सांस्कृतिक  मंच (कसम) थे। सम्मेलन की अध्यक्षता प्रसिद्ध चिकित्सक, लेखक व चिंतक डा.आर.के सुखदेवे ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रसिद्ध दलित साहित्यकार व लेखक संजीव खुदशाह, दक्षिण कौशल पत्रिका के संपादक उत्तम कुमार, एम्बस के नरेन्द्र बंसोड, गोल्डी, हेमा भारती व़ समाज सेवी अंजू मेश्राम उपस्थित थी। सम्मेलन में बुद्धिजीवीगण कामरेड सौरा यादव, कामरेड तेजराम, का ए.बी. चैारपगार, भीमराव रामटेके, चन्द्रभूषण कुशवाहा, रवि बौद्ध, राजेन्द्र गायकवाड़, एस.एन. टंडन व निसार अली ने भी अपनी बात रखी। सम्मेलन में जाति उन्मूलन आंदोलन के लिए 25 सदस्यीय नई राज्य समन्वयक परिषद का गठन किया गया। आगामी 31 अक्टूबर-01 नवम्बर 2015 कोे रायपुर में आयोजित होने वाले जाति उन्मूलन आंदोलन के अखिल भारतीय सम्मेलन को सफल बनाने की अपील की गई। सम्मेलन का संचालन चंद्रिका एवं आभार हेमा भारती द्वारा किया गया।
     कार्यक्रम के मुख्य वक्ता तुहिन देब ने कहा कि भारत में नव-जागरण आंदोलन के समय जाति प्रथा का सवाल उठाया गया था। इसके खात्मे के लिए आंदोलन चला था। वामपंथी आंदोलन की जिम्मेदारी थी कि वह इसे आगे ले जाता और इसे अंजाम तक पहुंचाता मगर वह इस कार्यभार को नेतृत्व देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाने में असफल रहा, क्योंकि वह भारतीय समाज का सही विश्लेषण नहीं कर सका।  उन्होंने आगे कहा कि परम्परागत वामपंथी आंदोलन ने यह रूख अपनाया कि जाति प्रथा समाज के ऊपरी ढांचे का हिस्सा है, इसलिए आर्थिक आधार में बदलाव के साथ यह स्वतः ही खत्म हो जाएगा। दूसरी तरफ, दलित व जाति आधारित संगठनों ने आर्थिक व राजनीतिक पहलुओं को नजर अंदाज कर इसे केवल एक सामाजिक समस्या तक सीमित कर दिया। इसलिए वर्ग संघर्ष और जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए संघर्ष दोनों को आगे ले जाने में असफलता हाथ लगी। यही कारण है कि जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध विभिन्न संगठन एकजुट हुए हैं और जाति उन्मूलन आंदोलन की शुरूआत की गई है। इस प्रक्रिया को तेज कर जातिवादी उत्पीड़न और जाति प्रथा के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है। श्री देब ने आगे कहा कि भारत में जातिप्रथा एक अभिशाप की तरह है। जो भारतीय समाज को चैतरफे जकड़न में समाये हुए है और इसी कारण भारतीय समाज के प्रगतिशील एवं समतावादी रूपांतरण में यह एक बहुत बड़ी बाधा है। गत् दिनों अखिल भारतीय स्तर पर जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए ‘‘जाति उन्मूलन आंदोलन‘‘ का गठन किया गया है। उन्होंने जातिविहीन वर्गविहीन समाज के निर्माण के संघर्ष में शामिल होने हेतु सबका आह्वान किया। उन्होंने बताया कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने जाति तोड़ो समाज जोड़ो का नारा दिया था। जिसका अनुसरण आज प्रासंगिक है। वर्तमान समय में ढोंगी बाबाओं एवं दक्षिण पंथी तत्वों द्वारा अंधविश्वास व कर्मकाण्डों का विरोध करने वालों को प्रताड़ित किया जा रहा है, मार दिया जा रहा है। इन कृत्यों का हमें घोर विरोध कर इसके विरूद्ध जनमत तैयार करना है।
     संजीव खुदशाह ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह गैर राजनैतिक आंदोलन है। सभी को साथ मिलकर जाति विहीन समाज की रचना में योगदान देना होगा। पिछले कई दशको से इस समस्या का समाधान अपने तरह से किया जाता रहा है। कुछ कोशिश बुद्ध महावीर, कबीर, रैदास व साबित्री बाई फुले के काल मे हुई थी। लेकिन यह प्रयास था जाति की पकड़ ढीली हुई लेकिन जाति का उन्मूलन रंज मात्र भी नही हुआ। डा. अंबेडकर के साहित्य में जाति उन्मूलन का खाका समूचित अर्थ में देखने को मिलता है। उन्होंने जातिभेद, लिंगभेद, रंगभेद व धर्मभेद के मुद्दे पर काम किया न कि किसी जाति विशेष के लिए। उन्होंने जाति का खात्मा कैसे हो पर अपना आलेख प्रस्तुत करते हुए कहा कि अंतरजातिय भोज का आयोजन एवं अंधविश्वास, अज्ञानता, स्वर्णीम अतीत पूजा, लिंगभेद आदि के बारे में लोगों में वैज्ञानिक चेतना पैदा कर इसका खात्मा किया जा सकता।
  अंजू मेश्राम ने अपना आलेख प्रस्तुत करते हुए पूना पैक्ट पर विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि यह एक्ट केवल अछूतों के लिए ही बनाया गया था। लेकिन इसका सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हुआ। हम लोग अंगे्रजों की गुलामी से छूट गये पर आज भी हम जातिगत तौर पर गुलामी की जंजीरों से बंधे हुए है। हम सबको इस शोषणकारी व अमानवीय जाति प्रथा से बाहर आना है तभी हम सामाजिक समानता ला पायेंगे।
     दक्षिण कौसल के संपादक उत्तम कुमार ने कहा कि पूर्व में विद्यानों ने जाति के रहस्यों को खोलने का प्रयास किया किंतु अभी तक इस समस्या से निजात नहीं पाया जा सका। वर्ग आधारित राजनीति में जातियता के उन्मूलन के बिना समाजिक परिवर्तन संभव नहीं है। और न ही राजनीतिक परिवर्तन से समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व व न्याय आधारित समाज की स्थापना संभव हो सकती है। हिंदू समाज जब एक जाति विहीन समाज बन जायेगा तब इसके पास स्वयं को बचाने के लिए शक्ति होगी। कल्पना जातिविहीन समाज व्यवस्था के बिना स्वदेशीय आजादी की अधूरी है।
सम्मेलन में अपना अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुऐ डा. सुखदेवे ने कहा कि जाति तोड़ो आन्दोलन को पूरी तेजी के साथ आगे बढाना होगा। गांव-गांव जाकर लोगो को जागरूक करना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि दलित वर्ग के लोग उच्च पदों पर जाने के बाद अपनी सामाजिक जिम्मेदारी नहीं निभाते। भावना में बहकर लोग वोट देते है, भावनाओं से समाज नही चलता। दलितों को भूमि सुधार के लिए, अपने हक के लिए संख्या बल बढाना चाहिए। उन्होंने सामाजिक समानता बनाने के लिए जातिवाद खत्म करने पर जोर दिया और कहा कि यह प्रयास हम अपने घर से शुरू करें।
     सम्मेलन में जाति उन्मूलन आंदोलन के कार्यक्रम पर चर्चा की गई एवं संकल्प पारित किया गया। संजीव को सर्वसम्मति से राज्य संयोजक चुना गया। सम्मेलन में जातिगत उत्पीड़न, किसानों की बिगड़ती गंभीर हालातों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर होने वाले बर्बर हमलों, इतिहास संस्कृति के विकृतिकरण, सांप्रदायीकरण व शिक्षा के भगवाकरण, दिन प्रतिदिन बढ़ रही गरीबी मंहगाई व बेरोजगारी आदि विभिन्न विषयों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया।
     सम्मेलन में चंद्रिका द्वारा क्रांतिकारी जनगीत प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में तेजराम, संतोषी, कुमुद, रामकिशोर, रंजना, संतोष, माखनलाल, नर्मदा, सवित्री, प्रहलाद, राजमंहत रामदयाल, रत्नमाला, हेमंत, पतंजलि, रविन्द्र सहित अनेक गणमान्य बुद्धिजीवी व चिंतक उपस्थित थे।                                                                                                                       

युध्‍दरत आम आदमी के पिछडा वर्ग विशेषांक की समी‍क्षा

अमलेश प्रसाद पत्रिका समीक्षा ।  सबसे ज्‍यादा मतदाता हैं, लेकिन राष्‍ट्रीय मुद्दों में हस्‍तक्षेप न के बराबर है। सबसे ज्‍यादा आबादी है, लेकिन सबसे ज्‍यादा असंगठित समाज यही है। सबसे ज्‍यादा कामगार इसी वर्ग के हैं, लेकिन अधिकांश बेराजगार हैं। सबसे ज्‍यादा कारीगर भी इस समाज के हैं, लेकिन कलाकारी में कहीं नामो-निशान नहीं है। सबसे ज्‍यादा किसान भी यही हैं, लेकिन अभी अधिकांश भूखे-नंगे हैं।
चाहे साहित्‍य हो, चाहे राजनीति हो, चाहे धर्म हो, चाहे अध्‍यात्‍म हो, चाहे कला हो, चाहे खेती-बागवानी हो, हर क्षेत्र में सबसे ज्‍यादा पसीना बहानेवाला यही समाज रहा है। कितनी विडंबना है कि वेद की चंद ऋचाएं रटने वाले को योग्‍य माना जाता है, लेकिन मनुष्‍य की दैनिक जरूरत की चीजों का प्रकृति के साथ-साथ सृजन करनेवाले को अयोग्‍य कहा जाता है। पिछड़ा वर्ग के पिछड़ेपन का मुख्‍य कारण कूटनीति है। पिछड़ा वर्ग उतना कूटनीतिज्ञ नहीं है, जितना सवर्ण समाज। हर विधा में सक्षम होने के बावजूद कूटनीति के अभाव के चलते पिछड़ा वर्ग अपंग बना हुआ है। इतिहास गवाह है कि आज का पिछड़ा कभी अगड़ा रहा है। जीवन के हर क्षेत्र की कारीगरी एवं कलाकारी में इसे महारत हासिल है, लेकिन इसे कूटनीति से हराकर बंधुआ मजदूरी करायी जा रही है। जन्‍म से लेकर मृत्‍यु तक मनुष्‍य को जितनी चीजों की जरूरत होती है, उन सबका पालक, उत्‍पादक और निर्माता पिछड़ा वर्ग ही है। लेकिन दुर्भाग्‍य है कि आज पिछड़े वर्ग पर साहित्‍य और राजनीति दोनों मौन धारण कर बैठे हुए हैं।
अब कुछ लोग पिछड़े समाज को लेकर साहित्‍य और राजनीति में कुछ-कुछ कर रहे हैं। लेकिन आबादी के हिसाब से यह प्रयास न के बराबर है। इसी कमी को पूरा करने के लिए युद्धरत आम आदमी का पिछड़ा वर्ग विशेषांक उल्‍लेखनीय है। इस अंक के अतिथि संपादक संजीव खुदशाह ने ‘पिछड़ा वर्ग साहित्‍य आंदोलन खड़ा करेगा’ संपादक रमणिका गुप्‍ता ने ‘अभी लम्‍बा सफर तय करना है पिछड़ा वर्ग को’ और कार्यकारी संपादक पंकज चौधरी ने ‘साम्‍प्रदायिक नहीं हैं पिछड़ी जातियां’ आंदोलित करने वाला संपादकिय लेख लिखे हैं। इस विशेषांक में पिछड़े वर्ग के तमाम पहलुओं को शामिल करने की कोशिश की गई है। इस अंक को मुख्‍य रूप से निम्‍न खंडों में विभाजित किया गया है- दस्‍तावेज, इतिहास आन्‍दोलन संस्‍कृति स्‍त्री, समाज राजनीति नेतृत्‍व, मीडिया, पसमांदा मुसलमान, अति पिछड़ी जातियां, एकता/अन्‍य, आरक्षण, साक्षात्‍कार, पुस्‍तक अंश और पुस्‍तक वार्त्‍ता।
संपादकीय के बाद पहले खंड दस्‍तावेज में ‘जाति प्रथा नाश- क्‍यों और कैसे’ डॉ. राममनोहर लोहिया का लेख है। लोहिया ने जाति की जड़ खोदने के साथ-साथ अपने समय को भी कैनवास पर उतारा है, यथा- ‘ऊंची जातियां सुसंस्‍कृत पर कपटी हैं, छोटी जातियां थमी हुई और बेजान हैं।’‘इतिहास आन्‍दोलन संस्‍कृति स्‍त्री’ खंड में प्रेमकुमार मणि का ‘भारतीय समाज में वर्चस्‍व व प्रतिरोध’, बजरंग बिहारी तिवारी का ‘केरल का नवजागरण और एसएनडीपी योगम्’, बृजेन्‍द्र कुमार लोधी का ‘वर्ण व्‍यवस्‍था एवं जाति प्रथा : मिथक तथा भ्रांतियां’ और सीए विष्णु दत्‍त बघेल का ‘पराधीनता व आत्‍मग्‍लानि का बोझ’ लेख शामिल हैं। इस खण्‍ड में उत्‍तर से दक्षिण और प्राचीन से आधुनिक भारत के जातीय इतिहास को मथा गया है।  
‘समाज राजनीति नेतृत्‍व’ खंड में अनिल चमड़िया, पंकज चौधरी, के.एस. तूफान और रामशिवमूर्ति यादव का क्रमश: ‘नमो को पिछड़ा बनाने के निहितार्थ’, ‘उत्‍तर का राजनीतिक नवजागरण’, राजनीति सत्‍ता और पिछड़ा वर्ग’ और ‘नेतृत्‍वविहीन है पिछड़ा वर्ग’ आलेख को स्‍थान दिया गया है। यहां पिछड़ा वर्ग के राजनीति उतार-चढ़ाव को रेखांकित किया गया है। ‘मीडिया’ खण्‍ड में उर्मिलेश और संजय कुमार के दो लेख हैं। इनके शीर्षक हैं क्रमश: ‘भारतीय मीडिया और शूद्र’ तथा ‘हाशिए का समाज मीडिया में भी हाशिए पर’। 
पिछड़े वर्ग की पीड़ा और प्रताड़ना से पसमांदा मुसलमान भी पीड़ित हैं। ‘पसमांदा मुसलमान’ खण्‍ड में अली अनवर, कौशलेन्‍द्र प्रताप यादव, ईश कुमार गंगानिया और प्रो. मो. सईद आलम के लेख क्रमश: ‘पसमांदा ही भागाएंगे साम्‍प्रदायिकता के भूत को’, ‘कौन समझेगा पसमांदा मुसलमानों का दर्द’, ‘पसमांदा मुस्‍लिम की अस्‍मिता के प्रश्‍न’, और ‘पसमांदा मुसलमानों को आम्‍बेडकर की तलाश’ लेखों से यह स्‍पष्‍ट होता है कि पसमांदा मुसलमान भी अब धार्मिक कठमुल्‍लेपन को छोड़कर अपने आत्‍मसम्‍मान, अस्‍मिता, सामाजिक, आर्थिक पिछड़ेपन के मुद्दे उठाने के लिए निकल पड़ा है। इस पिछड़ा वर्ग विशेषांक में अति पिछड़ों का भी पूरा ख्‍याल रखा गया है। ‘अति पिछड़ी जातियां’ खण्‍ड में डॉ. राम बहादुर वर्मा, डॉ. पीए राम प्रजापति, महेन्‍द्र मधुप का क्रमश: ‘यूपी में अति पिछड़ी जातियों की दशा-दिशा’, ‘बदलते आर्थिक परिवेश में अति पिछड़ा वर्ग का विकास एवं चुनौतियां’, ‘अति पिछड़ों को ठगने का काम राजनैतिक दल छोड़ें’ आदि महत्‍वपूर्ण लेख शामिल हैं।
दलित समाज की सभा/सम्‍मेलनों में पिछड़ों को भाई कहा जाता है और पिछड़े समाज की सभा/सम्‍मेलनों में दलितों को भाई कहा जाता है।एकता खण्‍ड में दलित-पिछड़ों की इसी एकता पर गंभीर चर्चा की गई है। इसमें मूल चंद सोनकर ने ‘आम्‍बेडकर ही एकमात्र विकल्‍प’, केशव शरण ने ‘पिछड़ा वर्ग और उनकी दशा-दिशा’, डॉ. धर्मचन्‍द्र विद्यालंकर ने ‘दलित पिछड़ा भाई-भाई, तभी होगी केन्‍द्र पर चढ़ाई’, डॉ. हरपाल सिंह पंवार ने ‘क्‍या पिछड़ी जातियां भी शूद्र हैं’, रमेश प्रजापति ने ‘ब्राहमणवाद के जुए को उतार फेंके पिछड़ा वर्ग’, इला प्रसाद ने ‘चित्रगुप्‍त के वंशज’ तथा यशवंत ने ‘हक न पा सकने वाली नस्‍ल’ लेख लिखा है। अब तक आरक्षण को लेकर मानवता को शर्मसार करनेवाली कितनी ओछी राजनीति होती रही है। यह ‘आरक्षण’ खण्‍ड को पढ़ने से ज्ञात होता है। इस खण्‍ड में महेश प्रसाद अहिरवार ने लिखा है ‘पिछड़ों को आरक्षण मा. कांशीराम की देन’। राम सूरत भारद्वाज ने ‘पिछड़ों को आरक्षण : काका कालेलकर से मण्‍डल कमीशन तक’ की चर्चा की है। वहीं जवाहर लाल कौल ने ‘ओबीसी आरक्षण : एक विवेचन’ में शोधपरक विवेचना की है। ‘साक्षात्‍कार’ खण्‍ड में कांचा इलैया, राजेन्‍द्र यादव, मुद्राराक्षस, मस्‍तराम कपूर, चौथी राम यादव, डॉ. शम्‍सुल इस्‍लाम, असगर वजाहत, आयवन कोस्‍का, दिलीप मंडल और रमाशंकर आर्या के साक्षात्‍कार शामिल हैं। साक्षात्‍कार में कुछ महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न सभी लोगों से पूछे गये हैं। यहां प्रश्‍नों के दोहराव से बचना चाहिए था। ‘पुस्‍तक अंश’ खण्‍ड में रामेश्‍वर पवन की ‘द्विजवर्णीय नहीं हैं कायस्‍थ’, गणेश प्रसाद की ‘गरीबों का हमदर्द कर्पूरी ठाकुर’, संजीव खुदशाह की ‘आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग’ और अभय मौर्य के उपन्‍यास ‘त्रासदी’ के अंश हैं। ‘पुस्‍तक वार्त्‍ता’ खण्‍ड में आरएल चंदापुरी की पुस्‍तक ‘भारत में ब्राहमणराज और पिछड़ा वर्ग आन्‍दोलन’ तथा संजीव खुदशाह की ‘आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग’ की समीक्षा शामिल है।  
वर्त्‍तमान में दक्षिण और उत्‍तर भारत के कई राज्‍यों में पिछड़ों की सरकार है। यहां तक कि भाजपा नेता नरेंद्र मोदी पिछड़ी जाति का प्रमाण-पत्र लेने के बाद ही प्रधानमंत्री बन पाए। पर, इस अंक में पिछड़े वर्ग के एक भी नेता को शामिल नहीं किया गया है। इस विशेषांक के बहाने पिछड़े वर्ग की राजनीति करने वाले नेताओं का मुंह भी खुलवाना चाहिए था कि वे साम्‍प्रदायिकता, जातीय व धार्मिक कट्टरता के विरूद्ध सामाजिक परिवर्तन और पिछड़ों के अस्‍मिता, अस्‍तित्‍व व आत्‍मसम्‍मान के किस पाले में हैं? वैसे पिछड़े वर्ग पर साहित्‍य की अभी बहुत कमी है। बहरहाल विशेष प्रयास से युद्धरत आम आदमी का निकला यह विशेषांक हाथ में आते ही एक बार उलटने-पलटने और पढ़ने के लिए विवश कर देता है।
समीक्षक : अमलेश प्रसाद
पता : 204, डीए9, एनके हाउस, शकरपुर, लक्ष्‍मी नगर, दिल्‍ली- 92