Please take care for this point in corona period Dr. Bansode
Ignorant social reformers in Dalit society is more danger
दलित
समाज में अज्ञानी समाज सुधारकों से है ज्यादा खतरा
संजीव खुदशाह
आमतौर पर दो प्रकार के डॉक्टर होते हैं। पढ़े-लिखे एमबीबीएस डिग्री धारी डॉक्टर और अशिक्षित झोलाछाप डॉक्टर। मूर्ख या अज्ञानी के लिए यह दोनों डॉक्टर एक समान है। इन्हें इनमें अंतर ढूंढने की क्षमता नहीं होती है। लेकिन झोलाछाप डॉक्टर एक
मरीज के लिए खतरनाक होता है। सर्दी खांसी बुखार तक तो ठीक है। लेकिन किसी गंभीर बीमारी से इलाज कराना अक्सर जान को जोखिम में डालने जैसा होता है। बीमारी या तो बढ़ जाती है या मरीज की मौत हो जाती है।
ठीक
इसी प्रकार दलित समाज में दो प्रकार के समाज सुधारक या सामाजिक कार्यकर्ता होते
हैं। एक वे जिन्हें समाज उत्थान का ज्ञान हैं, अनुभव है, दृष्टि है, लक्ष्य है, तो
दूसरी ओर अज्ञानी समाज सुधारक/ सामाजिक कार्यकर्ता जिन्हें ना अनुभव है, ना
उन्होंने ठीक से पढ़ाई लिखाई की है, ना ही कुछ सीखना चाहते हैं।
झोलाछाप डॉक्टरों से अज्ञानी समाज सेवक, ज्यादा खतरनाक होता है। झोलाछाप डॉक्टर तो कुछ लोगों का जान को जोखिम में डालता है।
लेकिन यदि अज्ञानी समाज सेवक समाज का सिरमौर बन गया तो पूरे समाज का बेड़ा गर्क कर
सकता है। पूरे समाज को लक्ष्य से भटका सकता है। कई साल पीछे धकेल सकता है।
आइए इस प्रकार के समाज सेवकों को कुछ उदाहरणों से समझते हैं।
(1)
ऐसे ही एक समाज सेवक हैं जो डॉक्टर अंबेडकर के
भक्त हैं सफाई कामगार समाज से आते हैं और इसी समाज पर केन्द्रित अध्यक्ष पद धारण
किए हुए हैं। डॉक्टर अंबेडकर को मानते तो जरूर है। लेकिन डॉक्टर अंबेडकर की नहीं
मानते हैं। बात बात में जय भीम का नारा लगाते हैं। डॉक्टर अंबेडकर ने दलितों के
लिए दो बातें कही थी। पहला अपना गंदा पेशा छोड़ दो, दूसरा गंदी बस्ती या
शोषणकारी गांव से बाहर निकल जाओ। लेकिन यह महाराज रोज दलितों के लिए सफाई
कामगार की स्थाई नौकरी का ज्ञापन देते फिरते हैं। ठेका प्रथा का विरोध करते रहते
हैं। गंदे पेशे से मुक्ति तो दूर उस पेशे पर एकाधिकार की वकालत करते रहते हैं। ठीक
इसी प्रकार गंदी बस्तियों से मुक्ति के लिए भी महाशय विरोध करते हैं। ताकि उनकी
राजनीतिक रोटियां सिकती रहे। भले खुद बस्ती से बाहर निवास करते हों। लेकिन इस समाज
को एक जगह इकट्ठा रहने पर जोर डालते हैं। ताकि जातीय पहचान और घृणा बरकरार रहे। बस
अपनी बात को मनवाने के लिए बात बात पर जय भीम का नारा लगाते रहते हैं। मानो इनसे
बड़ा अंबेडकरवादी कोई नहीं। अब आप ही बताइए है ना ये समाज सुधारक जान के दुश्मन ?
(2) ऐसे ही एक और समाज सेवक की आपसे मुलाकात करवाता हूं। यह भाई साहब किसी ऊंचे पद से रिटायर हुए हैं। पद रहने के दौरान तो समाज की किसी व्यक्ति को पहचानते तक ना थे। अब जब बच्चे जवान हो गए शादी-ब्याह, सेटल करने का ख्याल सताने लगा। तो यह लगे समाज सेवा करने। बाबा साहब की एक दो किताबें आधी अधूरी पढ़ ली है। और लगे ज्ञान बांटने। बात बात में समाज को नीचा दिखाने, विरोधियों को ठिकाने लगाना, इनका मुख्य कार्य हो गया है। ऐसे लोग पद के पीछे ऐसे लपकते हैं। जैसे अंगूर के पीछे लोमड़ी लपकती है। समाज के मुखिया बन जाने के बाद देखिये इनके ठाठ बाट। चंदे का हिसाब ना देना, किसी बड़े नेता की लल्लू चप्पू करना, अपने बच्चों को स्थापित करना, इनका मुख्य उद्देश हो जाता है। अंबेडकरी होने के बावजूद ऐसे लोग मनुवादी होते हैं। अंबेडकर और बुध्द को कहीं ना कहीं चमत्कार, अलौकिकता से जोड़ते हैं। समाज को गुमराह करने में अपना अहम योगदान देते रहते हैं।
(3) आइए अब मैं एक ऐसे समाज सुधारक से आपका परिचय करवाता हूं। यह भाई साहब सरकारी सेवा से रिटायर हुए है। इनका मकसद है कि समाज गंदे जाति नाम छुटकारा पा जाए। इसके लिए वह नए जाति नाम सुझाते है। रात दिन उसी की माला जपते हैं। उन्हें लगता है कि समाज के जाति का नाम बदलने मात्र से करिश्माई परिवर्तन हो जाएगा। रात दिन सुदर्शन समाज सुदर्शन समाज की जाप करते हैं। कभी बांस कला की बात करते हैं, तो कभी टुकनी सुपा की बात करते हैं। यह पुश्तैनी व्यवसाय को लेकर इतना मोहित हैं। कि कई साल पीछे समाज को ढकने के लिए आमादा हैं। जिस कारण इन्हें सरकारी नौकरी मिली, समानता का अधिकार मिला, इससे इनको कोई वास्ता नहीं। समाज कैसे शिक्षित हो, आगे बढ़े, इससे उनको कोई मतलब नहीं। बस जाति नाम बदल जाए गंदे नामों से छुटकारा मिल जाए।
(4) अब मैं आपको ऐसे समाज सेवक से मुलाकात करवाता हूं जिनको यह मालूम है कि समाज सेवक करना है। लेकिन यह नहीं मालूम कि करना क्या है? इनको लगता है कि समाज के लोगो को इकट्ठा कर लो, बड़ा सम्मेलन कर लो, भीड़ दिखाकर पार्षद, विधायक आदि का टिकट हासिल कर लो। या किसी अनुसूचित जाति आयोग, सफाई कामगार आयोग में स्थान पा जाऊं। यही इनका मुख्य मकसद होता है। वैसा करने के लिए समाज का बेड़ा गर्क करने में लगे होते हैं। ऐसे लोगों को यह नहीं मालूम कि समाज सेवा और राजनीति एक अलग चीज है। यह समाज सेवा का नाम तो लेते हैं। लेकिन वे दरअसल राजनीति करते हैं। इसके कारण समाज भ्रमित रहता है।
तो समाज सेवा के एक्सपर्ट डॉक्टर कैसे बने ? आइए जानने की कोशिश करते हैं
पिछले
उदाहरणों से आप समझ गए होंगे कि समाज के झोलाछाप समाज सुधारक कितने खतरनाक होते
हैं। अब मैं संक्षिप्त में बताऊंगा कि यदि आप एक शिक्षित समाज सेवक बनना चाहते हैं
तो क्या करें।
i अपना
लक्ष्य प्लान करें। सबसे पहले समाज को क्या मदद देना चाहते हैं उसे तय करें।
लक्ष्य निर्धारित करें। यह मदद आर्थिक है या बौद्धिक है या समय की मदद है। किस
अवस्था को समाज की तरक्की आप समझते हैं यह भी निर्धारित करें। यदि आप अंबेडकरवादी
हैं तो विज्ञान और तर्क का साथ कभी ना छोड़े। चाहे समाज का विरोध आपको झेलना पड़े।
ii कुछ
वंचित जातियां कैसे तरक्की कर गई इसका अध्ययन करें। उन्होंने क्या त्याग किया ? कैसे शिक्षा पर खर्च किया ?
अंबेडकर के निर्देशों का पालन किस प्रकार किया ?
यह जानने की कोशिश करें ? इसके लिए आपको अध्ययन करना पड़ेगा।
iii पढ़ने
की प्रवृत्ति बढ़ाएं, अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ें। अंग्रेजी में किताब पढ़ने की
कोशिश करें। दलितों के लिए अंग्रेजी सीखना बहुत जरूरी है। यदि आप अंग्रेजी नहीं
जानते तो बहुत सारी चीजें आप नहीं समझ सकते।
iv अपने
उद्धारक और शोषणकर्ता में फर्क करना सीखें। यह भी बिना पढ़े नहीं सीख सकते हैं।
किताबे तो आपको पढ़नी होगी इसका कोई शॉर्टकट नहीं है।
v
सामाजिक कार्यकर्ता के लिए एक दृष्टि
होने बेहद जरूरी है। आपके पास एक वैज्ञानिक तर्कशील जिसे मै अंबेडकर वादी दृष्टि
कहता हूँ, बहुत जरूरी है। आप अंधविश्वास के पक्ष में रहना चाहते हैं या विज्ञान के
पक्ष में, तय कर लें। समाज को पीछे की ओर ले जाना चाहते हैं या आगे की ओर, यह तय
कर लें। समाज को लाभ देना चाहते हैं या खुद लाभ उठाना चाहते हैं। यह भी तय कर ले।
vi तय
करें आप राजनीति करना चाहते हैं या समाज सेवा दोनों में फर्क है।
vii जिन सिद्धांतों की आप बात करते हैं। उनका पालन आप पहले स्वयं करें। एक मिसाल कायम करें। तभी उन सिद्धांतों की बात आप करें।
कुछ
बातों का ध्यान अगर आप देंगे। तो लोग आपके साथ जुड़ेंगे और आप किसी लक्ष्य के साथ
आगे बढ़ पाएंगे। उन लोगों का जरूर साथ लें जो जानकार हैं, शिक्षित हैं, लक्ष्य को
समझते हैं।
याद
रखें अज्ञानी समाज सुधारक, समाज के लिए खासकर दलित और आदिवासी समाज के लिए मानव बम
की तरह है। आप एक शिक्षित समाज सुधारक बनने की मिसाल कायम करें। जागरूक करने के
लिए जरूरी नहीं है कि आप घर घर जाएं या कोई सम्मेलन करें। सोशल मीडिया के माध्यम
से भी आप समाज को जानकारी विश्लेषण और अपना पक्ष बता सकते हैं।
The Big lie of the century -hai preet jahan ki reet sada
सदी
का महाझूठ - है प्रीत जहां की रीत सदा
संजीव
खुदशाह
भारतीय
सिनेमा के कुछ गीतों ने समाज पर अमिट छाप छोड़ी है। कुछ गीतों ने तो लोगो का मार्ग
दर्शन भी किया है। इनमें कुछ गीत ऐसे भी रहे है जिन्होने समाज पर अमिट छाप तो
छोड़ी है लेकिन वे झूठ के पूलिंदे रहे है,
महज भावनाओं से भरे हुये, सच्चाई से कोशो दूर।
ऐसा ही एक गीत है “है प्रीत जहां की रीत सदा।“ इस गीत को फिल्म पूरब पश्चिम के लिए इंदिवर उर्फ श्यामलाल बाबू राय ने 1970 में लिखा था। प्राथमिक शालेय जीवन में यह गीत इन पंक्तियों के लेखक के मस्तिष्क पर गहरे तक प्रभावित किया था। वह महेन्द्र कपूर की आवाज में इस गीत को गया करते। उन्हे लगता था की इस गीत की लिखी बाते शब्दश: सही है। लेकिन जैसे जैसे लेखक बड़ा हुआ उसके अनुभव और ज्ञान में वृध्दि होती गई । सपनों की दुनिया के बजाय जीवन के सच्चाइयों का सामना होता गया। वैसे वैसे इस गीत के एक-एक लफ़्ज झूठे साबित होते गये। आज इसी गीत पर बात होगी। पहले आप गीत की पंक्तियोंको पूरा पढ ले ।
जब ज़ीरो
दिया मेरे भारत ने
भारत ने
मेरे भारत ने
दुनिया को
तब गिनती आयी
तारों की
भाषा भारत ने
दुनिया को पहले सिखलायी
देता ना
दशमलव भारत तो
यूँ चाँद पे
जाना मुश्किल था
धरती और
चाँद की दूरी का
अंदाज़ लगाना
मुश्किल था
सभ्यता जहाँ
पहले आयी
पहले जनमी
है जहाँ पे कला
अपना भारत
जो भारत है
जिसके पीछे
संसार चला
संसार चला
और आगे बढ़ा
ज्यूँ आगे
बढ़ा,
बढ़ता ही गया
भगवान करे
ये और बढ़े
बढ़ता ही रहे
और फूले-फले
मदनपुरी:
चुप क्यों हो गये?
और सुनाओ
स्थाई
है प्रीत
जहाँ की रीत सदा
मैं गीत
वहाँ के गाता हूँ
भारत का
रहने वाला हूँ
भारत की बात
सुनाता हूँ
अंतरा 1
काले-गोरे
का भेद नहीं
हर दिल से
हमारा नाता है
कुछ और न
आता हो हमको
हमें प्यार
निभाना आता है
जिसे मान
चुकी सारी दुनिया
मैं बात
वोही दोहराता हूँ
भारत का
रहने वाला हूँ
भारत की बात
सुनाता हूँ
अंतरा 2
जीते हो
किसीने देश तो क्या
हमने तो
दिलों को जीता है
जहाँ राम
अभी तक है नर में
नारी में
अभी तक सीता है
इतने पावन
हैं लोग जहाँ
मैं नित-नित
शीश झुकाता हूँ
भारत का
रहने वाला हूँ
भारत की बात
सुनाता हूँ
अंतरा 3
इतनी ममता
नदियों को भी
जहाँ माता
कहके बुलाते है
इतना आदर
इन्सान तो क्या
पत्थर भी
पूजे जातें है
इस धरती पे
मैंने जनम लिया
ये सोच के
मैं इतराता हूँ
भारत का
रहने वाला हूँ
भारत की बात
सुनाता हूँ
क्या सच
में भार ने जीरो दिया है?
(जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने
भारत ने
मेरे भारत ने)
आमतौर पर एक आम पढ़ा लिखा भारतीय यह मानता है कि भारत में शुन्य का अविष्कार हुआ। कुछ का कहना है कि पांचवी शताब्दी में भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने शुन्य का प्रयोग पहली बार किया था। यह मान्यता सिर्फ भारतीयों की है विश्व इससे कोई इत्तेफाक नही रखता। ये खुशफहमी भारत में कैसे घर कर गई यह एक अलग
विषय है। लेकिन शून्य का अविष्कार किसने किया और कब किया आज एक अंधकार की गर्त में छुपा हुआ है।ऐसी कथाएं प्रचलित है की पहली बार शून्य का अविष्कार
बाबिल इराक में हुआ दूसरी बार माया सभ्यता 1500 इपू के लोगो ने इसका अविष्कार
किया। ऐसी जानकारी मिलती है कि मेसोपोटामिया के सुमेरियन लेखको (3500 ई पू) स्तंभो
में अनुपस्थिति को निरूपित करने के लिए रिक्त स्थान का उपयोग किया था।
हाल
ही में अमेरिकी गणितज्ञ आमिर एक्जेल ने सबसे पुराना शून्य कंबोडिया में खोजा है।
उन्होने अपनी किताब (फाईउिग जीरो: ए मैथमेटिशियन ओडिसी टू अनकवर द ओरिजिन आफ नंबर
2015) में दावा करते है की सबसे पुराना शून्य भारत में नही बल्कि कम्बोडिया में
मिला।
यानि ताजा खोज से ये सिध्द होता है
कि जीरो की खोज भारत में नही हुई।
(दुनिया को तब गिनती आयी)
यह
एक बड़ा झूठ है विश्व की पुरानी से पुरानी सभ्यता सुमेरियन (3500 ई पू) में सिक्के
और बैकिंग प्रणाली के सबूत मिले है जो की बिना गिनती के सम्भव नही है।
तारों की भाषा भारत ने
दुनिया को
पहले सिखलायी
यदि
कवि का इशारा ज्योतिष विज्ञान से है तो यह एक धूर्त भाषा है। भारत में ज्योतिष
नक्षत्र के बहाने लोगो को ठगा जाता है।
यदि कवि का इशारा तारो की खोज से है तो
बता दे की अरस्तु के बाद गैलिलियों ने नक्षत्र और तारों के बारे में
वैज्ञानिक ढंग से बताया। और अपना दूरबीन यंत्र विकसित किया।
यह
कहना की तारो की भाषा भारत ने सिखलायी कोरी कपोल बाते है।
दशमलव
भारत ने दिया ?
इसका संबंध
शून्य के अविष्कार से है जिसकी चर्चा पहले की जा चुकी है।
दशमलव
से चांद की दूरी निकाली गई ?
ऐसा लगता
है कि कवि इन्दीवर का विज्ञान पक्ष काफी कमजोर रहा होगा। दूरी की गणना प्रकाश
वर्ष के सिध्दान्त के माध्यम से की गई है जिसका अविष्कार यूरोपियों ने किया
है।
क्या
सचमुच सभ्यता यहां पहले आई ?
यदि
कवि का इशारा सभ्यता यानि अच्छे चाल चलन से है तो आप इसका अंदाजा यहां के जेलों
में बंद धर्म गुरूओं से कर सकते है। यदि कवि का इशारा मानव सभ्यता से है तो
कार्बन डेटिंग के अनुसार सबसे पुरानी सम्यता सुमेर 3500 इसा पूर्व सम्यता को
माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता 2300 इ पू क माना जाता है।
क्या
कला का जन्म यहां पहली बार हुआ ?
कवि
किस कला का जन्म पहली बार हुआ ये नही बता रहे है। शायद उनका इतिहास बोध कमजोर रहा
होगा। जब सभ्यता में आप पीछे थे तो कला में आगे कैसे हो सकते है।
भारत
के पीछे संसार चला ?
आखिर किस
मामले में संसार भारत के पीछे चल रहा है। कवि बताने से परहेज कर रहे है। जबकि
ज्ञात इतिहास में भारत ही यूरोपिय देशो के पीछे पीछे चल रहा है । यदि अध्यात्म
में आगे चल रहा है तो प्राचीन काल से लेकर अब तक यहां के आध्यात्मीक गुरूओं के ऊपर
हत्या से लेकर रेप तक के आरोप क्यो लगे है।
स्थाई
है
प्रीत जहाँ की रीत सदा
मैं
गीत वहाँ के गाता हूँ
भारत
का रहने वाला हूँ
भारत
की बात सुनाता हूँ
mob linching india |
प्रश्न यह है क्या सच मुच प्रीत इस देश की रीत है? महामारी करोना लाकडाऊन जैसी स्थिति में कोरंटाईन में ब्राम्हण दलितों के हाथों का बना खाने खाने से इनकार कर रहे है। हजारों कन्या भ्रूण जन्म से पहले मार दी जाती है। बहुऐ दहेज की बली चढा दी जाती है। दलितों आदिवासियों पिछड़ा वर्ग और मुसलमानों की माब लिंचिंग आम बात है। क्या कवि इसी प्रीत की बात कर रहे है।
अंतरा
1
काले-गोरे का भेद नहीं
हर दिल से हमारा नाता है
कुछ और न आता हो हमको
हमें प्यार निभाना आता है
पहले
अंतरे को पढने के बाद ये प्रश्न उठता है कि क्या भारत में सचमुच कोई भेद भाव नही
है। जाति भेद, माब लिचिग, छुआ छूत के रहते हर दिल से नाता की बात करना आप जनता को
बेवकूफ बनाना है। ये बात तो सही है कि कुछ और आपको नही आता है। पर प्यार निभाना
भी नही आता है। जातिय और धार्मिक नफरत सिखाने वाले लोग कहते है कि हमे प्यार
निभाना आता है।
अंतरा
2
जीते
हो किसीने देश तो क्या
हमने
तो दिलों को जीता है
जहाँ
राम अभी तक है नर में
नारी
में अभी तक सीता है
इतने
पावन हैं लोग जहाँ
मैं
नित-नित शीश झुकाता हूँ
इस
अंतरे में भी सिवाय लफाजी के कुछ और नही है। ये बात तो सही है कि भारत ने किसी देश
को नही जीता है। लेकिन दिलो को जीतने वाली बात झूठी है। एकलव्य का अंगूठा काटने
वाले दिल को कैसे जीत सकते है। शूद्र (पिछडा
वर्ग) के संबूक का वध करने वाले राम पूरे देश का आदर्श कैसे हो सकते है। उसी
प्रकार अग्नि परिक्षा देने वाली सीता पूरे भारत की नारी की आदर्श नही हो सकती। अब
आप ही बताईये की जहां के लोग बात बात में नफरत, छुआ छूत, ऊंच नीच बरतते हो वह पावन
कैसे कहला सकते है। वह आज से नही प्रचीन काल से, धर्म ग्रन्थो में भी यही छुआ छूत
ऊच नीच नफरत भरी हुई है।
अंतरा
3
इतनी ममता नदियों को भी
जहाँ माता कहके बुलाते है
इतना आदर इन्सान तो क्या
पत्थर भी पूजे जातें है
ये
बात तो सही है यहां नदियों को माता कहा जाता है। लेकिन ममता की बात झूठी है पूरे
मल मूत्र, गंदगी, शव आदि इसी नदियों में बहाकर गंदगी फैलाई जाती है। माता तो यहां
गाय को भी कहा जाता है लेकिन सगी माता उपेक्षा का शिकार होकर वृध्दा आश्रम में
अंतिम समय बिताती है। यह बात तो सही है कि यहां पत्थर ही पूजे जाते है मनुष्य को
आदर तो क्या स्पर्श के योग्य भी नही समझा जाता है।
Suspense of Corona & lockdown Dr k b bansode
करोना और लॉकडाउन का रहस्य है ।
(एक सप्ताह तो क्या एक साल का लॉक डाउन करके देख लो .....जब भी जांच करोगे , 70 % केस पोसिटिव निकलेंगे ।)
लॉक डाउन किसी समस्या का समाधान नही है ।
शिक्षा को भी बर्बाद किया जा रहा है ।
Yougbodh prakashan against reservations
प्रति,
माननीया श्रीमती अनसुईया उईके जी
राज्यपाल, छ.ग.शासन रायपुर
माननीय भूपेश बघेल जी
मुख्यमंत्री, छ.ग.शासन
माननीय प्रेमसाय सिंह टेकाम जी
मंत्री,आदिम जाति कल्याण
एवं स्कूल शिक्षा विभाग
छ.ग.शासन
माननीय पुलिस अधीक्षक
जिला-रायपुर
विषय- युगबोध अग्रवाल प्रबोध एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड गीता नगर जी ई रोड रायपुर छत्तीसगढ़ द्वारा प्रकाशित प्रबोध हिंदी आधार कक्षा ग्यारहवीं हिंदी गाइड के समसामयिक निबंध विधा अंतर्गत आरक्षण समस्या है शीर्षक अंतर्गत विवादित अंश लिखने के कारण प्रकाशक मंडल एवं लेखक समूह पर दंडात्मक कार्यवाही करने बाबत।
महोदय,
युगबोध अग्रवाल प्रबोध एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड गीता नगर जी ई रोड रायपुर छत्तीसगढ़ द्वारा प्रकाशित प्रबोध हिंदी आधार कक्षा ग्यारहवीं हिंदी गाइड के समसामयिक निबंध विधा अंतर्गत आरक्षण जो कि संवैधानिक प्रावधान है के विरूद्ध में असंवैधानिक लेख लिखा गया है । निबंध का शीर्षक आरक्षण की समस्या पृष्ठ क्रमांक 47-48 में वर्णित है।
इस लेख में संविधान निर्माता डाक्टर भीमराव अंबेडकर को पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण करने की व्यवस्था करने वाला बताया गया है । अनुसूचित जाति के लिए नहीं लिखा । इससे डा.आंबेडकर के प्रति गलत धारणा बच्चों के मन में आ रही है ।
निबंध के पैरा 2 में आरक्षण क्यों ? का उल्लेख किया गया है जिसमें उन्होंने लिखा है । यह प्रणाली अपने आप में समाज विरोधी है । किसी एक वर्ग को किसी भी नाम पर सुविधा पाते देखकर शेष समाज में ईष्र्या,द्वेष और प्रति हिंसा का वातावरण फैलता है । इसलिए आरक्षण मूलतः गलत है। इस तरह से प्रतिनिधित्व के अधिकार के विरोध में असंवैधानिक लेख किया गया है।
पैरा 3 में भारत में आरक्षण टापिक के अंतर्गत उन्होंने लिखा है -यहां एक और सवर्ण जातियों का दबदबा है,तो दूसरी ओर हरिजन अछूत मौलिक अधिकारों से वंचित हैं।यहां कुछ जातियां शासन पर सदा कब्जा जमाए रखती हैं तो निम्न जातियों को वोट भी नहीं डालने दिया जाता यहां अनेक जनजातियां ऐसी हैं जो जंगली जीवन जी रहे हैं।इस तरह से अनुसूचित जनजातियों को जंगली जीवन जीने वाला उल्लेखित किया गया।ईस पैरा मे अनुसूचित जाति के लिए असंवैधानिक शब्द हरिजन का उपयोग किया गया है।प्रकाशक की उक्त कृत्यो से अनुसूचित जाति वर्ग अपमानित महसूस कर रहा है।यह कृत्य अनुसूचित जाति,जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के अधिनियम के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आता है।
पैरा 4 में इन्होंने भ्रामक तथ्यों का उल्लेख किया है उन्होंने कहा है कि आरक्षण केवल 10 वर्षों के लिए था जो खींचते-खींचते 40 वर्ष लंबी हो गई परिणाम ढाक के वही तीन पात!इससे सुविधा पाकर आरक्षित समुदाय और अधिक लापरवाह और गैर जिम्मेदार हो गया और अकुशल सरकारी कर्मचारी की संध्या बढ़ती गई । इस तरह से इस लेख के माध्यम से इन्होंने आरक्षित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को और अकुशल और लापरवाह तथा गैर जिम्मेदार कह कर अपमानित किया है । इन्होंने मंडल आयोग की व्याख्या करते हुए लिखा है।यथा अगस्त सन् 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी चैधरी देवीलाल को धूल चटाने के लिए हथियार के रूप में प्रयोग किया । इस तरह से इन्होंने देश के प्रतिष्ठित व्यक्ति प्रधानमंत्री के विरुद्ध में अशोभनीय टिप्पणी की है । जिससे माननीय पूर्व प्रधानमंत्री श्री वी पी सिंह की प्रतिष्ठा में आघात हुई है,उनकी छवि धूमिल हुई है । जो कि भारतीय दंड विधान के तहत दंडनीय है। किसी भी प्रतिष्ठित व्यक्ति राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की छवि को धूमिल करना दंडनीय होता है। इस तरह से इन्होंने अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दंडनीय कार्य किया है । प्रतिष्ठित व्यक्ति की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए लेख करने का आरोप सिद्ध हो रहा है।जो कि आपराधिक सत्य है। भारतीय संविधान मे राजनैतिक आरक्षण केवल 10 वर्षो के लिए था।जिसे समय समय पर भारत सरकार लोकसभा व राज्यसभा मे संविधान संशोधन लाकर बढ़ाती आ रही है।अभी हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा राजनिति मे आरक्षण को 10 वर्ष के लिए बढ़ाया गया है।मूलतः आरक्षण प्रतिनिधित्व है जो लोक नियोजन,शैक्षणिक संस्थान व विभिन्न योजनाओ में अनुसूचित जाति,जनजाति व पिछड़ा वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करती है।यह कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नही बल्कि यह प्रतिनिधित्व का संवैधानिक अधिकार है। प्रकाशक के उक्त कृत्य से भारतीय संविधान का अपमान हुआ है।
उपरोक्त तथ्यो के आधार पर प्रबोध हिंदी आधार कक्षा ग्यारहवीं हिंदी गाइड के समसामयिक निबंध विधा अंतर्गत आरक्षण की समस्या एक विवादित अंश है।प्रकाशक द्वारा ईस प्रकार का कृत्य से समाज मे आरक्षण के प्रति भ्रामक व गलत संदेश जा रहा है।प्रकाशक द्वारा की गई गलती अक्षम्य है।उक्त विवादित अंश को तत्काल हटाया जाए।यदि उक्त अंश को हटाया नही जाता है तो देश भर के अनुसूचित जाति,जनजाति व पिछड़ा वर्ग उस पुस्तक की प्रतियां जलाने पर मजबूर होंगे।यदि कोई अप्रिय घटना घटती है तो ईसका जवाबदेह प्रकाशक मंडल की होगी।
अतः युगबोध अग्रवाल प्रकाशक प्रबोध एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड गीतानगर रायपुर तथा लेखक मंडल श्री डीके तिवारी ,श्रीमती रंजना द्विवेदी,डा.कुसुम त्रिपाठी,श्रीमती श्रद्धा तिवारी एवं श्री हरि नारायण पांडे के विरुद्ध अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज कर गिरफ्तार करने की कार्रवाई की जाए।
भवदीय
सोशल जस्टिस एंड लीगल फाउंडेशन