भारतीय जाति व्यवस्था पर एक विमर्श

पुस्तक समीक्षा
हरिभूमि रविवार ३ जनवरी २०१० रविवार भूमि

भारतीय जाति व्यवस्था पर एक विमर्श
·        विज्ञान भूषण

हाल मे ही प्रकाशित हुई पुस्तक 'आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग(पूर्वाग्रह, मिथक एवं वास्तविकताएं)` में पिछड़ा वर्ग की उत्पत्ति, समयानुसार उसके स्वरूप में हुए परिवर्तनों ओर उनकी वर्तमान स्थिति के वर्णन के बहाने भारतीय जाति-व्यवस्था पर भी अनेक दृष्टिकोणों से प्रकाश डाला गया है। विभिन्न मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथो के उध्दरणों की सहायता स लेखक संजीव खुदशाह ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि वास्तव में पिछड़ा वर्ग का जन्म भारतीय वर्ण व्यवस्था में कब और किन परिस्थितियों में हुआ? तत्कालीन समाज में उनकी भुमिका और दशा का प्रामाणिक वर्णन की स्थितियों पर भी गहन विमर्श प्रस्तुत किया है। सामाजिक समरसता और समभाव के पक्षधर जागरूक बुध्दिजीवियों व्दारा पिछड़े वर्ग के लोगो को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए किए गए प्रयत्नों का भी विस्तार से वर्णन किया गया है।

विदेशों में आरक्षण की स्थितियों, काका कालेलकर आयोग और मंडल आयोग की रिपोर्ट पर भी विस्तृत चर्चा की गई है। इसके साथ ही लेखक ने इस वर्ग के पिछड़ेपन के कारणों को भी उजागर  करने का प्रयास किया है।

निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से समाज के निचले तबके में जीवन व्यतीत करने वालों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की विस्तृत जानकारी को प्रामाणिक आंकड़ो के साथ प्रस्तुत किया है।

यह पुस्तक समाज में पिछड़े वर्ग की वास्तविक स्थिति को स्पष्ट करने की मांग भी करती है, क्योंकि 'सवर्ण न होने का क्षोभ और अस्पृश्य न होने का गुमान` जैसी मन:स्थिति में इस वर्ग के लोग सदियों से जीते चले आ रहे है। कहना चाहिए, यह पुस्तक भारतीय जाति व्यवस्था को नए संदर्भो और जरूरतों के अनुसार पुननिर्मित करने के लिए विचारकों को प्रेरित भी करती है।

पुस्तक का नाम  आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग
(पूर्वाग्रह, मिथक एवं वास्तविकताएं)
लेखक      -संजीव खुदशाह
ISBN    -९७८८१८९९३७८
मूल्य      -  २००.०० रू.
संस्करण  - २०१० पृष्ठ-१४२
प्रकाशक   -  शिल्पायन १०२९५, लेन नं.१
वैस्ट गोरखपार्क, शाहदरा,
दिल्ली -११००३२  फोन-०११-२२८२११७४

पुस्तक 'आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग` का लोकार्पण



पिछड़ा वर्ग के पास कोई फिलास्फर नहीं है : राजेन्द्र यादव
आज दिनांक ०९/०१/२०१० को साहित्य अकादेमी सभागार में रमणिका फाउंडेशन एवं शिल्पायन प्रकाशन द्वारा आयोजित लोकार्पण समारोह में संजीव खुदशाह द्वारा लिखित पुस्तक 'आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग` का लोकार्पण वरिष्ठ साहित्यकार एवं 'हंस` पत्रिका के संपादक श्री राजेन्द्र यादव ने किया। मुख्य अतिथि श्री राजेन्द्र यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि चार पांच ऐसी जातियां हैं जो कि न दलित हैं न पिछड़ी हैं। जिन्हें त्रिशंकु जातियां भी कह सकते हैं। इन जातियों के पास कोई फिलोस्फर नहीं है, जबकि दलितों के पास डॉ. अम्बेडकर तथा फूले हैं। उन्होंने आगे कहा कि जातिवाद की जड़ता परिवार में निहित है। भारतीय समाज का पारिवारिक ढांचा इतना मजबूत है कि टूटता ही नहीं है। व्यक्तिगत स्तर पर हम लोग जो भी क्रांतिकारी चर्चा कर लें, लेकिन परिवार को हम बदल नहीं सकते। इसलिए हम परिवार से कटे लोग हैं। समाज के परिवर्तन के लिए परिवार की सोच में परिवर्तन लाना होगा। उन्होंने विश्लेषणात्मक शोधात्मक एवं वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित पुस्तक की भूरि-भूरि प्रशंसा की। 


 कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री एवं युद्धरत आम आदमी की सम्पादक सुश्री रमणिका गुप्ता ने अपने विचार रखते हुए कहा कि ये सुखद बात है कि आधुनिक भारत में पिछड़े वर्ग की जांच पड़ताल लेखक संजीव खुदशाह ने अंबेडकरवादी दृष्टिकोण से की है। विडंबना ये है कि हमारा पढ़ा-लिखा समाज भी आज तक अपनी जाति नहीं छोड़ पाया है, तो हम अनपढ़ समाज से इसकी उम्मीद कैसे कर सकते हैं, जो सदियों से जाति की गुलामी को ढोता आ रहा है। समाजशास्त्रा के इस विषय पर ये पुस्तक लिखकर श्री संजीव खुदशाह ने गंभीर बहस का एक अच्छा मौका दिया है।

कार्यक्रम के आरंभ में पुस्तक पर समीक्षात्मक आलेख का पाठ श्री रमेश प्रजापति ने किया। तदोपरांत वरिष्ठ आलोचक एवं समाज सेवी श्री मस्तराम कपूर ने अपने वक्तव्य में कहा पिछड़े वर्ग की समस्या पर चर्चा करने से पूर्व पिछड़ा वर्ग को परिभाषित करना आवश्यक है। जातीय आधार पर जनगणना कराने से इनकी वास्तविक  स्थिति  का ज्ञान हो सकता है, लेकिन नेहरू ने इसे होने नहीं दिया। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ आलोचक श्री मैनेजर पाण्डेय ने अपने वक्तव्य में कहा जातिवाद देश के अतीत से भी जुड़ा है और देश के भविष्य से भी। उन्होंने लेखक से तथा उपस्थित सभी साहित्यकारों से आह्न किया कि जाति-व्यवस्था का केवल विश्लेषण न कर वे जाति व्यवस्था के विरोध में हुए आंदोलनों का जिक्र करते हुए, जाति-व्यवस्था के विरोध में लिखें। पुस्तक के लेखक संजीव खुदशाह ने अपने लेखकीय वक्तव्य में कहा कि ऐसा नहीं कि पिछड़े वर्ग के पास फिलोस्फर नहीं थे। फुले एवं पेरियार पिछड़ी जाति के लेखक थे लेकिन पिछड़ों ने उन्हें न मानकर दलितों ने माना। कार्यक्रम का संचालन रमणिका फाउंडेशन के मीडिया प्रभारी श्री सुधीर सागर द्वारा किया गया।
 

प्रस्तुति : सुधीर सागर
मीडिया प्रभारी, रमणिका फाउंडेशन
ए-२२१, ग्राउंड फ्लोर, डिफेंस कॉलोनी, नई दिल्ली-२४