आधी आबादी नहीं हूं मैं
Kidney can't recover through bricks
ईट के सहारे किडनी फैलियर का इलाज नहीं किया जा सकता | यह टोटकेबाजी है ।
The arrest of Mr. Nandkumar Baghel periyar of Chhattisgarh's is unconstitutional.
छत्तीसगढ के पेरियार श्री नंदकुमार बघेल की गिरफ्तारी असंवैधानिक
नंदकुमार बघेल की आज गिरफ्तारी हो गई। गौरतलब है कि पिछले दिनों नंदकुमार बघेल ने यूपी में एक स्टेटमेंट दिया था जिसे ब्राम्हण विरोधी कहा जा रहा है। इसी मामले पर एक ब्राम्हण गुट के शिकायत पर उनकी गिरफ्तारी की गई।
Why Dr. Radhakrishnan's birthday as Teacher's Day?
डा. राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में क्यों?
यह सवाल हैरान करने वाला है कि डा. राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में क्यों मान्यता दी गई? उनकी किस विशेषता के आधार पर उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस घोषित किया गया? क्या सोचकर उस समय की कांग्रेस सरकार ने राधाकृष्णन का महिमा-मंडन एक शिक्षक के रूप में किया, जबकि वह कूप-मंडूक विचारों के घोर जातिवादी थे? भारत में शिक्षा के विकास में उनका कोई योगदान नहीं थाI अलबत्ता 1948 में उन्हें विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का अध्यक्ष जरूर बनाया गया था, जिसकी अधिकांश सिफारिशें दकियानूसी और देश को पीछे ले जाने वाली थींI नारी-शिक्षा के बारे में उनकी सिफारिश थी कि ‘स्त्री और पुरुष समान ही होते हैं, पर उनका कार्य-क्षेत्र भिन्न होता हैI अत: स्त्री शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि वह सुमाता और सुगृहिणी बन सकेंI’[1] इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह किस स्तर के शिक्षक रहे होंगे?
Journalism University, the laboratory of Godse's thoughts
Know the difference between your exploiter and your savior
डोमार जाति का कभी गौरवशाली इतिहास रहा है और आर्यो के आने के पहले वह इस देश के शासक थे। लेकिन इन्होंने डोमारो का दमन किया और मैला प्रथा से जोड़ दिया। हमें फिर इस देश का शासक बनना है।
Who is jhola chap Doctors?
कौन है झोलाछाप डॉक्टर ?
डॉक्टर के बी बनसोडे
पिछले दिनों में बीजेपी सरकार ने आयुर्वेदिक चिकित्सकों को सीधे एलोपैथी पोस्ट ग्रेजुएशन कराने की तथा उसके बाद उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सकों को भी विभिन्न प्रकार की सर्जरी करने की अनुमति दिये जाने की बात की थी ।
जिसके अनुसार आयर्वेदिक चिकित्सक भी कई प्रकार की आंख , नाक , कान , गले के अलावा अनेक प्रकार की जनरल सर्जरी की ट्रेनिग देकर उन्हें लाइसेंस देने को कहा था ।
इस मुद्दे के खिलाफ देश भर के एलोपैथी चिकित्सक तथा उनकी संस्था आईएमए ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया था ।
उनके अनुसार कोई स्पेशलिस्ट ENT , Ophthalmic या General Surgeon बनाने के लिये पहले MBBS की पढ़ाई करवाई जाती है । जिसमें विद्यार्थी को विशेषज्ञ बनने के पहले सभी विषयों का ज्ञान गहराई से पढ़ाया जाता है ।
वैसी शिक्षा आयुर्वेद में नही पढ़ाई या सिखाई जाती है ।
इसके अलावा एलोपैथी का भी कोई एक विशेषज्ञ किसी भी अन्य फील्ड में काम नही कर सकता है । क्योकि उसकी विशेषज्ञता अलग क्षेत्र में है । जैसे कि कोई हड्डी रोग विशेषज्ञ नेत्र रोग विशेषज्ञ का काम नही कर सकता है ।
उसी तरह कोई महिला रोग विशेषज्ञ ENT का काम नही कर सकता है ..... इसी तरह सभी विषय के विशेषज्ञ का अपना फील्ड होता है ।
अब यदि आयुर्वेदिक चिकित्सक को ट्रेनिग देकर भी सर्जरी करवाना है , तो उसके लिये उसे उसके शुरुवात से आयुर्वेदिक विषयों को छोड़ना पड़ेगा । जैसे उनका फार्मेकोलॉजी , पैथोलॉजी वगैरह को त्यागना पड़ेगा ।
और तब वह एलोपैथी के अनुसार सभी विषयों को पढ़कर तथा सीखकर ही विशेषज्ञ बन सकता है ।
*अब सरकार अपनी समझदारी या अज्ञानता का परिचय ना देकर इस जरूरी मापदंड को खारिज करके किसी को भी विशेषज्ञ बनाने की जिद को छोड़ देना ही सही होगा , अन्यथा यह कोशिश वास्तव में जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना है ।*
फिलहाल तो वह मुद्दा अभी कोरोना के बाद से ठंडे बस्ते में है ।
अब आप झोला छाप चिकित्सकों को मान्यता देने की बात करते हैं , तो फिर झाड़फूंक वाले बाबाओं , बैगा गुनिया , तांत्रिक बाबा , हस्तरेखा विशेषज्ञ , तथा ग्रह दशा शांत करने वालों शनिदेव को शांत करने वाले लोगों तथा वास्तु शास्त्र के लोगों को भी फ्रंट लाईन वर्कर का दर्जा क्यों नही दे देना चाहिये ?? आखिरकार वह भी तो जनता की तकलीफ के उपचार में ही हजारों सालों से निर्बाध अपना काम करके जनता को उनके कष्ट से *??* राहत पहुंचाते ही हैं ।
गोबर तथा गोमूत्र से उपचार करने वालों को भी कोरोना से बचाने वाले फ्रंट लाईन वारियर कहने में क्या समस्या है ??
आजकल सोशल मीडिया में भी अनेक लोग विभिन्न प्रकार के उपचार से लोगों का ज्ञानवर्धन कर रहे है , तो उन्हें भी फ्रंट लाईन वारियर का खिताब मिलना ही चाहिये ???
*अब देश को आधुनिकता की बुराइयों से बचाकर वापस 5000 साल पीछे ले जाने वाले सभी बातों का समर्थन हमें क्यों नही करना चाहिये ??*
अवश्य करना चाहिये ।
वैसे भी शहरी लोग , आधुनिक लोग पश्चिमी सभ्यता वाले लोग तो केवल हम सब भारतीय तथा पवित्र लोगों को बर्बाद कर रहे हैं । तो इसलिये फिर हमे वापस जंगली जीवन , शिकारी जीवन को सही मान लेना ही बुद्धिमानी है ।
कृषि में भी आधुनिक विज्ञान का सहारा लेना बंद करना चाहिये ।
देशभर के सभी लोगों को मोटरसाइकिल कार , मोबाईल वगैरह आधुनिक विज्ञान द्वारा निर्मित सब आविष्कारों का प्रयोग करना बन्द करना चाहिये ।
सभी बड़े अस्पताल जिसमें आधुनिक ईलाज होता है , उन्हें बन्द कर देना चाहिये ।
*और सबसे बड़ी बात आधुनिक युग की पढ़ाई लिखाई( शिक्षा ) भी खत्म किया जाना चाहिये ।*
सभी फैक्ट्रियों को तत्काल बन्द करना चाहिये ।जिसमे कपड़े वगैरह समस्त आधुनिक वस्तुओं का उत्पादन होता है तथा जिसका हम रोजमर्रा के जीवन में लगातार उपयोग करते हैं ।
दरअसल कुछ लोग अपने अधूरे ज्ञान को जस्टिफाई करना चाहते हैं । इसलिये अपने देश की जनता को सबसे अच्छा ज्ञान ( शिक्षा ) देने के विरोध में अज्ञानता को सही साबित करने में लगे रहते हैं ।
इसी सिलसिले में हमे इसे देखना होगा ।
झोलाछाप चिकित्सक कोई कैसे बनता है ??
कोई एक कम पढ़ा लिखा व्यक्ति , जो किसी मेडिकल शॉप में काम करते करते तथा , किसी अन्य चिकित्सक के साथ काम करते करते उसे कुछ दवाओं के बार में कुछ ज्ञान हासिल कर लेता है या उसको दवाओं की कुछ सामान्य जानकारी मिल जाती है कि , किस तरह की तकलीफ (लक्षण) में कौन सी दवा काम करती है ।
एक दो इंजेक्शन की जानकारी लेकर वह लोगों का इलाज शुरू कर देता है ।
जब ऐसे आधे - अधूरे या कम जानकार व्यक्ति के ईलाज से कुछ लोगों को छोटी मोटी बीमारियों में आराम मिल जाता है , तो आम जनता उसे चिकित्सक मान लेती है । जनता को भी उसके बेहद अल्प ज्ञान से ही जब राहत मिल जाती है , तो वह दूर शहर के किसी बड़े चिकित्सक के पास जाकर अपना समय तथा पैसा बचाने में ही अपनी समझदारी समझता है ।
इस तरह के झोला छाप चिकित्सकों को सरकार वैसे तो कोई मान्यता नही देती है , लेकिन अघोषित तौर पर इनका कारोबार अत्यंत व्यवस्थित रूप से फल फूल रहा है । इन झोला छाप चिकित्सकों के कारण बड़े बड़े कॉरपोरेट अस्पताल भी अपनी कमाई में इजाफा करते है । इसलिये वे भी उन्हें एक प्रकार से प्रश्रय ही देते हैं ।
अब यदि हम इस समस्या के निदान की बात भी कर लें तो बेहतर होगा ।
झोलाछाप चिकित्सक यदि कहें कि ग्रामीण जन जीवन के अच्छे मित्र हैं , और इसलिये वे आराम से कार्यरत रहते भी हैं ।
आम जनता को सरकार से कोई सहूलियत भी नही मिलती , तो वे झोलाछाप चिकित्सकों के शरणागत होने को मजबूर भी हैं ।
भारत की सरकार ने आजादी के बाद से अब तक गांव गांव में शिक्षा , स्वास्थ्य एवम अन्य समस्त मूलभूत सुविधा प्रदान करने में असफल रही है ।
कहने को मिनी पीएचसी , सीएचसी एवम जिला अस्पताल खोले हुवे है , लेकिन उसमें से अधिकांश जगहों पर ना चिकित्सक हैं और ना पैरामेडिकल स्टॉफ और ना दवाइयाँ या एडमिशन की सहूलियत ।
ऐसी स्तिथि में झोलाछाप ही ग्रामीण जनता के लिये मददगार है ।
अब यदि इस सिस्टम को ठीक करना है , तो सरकार को फिलहाल एक काम करना चाहिये । वह ये कि जितने भी झोलाछाप चिकित्सक हैं , उनकी पहचान करके उन्हें पहली बार , लगभग एक साल की ट्रेनिग देकर , कुछ निश्चित बीमरियों के उपचार के लिये लाइसेंस दे देना चाहिये । फिर कुछ निश्चित दवाओं का किट उपलब्ध करवाना चाहिये एवम उनकी सेलरी निर्धारित करके ग्रामपंचायत से दिलवाई जानी चाहिये ।
हालाकि सरकार ने आशा दीदी इत्यादि को इसके लिये नियुक्त किया है , लेकिन उतना ही पर्याप्त नही है ।
प्रत्येक झोलाछाप चिकित्सक को उसके बाद प्रतिवर्ष 15 दिनों की ट्रेनिंग देना चाहिये , जिससे वह समय समय पर अपडेट होते रहें ।
सरकार सबको सही एवम वैज्ञानिक शिक्षा पद्धति से शिक्षित करने के लिये मुफ्त शिक्षा दे । सभी प्राइवेट शिक्षा संस्थान बन्द किये जाने चाहिये , तथा सभी जगह एक तरह की शिक्षा दी जानी चाहिये । स्टेट बोर्ड , या केंद्रीय बोर्ड ( (ICSE &CBSE) वगैरह बन्द करके समान शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिये । कुछ राज्य अपनी मातृभाषा में शिक्षा देना चाहते हैं , तो उसके लिये यह सुविधा गई जानी चाहिये । शिक्षा हासिल करने का मकसद ज्ञान हासिल करना होना चाहिये , ना की डिग्रीधारी बनकर केवल नौकरी हासिल करने की मानसिकता से बच्चों को तथा जनता को मुक्त किया जाना चाहिये ।
सबको रोजगार प्रदान करने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिये ।
यही सब समानता चूंकि विकसित देशों में लगभग 150 साल पहले ही अपना ली थी , जिनके चलते आज वे विकसित समाज हैं । और हम अभी भी अविकसित समाज और दुनिया के पिछड़े तथा गरीब देश में एक देश है ।
इसमें भी हमें अपनी अज्ञानता पर गर्व करना छोड़कर वास्तविक उन्नति की दिशा में अपनी सोच विकसित करना जरूरी है ।
धन्यवाद ।
May Bhangi hu by Bhagwan Das
''मैं भंगी हूं '' आज भी प्रासंगिक
Please take care for this point in corona period Dr. Bansode
Ignorant social reformers in Dalit society is more danger
दलित
समाज में अज्ञानी समाज सुधारकों से है ज्यादा खतरा
संजीव खुदशाह
आमतौर पर दो प्रकार के डॉक्टर होते हैं। पढ़े-लिखे एमबीबीएस डिग्री धारी डॉक्टर और अशिक्षित झोलाछाप डॉक्टर। मूर्ख या अज्ञानी के लिए यह दोनों डॉक्टर एक समान है। इन्हें इनमें अंतर ढूंढने की क्षमता नहीं होती है। लेकिन झोलाछाप डॉक्टर एक
मरीज के लिए खतरनाक होता है। सर्दी खांसी बुखार तक तो ठीक है। लेकिन किसी गंभीर बीमारी से इलाज कराना अक्सर जान को जोखिम में डालने जैसा होता है। बीमारी या तो बढ़ जाती है या मरीज की मौत हो जाती है।
ठीक
इसी प्रकार दलित समाज में दो प्रकार के समाज सुधारक या सामाजिक कार्यकर्ता होते
हैं। एक वे जिन्हें समाज उत्थान का ज्ञान हैं, अनुभव है, दृष्टि है, लक्ष्य है, तो
दूसरी ओर अज्ञानी समाज सुधारक/ सामाजिक कार्यकर्ता जिन्हें ना अनुभव है, ना
उन्होंने ठीक से पढ़ाई लिखाई की है, ना ही कुछ सीखना चाहते हैं।
झोलाछाप डॉक्टरों से अज्ञानी समाज सेवक, ज्यादा खतरनाक होता है। झोलाछाप डॉक्टर तो कुछ लोगों का जान को जोखिम में डालता है।
लेकिन यदि अज्ञानी समाज सेवक समाज का सिरमौर बन गया तो पूरे समाज का बेड़ा गर्क कर
सकता है। पूरे समाज को लक्ष्य से भटका सकता है। कई साल पीछे धकेल सकता है।
आइए इस प्रकार के समाज सेवकों को कुछ उदाहरणों से समझते हैं।
(1)
ऐसे ही एक समाज सेवक हैं जो डॉक्टर अंबेडकर के
भक्त हैं सफाई कामगार समाज से आते हैं और इसी समाज पर केन्द्रित अध्यक्ष पद धारण
किए हुए हैं। डॉक्टर अंबेडकर को मानते तो जरूर है। लेकिन डॉक्टर अंबेडकर की नहीं
मानते हैं। बात बात में जय भीम का नारा लगाते हैं। डॉक्टर अंबेडकर ने दलितों के
लिए दो बातें कही थी। पहला अपना गंदा पेशा छोड़ दो, दूसरा गंदी बस्ती या
शोषणकारी गांव से बाहर निकल जाओ। लेकिन यह महाराज रोज दलितों के लिए सफाई
कामगार की स्थाई नौकरी का ज्ञापन देते फिरते हैं। ठेका प्रथा का विरोध करते रहते
हैं। गंदे पेशे से मुक्ति तो दूर उस पेशे पर एकाधिकार की वकालत करते रहते हैं। ठीक
इसी प्रकार गंदी बस्तियों से मुक्ति के लिए भी महाशय विरोध करते हैं। ताकि उनकी
राजनीतिक रोटियां सिकती रहे। भले खुद बस्ती से बाहर निवास करते हों। लेकिन इस समाज
को एक जगह इकट्ठा रहने पर जोर डालते हैं। ताकि जातीय पहचान और घृणा बरकरार रहे। बस
अपनी बात को मनवाने के लिए बात बात पर जय भीम का नारा लगाते रहते हैं। मानो इनसे
बड़ा अंबेडकरवादी कोई नहीं। अब आप ही बताइए है ना ये समाज सुधारक जान के दुश्मन ?
(2) ऐसे ही एक और समाज सेवक की आपसे मुलाकात करवाता हूं। यह भाई साहब किसी ऊंचे पद से रिटायर हुए हैं। पद रहने के दौरान तो समाज की किसी व्यक्ति को पहचानते तक ना थे। अब जब बच्चे जवान हो गए शादी-ब्याह, सेटल करने का ख्याल सताने लगा। तो यह लगे समाज सेवा करने। बाबा साहब की एक दो किताबें आधी अधूरी पढ़ ली है। और लगे ज्ञान बांटने। बात बात में समाज को नीचा दिखाने, विरोधियों को ठिकाने लगाना, इनका मुख्य कार्य हो गया है। ऐसे लोग पद के पीछे ऐसे लपकते हैं। जैसे अंगूर के पीछे लोमड़ी लपकती है। समाज के मुखिया बन जाने के बाद देखिये इनके ठाठ बाट। चंदे का हिसाब ना देना, किसी बड़े नेता की लल्लू चप्पू करना, अपने बच्चों को स्थापित करना, इनका मुख्य उद्देश हो जाता है। अंबेडकरी होने के बावजूद ऐसे लोग मनुवादी होते हैं। अंबेडकर और बुध्द को कहीं ना कहीं चमत्कार, अलौकिकता से जोड़ते हैं। समाज को गुमराह करने में अपना अहम योगदान देते रहते हैं।
(3) आइए अब मैं एक ऐसे समाज सुधारक से आपका परिचय करवाता हूं। यह भाई साहब सरकारी सेवा से रिटायर हुए है। इनका मकसद है कि समाज गंदे जाति नाम छुटकारा पा जाए। इसके लिए वह नए जाति नाम सुझाते है। रात दिन उसी की माला जपते हैं। उन्हें लगता है कि समाज के जाति का नाम बदलने मात्र से करिश्माई परिवर्तन हो जाएगा। रात दिन सुदर्शन समाज सुदर्शन समाज की जाप करते हैं। कभी बांस कला की बात करते हैं, तो कभी टुकनी सुपा की बात करते हैं। यह पुश्तैनी व्यवसाय को लेकर इतना मोहित हैं। कि कई साल पीछे समाज को ढकने के लिए आमादा हैं। जिस कारण इन्हें सरकारी नौकरी मिली, समानता का अधिकार मिला, इससे इनको कोई वास्ता नहीं। समाज कैसे शिक्षित हो, आगे बढ़े, इससे उनको कोई मतलब नहीं। बस जाति नाम बदल जाए गंदे नामों से छुटकारा मिल जाए।
(4) अब मैं आपको ऐसे समाज सेवक से मुलाकात करवाता हूं जिनको यह मालूम है कि समाज सेवक करना है। लेकिन यह नहीं मालूम कि करना क्या है? इनको लगता है कि समाज के लोगो को इकट्ठा कर लो, बड़ा सम्मेलन कर लो, भीड़ दिखाकर पार्षद, विधायक आदि का टिकट हासिल कर लो। या किसी अनुसूचित जाति आयोग, सफाई कामगार आयोग में स्थान पा जाऊं। यही इनका मुख्य मकसद होता है। वैसा करने के लिए समाज का बेड़ा गर्क करने में लगे होते हैं। ऐसे लोगों को यह नहीं मालूम कि समाज सेवा और राजनीति एक अलग चीज है। यह समाज सेवा का नाम तो लेते हैं। लेकिन वे दरअसल राजनीति करते हैं। इसके कारण समाज भ्रमित रहता है।
तो समाज सेवा के एक्सपर्ट डॉक्टर कैसे बने ? आइए जानने की कोशिश करते हैं
पिछले
उदाहरणों से आप समझ गए होंगे कि समाज के झोलाछाप समाज सुधारक कितने खतरनाक होते
हैं। अब मैं संक्षिप्त में बताऊंगा कि यदि आप एक शिक्षित समाज सेवक बनना चाहते हैं
तो क्या करें।
i अपना
लक्ष्य प्लान करें। सबसे पहले समाज को क्या मदद देना चाहते हैं उसे तय करें।
लक्ष्य निर्धारित करें। यह मदद आर्थिक है या बौद्धिक है या समय की मदद है। किस
अवस्था को समाज की तरक्की आप समझते हैं यह भी निर्धारित करें। यदि आप अंबेडकरवादी
हैं तो विज्ञान और तर्क का साथ कभी ना छोड़े। चाहे समाज का विरोध आपको झेलना पड़े।
ii कुछ
वंचित जातियां कैसे तरक्की कर गई इसका अध्ययन करें। उन्होंने क्या त्याग किया ? कैसे शिक्षा पर खर्च किया ?
अंबेडकर के निर्देशों का पालन किस प्रकार किया ?
यह जानने की कोशिश करें ? इसके लिए आपको अध्ययन करना पड़ेगा।
iii पढ़ने
की प्रवृत्ति बढ़ाएं, अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ें। अंग्रेजी में किताब पढ़ने की
कोशिश करें। दलितों के लिए अंग्रेजी सीखना बहुत जरूरी है। यदि आप अंग्रेजी नहीं
जानते तो बहुत सारी चीजें आप नहीं समझ सकते।
iv अपने
उद्धारक और शोषणकर्ता में फर्क करना सीखें। यह भी बिना पढ़े नहीं सीख सकते हैं।
किताबे तो आपको पढ़नी होगी इसका कोई शॉर्टकट नहीं है।
v
सामाजिक कार्यकर्ता के लिए एक दृष्टि
होने बेहद जरूरी है। आपके पास एक वैज्ञानिक तर्कशील जिसे मै अंबेडकर वादी दृष्टि
कहता हूँ, बहुत जरूरी है। आप अंधविश्वास के पक्ष में रहना चाहते हैं या विज्ञान के
पक्ष में, तय कर लें। समाज को पीछे की ओर ले जाना चाहते हैं या आगे की ओर, यह तय
कर लें। समाज को लाभ देना चाहते हैं या खुद लाभ उठाना चाहते हैं। यह भी तय कर ले।
vi तय
करें आप राजनीति करना चाहते हैं या समाज सेवा दोनों में फर्क है।
vii जिन सिद्धांतों की आप बात करते हैं। उनका पालन आप पहले स्वयं करें। एक मिसाल कायम करें। तभी उन सिद्धांतों की बात आप करें।
कुछ
बातों का ध्यान अगर आप देंगे। तो लोग आपके साथ जुड़ेंगे और आप किसी लक्ष्य के साथ
आगे बढ़ पाएंगे। उन लोगों का जरूर साथ लें जो जानकार हैं, शिक्षित हैं, लक्ष्य को
समझते हैं।
याद
रखें अज्ञानी समाज सुधारक, समाज के लिए खासकर दलित और आदिवासी समाज के लिए मानव बम
की तरह है। आप एक शिक्षित समाज सुधारक बनने की मिसाल कायम करें। जागरूक करने के
लिए जरूरी नहीं है कि आप घर घर जाएं या कोई सम्मेलन करें। सोशल मीडिया के माध्यम
से भी आप समाज को जानकारी विश्लेषण और अपना पक्ष बता सकते हैं।
The Big lie of the century -hai preet jahan ki reet sada
सदी
का महाझूठ - है प्रीत जहां की रीत सदा
संजीव
खुदशाह
भारतीय
सिनेमा के कुछ गीतों ने समाज पर अमिट छाप छोड़ी है। कुछ गीतों ने तो लोगो का मार्ग
दर्शन भी किया है। इनमें कुछ गीत ऐसे भी रहे है जिन्होने समाज पर अमिट छाप तो
छोड़ी है लेकिन वे झूठ के पूलिंदे रहे है,
महज भावनाओं से भरे हुये, सच्चाई से कोशो दूर।
ऐसा ही एक गीत है “है प्रीत जहां की रीत सदा।“ इस गीत को फिल्म पूरब पश्चिम के लिए इंदिवर उर्फ श्यामलाल बाबू राय ने 1970 में लिखा था। प्राथमिक शालेय जीवन में यह गीत इन पंक्तियों के लेखक के मस्तिष्क पर गहरे तक प्रभावित किया था। वह महेन्द्र कपूर की आवाज में इस गीत को गया करते। उन्हे लगता था की इस गीत की लिखी बाते शब्दश: सही है। लेकिन जैसे जैसे लेखक बड़ा हुआ उसके अनुभव और ज्ञान में वृध्दि होती गई । सपनों की दुनिया के बजाय जीवन के सच्चाइयों का सामना होता गया। वैसे वैसे इस गीत के एक-एक लफ़्ज झूठे साबित होते गये। आज इसी गीत पर बात होगी। पहले आप गीत की पंक्तियोंको पूरा पढ ले ।
जब ज़ीरो
दिया मेरे भारत ने
भारत ने
मेरे भारत ने
दुनिया को
तब गिनती आयी
तारों की
भाषा भारत ने
दुनिया को पहले सिखलायी
देता ना
दशमलव भारत तो
यूँ चाँद पे
जाना मुश्किल था
धरती और
चाँद की दूरी का
अंदाज़ लगाना
मुश्किल था
सभ्यता जहाँ
पहले आयी
पहले जनमी
है जहाँ पे कला
अपना भारत
जो भारत है
जिसके पीछे
संसार चला
संसार चला
और आगे बढ़ा
ज्यूँ आगे
बढ़ा,
बढ़ता ही गया
भगवान करे
ये और बढ़े
बढ़ता ही रहे
और फूले-फले
मदनपुरी:
चुप क्यों हो गये?
और सुनाओ
स्थाई
है प्रीत
जहाँ की रीत सदा
मैं गीत
वहाँ के गाता हूँ
भारत का
रहने वाला हूँ
भारत की बात
सुनाता हूँ
अंतरा 1
काले-गोरे
का भेद नहीं
हर दिल से
हमारा नाता है
कुछ और न
आता हो हमको
हमें प्यार
निभाना आता है
जिसे मान
चुकी सारी दुनिया
मैं बात
वोही दोहराता हूँ
भारत का
रहने वाला हूँ
भारत की बात
सुनाता हूँ
अंतरा 2
जीते हो
किसीने देश तो क्या
हमने तो
दिलों को जीता है
जहाँ राम
अभी तक है नर में
नारी में
अभी तक सीता है
इतने पावन
हैं लोग जहाँ
मैं नित-नित
शीश झुकाता हूँ
भारत का
रहने वाला हूँ
भारत की बात
सुनाता हूँ
अंतरा 3
इतनी ममता
नदियों को भी
जहाँ माता
कहके बुलाते है
इतना आदर
इन्सान तो क्या
पत्थर भी
पूजे जातें है
इस धरती पे
मैंने जनम लिया
ये सोच के
मैं इतराता हूँ
भारत का
रहने वाला हूँ
भारत की बात
सुनाता हूँ
क्या सच
में भार ने जीरो दिया है?
(जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने
भारत ने
मेरे भारत ने)
आमतौर पर एक आम पढ़ा लिखा भारतीय यह मानता है कि भारत में शुन्य का अविष्कार हुआ। कुछ का कहना है कि पांचवी शताब्दी में भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने शुन्य का प्रयोग पहली बार किया था। यह मान्यता सिर्फ भारतीयों की है विश्व इससे कोई इत्तेफाक नही रखता। ये खुशफहमी भारत में कैसे घर कर गई यह एक अलग
विषय है। लेकिन शून्य का अविष्कार किसने किया और कब किया आज एक अंधकार की गर्त में छुपा हुआ है।ऐसी कथाएं प्रचलित है की पहली बार शून्य का अविष्कार
बाबिल इराक में हुआ दूसरी बार माया सभ्यता 1500 इपू के लोगो ने इसका अविष्कार
किया। ऐसी जानकारी मिलती है कि मेसोपोटामिया के सुमेरियन लेखको (3500 ई पू) स्तंभो
में अनुपस्थिति को निरूपित करने के लिए रिक्त स्थान का उपयोग किया था।
हाल
ही में अमेरिकी गणितज्ञ आमिर एक्जेल ने सबसे पुराना शून्य कंबोडिया में खोजा है।
उन्होने अपनी किताब (फाईउिग जीरो: ए मैथमेटिशियन ओडिसी टू अनकवर द ओरिजिन आफ नंबर
2015) में दावा करते है की सबसे पुराना शून्य भारत में नही बल्कि कम्बोडिया में
मिला।
यानि ताजा खोज से ये सिध्द होता है
कि जीरो की खोज भारत में नही हुई।
(दुनिया को तब गिनती आयी)
यह
एक बड़ा झूठ है विश्व की पुरानी से पुरानी सभ्यता सुमेरियन (3500 ई पू) में सिक्के
और बैकिंग प्रणाली के सबूत मिले है जो की बिना गिनती के सम्भव नही है।
तारों की भाषा भारत ने
दुनिया को
पहले सिखलायी
यदि
कवि का इशारा ज्योतिष विज्ञान से है तो यह एक धूर्त भाषा है। भारत में ज्योतिष
नक्षत्र के बहाने लोगो को ठगा जाता है।
यदि कवि का इशारा तारो की खोज से है तो
बता दे की अरस्तु के बाद गैलिलियों ने नक्षत्र और तारों के बारे में
वैज्ञानिक ढंग से बताया। और अपना दूरबीन यंत्र विकसित किया।
यह
कहना की तारो की भाषा भारत ने सिखलायी कोरी कपोल बाते है।
दशमलव
भारत ने दिया ?
इसका संबंध
शून्य के अविष्कार से है जिसकी चर्चा पहले की जा चुकी है।
दशमलव
से चांद की दूरी निकाली गई ?
ऐसा लगता
है कि कवि इन्दीवर का विज्ञान पक्ष काफी कमजोर रहा होगा। दूरी की गणना प्रकाश
वर्ष के सिध्दान्त के माध्यम से की गई है जिसका अविष्कार यूरोपियों ने किया
है।
क्या
सचमुच सभ्यता यहां पहले आई ?
यदि
कवि का इशारा सभ्यता यानि अच्छे चाल चलन से है तो आप इसका अंदाजा यहां के जेलों
में बंद धर्म गुरूओं से कर सकते है। यदि कवि का इशारा मानव सभ्यता से है तो
कार्बन डेटिंग के अनुसार सबसे पुरानी सम्यता सुमेर 3500 इसा पूर्व सम्यता को
माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता 2300 इ पू क माना जाता है।
क्या
कला का जन्म यहां पहली बार हुआ ?
कवि
किस कला का जन्म पहली बार हुआ ये नही बता रहे है। शायद उनका इतिहास बोध कमजोर रहा
होगा। जब सभ्यता में आप पीछे थे तो कला में आगे कैसे हो सकते है।
भारत
के पीछे संसार चला ?
आखिर किस
मामले में संसार भारत के पीछे चल रहा है। कवि बताने से परहेज कर रहे है। जबकि
ज्ञात इतिहास में भारत ही यूरोपिय देशो के पीछे पीछे चल रहा है । यदि अध्यात्म
में आगे चल रहा है तो प्राचीन काल से लेकर अब तक यहां के आध्यात्मीक गुरूओं के ऊपर
हत्या से लेकर रेप तक के आरोप क्यो लगे है।
स्थाई
है
प्रीत जहाँ की रीत सदा
मैं
गीत वहाँ के गाता हूँ
भारत
का रहने वाला हूँ
भारत
की बात सुनाता हूँ
mob linching india |
प्रश्न यह है क्या सच मुच प्रीत इस देश की रीत है? महामारी करोना लाकडाऊन जैसी स्थिति में कोरंटाईन में ब्राम्हण दलितों के हाथों का बना खाने खाने से इनकार कर रहे है। हजारों कन्या भ्रूण जन्म से पहले मार दी जाती है। बहुऐ दहेज की बली चढा दी जाती है। दलितों आदिवासियों पिछड़ा वर्ग और मुसलमानों की माब लिंचिंग आम बात है। क्या कवि इसी प्रीत की बात कर रहे है।
अंतरा
1
काले-गोरे का भेद नहीं
हर दिल से हमारा नाता है
कुछ और न आता हो हमको
हमें प्यार निभाना आता है
पहले
अंतरे को पढने के बाद ये प्रश्न उठता है कि क्या भारत में सचमुच कोई भेद भाव नही
है। जाति भेद, माब लिचिग, छुआ छूत के रहते हर दिल से नाता की बात करना आप जनता को
बेवकूफ बनाना है। ये बात तो सही है कि कुछ और आपको नही आता है। पर प्यार निभाना
भी नही आता है। जातिय और धार्मिक नफरत सिखाने वाले लोग कहते है कि हमे प्यार
निभाना आता है।
अंतरा
2
जीते
हो किसीने देश तो क्या
हमने
तो दिलों को जीता है
जहाँ
राम अभी तक है नर में
नारी
में अभी तक सीता है
इतने
पावन हैं लोग जहाँ
मैं
नित-नित शीश झुकाता हूँ
इस
अंतरे में भी सिवाय लफाजी के कुछ और नही है। ये बात तो सही है कि भारत ने किसी देश
को नही जीता है। लेकिन दिलो को जीतने वाली बात झूठी है। एकलव्य का अंगूठा काटने
वाले दिल को कैसे जीत सकते है। शूद्र (पिछडा
वर्ग) के संबूक का वध करने वाले राम पूरे देश का आदर्श कैसे हो सकते है। उसी
प्रकार अग्नि परिक्षा देने वाली सीता पूरे भारत की नारी की आदर्श नही हो सकती। अब
आप ही बताईये की जहां के लोग बात बात में नफरत, छुआ छूत, ऊंच नीच बरतते हो वह पावन
कैसे कहला सकते है। वह आज से नही प्रचीन काल से, धर्म ग्रन्थो में भी यही छुआ छूत
ऊच नीच नफरत भरी हुई है।
अंतरा
3
इतनी ममता नदियों को भी
जहाँ माता कहके बुलाते है
इतना आदर इन्सान तो क्या
पत्थर भी पूजे जातें है
ये
बात तो सही है यहां नदियों को माता कहा जाता है। लेकिन ममता की बात झूठी है पूरे
मल मूत्र, गंदगी, शव आदि इसी नदियों में बहाकर गंदगी फैलाई जाती है। माता तो यहां
गाय को भी कहा जाता है लेकिन सगी माता उपेक्षा का शिकार होकर वृध्दा आश्रम में
अंतिम समय बिताती है। यह बात तो सही है कि यहां पत्थर ही पूजे जाते है मनुष्य को
आदर तो क्या स्पर्श के योग्य भी नही समझा जाता है।